वीरा दीदी

किसी गांव में चंदू अपनी पत्नी झुमकी के साथ रहता था। वह बहुत ही सीधा साधा था। उसकी एक बेटी थी वीरा। । वीरा को वह बहुत ही प्यार करता था। वीरा भी हर काम में अपने मां का साथ दिया करती थी। एक दिन वीरा को छोड़कर उसकी मां सदा सदा के लिए परलोक सिधार गई।वीरा अकेली हो गई। चुलबुल हंसी भरी मुस्कान वाली वीरा बहुत ही गंभीर हो गई। वीरा के पिता से अपनी बेटी की हालत देखी नहीं गई। उसने अपनी बेटी की खातिर दूसरी शादी करने का फैसला कर लिया। वह दिन भी आ गया जब चंदू अपनी पत्नी को शादी कर के घर लाया । उसने अपनी पत्नी चांदनी को समझा दिया था कि मैं शादी करना नहीं चाहता था। अपनी बेटी की खुशी के लिए उसने यह सब कदम उठाया है। तुम्हें हर कीमत पर मेरी बेटी का साथ देना होगा। मेरी बेटी को जरा भी सताया तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगा
उसकी पत्नी चांदनी बहुत ही नेक स्त्री थी उसने कभी भी वीरा को मां की कमी महसूस होने नहीं दी कि वह उसकी सौतेली मां है। अपनी बेटी को बहुत ही प्यार करती थी जैसे कि वह उसकी सगी बेटी हो। आस पास के गांव वाली औरतों ने हमेशा उसे उकसाया। क्यों तू किसी दूसरे की बेटी को प्यार करती है? वह तुम्हारे बच्चों को प्यार नहीं करेगी। इसके पिता सब कुछ रुपये इसके लिए सब दे देंगे। तुम्हारे बच्चों की किस्मत में कुछ नहीं होगा चांदनी एक नेक महिला थी। वह दूसरों की बातों में नहीं आई। उसने अपने दिमाग से काम लिया उसने सभी गांव की औरतों को समझाया आप सभी उम्र में मुझसे बड़ी है। कहां तो आपको मिलकर एक ऐसी बच्ची जिसकी मां का देहांत हो चुका है उसे प्यार देने के लिए कहना चाहिए। कहां आप उसे उल्टी शिक्षा दे रही है? उसे प्यार की कमी है। उसको प्यार देने के बजाय तुम कह रही हो कि उस बच्चे को प्यार मत करो।। ऐसा मैं कदापि सहन नहीं कर सकती। मैं भी तो किसी की बेटी हूं। इतनी नकारात्मक सोच मेरी नहीं है। जब तक यह भी सोचने समझने लायक नहीं हो जाएगी तब तक मैं अपने बच्चों के बारे में सोचूंगी भी नहीं। मेरे भाग्य में बच्चे होंगे तो ठीक है वर्ना यह बच्ची ही मेरी अपनी होगी। भले ही मैंने इसको जन्म ना दिया हो। मुझे यह भी पता है संसार में दूसरी मां को हीन भावना से देखा जाता है। किसी से कुछ लेना देना नहीं है मैं तो वीरा को एक बेटी का भरपूर प्यार दूंगी। यह सब बातें उसका पति चंदू सुन रहा था। बहुत ही खुश हुआ वह मन ही मन अपने पत्नी की प्रशंसा के पूल बांधनें लगा। मैंने जैसा सोचा था वैसी ही गुणों वाली पत्नी उसे मिली मैं अपने आप को खुशनसीब समझता हूं।
धीरे-धीरे समय बीतनें लगा। वीरा 16वर्ष की हो चुकी थी। उसके घर में उसकी जुडवां बहनों ने जन्म ले लिया था। रिद्धि और सिद्धी। दोनों इतनी प्यारी थी हंसमुख भोली भाली। ं
एक दिन उनकी मां की अचानक तबियत खराब हो गई। उसको डिहाइड्रेशन हो गया शरीर में पानी की कमी हो गई। चंदू की पत्नी नें बिस्तर पकड़ लिया। वीरा भी अपनी बहनों को बहुत ही प्यार करती थी। बहने भी उसे वीरा दीदी दीदी कह कर उसके साथ खेला करती थी। उसकी मां को बचाया नहीं जा सका। समय पर सुविधा न मिलने के कारण वह अपनी बेटियों को छोड़ कर भगवान को प्यारी हो गई। उसका पिता पत्थर की तरह मूर्त बन कर अपनी पत्नी को जाता देखता रहा। वह अपनी पत्नी के बिना बहुत ही अकेला हो गया। साथ में तीन तीन बेटियां। वीरा भी बड़ी हो चुकी थी। दोनों बेटियां चार साल की थी। धीरे-धीरे समय बीतता गया। वीरा पढ़ाई में बहुत होशियार थी। उसने दसवीं की परीक्षा भी पास कर ली थी। उसकी बहनें उसके आगे पीछे घुमा करती थी।
वीरा के पिता भी बीमार रहने लगे थे। वीरा के ऊपर अब अपने बहनों का उत्तरदायित्व ही नहीं अपने पिता का उत्तरदायित्व भी उस पर आ गया था। वह भी तो छोटी ही थी। उसने चारों तरफ नौकरी के लिए आवेदन दिए मगर उसे कोई नौकरी नहीं मिल रही थी। उसने अपनी बहनों को गांव के निकेतन स्कूल में दाखिल करवा दिया। उसने निकेतन स्कूल में भी नौकरी के लिए आवेदन दिया। उसने प्रार्थना पत्र में यह सब कुछ लिख दिया कि मेरे ऊपर दो बहनों की जिम्मेवारी है और मुझे अपने पिता की भी देख-रेख करनी है। वह भी बूढ़े हैं और बिमार हैं। उसके अच्छे अंकों की वजह से निकेतन स्कूल वालों ने उसकी अर्जी को मंजूर कर लिया और उसे बच्चों को घर लेकर जाने और लाने का काम सौंप दिया। बच्चों को स्कूल बस द्वारा घर छोड़ने का काम किया करती थी। अपनी बहनों की देखभाल भी उसकी ठीक प्रकार से होने लगी। स्कूल के बच्चे उसे वीरा दीदी – वीरा दीदी कहकर पुकारने लगे। वह सब बच्चों की चहेती बन गई। बच्चों को प्यार करना उन्हें अच्छी अच्छी बातें समझाना उन्हें प्यार से उनके घर छोड़ कर आना यह सब उसकी दिनचर्या में शामिल हो गया। सब बच्चों की मंडली उन्हें वीरा दीदी वीरा दीदी कहकर पुकारती थी। वह भी तो एक बच्ची थी। जिम्मेदारियों नें उसे समय से पहले बहुत कुछ सिखा दिया था। हर बच्चों के मां-बाप भी उसे पहचानने लगे थे। उसकी तारीफ के पुल बांधते नहीं थकते थे। स्कूल में भी उसका रुतबा था। वह कभी भी स्कूल देरी से नहीं गई। जिस दिन उसेे नहीं आना होता था वह पहले ही बच्चों के माता-पिता को बता देती थी। अपनी बहनों को इस तरह सजा संवार कर रखती थी कि सब उसे यही कहते कितनी प्यारी बच्ची है। अपने से पहले उसे अपनी बहनों की कद्र है।
गांव में से शादी के लिए उसे रिश्ते आनें लगे वह बोली नहीं वह अपनी बहनों की खुशी में दीवार नहीं बनेंगी। जब तक मेरी बहनें पढ़ लिखकर कुछ नहीं बन पाएगी तब तक वह शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती।
बरसात के दिन थे। स्कूल बस समय पर आ गई थी। बच्चों को घर ले जाना था। तूफान भी बहुत जोरों से चल रहा था। सड़क पर गांव में जगह-जगह पानी के खडडे थे। चारों तरफ पानी ही पानी भरा हुआ था। लोग पानी पानी की परवाह कम ही किया करते थे। बस अपनी ही धुन में चली जा रही थी। अचानक बस की ब्रेक फेल हो गई। ड्राइवर को भी कुछ नहीं सूझा उस से ब्रेक नहीं लगी और बस एक पेड़ से जाकर टकरा गई। जगह-जगह में बस के शीशे टूट गए थे बस का एक पहिया ही शेष था जो कि पेड़ से अटका था। सब बच्चों के इतनी भयानक चोटे आई थी। अचानक वह पहिया भी नीचे लटक गया और बस गहरी खाई में नीचे नदी में गिर गई। चारों तरफ मौत का खौफनाक मंजर इतना दर्दनाक हादसा वीरा की सांसे जोर जोर से चल रही थी। वीरा नें जब बस को खाई में गिरते देखा और नीचे पानी ही पानी देखा तो उसकी जान निकल गई। उसने अपनें आप को सम्भाला। बड़ी मुश्किल से बस के शीशे को तोड़कर वह बाहर निकली। शीशा तोड़कर दो बच्चों को भी बाहर निकाला। दो बच्चों को बाहर लेकर आई और सुरक्षित जगह पर छोड़ दिया। उसनें अपनें चारों तरफ नजर दौड़ाई जिसको सहायता के लिए पुकार सके। वहां कोई भी उसे दिखाई नहीं दिया सिवाय एक बूढे व्यक्ति के। वह भी उठने में असमर्थ थे। वह बच गई थी। बच्चे बेहोश पड़े हुए थे। उसने सोचा कि सब बच्चों को बचाना बहुत ही जरूरी है। मुझे अपने जीवन की परवाह नहीं करनी चाहिए। उसनें बच्चों को बचाने के लिए पानी में छलांग लगा दी। पानी में बच्चे जगह-जगह तड़प रहे थे । बच्चों की ऐसी हालत वह देख नहीं सकती थी। उनकी हालत देख कर उसकी आंखों से आंसू छलक पडे। किसी भी कीमत पर बच्चों को बचाना चाहती थी। बस में घुसकर उसने एक एक एक बच्चे को उठा कर बाहर सुरक्षित जगह पंहुचा कर ही दम लिया। मासूम बच्चे रोते बिलखते डर कर बुरी तरह सहम से गए हैं। इन्हें बचाना बहुत ही जरूरी है। यह सोचकर उसने दोबारा पानी में छलांग लगा दी और एक एक बच्चे को बचाकर ऊपर लाई बच्चे डरे सहमे हुए चिल्ला रहे थे। बचाओ बचाओ। पानी में उनका दम घुट रहा था। अपनी बहनों को भी उसने बचा लिया था। उसने अपनी दोनों बहनों को प्यार से चूमा और एक और सुरक्षित स्थान पर छोड़ दिया। बस में 16 बच्चे थे। उसने 13 बच्चों को बचा लिया था। जैसे ही वह तीसरी बार नदी में कूदी गांव वालों ने उसे कुदता देख लिया। उन्हें यह भी पता चल गया कि वह बच्चों की जान बचाने के लिए पानी में कूदी है। पास में ही एक बूढा सब कुछ देख रहा था। वह लंगड़ा था। वह किसी को भी बचा नहीं सकता था। उसनें वीरा को बचाते बचाते अपनी जान की परवाह न कर बच्चों को बचाते देख लिया था। रुपा पानी में छलांग लगाकर बच्चों को ढूंढने लगी। उसका पैर बुरी तरह से पानी में किसी चीज से फंस चुका था। गांव वालों ने भी बच्चों को बचाने के लिए पानी में छलांग लगा दी। वह किसी तरह से दो-तीन बच्चों को निकाल कर बाहर ले आए। तब तक सारे लोग वहां इकट्ठा हो चुके थे। बड़ी मुश्किल से उन्होंने वीरा को भी बाहर निकाला।
सारे लोग इकट्ठे होकर बच्चों की बहादुर वीरा दीदी की इतनी हिम्मत देखकर लोग दांतो तले उंगली दबाने लगे। आखिरकार आखिरी बच्चे को बचाते बचाते हुए मृत्यु की आगोश में समा गई।
मरते मरते गांव वालों को सबक दे गई।वह दयालुता का जीता जागता उदाहरण थी। वह भी तो उम्र में बहुत ही छोटी सी थी।
एक छोटी सी बच्ची की बहादुरी की मिसाल लोग देते नहीं थकते थे। एक ही बच्चा था जिसको वह बचा नहीं पाए थे। उसने अपने बहनों की ओर इशारा किया। लोग उसको उठाने की कोशिश करते रहे। लेकिन वह सब कोशिशें बेकार हो गई। देवी स्वरुप वीरा सदासदा के लिए धरती मां की गोद में इस तरह समा गई जैसे बेटी अपनी मां की गोद में जाकर विश्राम कर रही हो। उसके माथे पर चिंता की कोई लकीरें नहीं थी। सचमुच ही वह बहुत वीर थी। जैसा नाम वैसा काम उसनें कर दिखाया।
लोग करुणा भरी देवी को शत-शत कोटि नमन कर रहे थे। जिसने अपनी बहनों की ही नहीं दस बारह मासूमों की जान बचाकर एक बहादुर की मिसाल कायम की।
सरकार ने उसकी बहनों की देखरेख और उसके पिता की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। पन्द्रह अगस्त के मौके पर उसकी दोनों बहनों को वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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