यह कहानी एक छोटे से बच्चे मनु की है ।मनु अपने भाइयों में सबसे छोटा था। मनु की मम्मी बचपन में ही जब वह तीन साल का था तब उसको छोड़ कर सदा के लिए परलोक सिधार गई थी ।उस मासूम को तो यह भी पता नहीं था कि मां क्या होती है? उसकी मां बहुत समझदार थी पढ़ी-लिखी नहीं थी मगर चारों बेटों को पाकर सुख की अनुभूति महसूस करती थी वही राम भरत लक्ष्मण और शत्रुघ्न की तरह समझती थी जब तक जिंदा थी उसने अपने बेटे को किसी भी वस्तु की कमी नहीं होने दी ,जब तक वह जिंदा थी तब तक वह खूब मेहनत करके अपने बच्चों की देखभाल कर रही थी।
उसकी शादी छोटी उम्र में ही हो गई थी घर का सारा काम करना खेत में काम करना और बाजार से सारा सामान लाना आदि कार्य वह अपने हाथों से किया करती थी
उसके पिता सरकारी नौकरी पर कार्यरत थे। वह कभी भी अपनी पत्नी की तरफ ध्यान नहीं देते।चार बच्चों का भरण पोषण और हद से ज्यादा करना एक बार तो डीहाइड्रेशन हो गया और शरीर में पानी की कमी हो गई । में पानी की कमी की वजह से अस्पताल पहुंचाना बहुत मुश्किल हो गया था ।अस्पताल पहुंचने से पहले ही वह चल बसी थी।
मासूम मनु बहुत ही अकेला हो गया था। उसके तीन भाई भी छोटे ही थे। बड़े वाला उसमें केवल दस वर्ष का था। अब तो ताई मां ने पाल पोस कर उन्हें बड़ा किया। पिता नें रुपया भिजवाने की सिवा अपने बच्चों की कभी सुध नहीं ली। बच्चे अपने पिता की एक झलक देखने के लिए भी तरस गए थे ।वह कहीं ना कहीं इस बात के लिए अपने छोटे बेटे को ही उसका का कारण समझते थे ।उन्होंने कभी भी अपने छोटे बेटे को कभी भी प्यार नहीं दिया ,। उन बच्चों को गांव में बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा ।धीरे-धीरे मनु सात वर्ष का हो गया था।वह स्कूल पढ़ने जाने लगा स्कूल भी पांच किलोमीटर पैदल चलना फिर घर आकर खाना खाकर खेतों में काम करना घाट से आटा लाना। खाना तो तब मिलता जब घर में आटा। मनु पढ़ने में बहुत तेज था। वह बच्चों को सवाल करवाता बदले में उनसे कॉपी लेता एक पेंसिल के लिए भी चार चार टुकड़ों में बांटा जाता।
एक बार वह अपनी ताई के साथ एक दर्जी की दुकान पर गया। उसने एक पेंसिल नीचे गिरी देखी। दर्जी पेंसिल से कपड़े पर निशान लगा रहा था। मनु पैंसिल को देखकर सोचने लगा शायद यह पेंसिल मेरे पास होती तो बहुत ही अच्छा होता क्योंकि उसके पास पेंसिल समाप्त हो चुकी थी। वह इस पेंसिल को हासिल करने का प्रयत्न करने लगा और धीरे-धीरे उस पेंसिल को प्राप्त करने का प्रयत्न करने लगा। और सोचने लगा कि काश यह दर्जी अभी कहीं चला जाए ताकि चुपके से यह पेंसिल ले लूं। अचानक दर्जी की दुकान पर एक ग्राहक आया। वह अपनी पेंट सिलानें के लिए आया था। दर्जी दरवाजे की ओर गया तभी मनु ने फटाफट पर पैसिल अपनी जेब में डाल दी।
पेंसिल पा कर मनु इतना खुश था जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। घर वापस आते समय वह बार-बार अपनी जेब में हाथ डालकर देख रहा था। कि पैंसिल जेब में ही है या गिर गई है क्योंकि उसकी जेब थोड़ी फटी हुई थी। उसकी ताई ने उसे दो तीन बार रास्ते में चलते हुए उससे पूछा तो जेब मैं बार बार हाथ क्यों डाला है? कही तूने कोई शरारत तो नहीं की है तब उसने वह पैंसिल अपने निकर की जेब में डाल दी।
जब शाम को दर्जी की दुकान पर कोई निशान लगाने के लिए पैंसिल ढूंढने लगा तो उसे पेंशन नहीं मिली तब उसने दिमाग पर जोर देकर अंदाजा लगाया कि उसकी दुकान पर कौन-कौन आया था? उसके पास दो तीन बच्चे अपने माता पिता के साथ कपड़े सिलवाने आए थे। और गांव के प्रधान जी का बेटा भी आया था। दर्जी ने स्कूल के हेड मास्टर साहब को सूचित कर दिया कि स्कूल में बच्चों की तलाशी ले ली जाए जो बच्चे मेरी दुकान पर आए थे उन्हें तो अवश्य पूछा जाय शायद उन बच्चों में से किसी ना किसी ने मेरी पेंसिल ले ली हो। वह पीले रंग की पेंसिल थी।
बच्चे दूसरे दिन स्कूल को आ रहे थे तो रास्ते में बच्चों ने एक दूसरे से कहा आज तो स्कूल में सब बच्चों की तलाशी ली जाएगी। क्योंकि गांव के दर्जी जी की पेंसिल गुम हो गई है। यह बात मनु भी सुन रहा था। यह सुनकर मनु चकित रह गया। वह सोचने लगा अब तो गुरुजी से मेरी पिटाई होगी और बच्चों के सामने मेरा अपमान होगा। जब घर में यह बात पता चलेगी तो मेरी ताई तुम मुझे खाना भी नहीं देगी। क्योंकि जब कोई बच्चा गलत काम करता था तो ताई उसकी बहुत पिटाई करती थी। उसने एक योजना बनाई उसने वह पैंसिल दर्जी के घर के पास बनी सड़क के किनारे पर फेंक दी।
वह दौड़ता दौड़ता स्कूल पहुंच गया स्कूल में अध्यापक ने प्रार्थना के बाद सब बच्चों की तलाशी ली परंतु किसी के पास पैंसिल नहीं मिली तब अध्यापकने मनु को बुलाया और कहा कि मनु क्या तुमने पैसे तो नहीं चुराई है? तब मनु ने कहा कि मास्टर जी मैंने कोई पैंसिल नहीं चुराई है। जब मैं रास्ते से स्कूल आ रहा था तो मैंने इसी रास्ते में सड़क पर छोटी सी पैंसिल गिरी हुई थी। मास्टरजी ने समझा कि वह झूठ बोल रहा है।
बच्चों ने मास्टर जी से कहा मास्टरजी अगर बच्चा झूठ बोल रहा होगा तो उसका झूठ पकड़ा जाएगा। और उसे सजा मिलेगी। वह सड़क स्कूल के पास ही थी। वह सड़क दर्जी के घर के समीप ही थी। मास्टरजी ने मनु से कहा तुम मेरे साथ चलकर वह जगह मुझे दिखाओ। मनु मास्टर जी के साथ उस सड़क पर गया सचमुच वहां पर पीले रंग की पेंसिल पड़ी हुई थी। मास्टरजी ने वह पेंशन दर्जी को वापस कर दी और सब बच्चों के सामने मनु को शाबाशी दी और कक्षा में उसके लिए तालियां बजाई। मनु को अपने पास से एक कॉपी और एक पेंसिल ईनाम में दी। ईनाम पाकर मनु ने सोचा कि आगे से वह कभी भी झूठ नंही बोलेगा और चोरी भी नहीं करेगा।
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