दोस्ती की मिसाल (कविता ))30/9/2018

मेरे दोस्त मुन्नू तुम इधर तो आओ, इधर तो आओ।।
कुछ मेरी सुनो, कुछ अपनी सुनाओ।
मेरी खुशी में चार चांद तो लगाओ।
चारचांद तो लगाओ।
कुछ अपनी कहो, कुछ मेरी सुनो।
तुम क्यों हो मुझ से खफा खफा हो कर गाल फैलाए बैठ हो।?
चेहरे पे झूठ का नकाब क्यों लिए बैठे हो?
तुम्हें यूं उदास देख कर मेरी भी आंख भर आई।
उदासी छोड़ कर चेहरे पे रौनक तो लाओ। रौनक तो लाओ।
मुझ से खफा हो कर
तनिक भी तुम्हें क्या लज्जा नहीं आई।
अपनी सच्ची दोस्ती की किमत क्या तुमनें इस तरह चुकाई?
मेरे प्यारे दोस्त मुन्नू इधर तोआओ, इधर तो आओ।
इधर आकरतुम, मेरे गले लग जाओ।
गले लगा कर अपनी उदासी को मिटाओ, उदासी मिटाओ।
कुछ मेरी सुनों कुछ अपनी सुनाओ।
मेरे दोस्त मुन्नू इधर तो आओ।। इधर तो आओ।।
मुझे से मिल कर अपनी खुशी जाहिर कर दिखाओ।
मेरे प्यारे दोस्त मुन्नू
हम आपस में न करेंगें हाथापाई।
नहीं-तो दोस्तों में हमारी होगी रुसवाई।
यूं ही अपनी दोस्ती निभाते रहो।
अपनी खुशी यूं ही झलकाते रहो।
हम आपस में एक और एक मिलकर ग्यारह बनाएंगे।
अपनें दोस्तों को भी अपनी दोस्ती में शामिल कर उन सभी के साथ खुशिया मनाएंगे।
हम अपनें माता पिता और गुरुजनों का सम्मान करेंगें।
उनकी कसौटी पर खरा उतर कर दिखाएंगे। आपस में तकरार न कर।
यूं ही अपनी दोस्ती को निभाएंगे।
हम मेहनत और लग्न से पढाई किया करेंगे। जहां में अपने माता-पिता के नामको रौशन करेंगे।
जो काम हमारे अभिभावक न कर पाए।
वह भी कर दिखाएंगे।
उनके सपनों को हकीकत में बदल कर दिखाएंगे।
दिन दुनी रात चौगुनी उन्नति कर पाएंगे।
उनके चेहरों पर खुशी की रंगत लाएंगे।
यूं ही अपनी दोस्ती निभाती कर।
सब के दिलों पे छा जाएंगे।
मेरे दोस्त मुन्नू इधर तो आओ, इधर तो आओ।
फिर से मेरी तरफ दोस्ती का हाथ बढा कर
अपनी खुशी तो छलकाओ।

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