एक गांव में एक विद्वान पंडित रहा करता था। नदी के किनारे पर उसने अपना घर बनाया हुआ था। अपने हाथों से काम करने में पंडित को बहुत ही मजा आता था। हर रोज नित्य क्रम से निवृत हो कर अपने खेतों में हल चलाता और सारे काम स्वयं किया करता था। उसने अपने घर में एक गाय पाली हुई थी।उसकी वह निरन्तर देखभाल किया करता था। वह पूजा पाठ भी करता था। पंडित का काम भी किया करता था। वह अपने मन्त्रों के बल से अपने गांव में हर एक बिमार व्यक्ति को ठीक कर दिया करता था। गांव वाले उसकी बहुत ही इज्जत किया करते थे। गांव वालों मे उसकी बहुत ही धाक थी। गांव का जब भी कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाता तो उस गांव के लोग अपनें घर पर उसे बुलाकर ले जाते। उसके मंत्रों में इतनी शक्ति होती थी कि गांव में उसके घर पर आने जानें वाले लोगों की भीड़ लगी रहती थी।वह उन्हीं लोगों को देखता था जो बहुत ज्यादा बिमार होते थे। वह मुफ्त में उनका इलाज किया करता था। उसने लोगों को बताया था कि हर व्यक्ति मन्त्रों से ठीक नहीं हो सकता। इलाज करना बेहद जरूरी होता है। डॉक्टर के पास ले जाना भी बहुत ही आवश्यक होता है। अगर डॉक्टर की दवाई काम ना करें तो तुम मेरे पास आया करो। लोग उसके पास तभी आते थे जब डॉक्टर लोग कहते थे कि यह आदमी ठीक नहीं हो सकता। उसके मंत्रों में इतनी शक्ति होती थी कि लोग ठीक हो जाते थे। इसलिए लोग उसकी बड़ी इज्जत करते थे। कोई भी गांव के लोग उससे लड़ाई झगड़ा नहीं करते थे।
उसके गांव में एक चोर भी एक दिन आ धमका। उसकी गाय को देखकर उस चोर के मन में उस गाय को पाने की लालसा जाग पड़ी। वह सोचनें लगा एक दिन मैं इस गाय को अवश्य ही। चोरी करके ले जाऊंगा जब वह पंडित सोया होगा।चोर इसी ताक में हर दिन रहता था कि कब जैसे इस पंडित को नींद आ जाए क्योंकि जागते वक्त तो उसके घर में कोई आने का खतरा मोल नहीं लेता था? चोर सोचता था की चोरी करने के लिए तो रात का समय ही ठीक रहेगा।
एक दिन रात के समय चोर चुपके से उसके घर में घुस गया। उस दिन बिजली गई हुई थी। चोर नें सोचा आज तो बिजली भी नहीं है। मौके का फायदा उठाना चाहिए। रात के समय पंडित को झपकी लग गई थी। चोर चुपके से उसके घर पर आ धमका।
पंडित के घर के दूसरी तरफ एक दानव भी रहा करता था। वह लोगों को सताया करता था। हर आने-जाने वाले व्यक्ति उस से परेशान थे। वह कहता तो किसी को कुछ नहीं था मगर जो चीज उसको पसंद आ जाती थी उसको लिए बिना वह छोड़ता नहीं था। लोग उससे भी बहुत दुःखी थे। वह राक्षस गांव में किसी व्यक्ति से नहीं डरता था। डरता था तो केवल पंडित से। पंडित के मंत्रों की शक्ति के बल पर वह पंडित से पंगा नहीं लेता था। उसकी नजर भी हरदम पंडित पर होती थी कि कब जैसे पंडित सो जाए। एक दिन तो वह उसे मार कर ही दम लेगा। उस गांव में सभी लोग उसकी भी इसी प्रकार इज्जत किया करेंगे जैसे कि पंडित की करते हैं। एक यही पंडित ही मेरी राह का रोड़ा है। इसको मारने के लिए कोई ना कोई योजना तो बनानी ही पड़ेगी। रात का कि समय ही राक्षस ने चुना। वह भी एक दिन रात को जब बिजली गई हुई थी। पंडित के घर पर आ टपका इस बात से अनभिज्ञ कि कोई दूसरा आदमी भी वहां हो सकता है। पंडित जब सोने जाता था तो वह कभी भी लाइट नहीं चलाता था।
उस दिन पंडित दिन भर का थका था। खेतों में उसे अकेला ही काम करना पड़ता था। गाय को चारा खिलाना – गाय के गौशाला की सफाई करना, उसे पानी पिलाना , उसे चारा खिलाना और पूजा पाठ करना। वह स्वयं ही करता था। क्योंकि उसे और लोगों पर विश्वास नहीं था?। कहीं उसकी गाय को कोई नुकसान ना पहुंचाए। वह अपने मन में सोचा करता था कि जब तक मुझसे काम होगा मैं स्वयं ही काम करूंगा। जब नहीं होगा तब किसी अच्छे से युवक को अपने पास काम पर रख लूंगा।
एक बार उसने अपने गाय की चाकरी करने के लिए एक व्यक्ति को रखा था मगर वह तो गाय को हड़पने की फिराक में था। इसलिए जब पंडित को उसकी करनी का पता चला तो पंडित ने उसे काम पर से निकाल दिया। उसे माफ कर दिया और कहा कि आइंदा से यहां आने की जरूरत मत करना।
एक रात जब बिजली नहीं थी तो चोर वहां पर पहुंच गया। अंधेरे में केवल उसे पंडित की चारपाई ही दिखाई दे रही थी। पंडित को गहरी नींद आ चुकी थी तब उससे कोई व्यक्ति टकराया। वह आदमी इतना भयानक था की उसको देखकर चोर डर के मारे थर-थर कांपने लगा। चोर नें अपने मन में सोचा इस पंडित नें तो अपनें मन्त्रों के बल से एक भयंकर-आत्मा को यहां भेज दिया है। उसकी डरावनी आंखें ही चोर को नजर आ रही थी। वह राक्षस जैसे ही उस से टकराया उसे इतनी जोर से बाजू में धक्का लगते लगते लगते बचा। चोर डर कर भगवान का नाम जपने लगा। राक्षस ने उसे कहा तुम कौन हो? चोर बोला मैं तो चोरी करनें यहां आया हूं। चोर बोला मैंने सोचा पंडित ने अपने जादू के बल पर किसी आदमी को पहरेदारी के लिए यहां खड़ा कर दिया है। राक्षस बोला जल्दी में यहां से चले जाओ। यह पंडित मेरा शिकार है। चोर उसकी बात सुनकर अपने मन में हंस लगा यह भी मेरी तरह एक चोर है। वह बोला चोर चोर मौसेरे भाई।
राक्षस बोला मैं चोर नहीं हूं। मैं भी इसी गांव में रहता हूं। मैं एक दुष्ट आत्मा हूं। लोग मुझे दानव कहते हैं। मैं जिस किसी भी वस्तु को पाना चाहता हूं उसे हासिल करके ही रहता हूं। चोर बोला भाई मैं तो एक चोर हूं। मैं भी इस पंडित की गाय को चुराने आया था लेकिन अब लगता है मेरे सपने अधूरे ही रहेंगे। तुम कह रहे हो कि मैं जिस वस्तु को पाना चाहता हूं पाकर ही रहूंगा। राक्षस बोला मैं तो केवल इस पंडित को मारना चाहता हूं। मुझे भला गाय से क्या काम? जब मैं इस पंडित को मार दूंगा तब तुम गाय चुरा कर ले जाना। मैं तो केवल पंडित को ही मारूँगा। चोर बोला अरे वाह! शाबाश में तो केवल इसकी गाय को चुराना चाहता हूं। दोनों ने एक दूसरे से हाथ मिलाया। बातें करते करते पंडित की चारपाई के पास पहुंच गए। पंडित को गहरी नींद आ चुकी थी।
चोर बोला पहले मुझे गाय चोरी करके ले जाने दो फिर तुम पंडित को मार देना। राक्षस बोला ऐसे कैसे हो सकता है? मैं तो ना जाने कितने दिन से इस पंडित के सोने का इंतजार कर रहा था। इसके मंत्रों में इतनी गजब की शक्ति है कि मैं कभी भी इस की पकड़ में नहीं आ सका। लेकिन आज कहीं जाकर मौका मिला है। उसे आज ही गहरी नींद आई है। चोर बोला मैं भी कितने दिनों से इस पंडित के सोने का इंतजार कर रहा था। कब जैसे इस पंडित को नींद आ जाए और मैं अपना काम जल्दी से निपटा लूं। चोर बोला आप तो गांव वालों से सबसे ज्यादा ताकतवर हो। आपको वह गांव वाले आप की दहशत से सब कुछ दे देंगे। मैं ठहरा केवल एक चोर मेरे पास तो चोरी करने के सिवा कोई चारा नहीं। चोरी नहीं करूंगा तो खाऊंगा कैसे। कहीं कोई काम भी नहीं देगा। एक दो बार चोरी करते करते पकड़ा गया इसलिए आज तो पहल मुझे ही करने दे। मैं आपके हाथ जोड़ता हूं। राक्षस बोला प्यारे दोस्त तू भाषण बाजी में समय हाथ से मत गंवा, इतना अच्छा मौका आज मिला है। जल्दी से मुझे पंडित के पास जाने दे। चोर बोला नहीं पहले मैं गाय को ले जाऊंगा। राक्षस बोला अरे! तू पिददी सा तो है। मैं तुझे एक झापड़ लगाऊंगा तो उल्टा तुझे नानी याद आ जाएगी दोनों नें हाथापाई करनी शुरु कर दी। हाथा पाई करते-करते वह दोनों पंडित जी की चारपाई से जा टकराए। तू तू मैं मैं करते करते चारपाई से टकराते ही पंडित की जाग खुल गई। पंडित नें अपनें मन्त्रों के प्रभाव से चोर को पकड़ कर कहा यहां चोरी करने आया था। मेरी गाय को चुराने की योजना बना रहा था। पंडित ने जोर जोर से चोर को जमीन पर पटका। चोर सर पर पैर रख कर भागा। और वहां से नौ दो ग्यारह हो गया। दूसरी तरफ राक्षस की तरफ देखकर पंडित चिल्लाया। अरे! दुष्ट राक्षस तू तो जल्दी से यहां से चलता बन। अगर तू यहां फिर कभी दिखाई दिया तुझे ऐसा छटी का दूध याद दिलाऊंगा तू कहीं का नहीं रहेगा। राक्षस की आंखों पर ना जाने क्या जादू किया जिससे उसकी आंखों की रोशनी चली गई। राक्षस और चोर दोनों हाय! मार डाला कह कर, दोनों हाथ मलते मलते लौट के बुद्धू घर को आए।