शिवप्रसाद जैसे ही अपने ऑफिस जाने की तैयारी करते उनकी छत पर हर रोज एक बंदर आकर मंडराने लगता। शिव प्रसाद को कभी उस बंदर पर क्रोध आता कभी सोचते इस बंदर ने मेरा क्या बिगाड़ा है बेचारा भूखा है तभी तो मेरे घर की छत पर रोटी ढूंढने लगता है। जब वह उसे हासिल नहीं होती तो शायद वह जल भूल जाता है। ताकि घर के सदस्य् उसे कुछ खाने के लिए डाल दे। इंसान अपने सगे-संबंधियों को खाने के लिए नहीं पूछता बंदर की तो छोड़ो बात।पांच-छह दिन की काफी बासी रोटी अगर फ्रिज में रोटी पड़ी होगी तभी उसे देगा वर्ना बंदर को डंडे से भगा देगा। हम इस संसार में यह ढूंढने का प्रयत्न करते हैं ईश्वर है या नहीं परंतु कोई नहीं समझ सकता कि भगवान की हर एक वस्तु में उस का वास होता है। छोटी से छोटी वस्तु से लेकर बड़ी से बड़ी वस्तु में भी भगवान् का वास होता है। हमारे सोचने का नजरिया सकारात्मक होना चाहिए। हम बेवजह जीव जंतुओं को नुकसान पहुंचाते हैं। बेवजह हम फूलों को नुकसान पहुंचाते हैं। हरे भरे पेड़-पौधों को तोड़ देते हैं। अपने स्वार्थ के लिए। इस संसार में मनुष्य स्वार्थी बन गया है वह भगवान को ढूंढने मंदिरों मस्जिदों गुरुद्वारों में खोजनें लगता है। कोई कहता है आज हम तीर्थ यात्रा करने गए। कोई कहता है हम शिर्डी जा कर आए। धार्मिक स्थानों में जाना तो ठीक है, परंतु क्या कभी किसी ने यह सोचा कि सभी मनुष्य, जीव जन्तु पेड़ पौधे और सभी में ईश्वर का निवास है। हम आपस में लड़ते रहते हैं। जीव जंतुओं को नुकसान पहुंचाते हैं और पेड़ पौधों को नष्ट करते हैं। हम तो सारा दिन पूजा पाठ करने में व्यस्त रहते हैं। चाहे सारे दिन हम किसी का कत्ल ही क्यों ना करें। भगवान की बनाई हुई इस कृतियों को सहज संवार कर रखेंगे तो कोई भी मनुष्य ईश्वर से कम नहीं होगा।
शिवप्रसाद दूसरे दिन छत पर गए तो वही बंदर वहां पर इधर उधर दौड़ रहा था। वह मन में सोचने लगे मैं तो अकेला रहता हूं। शायद इस बंदर का मेरे साथ कोई रिश्ता होगा। कल से मैं इसको अवश्य खाना दे दिया करूंगा
वह रोज उस बन्दर को खाना देने लग गए। वह बंदर हर रोज खाना खाता और वहां से चला जाता। हर रोज उसके लिए इस तरह खाना बनाते जैसे कि वह उनका घर का कोई सदस्य हो। इस तरह काफी दिन व्यतीत हो गए। तीन साल हो चुके थे उनका स्थानांतरण दूसरे ऑफिस में हो चुका था। शहर तो वही था परंतु ऑफिस अलग था। उनकी शादी होने वाली थी। उन्होंने सोचा अब मुझे नया फ्लैट किराए पर ले लेना होगा। एक महीने बाद उन्हें नौकरी मैं ने न्ए कार्यलाय नौकरी करने जाना था। काफी दिनों तब उनका बंदर दोस्त उनके घर नहीं आ रहा था। वह सोच रहा था कि मेरा दोस्त पता नहीं कहां चला गया। चलो अच्छा हुआ। उससे ज्यादा प्यार करना अच्छा नहीं। एक दिन इतवार का दिन था। वह अपनी छत पर बार-बार जाते परंतु उन्हें कहीं भी अपना दोस्त नजर नहीं आया। वह इधर उधर बाहर टहलने लगे। सैर करने गये उसने देखा कि एक पेड़ पर सारे के सारे बंदर इर्द गिर्द बैठे हुए थे। उसने ऊपर जाकर देखा उसे अपने दोस्त की झलक दिखाई दी। जब सारे के सारे बंदर चले गए तो उस पेड़ की शाखा पर ग्ए वहां पर उसका दोस्त बंदर लेटा हुआ था। उसकी टांग में चोट लगी हुई थी। वह अपने दोस्त के पास आया। उसका दोस्त उसको देखकर मायूस हो गया। और उसने आंखें बंद कर ली।
शिव प्रसाद ने उस को छुआ तो उसका बदन बहुत ही गर्म था। वह बुखार में तड़प रहा था। शिवप्रसाद को दया आ गई। उसने अपने दोस्त के सिर पर हाथ फेरा जब शिवप्रसाद ने उसके सिर पर हाथ फेरा उसकी आंखों से आंसू आ गए थे। शिवप्रसाद बिना कुछ बोले उसे अपने पारिवारिक डॉक्टर के पास ले गए उन्होंने उसे एक जानवरों के डॉक्टर का पता दे दिया। शिवप्रसाद उस डॉक्टर को लेकर उस पेड़ की शाखा पर से बंदर को उठाकर अपने घर ले आए। डॉक्टर ने उसे दवाइयां दी पन्द्रह दिन उस बंदर को ठीक होने में लगे। वह बंदर पूरी तरह ठीक हो चुका था। बंदर भी उसे देख कर कृतज्ञता प्रकट कर रहा था।
शिवप्रसाद के जाने का समय हो चुका था उन्होंने अपना मकान छोड़ दिया था। वह दूसरी जगह रहने लग गए थे। वह अपने दोस्त को कभी नहीं भूले। वह उसे तोषी कह कर बुलाते थे तोषी को जैसे ही पुकारते वह उनके पास हाजिर हो जाता था। जब वह मकान बदल रहे थे तब उन्होंने तोषी को खूब प्यार किया और वहां से सदा सदा के लिए दूसरे घर आ गए। उनकी शादी को अब तीन साल हो चुके थे।
उनके घर में एक नन्हा फरिश्ता भी आ गया था उसने उसका नाम भी तोषी रख दिया। एक दिन की बात है कि उनका बेटा आशुतोष घर नहीं लौटा। उसको कुछ अपहरणकर्ता उठा कर अपहरण करके ले गए थे। उन्होंने अपने बेटे को ढूंढने की बहुत कोशिश की मगर वह उन्हें कहीं भी नहीं मिला। उनकी पत्नी का तो रो-रो कर बुरा हाल था। एक दिन जब वह पुलिस इंस्पेक्टर को अपने बेटे की फोटो दिखा रहा था उसने कहा यह है मेरा बेटा तोषी। सिर्फ इतना कहा वहां पर उसका दोस्त तोषी आवाज सुन कर आ गया क्योंकि उसका मालिक तोषी तोषी कह रहा था। उसको देखकर चाटनें लगा। अपने दोस्त को चिंता में देखकर वह चुपचाप उसकी गाड़ी में बैठ गया। शिव प्रसाद ने ध्यान नहीं दिया। वह तो उसे भूल ही चुका था। वह तो अपने बेटे के लिए परेशान था। जब शिवप्रसाद पुलिस इंस्पेक्टर को अपनी बेटे की फोटो दिखा रहे थे तो उनकी जेब से एक फोटो नीचे गिर गई थी। उस बन्दर नें वह फोटो अच्छी तरह देख ली थी। जैसे ही वह अपने मालिक के नए बंगले पर आया तो वह समझ चुका था कि उनका दोस्त चिंता में क्यों डूबा हुआ है? जब दौड़ती हुई शिव प्रसाद की पत्नी आकर बोली क्या मेरा बेटा मिला।? वह चीख चीख कर रो पड़ी। तोषी को समझते देर नहीं लगी। वह चुपचाप वहां से चला गया। उसने अपने मालिक का नया घर देख लिया था।
एक दिन तोषी जंगल की तरफ गया। वहां पर वहां पर उसे एक झोपड़ी दिखाई दी। वह सुंघते सुंघते वहां पहुंच गया। वहां पर उस तस्वीर वाले बच्चों को देखकर उसे चाटनें लगा। बच्चा भी उस बंदर को प्यार कर रहा था। तभी वहां पर एक बुढ़िया आ गई।
एक दिन तोषी दौड़ता दौड़ता शिवप्रसाद के घर आया और उसकी कमीज खींचकर उसे एक घने जंगल में ले आया। शिव प्रसाद भी उसके पीछे ग्ए उसको देखकर शिवप्रसाद की आंखें फटी की फटी रह गई। वहां पर उनका बेटा एक अंधी बुढ़िया के साथ था। वह उसे पानी पिला रहा था। अपने बेटे को देखकर वह खुशी से पागल हो गया। उसने अपनी पत्नी को फोन मिलाया और कहा कि हमारा बेटा मिल गया है। उसने अपने बेटे तोषी से पूछा तुझे यहां कौन लाया? वह बोला पापा यह बूढ़ी दादी। उन्होंने मुझे उस गुंडों से बचाया। गूंन्डे मुझे अपहरण करके ले गए थे। इन बूढ़ी दादी ने एक लाठी का प्रहार कर गुंडों पर वार किया और एक गाड़ी वाली की मदद से मुझे यहां पर ले आई। वह मुझे खिलाती है। मुझे अपने घर का पता मालूम नहीं था। नहीं तो वह मुझे घर छोड़ देती। शिव प्रसाद ने अपने दोस्त को खूब प्यार किया और कहा बेटा तुमने मेरा कर्जा चुका दिया।
कौन कहता है इस दुनिया में ईश्वर नाम की कोई शक्ति नहीं। मेरी रहमतों कि भगवान ने मेरी फरियाद सुन ली और मेरे बेटे को हंसी खुशी मुझे लौटा दिया। शिव प्रसाद ने कहा बूढ़ी दादी कहां चली गई? काफी देर तक इंतजार करते रहे परंतु वह नहीं आई। शिवप्रसाद अपने बच्चे को लेकर घर वापस आ चुके थे। कुछ दिनों पश्चात बूढ़ी दादी का शुक्रिया अदा करने वंहा पर जो देखा उनकी आंखें फटी की फटी रह गई। वहां पर कोई झोंपड़ी नहीं थी। लोगों ने बताया कि यहां तो कोई भी नहीं रहता है। शायद देवी मां ने सच में आकर मेरे बेटे को नई जिंदगी दी थी। और मेरे के किए गए पुन्यों का हिसाब चुका दिया था।सुबह सुबह उठे जैसे ही अपनें बेटे को छत पर ले गए तो अपनें दोस्त को सामनें वाले पेड़ पर देख कर मुस्कुराए। वह भी उनकी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा था।