(शिमला में बिन मौसम बरसात)

बिन मौसम की की बारिश में ऐ मानव क्या तू दौड़ पाएगा?

पल में ठंडक पल में गर्मी क्या तू सह आएगा।।

गर्मी के मौसम में आसमान ने बजाई रणभेरी।

वर्षा ने आते हुए भी नहीं लगाई देरी।।

छम छम वर्षा ने बरस कर पानी बरसाया।
बादलों ने भी गरज गरज कर अपना बिगुल बजाया।।

लोग ठंड में ठिठूर  सिकुड़ कर होटलों ढाबों पर जा दौड़े।

टूरिस्ट सैलानी भी अपने होटलों में जाने को  भाग पड़े।।

ढाबों और दुकानदारों की पौ बारह हुई। पर्यटकों और सैलानियों की चारों ओर  भीड़  उमड़ पड़ी।।

बच्चे भी ठंड से कांप कर ठिठुर गए ।

हलवाई की दुकान  पर गुलाब जामुन और जलेबी खाने को मचल पड़े।।

बिन मौसम की बरसात नें ए कैसा डेरा डाला।
पर्यटक आपस में बोले यह कैसी आफत ने घेरा डाला ।।

बिन मौसम की बरसात ने कैसा जादू डाला।
कभी गर्मी तो कभी सर्दी का रुख बदल डाला।।

थोड़ी देर बाद बर्फ के फाहे गिरने लगे।

पर्यटक आनंद विभोर होकर एक दूसरे पर बर्फ  फेंकने लगे।।

बच्चे और सैलानी  बर्फ पर कभी फिसलते कभी तेजी से उठ पड़ते।

चारों ओर  इधर उधर नजरें दौड़ा कर उठने की कोशिश करते।।

लोग इधर-उधर पैदल चलने पर मजबूर हुए।
बर्फ में फिसल फिसल कर चकनाचूर हुए।।
फिल्मी शूटिंग की चहल-पहल भी  दी दिखाई।
आगे जाकर देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ आई।।

बिन मौसम की बरसात ने कैसा जादू डाला।
कभी गर्मी तो कभी सर्दी का रुख बदल डाला।।

कुछ लोग सिनेमा हॉल में दौड़ पड़े। भीड़ में लगकर टिकट के लिए  उमड़ पड़े।।

रेडी लगाने वाले भी वर्षा से आहत हुए।

अपने स्टॉल उठा उठा कर भागने पर आमदा हुए।।

मौसम ने एक बार फिर अपना मिजाज संवारने डाला।

थोड़ी धूप दिखाकर पर्यटकों को मुग्ध कर डाला।।

पर्यटक और सैलानी माल रोड पर सेल्फी लेते नजर आए।

बच्चे भी घोड़े की घुड़सवारी करते खुश नजर आए।।

जगह जगह चाय की दुकानें थी दिखाई।

रेढी वालों और गरीबों को दुकानदारों नें मुफ्त में चाय पिलाई।।

ऑफिस के कर्मचारी और महिलाएं भी थोड़ी से परेशान नजर आए।

बिन मौसम का अंदाज देखकर पछताए।

वर्षा के लालच क्या गलती से आकर भीग गए?

वर्षा के लालच में बाहर आकर कंहा फंस गए।।?

जादू मन्दिर कीअदभूत शोभा थी निराली।

चारों ओर बर्फ की सफेद चादर थी दिखाई।

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