बहुमूल्य पत्थर

किसी गांव में एक लोहार था उसके घर में उसकी पत्नी और दो बच्चे थे। वह दिन रात मेहनत करता था। दिन भर कड़ी मेहनत करके लोहे के औजार बनाता था। हर रोज सैर करने जाना वह नहीं छोड़ता था। सुबह सुबह जल्दी काम पर जाने से पहले थोड़ी देर टहलता था। जब भी वह सैर पर जाता बड़े बूढ़े बुजुर्गों को राम राम सियाराम कहना नहीं भूलता था। यह नहीं कि वह पूजा-पाठ में विश्वास करता था वह कभी भी मंदिर नहीं जाता था। सब उन्हें कहते थे कि वह नास्तिक है। इस सब के बावजूद जब कोई पूछता था कि आप मंदिर क्यों नहीं जाते। और पूजा पाठ क्यों नहीं करते? वह सभी से कहता कि मेरा काम ही मेरी पूजा है।

 

जब एक वृद्ध अंकल  उन्हें मिलते वह उनसे कहता सियाराम और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेता। वह सभी बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लेता था। जब कभी वह काम कर थक जाता तो वह एक ढाबे पर चाय पीने चला जाता। कभी उसके पास  पास चाय पीनें तक के रुपए नहीं होते थे। उस  चाय  बनानें  ढाबे  वाले आंटी को कहते  अभी मेरे पास तुम्हें देने के लिए रुपए नहीं है। मैं तुम्हें बाद में दे दूंगा। जब वह उन्हें  सियाराम कहते वह पिघल जाती और उन्हें चाय पिला देती। सिया राम शब्द उन्होंने एक अंकल से सुना था। एक बुजुर्ग अंकल से सुना था। उनकी देखादेखी में भी वे सियाराम सियाराम सुबह-सुबह सबको कहते थे। अपना काम इतनी मेहनत से करता कि काम करते-करते जब लोहे को धौंकनीं में गर्म करके पीटते वह हर प्रहार पर उनके मुंह से सियाराम सियाराम  निकलता। कभी-कभी तो काम करते इतना व्यस्त हो जाता  कि उसे अपने शरीर की भी  सुध नहीं रहती।

 

उसकी पत्नी बीमार ही रहती थी डॉक्टर ने बताया था कि वह इसका  अच्छे ढंग से इलाज नहीं कर पाया तो वह उसे बचा नहीं पाएंगे। इसके लिए उन्हें ₹50, 000 की जरूरत थी। लोग उसे कहते मंदिर जाया करो। वह कहता जब तक मैं ₹50, 000 जमा नहीं कर लूंगा तब तक मैं कहीं नहीं जाऊंगा। मैं अपनी पत्नी को बचाने के लिए मेहनत करूंगा। काफी दिन व्यतीत हो चुके थे। उसकी पत्नी की बीमारी बढ़ती ही जा रही थी। उसने सोचा अगर मैं रूपए इकट्ठे नहीं कर पाया तो मैं अपने घर की सारी वस्तुएं  बाजार में बेच दूंगा पर अपनी पत्नी की जान अवश्य  बताऊंगा।

 

एक दिन उसने अपने घर की सारी कीमती वस्तुएं अपनी पत्नी के थोड़े से गहनें थे और घर की छोटी-छोटी वस्तुएं सब बेचने के लिए इकट्ठी कर दी। वह सोचने लगा कि इन सब वस्तुओं को कल बाजार में बेच दूंगा। यही सोचता सोचता वह अपनी दुकान पर चलता चला गया। वह जोर-जोर से लोहे की कुल्हाड़ी से लोहे को धौंकनी में गर्म कर कर रहा था और हर बार बोलता जा रहा था सियाराम सियाराम सियाराम। अचानक उसे हर आवाज पर एक अजीब सी आवाज सुनाई देती थी। उसने आवाज की तरफ ध्यान दिया

 

जब लोहे से प्रहार कर रहा था तब उसने देखा आवाज दूसरी स्थान से आ रही थी। जहां पर वह  धौंकनी से प्रहार कर रहा था उसने उस स्थान पर खुदाई की उसे  वहां पर एक नुकीला पत्थर दिखाई दिया। वह पत्थर उसे इतना सुंदर लगा  उस पत्थर को घर लेकर आ गया। दूसरे दिन उसने सबसे पहले अपने सामान में से जो गहने बेचने को लेकर गया था उसने वह जोहरी को बेच दिए। जौहरी ने उसके बड़ी मुश्किल से ₹10000 दिए। जौहरी ने देखा तुम्हारी चादर में यह नीला पत्थर तुम्हें कहां से मिला? यह पत्थर तो बहुत ही कीमती है। लोहार बोला यह पत्थर तो मैं लाना नहीं चाहता था। मुझे काम करते-करते यह पत्थर मिला। मैं इस पत्थर को उठाकर घर  ले आया। सोचा इस पत्थरको घर पर रखूंगा। देखने में मुझे यह बहुत ही खूबसूरत लगा।

 

जौहरी ने कहा यह तो हीरे का पत्थर है। इसकी कीमत करोड़ों में है। तुम तो अपने घर की वस्तुएं बेचनी रहने दो। इस कीमती पत्थर से तुम करोड़पति बन सकते हो। उसने वह पत्थर जौहरी की दुकान पर  बेच दिया। रातों रात  वह लोहार करोड़पति बन गया। सबसे पहले वह उस ढाबे वाली दुकान पर गया बोला आंटी आज मैं आपकी चाय का बिल अदा करना चाहता हूं। उसने सभी ग्राहकों के रुपए अदा कर दिए थे। उसने अपनी पत्नी को इलाज के लिए अस्पताल में दाखिल करवा दिया। उसकी पत्नी का ऑपरेशन सफल हो चुका था। वह करोड़पति बन कर फूला नहीं समाया।  उसनें अपना घर का काम करना नहीं छोड़ा। आधी संपत्ति उसने बेसहारा, बुजुर्गों और दीन दुखियों की मदद के लिए संस्था को दान कर दी। उसने अपने बच्चों की शिक्षा के लिए रुपए बैंक में जमा करवा दिए। अपने बच्चों को बहुत अच्छी शिक्षा दी और कहा बेटा अपने काम को पूरी ईमानदारी से करो। जैसे अभी तक तुम पढ़ाई कर रहे हो? इसके लिए मेहनत जरूरी है।  इंसान चाहे कितना भी रुपया धन दौलत कमाई ले उसे मेहनत करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए।  रूपया तो हाथ का मैल है कभी है कभी नहीं। इसलिए चाहे सुख हो  या दुखः हमें एक समान रहना चाहिए। हमें मेहनत करना किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ना चाहिए। तुम अगर लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हो। धनवान बनकर भी कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। मैं तो लोहार का काम अभी भी जारी रखूंगा। क्योंकि इसी ने मुझे रोजी-रोटी दी है। इसलिए तुम मेरी  एक बात गांठ में बांध लो जैसे तुम बस से स्कूल जाते थे वैसे ही स्कूल जाओगे। गाड़ी से नहीं। बच्चे  बोले बाबा हमें आप पर नाज है। ऐसे मां-बाप सबको दे।  

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