नकारात्मक सोच

सौरभ और गौरव एक साथ स्कूल में पढ़ते थे वह दोनों पक्के मित्र थे। इकट्ठे स्कूल जाते उनका घर पास पास  में ही था। खूब मेहनत करते। सौरभ भी मेहनती था। दोनों कक्षा में अच्छे अंक लाते थे। उनके गुरुजन उन दोनों की प्रशंसा किया करते थे। उन दोनों की दोस्ती इतनी गहरी थी कि वह एक दूसरे से बातें किए बगैर कभी नहीं रह सकते थे चाहे आधी रात का समय हो एक चक्कर तो जरूर अपने दोस्त के घर का लगा लेते थे। एक बार की बात है कि गौरव को टाइफाइड हो गया वह पन्द्रह दिनों तक स्कूल में नहीं जा सका। सौरभ जैसे ही स्कूल से आता उसे सारा होमवर्क करवाता सौरभ उसे घर बैठे ही नोट कर लेता था।

गौरव स्वास्थ्य हो चुका था उसने विद्यालय जाना आरंभ कर दिया। उसकी छःमाही परीक्षा भी पास में ही थी। दोनों परीक्षा की तैयारी में जुटे थे। परीक्षा का अंतिम दिन था अंग्रेजी विषय का प्रश्न पत्र था। अंग्रेजी विषय में कुछ ऐसे प्रश्न थे जो ऐसे आए थे वह गौरव ने भी याद नहीं किए थे। गौरव भी उस दिन स्कूल नहीं गया था। जिस दिन उसे वह प्रश्न हल करवाए थे। गौरव को उन प्रश्नों के हल साथ वाले लड़के ने करवा दिए थे। परीक्षा समाप्त हो चुकी थी  प्रश्न पत्रों की जांच के बाद गौरव और सौरभ के एक जैसे ही थे अंक  आए थे। दस अंक गौरव के ज्यादा आए थे। कहीं ना कहीं सौरभ के दिमाग में बात घर कर गई कि गौरव ने तो मुझे यह पाठ करवाया ही नहीं अपने आप उसने यह पाठ याद कर लिया। मुझे उसने इस पाठ के प्रश्नों के उत्तर नहीं लिखवाएं।

 

सौरभ  अपने दोस्त गौरव से नाराज रहने लगा। उसने अपने दोस्त गौरव को कुछ नहीं कहा उसके दिल में अपने दोस्त के प्रति ऐतराज था उसने जानबूझकर मेरे साथ ऐसा किया ताकि मेरे परीक्षा में कम अंक आए। शायद वह नहीं चाहता कि वह मुझसे ज्यादा आगे निकले। ज्यादाअंक ले। सौरभ उस से खफा खफा रहने लग गया। गौरव को तो इस बात की जरा भी यकीन नहीं था कि उसका दोस्त उसके बारे में इतनी नकारात्मक विचार रखता है। काफी दिन व्यतीत हो चुके थे एकदिन की बात है कि गौरव के पिता बोले बेटा तुम्हे हमारे साथ दो-तीन दिन के लिए तुम्हें गांव चलना होगा। तुम स्कूल से तीन दिनों का अवकाश ले लो। उसने अपने दोस्त सौरभ को कहा कि मैं अपने पिता के साथ गांव जा रहा हूं। वह बोला ठीक है।

 

सौरभ मन ही मन सोच लगा अच्छा मौका है मैं भी इसके साथ ऐसा ही करूंगा मैं उसे तीन दिनों का जो काम होगा वह उसे बताऊंगा ही नहीं। जब उसके कम अंक आएंगे तो उसे पता चलेगा। सौरभ ने अपने दोस्त को कहा कि मैं सारा काम नोट कर लूंगा। तुम बेफिक्र होकर घर जाओ जब गांव से लौटा तो उसने कहा कि मैडम ने इन तीन दिनों में क्या काम करवाया?

उसने अपने दोस्त को कुछ और ही प्रश्न हल करवा दिये।

 

परीक्षा पास आ चुकी थी। परीक्षा में ज्यादा वही प्रश्न आये थे, जो उन तीन दिनों में करवाए थे। गौरव उन प्रश्नों के हल नहीं कर पाया। उसके पंद्रह अंक सौरभ से कम आए। सौरभ अब काफी खुश था। बातों ही बातों में उसके दूसरे दोस्त भी आपस में अंकों की चर्चा कर रहे थे। तुम्हारे कितने अंक आए हैं? उसके एक दोस्त ने कहा इस बार तो तुम्हारा दोस्त बाजी मार गया। पिछली बार तुम्हारे दोस्त के ज्यादा अंक आए थे।

 

गौरव बोला तो क्या हुआ?ज्यादा कम अंक तो चलते ही रहेंगे। मैडम ने ज्यादा प्रश्न पत्र उन दिनों में से ही दिए थे  जिन तीन दिन तुम नहीं आए थे। शायद तुम करना भूल गए थे। वह बोला कोई बात नहीं शायद मैं नोट करना भूल गया हूंगा। मेरे दोस्त ने तो मुझे सारे प्रश्न हल करवा दिए थे। उसने मेरा काम भी करवा दिया था। तुम क्या मुझे अपने दोस्त के साथ लड़वाना चाहते हो।? ऐसे तो मेरा दोस्त गौरव भी सोच सकता था जब वह बीमार था मैंने भी उस से  पांच अंक ज्यादा लिए थे। परंतु: बात ये थी उस  दिन  जो प्रश्न करवाए थे जिस दिन मेरा दोस्त  सौरभ नहीं आया था।  वह बिमार था। दो दिन मैं भी स्कूल नही आया था। उन दो दिनों में से ही मैडम ने प्रश्न डाले। मुझे तो तुषार ने वह दोनों प्रश्न हल करवा दिए थे  जिससे मेरे पांच अंक ज्यादा आ गए थे।

 

सौरभ ने जब यह सुना तो वह एकदम चुप हो गया।  मैंने तो अपने दोस्त के बारे में गलत धारणा बना ली थी। मेरे दोस्त ने जानबूझकर मुझे प्रश्न हल नहीं करवाए । हे भगवान मैं कैसा  बुरा दोस्त हूं। एक दोस्त मेरा यह  है मैंने तो इसके साथ सच मुच में  ही  छल कपट किया है। मगर वह फिर भी मेरे प्रति सकारात्मक रवैया रखता है। उसने अपने दोस्त को गले लगा लिया और बोला ऐसा दोस्त सबको दे। उसने अपने मन में एक धारणा बना ली है वह आगे से बिना सोचे समझे कोई भी ऐसा काम नहीं करेगा जिससे हमारी दोस्ती टूट जाए। मैं आज से कसम खाता हूं कि मैं अपने दोस्त के विश्वास को बनाए रखूंगा। हे भगवान मुझे सद्बुद्धि दे। आज से कसम खाता हूं कि मेरा दोस्त ही नहीं चाहे कोई भी रिश्तेदार हो या कोई भी व्यक्ति अपना हो या पराया किसी के बारे में नकारात्मक विचार नहीं रखूंगा। उस दिन से सौरभ की सोच में परिवर्तन आ गया था। उस का सोचने का नजरिया ही बदल गया था।

 

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