होली का त्योहार है रूठों को मनाने का,
बिछड़े दिलों को फिर से मिलानेका।।
अपनें ही परिवेश में अनजान न बन,
एक साथ मिल कर खुशियां मनाने का।।
प्रेम के रंग में रंग जानें का
होली के रंग में धमाल मचाने का।।
ऊंच नीच,जात पात के बंधन को छोड़ कर,
हर एक पल को भूल कर बस जम कर रंग बरसानें का।।
हो हुल्लड़ मचानें का। मस्ती से ठूमका लगानें का,
एक दूसरे पर अपनत्व का गुलाल लगा , खुशियां लुटानें का।।
बच्चों के संग बच्चा बन कर मौज मस्ती मनानें का।
उन को ममतामयी आंचल में, सजाने संवारनें का।।
प्रेम भाव को भूल गए।
नफ़रत के बीजों से झूल गए।
रिश्तों के एहसास को खो चुके।
कटुता के अंकुर बो बैठै।।
हर समय तकरार करके,अपने ही अहमं भाव में तन बैठे।
होली की जगह गोली की चिंगारी बन हर एक से शत्रुता कर बैठे।
कैमिकल वाले रंगों कि पिचकारी चलाना सीख गए हम।।
प्रकृति से जुड़ी हर वस्तु को नष्ट करना सीख गए हम।।
एक दूसरे को नीचा दिखा कर ,हराने के लिए डोल गए।
एक दूसरे पर भरोसा करने के बजाए,एक दूसरे से घृणा के बीज बोते गए।।
कृष्ण कन्हैया की होली का खेल भूल चुके।
अपनें ही रंगों में रंगना भूल चुके।।
तू तू मैं मैं के तानें देना सीख गए।
व्रज कि होली कि झंकार भूल गए।।
आज हमारी होली हम से छीन चुकी ।
मैत्री भावना की चाह हम से खो चुकी।
आपस में वार्तालाप से कतराते हैं।
एक दूसरे से ईर्ष्या छल कपट के नए नए धन्धे जुटातें हैं।
होली के बजाए गोली की राह अपनाते हैं।।
हमारे बच्चे राख धूल मिट्टी अबीर और गुलाल लगाना भूल गए।
पानी के गुब्बारे और कैमिकल ,तेजाब मिले रंग में झूल गए।।
वटहहैप पर और ट्विटर के द्वारा होली खेलने का फैशन आया।
औन लाईन के जरिए होली खेलनें का चित्र भिजवाया।।
आज हैपी होली का संदेश भेज कर खुशियां मनातें हैं।
एक दूसरे से मिलने के बजाए वटसहैप पर ही खुशियां जुटातें हैं।
हर कोई किसी के घर जानें से कतराया।
हर एक के मन में स्वार्थ का बीज लहराया।।
आज गले मिलने से कतराते हैं।
अपनें पर गर्व कर अपनी करनी पर इतरातें हैं।
धूल भरी होली को तुच्छ बताते हैं।।
कैमिकल वाले रंग सब पर छिडकातें हैं।।
उपलों को जला कर उसकी सुलगती आंच का जिक्र हम भूल गए।
गेहूं की बालियों और कच्चे चनों का स्वाद भूल गए।
रूठों को मनाने का अदांज भूल गए।
मन की गांठे भी न खोल सके।
रंगों से भिड़ना भूल चुके।
पानी में पिचकारी छोड़ना भूल गए।
अपनें अहंकार में इतना आगे आ बैठे।
अपनें अस्तित्व कि पहचान ही को खो बैठै।
घर में मीठी मीठी तरकारीयों कि खुशबु भूल गए।
नानी दादी के हाथों से बने पकवानों कि महक भूल गए।
आनलाईन मिठाइयों का आर्डर देनें का तरीका सीख गए।।