सविता और शेखर अपने बेटे आदित्य के साथ बहुत खुश थे ।आदित्य एक होनहार बालक था। वह ज्यादातर समय अपने दादा जी के साथ ही रहनाचाहता था।वह जब भी स्कूल से आता अपने दादा जी के साथ थोड़ी देर बातें करता उनसे कहानी सुनताउनका बहुत ही ध्यान रखता था ।सविता भी एक ऑफिस में कार्यरत थी ।शेखर भी एक ऑफिस में काम करता था सरिता अपने बेटे का बहुत ही ध्यान रखती थी मगर आदित्य को ज्यादा समय अपने अपने दादा जी के साथ बिताने में मजा आता था। उसकी मां उसे जो खाना देती तो देखता कि उसकी मम्मी ने दादा जी को खाना दिया है या नहीं वह कहता पहले मेरे दादा जी को दो जो भी खाने की चीज घर में आती तो वह कहता मां पहले हमारे दादा जी को दो। कभी-कभी तो उसकी मम्मी उसकी बात पर नाराज हो जाती कि मैं उन्हें दे भी रही हूं या नही।ं तुम मुझे सिखा रहे हो परंतु जब तक हमने अपने हाथों से खिलाना न ले तब तक उसे चैननहीं आता था ।उसके पिता अपने बेटे का अपने दादा के प्रति इतना प्यार देख कर फूला नहीं समाते थे । उसकी मां जब उसे दूध पीने को दी थी तो वह दौड़ा दौड़ा अपने दादाजी के पास जाता दादाजी दूध पी लो ।संतोष की मम्मी उस से कहती दादाजी को ज्यादा दूध पीने को नहीं देना चाहिए ।इस उम्र में दूध हजम होता भी या नंही। पता नहीं है जब कभी उसकी मम्मी छुपाकर मिठाई खाने को न दे देती दादा जी को जब तक ना दे दे । वह तब तक अपनी मां की बात को नहीं मानता था ।एक बार उसके दादा जी बहुत ही बीमार पड़ गए थे ।उसकी मम्मी ने कहा कि तू दादाजी के पास नंही जाएगा। क्योंकि वह बीमार है? आदि त्य बोला मुझे कुछ नहीं होगा ।उसकी मम्मी ने कहा कि तुम अपने दादाजी के पास नहीं जाओगे ।अगर तुम अपने दादाजी के पास जाओगे तो तुम भी बीमार पड़ जाओगे परंतु उसने अपनी मम्मी की बात को नजरअंदाज कर दिया और बोला मां-मां अगर मैं बीमार पड़ गया तो कोई बात नहीं ?मेरे दादाजी बहुत ही बूढ़े हो चुके हैं।वह भी तो मेरा इतना ध्यान रखते हैं मैं भी उन्हें बीमारी की इस हालत में अकेला नहीं छोड़ूंगा ।मैं अगर बीमार पड़ जाऊंगा तो कोई बात नहीं मैं तो छोटा हूं ।मैं तो जल्दी ही ठीक हो जाऊंगा परंतु मेरे दादाजी तो बूढ़े हो चुके हैं ।उन्हें हमारी बहुत ही जरूरत है उन्हें किसी वस्तु की जरूरत होगी तो उन्हें कौन देगा ?आज तो मैं मैं स्कूल में मैं भी नहीं जाऊंगा ।मेरे दादाजी का बुखार जब तक ठीक नहीं होगा , तब तक मैं स्कूल नहीं जाऊंगा ।उसकी मम्मी आदित्य को हर रोज उसे तिथि वर्ग आयोग को खर्चा देती थी। वह इन सभी रूपयों को अपनी गुल्क में डाल देता था ।एक दिन उसके दादाजी अखबार पढ़ रहे थे ।उनका चश्मा टूट गया चश्मा टूट जाने का बहुत दु:ख हुआ ।आदित्य अपनी मम्मी से कहता था कि मम्मी जल्दी से दादाजी का चश्मा बनवा कर दे दो। दो महीने से भी ज्यादा समय हो चुका था अभी तक उसकी मम्मी ने दादाजी का चश्मा नहीं लाया था ।उसके दादाजी पानी पीने के लिए जैसे ही गए उनके घुटने में चोट लग गई।अपने दादा जी को ऐसी अवस्था में देख कर बहुत ही उदास हो गया। उसने अपनी मां से कहा कि दादा जी को चश्मा बनवा दो ।उसकी मां ने कहा मेरे पास रुपए नहीं है। यह बात आदि त्य को बहुत बुरी लगी ।वह मेरे दादाजी काध्यान नंही रखती। हमारे गांव में मेला है । मैं मेला देखने जाऊंगा उसकी मां ने कहा बेटा चले जाना। उसकी मां ने उसे जेब खर्च के लिए पचास रुपए दिए ।रुपए पाकर आदित्य खुशी से फूला नहीं समाया ।उसने कुछ रूपये अपनी गुल्लक में भी इकट्ठे करे हुए थे।उस उसके मामा जी भी उनके घर पर आए हुए थे ।जाते-जाते उन्होंने आदित्य को रूपये दिये रूपये पा कर आदित्य बहुत ही खुश हुआ। उस की गुल्लक में सौ रुपये इकट्ठे हो गए थे। उसके पास दोसौ पचास रूपये इकट्ठे है गए थे। वह दूसरे दिन सुबह सुबह अपने दोस्तों के साथ मेला देखने चला गया ।मेले में तरह तरह की मिठाइयां देख कर उसका मन ललचा गया ।परंतु उसने सोचा कि नहीं मैं मिठाई को हाथ भी नहीं लगाऊंगा आज तो मैं केवल अपने दादाजी के लिए चश्मा लूंगा ।मेरे दादाजी बहुत ही बूढ़े हो चुके हैं। उनकी आंखों से दिखाई नहीं देता मैंने कितनी बार मां को उनका चश्मा लाने के लिए कहा परंतु ना जाने मां उनका चश्मा क्यों नंही बनवाती हैं। चार-पांच महीने व्यतीत हो चुके हैं अभी तक मेरी मम्मी दादाजी के लिए चश्मा लेकर नहीं आई। एक तो बेचारे दादाजी के घुटने में बड़ी चोट लगी ।चाहे कुछ भी हो वह मिठाई को हाथ भी नहीं लगाएगा। उसने अपने दोस्तों को मिठाई खाते देखा उसके दोस्त उसके पास आकर बोले चलो कुछ खाते हैं ।परंतु वह बोला, आज मैं कुछ नहीं खाऊंगा ।बाजार की चीजें हमें नहीं खानी चाहिए । उसके कुछ दोस्त मिठाइयां खाना खाने के लिए चले गए। कुछ दोस्त बोले चलो मिठाई नहीं खाएंगे चलो यह रैकिट ले लेते हैं।ं हम जब खेलने जाया करेंगे तब हम इस के साथ खेलेगें।तुम ही तो कहते थे कि मेरे पास रैकिट नहीं आज तुम्हे क्या हो गया ?तुम चाह कर भी रैकिट को नहीं खरीद रहे हो। वह बोला मैंने रैकिट नहीं खरीदना है। मैं तो कुछ और खरीदने जा रहा हूं ।खरीदने पर बता दूंगा तब उसके दोस्त उस से नाराज हो कर चले गए। चश्मे वाले की दुकान पर आदित्य खड़ा हो गया और बोला अंकल अंकल यह चश्मा कितने का है । वह चश्मे वाला बोला यह तो तीनसौ रूपयों का है । उसके पास तो केवल दोसौ पचास ही रूपये थे। चश्मे वाला उसकी तरफ देख कर हंस कर बोला ।इस चश्मे का तुम क्या करोगे ?यह तो बूढ़े व्यक्तियों का चश्मा है । आदित्य बोला यह चश्मा मुझे मेरे दादाजी के लिए खरीदना है। चश्मे वाला बोला बेटा यह चश्मा तीनसौ रुपए का है ।आदित्य बोला कि मुझे यह चश्मा ही खरीदना है। मेरे पास केवल दोसौ पचास रूपये ही हैं। कृपया मुझे दोसौ पचास रूपयों का चश्मा ही दे दो। वह चश्मे वाला बोला नहीं भाई तुम किसी और दुकान पर जाओ अगर तुम्हारे पास तीनसौ रूपये है तो चश्मा ले जाओ वरना घर चले जाओ। वह काफी देर तक दुकानदार को मनवाने की कोशिश करता रहा परंतु दुकानदार भी अपनी बात पर अड़ा रहा ।आदित्य ने देखा सभी बच्चे अपने -अपनें घरों कों चले गए थे ।वह अकेले ही रह गया था तभी आदित्यनाथ की नजर अपने हाथ की अंगूठी पर गई ।वह अंगूठी उसके मामा जी ने उसके जन्मदिन पर उसे उपहार में दीथी ।उसने दुकानदार को कहा भाई मेरे पास पचास रूपये ही कम है परंतु मेरे पास यह चांदी की अंगूठी है ।यह मेरे मामा जी ने मुझे जन्मदिन पर दी थी। तुम इसे रख लो ।दुकानदार ने अंगूठी को उलट पलट कर देखा और कहा चलो चश्मा ले जाओ अब तो चश्मा पाकर आदित्य बहुत ही खुश हो गया था ।उसे भूख बहुत जोर की लग रही थी परंतु उसके पास अब कोई भी रूपये नंही बचे थे ।दुकानदार ने उसे अंगूठी की कीमत ₹50 लगाई थी ।क्योंकि दुकानदार कहने लगा कि अंगूठी घिस चुकी है इस की किमत पचास रूपये ज्यादा की गई है । चश्मा लेकर आदित्य जल्दी जल्दी घर पहुंचने के लिए जान लगा रास्ते में चलते हुए उसे डर भी लग रहा था । वह भगवान का नाम लेता जल्दी-जल्दी घर की ओर चल पड़ा। उसके सभी दोस्त उसको घर न पंहुचने पर बहुत ही परेशान हुए, क्योंकि अभी तक,आदि त्य घर नहीं पहुंचा था ।आदित्य के पापा उसे अपने साथ लेकर आए ।तुम्हारे सारे दोस्त तो पहले ही वापस घर जा चुके थे ।उसकी मम्मी ने उससे पूछा कि तुमने मेले में क्या खरीदा ?वह पहले दौड़ा दौड़ा दादाजी के पास गया और बोला दादाजी यह लो आपको मैं चश्मा लेकर आया हूं ।आप कई बार बिना चश्मे से कितनी बार गिरे और बिना चश्मे से आप अखबार भी नहीं पढ़ सकते थे ।मैं आपको चश्मा लेकर आया हूं यह कहकर उसने चश्मा अपने दादाजी को पहना दिया। दादाजी का अपने पोते का अपने प्रति इतना प्यार देख कर उनके दादाजी फूले नहीं समाए।वह खुश होकर बोले बेटा क्या तुमने कुछ खाया भी या नहीं ?यह चश्मा तू मुझे क्यूं लाया ?आदित्य ने अपनी मम्मी को कहा कि चश्मे का मालिक यह चश्मा तीनसौ रूपये का दे रहा था। मेरे पास केवल ₹250 थे मैंने चश्मे वाले को बहुत समझाने की कोशिश की ,कि यह चश्मा मुझे 250 रूपय में दे दो ।परंतु वह चश्मे वाला राजी नहीं हुआ तभी मुझे देर हुई ।मैं सोचने लगा शायद मुझे चश्मा ₹250 में दे देगा परंतु जब काफी देर तक उसने मुझे चश्मा नहीं दिया तब मेरी नजर अपने हाथ में पहनी हुई चांदी की अंगूठी पर पड़ी मैंने वह अंगूठी दुकानदार को ₹50 में बेच दी तब जाकर कहीं वह माना। आदित्य की मम्मी को अपने बेटे का अपने दादाजी के प्रति प्यार देखकर बहुत ही खुशी हुई परंतु वह अपनी गलती पर पछताने लगी। वह अभी तक उसके दादा जी के लिए चश्मा ला कर नहीं दे सकी थी ।हमारे से तो हमारा बेटा ही अच्छा है ।यह सोचकर वह जल्दी से उसके दादा जी को दवाई देने जाने लगी और सोचने लगी कि हमें अपने बेटे से ही सीख लेनी चाहिए ।आदित्य आकर बोला मां-मां मुझे बड़ी जोर की भूख लगी है ।उसकी मां की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे।कहीं ना कहीं उसे अपने अंदर एक भूल का पश्चाताप हुआ। वह होली बेटा जल्दी आओ मैं तुझे गर्म-गर्म पूरियां खिलाती हूं। पहले अपने दादा जी को जा कर पूरी दे कर आ।तुम दोनों इकट्ठे बैठ कर खाओ।