किसी नगर में एक सेठ रहता था। वह बहुत ही कंजूस था। किसी को भी ₹1 तक भी दान में नहीं देता था। उसकी दुकान पर पर अगर कोई मांगने वाला भिखारी भी आता था तो वह सेठ फटकार मार-मार कर उसे भगा दिया करता था। उसने अपनी दुकान पर एक मुनीम रखा था जो कि उसकी दुकान की आय व्यय का हिसाब किया करता था। उस पर वह आंख मूंदकर विश्वास करता था। उसकी दुकान बहुत ही अच्छे ढंग से चल रही थी। वह बहुत ही ईमानदार व्यक्ति था। उसी के सहारे से वह दुकान चल रही थी।
एक दिन उसकी दुकान पर एक भिखारी आया सेठ बिशनदास ने भिखारी को जैसे ही देखा बोला तुम्हें क्या और कोई काम नहीं है, जो आ जाते हो भीख मांगने। चलो निकलो यहां से, उसने फटकार मार कर उस भिखारी को भगा दिया। उसी समय मुनीमजी दुकान पर आए। उन्होंने उस भिखारी को देख लिया था। उसने इशारे से भिखारी को अपने पास बुलाया और कहा क्या हुआ? वह बोला बाबू साहब मेरी पत्नी बहुत बीमार है। मैं कुछ रुपए उधार मांगने आया था। दयाराम ने उसे हजार रुपये दिए बोला अपनी पत्नी का अच्छे ढंग से इलाज करवाना। धर्म दास के पांव पकड़कर बोला भगवान तुम्हारा भला करे। दयाराम की वजह से दुकान के व्यापार में बढ़ोतरी हो रही थी। वह अगर ₹50000 कमाता तो उसमें से ₹20000 अपने लिए रख लेता, जिसमें से वह ₹10000 गरीबों पर खर्च कर देता किसी को किसी को 50रु किसी को100रुपये जिस को बहुत ही जरूरत होती उसे ज्यादा भी दे देता। वह बिशनदास के रुपयों में से जरूरतमंदों को बांट देता था। जिस दिन सेठ विशन दास दुकान संभालता था उस दिन कोई भी व्यक्ति उसकी दुकान पर कदम भी नहीं रखता था। वह बहुत ही कठोर स्वभाव का था। एक दिन सेठ कोे किसी खास दोस्त ने उसे भड़का दिया कि तुम्हारा यह मुनीम तो तुम्हें चुना लगा रहा है। उस व्यक्ति ने सेठ को बताया कि तुम उस मुनीम पर नजर रखना। सेठ कुछ दिनों से उस से कटा कटा रहने लगा।
एक दिन उसने किसी गरीब व्यक्ति को गल्ले में से ₹50 देते देख लिया। वह सोचने लगा कि वह आदमी ठीक ही कह रहा था। उसने दयाराम को बुलाया और कहा। दयाराम से नाराज हो कर बोला मैं तुम पर विश्वास करता था तुम तो मेरे गल्ले में से उस भिखारी को दान करते हो।। दयाराम बोला भगवान आपको इतना दे रहा है आप अगर थोड़ा बहुत किसी जरूरतमंद को दे दिया करें तो इसमें हर्ज ही क्या है? इससे कारोबार फलता-फूलता ही है। इस बात से बिशनदास दयाराम से नाराज हो गया उसने दयाराम से कहा कि तुम यहां से अभी इसी वक्त यहां से चले जाओ। मैं तुम्हारा हिसाब किताब कर रहा हूं। मैं अपनी दुकान खुद संभाल लूंगा।
सेठ नें एक दूसरा व्यक्ति दुकान के आय व्यय का हिसाब करने के लिए रख दिया। उस आदमी ने बिशनदास को ऐसा चूना लगाया कि उसका साल भर में ही बिशनदास को इतना घाटा हुआ। सेट बिशनदास बहुत घबरा गया। सेठ को समझ में आ गया था कि दयाराम जैसे ईमानदार और मेहनती इंसान को निकाल कर उसने अच्छा नहीं किया। ऐसा ईमानदार इंसान मिलना बहुत ही मुश्किल है। वह उसको ढूंढने की बहुत कोशिश करने लगा मगर वह उसे कहीं नहीं मिला।
एक दिन सेठ व्यापार के सिलसिले में दूसरे शहर को गया हुआ था। उसे एक कपड़े की दुकान पर दयाराम को काम करते देखकर बहुत ही खुशी हुई। दयाराम दूसरे शहर में कारोबार करनें चला गया था। वहां पर एक कपडे की दुकान पर काम में लग गया था। वहां पर वह बहुत ही खुश नजर आ रहा था। दयाराम को देखकर सोचनें लगा मैंने अपने सबसे वफादार सहायक पर अविश्वास करके बहुत गलत काम किया। वह दयाराम के पास जाकर बोला देख भाई मुझे माफ कर दे। मैंने तुझे निकाल कर अच्छा नहीं किया। तू वापस काम पर आ जा। दयाराम बोला बाबूजी ऐसी गलती मैं अब कभी नहीं करूंगा। पहले आप मुझे निकालते हो फिर वापस बुला लेते हो। मेरा कारोबार यहां पर बहुत ही अच्छा चल रहा है।
सेठ बोला मैंने तुम्हें गलत समझा। मुझे किसी ने बहका दिया था। मैंने एक व्यक्ति को काम पर रखा था उसने तो मेरी दुकान का कारोबार चौपट कर दिया। मैंने तुम पर अविश्वास करके बहुत बड़ी गलती की है। वह बोला मैं तो यहां पर भी बहुत खुश हूं। सेठ बोला तुम कितने रुपए यहां पर कमाते हो? उससे ज्यादा रुपए मैं तुम्हें दूंगा। तुम वापस काम पर आ जाओ। दयाराम बोला मेरी भी एक शर्त है मैं काम पर तभी वापस आऊंगा अगर आप लेन-देन के बारे में आप मुझसे से कुछ नहीं पूछेंगे। आप तभी मुझसे पूछताछ करेंगें अगर आप को व्यापार में घाटा होगा।
बिशनदास बोला ठीक है जो तुम्हारी मर्जी। तुम अपनी इच्छा से दुकान को संभालो। मेरे एक ही बेटा है। उसे भी मैंने अच्छी शिक्षा दिलानी है। दयाराम वापस काम पर आ गया था। दयाराम एक दिन सेठ के पास जाकर बोला आपका आपके बेटे के इलावा इस दुनिया में और कोई नहीं है। आप की संपत्ति को हथियाने कि बहुत से लोग योजना बना सकते हैं। आपके एक ही बेटा है। भगवान ना करें अगर आपको किसी दिन कुछ हो गया तो लोग आपकी संपत्ति को हड़प कर जाएंगे। आपका बेटा अभी छोटा है जब तक यह बालिग नहीं होता इसके नाम पर भी यह संपत्ति नहीं कर सकते। आपकी संपत्ति या तो सरकार ले लेगी आपको अगर मुझ पर विश्वास है तो आप अपनी संपत्ति का दावेदार मुझे भी बना सकते हो। मैं आपका विश्वास पात्र हूं। मैं आपको कभी धोखा नहीं दूंगा। इंसान की जिंदगी का क्या भरोसा? अगर आपकी संपत्ति किसी ऐसे इंसान के हाथ लग गई वह आपके बेटे को कुछ भी ना दे तो तो। आपके बेटे का क्या होगा? आप मुझ पर विश्वास कर सकते हो मैं मर जाऊंगा मगर आपके बेटे के पास साथ विश्वासघात नहीं करूंगा। मुझे दुकान पर काम करते-करते इतने दिन हो गए हैं। आपको लोग बात बात पर भड़का सकते हैं अगर आपको मेरी बात ठीक लगती है तो आप अपनी संपत्ति का मैनेजर मुझे बना सकते हो। मैं आपके बेटे को जब वह मालिक होगा तब उसे उस का कारोबार साथ दूंगा। यह काम आप तभी करना यदि आपको मुझ पर विश्वास है नहीं तो नहीं। सेठ नें अपनी संपत्ति का मैनेजर दयाराम को बना दिया। उसने लिखा था कि मेरे मरने के बाद दयाराम ही मेरी संपत्ति की देखभाल करेगा जब तक कि मेरा बेटा बालिग नहीं होता। मेरे बेटा बालिग होने पर ही अपनी संपत्ति का असली वारिस होगा। इस तरह काफी दिन व्यतीत हो गए।
एक दिन सेठ किसी काम से शहर व्यापार के सिलसिले में सामान लाने गया हुआ था। उसकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। बड़ी मुश्किल से सेठ की जान बची। वह कोमा में चला गया।
दयाराम ने उसके बच्चे को अपने घर पर रख दिया। उसके बच्चे को मां और बाप दोनों को प्यार दिया। उसके अपने कोई संतान नहीं थी दयाराम की पत्नी ने सेठ विशन दास के बेटे रवि को अपने घर में भरपूर प्यार दिया। सेठ की याददाश्त, चली गई थी। दयाराम सेठ बिशनदास को देखने हर रोज अस्पताल जाता था। उसे ठीक करवाने के लिए उसने डॉक्टरों की टीम लगा दी थी मगर वह कोमा से बाहर नहीं आया था। हर रोज उसे खून चढाना पड़ता था। जिन जिन जरूरतमंदों को उसने पैसा दिया था उन्हें जब सेठ बिशनदास के दुर्घटना का पता चला तो वे वह एक एक करके उसे खून दे जाते थे। जिस किसी का भी खून उससे मिलता था वह उसे खुशी खुशी आ कर खून दे जाता था।
पन्द्रह साल हो चुके थे। सेठ का बेटा 20 साल का हो चुका था। उसने सेठ के बेटे को इतना अच्छा इंसान बनाया उसे पढ़ाया-लिखाया और उसे बताया कि तुम्हारे पिता तो अस्पताल में जिन्दगी और मौत के बीच जूझ रहें हैं। हम अपनी पूरी ताकत लगा देंगें तुम्हारे पिता को बचाने के लिए।
सेठ का बेटा इंजीनियरिंग पूरी करके एक अच्छी कंपनी में लग गया था। दयाराम ने उसे बहुत ही होशियार और ईमानदार बनाया। वह अपने पिता को देखने अस्पताल में हर रोज जाता था। सेठ की यादाश्त भी धीरे-धीरे वापिस आ गई। दयाराम ने अपने दोस्त को गले लगाते हुए कहा कि शुक्र है तुम्हारी याददाश्त वापस आ गई है। वह होश में आते ही बोला कि मेरा रवि कहां है? रवि को देखकर चौका। वह तो एक बड़ा लंबा चौड़ा नवयुवक हो चुका था। 15 साल बाद वह कोमा से बाहर निकला था। दयाराम बोला मैंने तुम्हारे बेटे को अच्छा इंसान बनाया। तुमने मुझ पर विश्वास किया।
तुम्हारी दुर्घटना होने के बाद लोगों ने मुझ पर ना जाने क्या क्या आरोप लगाए? उन्होंने यहां तक कहा कि दुर्घटना कराने में मेरा ही हाथ था और आपकी संपत्ति को हथियाने में भी मेरा ही हाथ था। मैंनें आपके बेटे की परवरिश और आप की दुकान का काम अच्छे ढंग से निभाया। बिशनदास रो दिया। तुमने मुझे ठीक ही कहा था इतनी भयंकर दुर्घटना हुई थी कि मेरा बचना नामुमकिन था। दयाराम बोला यह तो कहीं ना कहीं आपके रुपयों का ही कमाल था। मैं गरीबों को और जरूरतमंदों को अपनी दुकान में से जो कुछ रुपए जो बच जाते थे उनमें से कुछ इन जरूरतमंद इंसानों को दे दिया करता था। आपको विश्वास ही नहीं आएगा। इन जरूरतमंदों लोगों नें ही आपको एक-एक खून की बोतल दान में दी है। आपको हर रोज खून चढ़ाना पड़ता था इन्होंने ही आकर आपको खून दिया जिस से आप आज बच गए। सेठ बोला मैंने तो कभी भी अपने हाथ से किसी को भी कुछ दान नहीं किया। आज मुझे समझ आया कि जरूरतमंदों की अवश्य सहायता करनी चाहिए। शायद यह तुम्हारी ही दुआओं का ही परिणाम है जो मैं बच गया।
सेठ बोला और तुम्हारी ईमानदारी का जो आज मैं सही सलामत तुम्हारे सामने हूं। तुमने मेरे बेटे की परवरिश में भी कोई कमी नहीं छोड़ी। आज से मैं तुम्हें अपनी दुकान का हिस्सेदार और अपना छोटा भाई मानता हूं। आज से तुम मेरे ही घर में ही रहा करोगे। आज से तुम्हें कहीं भी अलग जाने की जरूरत नहीं है। अपनें बेटे रवि को गले से लगा कर बोला तुम उन्हें चाचा नहीं छोटे पापा कह सकते हो। बेटा उन्होंने ही तुम्हारी देखरेख की है। रवि बोला ऐसे ईमानदार पापा सब को दे।