एक घना जंगल था। उसमें बहुत सारे पशु पक्षी रहते थे। पास में ही पेड़ पर बहुत सारे बंदर रहते थे। उन बंदरों में से एक बंदर बहुत ही शातिर था। वह उन सब बंदरों का लीडर था। वह उन पर रोब झाडता रहता था। सारे के सारे बंदर इधर-उधर उछल कूद कर मंडराते रहते। कभी एक शाखा से दूसरी शाखा पर। वह सब भोजन की तलाश में सारे के सारे इकट्ठा होकर निकल पड़ते। वहीं केवल एक ऐसा बंदर था जो कभी कहीं नहीं जाता था। सभी बंदरों का नेता था। सब बदंर जो कुछ लाते वह वही पेड़ पर बैठा बैठा खाकर बिना मेहनत किए और कुछ का भोजन चुरा कर अपना पेट भर लिया करता था। सभी बंदरों पर अपना हुक्म चलाता था। कहना ना मानने पर सभी बदंरों को डराता था। तुमने कहना न माना तो मैं अकेला ही तुम्हारे लिए बहुत हूं। तुम मेरी शक्ति से सब अनजान हो। सब बंदर उसकी धमकियों से डर जाते थे लेकिन कुछ नहीं कह सकते थे। सारे के सारे बंदर अपने नेता के सामने भीगी बिल्ली बन जाते थे। उसके ईशारों पर नाचते थे। वह कठपुतली की तरह उन सब को अपनें इशारों पर नचाता था।
एक दिन बंदरों के नेता ने सोचा यहां तो मेरा ही राज है। इस पेड़ के समीप ही बहुत सारे पक्षी घोसला बनाकर रहते हैं। मैं इन्हें भी डरा धमका कर लिया करूंगा। लेकिन इसके लिए रोटी हडपनें के लिए मैं कहीं बाहर नहीं जाऊंगा। इनकी रोटी को भी डरा कर खा लिया करूंगा। वह अपने मन में तरह-तरह की योजनाएं बनाया करता था। सारे के सारे कौवे जब भोजन की तलाश में जब दूर-दूर तक उड़ जाते उनमें से केवल एक ही ऐसा कौवा था जो बहुत ही बूढा था। वह आस-पास ही भोजन की तलाश में जो कुछ मिलता उसको खाकर अपना पेट भरता था। पेड़ पर अपने बच्चों की रखवाली भी किया करता था।
एक दिन बंदर ने सोचा क्यों ना में इस कौवे का भी भोजन छीन लिया करुंगा। यह कौवा दूर उड पानें में भी असमर्थ है। जब भी कोई रोटी का टुकड़ा उस कौवे को फेंकता था वह कोई ना कोई विघ्न डालने की कोशिश करता। खो खो कर के उसके पास आकर उसको डरानें लगता। कौवा बेचारा हर बार विफल हो कर अपने रोटी का टुकड़ा नीचे गिरा देता। बंदर खुशी-खुशी रोटी प्राप्त करता और उसे हर रोज दुःखी करता। इस तरह बहुत दिन व्यतीत हो गए। वह बुढा कौवा लाचार हो गया। वह भूखा ही रह जाता।कुछ कौवे उसे भोजन दे दिया करते थे लेकिन वह फिर भी भूखा रह जाता। एक दिन उसनें अपनें मन में सोचा कि इस प्रकार हाथ पर हाथ धरे रखने से कुछ हासिल नहीं होगा। वह अंदर ही अंदर मन में सोचने लगा। वह बंदर उसे मारना ही चाहता है तो वह मर जाएगा। मैं कब तक इसके डर के कारण रोटी जुटाने में असमर्थ होता रहूंगा। यह मेरे साथियों द्वारा मेहनत से लाया हुआ रोटी का टुकड़ा हर रोज हड़प कर जाता है। मैं कुछ भी नहीं कर सकता। एक दिन कौवे ने हिम्मत जुटा ही ली उसको जैसे ही समीप के घर में से किसी ने रोटी का टुकड़ा डाला बंदर ने देख लिया। बंदर उस पर झपटा। कौवे नें हिम्मत नहीं हारी। बंदर नें उसे बुरी तरह नोच दिया। इससे पहले कि वह उस पर और प्रहार करता कौवे नें अपनें आप को बंदर के चुंगल से अपनें आप को बचा लिया। हिम्मत कर के उड़कर पेड़ पर बैठ गया। लहू-लोहान हो चुका था। जब कौवों नें आकर उसको इस अवस्था में देखा वह आग बबूला हो कर शोर मचाने लगे। कांव कांव करके शोर मचानें लगे। उस कौवे में अभी प्राण शेष थे। कौवों नें उसे बचा कर उसको सुरक्षित जगह पर घौंसलें में रख दिया। वह उस बंदर के नाखूनों के कारण बुरी तरह छटपटा रहा था। उसने कौवों को अपनी सारी कहानी सुनाई। किस तरह सामने वाले पेड़ पर बंदरों के सरदार बंदर नें उस पर झपटा मार कर उसे घायल कर दिया। कौवों को बताया कि वह उसको कभी भी रोटी प्राप्त नहीं करने देता था। उन कौवों को उस पर बड़ा ही गुस्सा आया। वह उस बंदर पर नजर रखनें लगे। भोजन की तलाश में एक दिन उड़ गए तो उस बंदर ने फिर से उस कौवे पर प्रहार करने की योजना बना डाली। जैसी ही कौवा रोटी खाने लगा बंदर उस के पेड़ के पास आकर खो खो करने लगा कर कौवे को डराने लगा। एक तो पहले ही चोट से घायल हो गया था। अचानक बंदर ने उसे दबोच लिया। जैसे ही बंदर उस पर हमला करने लगा तभी सब कौवों ने आकर अपनी चोंच मार मार कर के उसे लहूलुहान कर नीचे गिरा दिया। उस के सिर पर बार बार नुकीली चोंच से प्रहार करते रहे। सब कौवों की चोट से आहत होकर वह बंदर निष्प्राण हो कर नीचे गिर पड़ा। उसे अपनी करनी का फल मिल गया था। सब बंदरों नें अपने सरदार को आहत देखा तो कुछ एक बंदर तो बहुत ही खुश हुए। प्रसन्न होकर एक दूसरे से कहनें लगे यह हम पर अपना रौब झाड़ता था। हम पर तो हर वक्त डांट फटकार कर हमें डराता रहता था। हम से बिना मेहनत के ही हमारे मेहनत से कमाई रोटी भी हमसे छीन लेता था। उसे अब अपनी करनी का फल मिल गया है। जब सब बंदरों नें मिलकर उसे समझाया तब कहीं जा कर उसका घमंड धरा का धरा रह गया।
बंदर पेड़ पर आकर अपने सरदार की झूठी प्रशंसा कर रहे थे। आप को किसने इस तरह घायल किया? इतनी हिम्मत किसकी होगी जिसने हमारे सरदार की तरफ आंख उठाकर देखना शुरू कर दिया। उसे तो सबक सिखाना ही होगा। जब सब बंदरों ने जाना कि सरदार ने एक बूढ़े लाचार कौवे पर प्रहार किया है। वह उसकी रोटी प्राप्त करना चाहता था तब सब बंदरों को लगा कि इस बंदर को वास्तव में सजा मिलनी ही चाहिए थी। किसी बूढे और लाचार पक्षी और पशु की सहायता करना हमारा धर्म है। अगर हम किसी को रोटी नहीं दिला सकते उस से हम छीनने का भी कोई हक नहीं है। अच्छा हुआ उसे अच्छा सबक मिल गया। हम भी सब मिलकर इस बंदर को सबक सिखाएंगे। जब बंदर थोड़ा ठीक हुआ तो एक दिन सभी बंदरों ने सोचा कि मौका देखकर अपने सरदार से बातचीत की जाए। अपने सरदार से बोले आप हमारे सरदार हैं। आपको हमेशा हमारे आगे आगे चलना चाहिए क्योंकि जब हम पर कोई दुश्मन प्रहार करेगा तो आप कोई ना कोई योजना बनाकर हमें सावधान होकर उससे लड़ना सिखाएंगे। वह बंदर बोला मैं कहीं नहीं जाने वाला। तुम मेरी आज्ञा मानते हो या नहीं। वह अपना पिछला दर्द भूल चुका था।
वह बहुत दिनों तक कौवों के घौंसलें की तरफ रुख भी नहीं करता था। सब बंदरों ने कहा कि आप हम पर गुस्सा होते हैं तो हो जाइए। आप हमारे राजा है। राजा ही जब सब काम में पीछे रहेगा तो हमें भी आपको राजा नहीं मानना चाहिए। हमने एक-दूसरे बंदर को आज से अपना राजा मान लिया है। वह हमें हर मुसीबत से बचाता है। वह हमारा सेनापति है। आप अकेले ही खुशी खुशी इस पेड़ पर रहा करो। हम किसी दूसरे वृक्ष की शाखा पर जाकर एक साथ मिलकर रहेंगे। सब के सब बंदर उसे अकेला छोड़कर दूसरे वृक्ष पर रहने के लिए अकेला छोड़ कर चले गए। वह अकेला हो गया अपने आपको कोसनें लगा हाय!मैंनें यह क्या अनर्थ कर डाला। मैं अकेला रह गया। अकेला रहकर कितने दिन जीया जा सकता है। जब घायल हुआ था तब उसे सब बंदरों नें उसकी सेवा कर उसे बचा लिया था। ठीक ही है वह किसी के प्यार के काबिल नहीं। वह बहुत बड़ी गलती कर बैठा था।
एक दिन उदास हो कर बैठा था कौवा उसे देख रहा था। किसी ने उस कौवे को एक रोटी का टुकड़ा डाला था। कौवा डर कर रोटी उठाने के लिए उड नहीं रहा था। बंदर दूर से कौवे को देखकर बोला। कौवे भाई कौवे भाई मैं तुम्हारे दर्द को समझ नहीं सका। मैंने तुम पर बहुत जुल्म किए। तुम निसंकोच होकर अपनी रोटी खाओ। मैं तुम्हारी रोटी का टुकड़ा तुम से नहीं छीनूंगा। जब मुझ पर बीती तब मुझे एहसास हुआ और तुम्हारा दर्द जाना। भाई हो सके तो मुझे माफ कर देना। यह कहकर बंदर वहां से दूसरे वृक्ष की शाखा पर रहने चला गया। जब वह कुदता कुदता एक दिन उस जगह पर पहुंचा जहां पर उसके सारे के सारे दोस्त रहते थे। सब दोस्तों के पास जाकर बोला मुझे अपने किए की सजा मिल चुकी है। तुम सब मुझे माफ कर दो। मैं तुम सब से माफी मांगना चाहता हूं। मैं भी तुम्हारे साथ रह सकता हूं क्या? सब के सब बंदर मुस्कुरा कर बोले। हम सब ने आप को माफ कर दिया है। आपने अपनी गलती को माना यही हमारे लिए खुशी की बात है। आप खुशी खुशी हमारे साथ रह सकते हो। वह बोला मैं भी तुम्हारे साथ हर काम में तुम्हारा सहयोग दूंगा। वह भी उन के साथ मिलजुल कर रहनें लगा।