झूठा सौदा

बग्गा एक रिक्शाचालक था। एक छोटी सी खोली में रहता था। वह रात-दिन मेहनत मजदूरी करके अपने तथा अपने बच्चों का पेट भरता था ।उसका एक बेटा था वह सोचता था कि वह अपने बच्चों को खूब पढ़ाएगा। वह तो कुछ नहीं बन सका मगर किसी ना किसी भी किसी तरह वह अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलवाएगा ।वह बहुत ही मेहनती था। सारा दिन रिक्शा चलाता था। उसको घर छोड़ना इसी से वह अपने परिवार का पालन पोषण करता था ।उसका बेटा था विक्रम ।जैसा नाम वैसा ही वह सभ्य और सुशील था ।अपने पापा के संस्कार उसमें कूट-कूट कर भरे थे ।वह हमेशा सोचा करता था कि हम एक छोटी सी खोली में रहते हैं ।यही खाना बनाते हैं ।यही सारा काम करते हैं ।मैं बड़ा होकर अपने पिता के सपनों को साकार करूंगा वह मुझे बड़ा आदमी बनाना चाहते हैं। मैं भी हमेशा कोशिश करुंगा कि मैं जल्दी से जल्दी कुछ अच्छा बनकर अपने पापा और मां को भरपूर खुशियां दूंगा ।मम्मी तो बेचारी बीमार ही रहती है सारा बोझ तो मेरे पापा के कंधे पर है ।इस तरह उनके जीवन के दिन बीत रहे थे विक्रम दसवीं कक्षा में आ चुका था ।वह सोच रहा था मैं डॉक्टर बनना चाहता हूं ।मैं डॉक्टर बन जाऊँगा तो मैं अपनी मां का ईलाज स्वयं कर सकता  हूं।

 

उसने स्कूल में मेडिकल के विषय  ले रखे थे। उसके पापा को तो इस विषय में कुछ मालूम नहीं था। वह हमेशा इसी धुन में लगा रहता था कि वह खूब मेहनत करे वह सारी सारी रात बैठ कर पढ़ा करता था। उसके पड़ोस में  एक सेठ रहते थे उनका लड़का-डॉक्टरी करना चाहता था ।वह भी उन्हीं के स्कूल में पढ़ता था। कान्वेंट स्कूल वालों ने तो उसे अपने स्कूल में दाखिला नहीं दिया था ।सिर्फ एक ही ऐसा स्कूल था जहां उसे प्रवेश मिला था ।वह हर बार फेल हो जाता था इसलिए हार कर उसके पिता ने उसे समिति के स्कूल में उसका दाखिला करवा दिया था। रिक्शा चालक का बेटा भी संयोग से उनके स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहा था ।उसको अच्छे अंकों के माध्यम से स्कूल में दाखिला मिला था   सेठ का बेटा तो हमेशा गाड़ी से स्कूल पहुंचता था ।रिक्शा चालक का बेटा तो अपने पिता के रिक्शा में या कभी-कभी पैदल ही कॉलेज आ जाया करता था ।उसने दसवीं की परीक्षा में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया था। स्कूल वालों ने उसे  छात्रवृत्ति भी दी थी ।वह कभी-कभी सेठ करोड़ीमल के बेटे से बात करने की कोशिश करता था।  करोड़ीमल का बेटा तो उसे कभी सीधे मुंह बात नहीं करता था ।उसने अपने घर में ट्यूशन लगा रखी थी ।और इंटरनेट के माध्यम से अपने विषय की जानकारी हासिल कर लेता था। ।रिक्शा चालक का बेटा तो दिन रात मेहनत कर रहा था। वह कभी-कभी पार्ट टाइम काम करके रुपए इकट्ठे करके अपनी किताबें ले लेता था ।परीक्षा भी पास आ रही थी ऐसे में करोड़ीमल का बेटा श्याम उससे बात करने लग गया था ।वह जग्गा केबेटे से प्रश्न पूछता था। एक दिन करोड़ीमल के बेटे ने उसे अपने घर बुलाया और कहा कि चलो आज हम दोनों बैठकर पढ़ाई करते ह।बातों ही बातों में उसने आधे से ज्यादा प्रश्न श्याम को हल करवा दिए थे। वह कहने लगा अब तो मुझे गहरी नींद आ रही है। तू भी सो जा करोड़ीमल का बेटा श्याम सो चुका था ।उसने इंटरनेट के माध्यम से उसके घर पर सारे प्रश्न हल कर लिए थे ।जो कुछ उसे नहीं आता था वह भी इंटरनेट से उसने हल कर लिया था। अगले दिन वह अपने घर आ गया था परीक्षा भी पास आ गई थी ।विक्रम के सारे पेपर बहुत ही अच्छे हुए उसने अपने पिता को बताया कि पिताजी इस वर्ष तो में पीएमटी में सिलेक्ट हो जाऊंगा ।मैं डॉक्टरी का फॉर्म भर दूंगा। उसके पिता बोले बेटा यह तो अच्छा है परंतु इसके लिए रुपए कहां से आएंगे ?वह बोला कुछ मेरी छात्रवृत्ति होगी कुछ मैं कहीं पार्ट-टाईम  नौकरी कर लूंगा ।डॉक्टर तो मैं बन कर ही दम लूंगा ।परीक्षा का परिणाम आने में अभी एक हफ्ता था ।सेठ ने किसी ना किसी तरह पता कर लिया था उसका बेटा तो सेलेक्ट नहीं हुआ था परंतु उसका दोस्त  रिक्शा चालक का बेटा  पीएमटी में निकल चुका था। करोड़ीमल ने सोचा कि इस रिक्शा चालक के बेटे को डॉक्टर कौन बनाएगा क्यों ना मैं कुछ योजना बताता हूं ?।विक्रम के पेपर की जगह पर मैं अपने बेटे का रोल नंबर डाल दूंगा और अपने बेटे के पेपर विक्रम के पेपर के साथ बदल दूंगा ।अपने बेटे को सिलेक्ट करवा दूंगा और रिक्शा चालक का बेटा पीएमटी टेस्ट में नहीं निकला ऐसा चक्कर चला दूंगा। उसने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए विक्रम के पिता को अपने पास बुलाया देखो भाई मैं आपको दिन रात मेहनत करते देखता रहता हूं आप दिन में कितना कमा पाते हो आपकी पत्नी तो हमेशा बीमार ही रहती है आपके पास तो उसे अच्छा खिलाने के लिए भी रुपया नहीं है ।तुमको मैं बहुत सारे रुपए दिलवा सकता हूं अगर तुम मेरा काम कर दो वह बोला मुझे क्या करना होगा।

 

करोड़ीमल बोला हमें पता चला है कि आपका बेटा पीएमटी की परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया है ।वह डॉक्टर बन कर क्या करेगा? अगर तुम अपने बेटे के पेपरो को मेरे बेटे के पेपर का नाम दे दो तो ठीक है तुम्हारे बेटे के पेपर की जगह मेरे बेटे का नाम होगा । मेरे बेटे के पेपर में तुम्हारे बेटे का नाम होगा।  यह बात सिर्फ  हम दोनों में ही रहनी चाहिए ।आपका बेटा तो होशियार है ।अगले साल भी पीएमटी परीक्षा में निकल जाएगा मगर मेरा बेटा तो निकल नहीं सकता। वह इतना होशियार नहीं है। इसके लिए मैं तुम्हें 50,0000 रुपए दूंगा। तुम्हारी तो जिंदगी बदल जाएगी।

 

तुम अपनी पत्नी का इलाज भी अच्छे अस्पताल में करवा सकते हो रिक्शावाला पहले तो सोचने लगा नहीं परंतु बाद में उसने सोचा 500000 रुपए तो मैं सारा जन्म ले लूंगा तो भी  जुटा नहीं  पाऊंगा ।मेरा बेटा तो अगले वर्ष परीक्षा देकर निकल जाएगा ।वह करोड़ीमल की बातों में आ गया ।उसने हां कर दी अब सबकुछ योजना के मुताबिक हुआ ।  बोर्ड परीक्षा में रिक्शा चालक के बेटे के पेपर अपने बेटे के पेपर के साथ बदलवा दिए। उसके लिए उसने घुस दी थी। उसने रिक्शा चालक को भी 50,00000रुपए दिए ।जब परीक्षा परिणाम निकला तो रिक्शा चालक का बेटा बहुत खुश था उसकी मेहनत का परिणाम आने वाला था जब परिणाम में सेठ करोड़ीमल का बेटा  पीएमटी  टैस्ट में निकल गया । रिक्शा चालक का बेटा नहीं निकला था ।उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं आया वह एकदम  गम्भीर हो गया।इतनी मेहनत करने के बावजूद भी उसका परिणाम गंदा आया था। और जो कभी किताबों को हाथ नहीं लगाता था सेठ करोड़ीमल का बेटा वह परीक्षा में सफल हो चुका था ।इसी चिंता में घुलकर वह अस्पताल में भर्ती हो गया था।

 

उसके पिता ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा कोई बात नहीं अगले साल तैयारी करना। कोई कोई बात नहीं मैं तुम्हें  रूपये उपलब्ध करवा दूंगा ।।उनके स्कूल की एक लड़की थी जिसके पिता पुलिस इंस्पेक्टर थे ।वह अपने पिता के साथ करोड़ीमल के बेटे की पार्टी में गई हुई थी ।उसने अपने सभी दोस्तों को पार्टी पर अपने घर बुलाया था ।वह अपनी अपनी खुशी उन सब दोस्तों के साथ बांटना चाहता था। प्रेरणा भी उसकी पार्टी में गई हुई थी। करोड़ीमल के बेटे ने ज्यादा पी ली थी ।उसका दोस्त विनीत और प्रेरणा दोनों उसके साथ ही बातों-बातों में करोड़ी मल के बेटे ने श्याम को बताया कि बेचारा विक्रम उसके पेपरों की वजह से ही मैं आज  पीएमटी में निकला हूं मेरे पापा ने उसके पिता को  पांच लाख रुपए दिए और कहा कि हमें ऐसा कर लेते हैं ।तब कहीं जाकर विक्रम के पापा मान गए । सच्चाई प्रेरणा के सामने आ चुकी थी ।वह अपनी मेहनत के दम पर नहीं बल्कि उस गरीब रिक्शा चालक के बेटे के अंको के  बलबूते पर पीएमटी में निकला था ।वह चुपचाप वहां से चली गई ।वह अस्पताल में विक्रम से मिलने गई बोली ,मुझे तुम्हारे लिए दुख है तुम्हारे पापा ने यह कैसासौदा किया था ।वह  चौक कर बोला !क्या कर रही हो ?उसने सारी कहानी बग्गा को सुनाई ।किस तरह तुम्हारे पापा ने करोड़ीमल से 5,00000 रुपए लेकर तुम्हारे पेपर बदल दिए थे ।विक्रम को सारा माजरा समझ में आ चुका था ।उसे अपने पिता पर गुस्सा आ रहा था ।उन्होंने रुपयों की खातिर अपने बेटे की मेहनत के साथ खिलवाड़ किया था ।वह सोचने लगा पापा ने मां के ईलाज के लिए रुपए उपलब्ध ना होने की वजह से  हां की होगी। यह बात मेरे पापा मुझसे कह सकते थे ।उन्होंने इतना बड़ा फैसला बिना मुझसे पूछे कैसे ले लिया ?वह फूट फूट कर रोने लगा। उसको इस तरह  रोतादेखकर प्रेरणा बोली, मायूस ना हो मैं अपने पिताजी से कहकर तुम्हारी परीक्षा के  पेपर की छानबीन करवा दूंगी ।तुम पूर्ण मूल्यांकन का फॉर्म भर दो।

 

उसने पुन: मुल्यांकन के लिए प्रार्थना पत्र दे दिया था ।उसके परीक्षा पेपर के अंको की छानबीन के दौरान पाया गया सचमुच करोड़ीमल के बेटे के पेपर विक्रम के पेपरो के साथ बदल दिए थे ।सारी छानबीन के दौरान करोड़ीमल को घूस लेने के चक्कर में दो साल की कैद सुनाइ। उसे सलाखों के पीछे कैद कर दिया । श्याम के पिता ने भी गुनाह किया था उन्हें भी  दो  महीने की सजा सुना दी गई।   रिक्शा चालक कैद काट कर बाहर आ चुका था ।विक्रम की पढ़ाई का खर्चा अपने ऊपर ले लिया था ।डॉक्टर की सारी पढ़ाई का खर्चा सरकार देगी । विक्रम डॉक्टर बन चुका था। उसने सबसे पहले अपने मां के ईलाज के लिए रुपए इकट्ठे किए और स्वयं अपनी मां का ईलाज किया और एक अच्छा सा घर  ले लिया।  वह अपने माता और पिता के साथ खुशी-खुशी रहने लग गया था।

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