किसी गांव में एक किसान रहता था। वह मेहनत करके अपना जीवन गुजारा करता था। हल चलाकर खेतों में सारा दिन काम कर के शाम को थका मांदा जब घर आता तो उसकी पत्नी उसे गर्म गर्म खाना परोसती। खाना खाने के बाद उसे ऐसी नींद आती के उसके सामने कोई आवाज भी लगाता होता तो वह आंखें भी नहीं खोलता था। उसका एक बेटा था। वह अपने पिता को हरदम मेहनत करते देखा करता था। वह भी आठवीं कक्षा में पहुंच गया था। वह अपने पिता को कहता पिता जी आप इतनी मेहनत क्यों करते हो? आजकल खेतों में कुछ भी पैदा नहीं होता है। जो रहा सहा होता वह भी आकर बंदर उजाड़ देते हैं। आपको अपनी मेहनत का कुछ भी हासिल नहीं होता। उसका पिता अपने बेटे को समझाता बेटा सोनू मुझे अपने पूर्वजों की इस धरोहर को अच्छे ढंग से रखना है। मेरे लिए उनका आशीर्वाद ही बहुत है। मैं जब तक जीता हूं मैं इस से अपने खेतों में काम करना नहीं छोडूंगा। उसका पिता कहता जो तुम स्कूल जा रहे हो वह हमारी खेतों में रात दिन की गई मेहनत का ही तो परिणाम है। नहीं तो तुम स्कूल भी नहीं जा पाते। गाय का दूध यह भी बेचकर गुजारा करता हूं। मैं अपने खेत में कोई भी रसायनिक खाद का प्रयोग नहीं करता। गाय को चारा भी तभी ठीक मिलता है इसलिए वह ज्यादा दूध दे पाती है। तूने देखा अपने आसपास के घरों में रहने वाले लोग यह अपने खेतों में रसायनिक खादों का प्रयोग करते हैं। इनमें फसलों को खाने के लिए पक्षी चूहा बंदर खाते हैं। यह सब के सब भयंकर बीमारी का शिकार हो जाते हैं। यही फसल हम भी खाते हैं। उनके द्वारा हम भी बीमार हो जाते हैं देख बेटा पुरखों के खेतों में अच्छे ढंग से हम काम करेंगे तो हमें इन्हीं खेतों में पौष्टिकता से भरपूर सब्जियां खाने को मिलेगी। अनाज भी मिलेगा। बेटे को यह बात नहीं जंची इसलिए वह नाराज़ हो कर चला गया।
उसका बेटा दसवीं कक्षा में पास हो गया था। वह नौकरी के लिए प्रयत्न कर रहा था। उसके साथ साथी सभी नौकरी के लिए प्रयत्न कर रहे थे। उसे भी प्राइवेट नौकरी के लिए चुन लिया गया था। उसके पिता ने कहा बेटा कि प्राइवेट नौकरी से अच्छा है घर पर ही बैठकर पक्की नौकरी के लिए आवेदन करो। तुम्हें जब तक पक्की नौकरी नहीं मिलती तब तक घर की खेती बाड़ी मे मेरा हाथ बटां लिया करो। बेटा कहनें लगा मैं यहां नहीं रह सकता मैं तो प्राइवेट नौकरी कर लूंगा। अपने पिता से लड़ाई झगड़ा कर सोनू शहर चला गया। वहां पर प्राइवेट कंपनी में लग गया। उसकी बचकाना हरकतों से नाराज़ हो कर उसके पिता बीमार रहने लगे थे। धीरे-धीरे समय गुजरने लगा। उस बात को 8 साल हो गए। अभी तक उसे केवल 10,000 रुपये वेतन ही मिलता था। उसके पिता ने उसे समझाया बेटा गांव में रहकर भी कमाया जा सकता है लेकिन वह नहीं माना। वह शहर में चला गया एक दिन उसके पिता का खत आया बेटा जल्दी घर आ जाओ। वह अपने घर आया। उसके पिता ने कहा बेटा मेरे जिंदगी का अब कोई भरोसा नहीं है ना जाने जिंदगी कब समाप्त हो जाए। आज मैं तुम्हें एक बात समझाना चाहता हूं। मेहनत से कमाई हुई जमीन को मत बेचना। तुम इस जमीन में लगभग कर मेहनत करोगे तो तुम्हें खाने को भी ताजा मिलेगा और सुखी भी रहोगे। नौकरी में आजकल कुछ नहीं रखा है। उसने अपने पिता को वचन दिया कि पिताजी मैं इस जमीन को नहीं बेचूंगा। शहर में जा कर उसके बेटे ने शादी कर ली और शहर में रहने लगा।। धीरे-धीरे वह शहर का ही होकर रह गया। एक दिन उसके पिता भी इस दुनिया को छोड़कर चलते बने।
उसके घर में भी एक बेटा आ गया था। वह भी अपने पिता की तरह था। सुबह देर से उठना रात को देर तक जागना। उसके पिता उसे कहते बेटा पढ़ाई किया करो तो वह कहता कि कर लूंगा अभी तो बहुत समय है। इस तरह करते करते वह आलसी का आलसी ही बना रहा। उसके पिता को यह सब बहुत बुरा लगता था। वह अपने पिता की बात नहीं मानता था। एक दिन निराश होकर उसके पिता बोले बेटा मैं तो गांव जा रहा हूं। तुम्हारी दादा की जमीन गांव में है वहां जा कर खेती-बाड़ी करूंगा। उसने अपने बेटे रवि को कहा बेटा आज से मैं गांव में ही रहा करूंगा। तूने गांव चलना है तो चल वरना तुझे शहर में किराए के मकान में रहना पड़ेगा। यहां किराया कौन देगा? मेरी प्राइवेट नौकरी थी। कंपनी बंद हो गई। खाने के भी लाले पड़ गए हैं। उसका बेटा बोला मैं वहां जा कर क्या करुंगा? मैं यहां रह कर ही अपनी पढाई करुंगा। उसके पिता बोले शहर में रह कर तू कुछ कर पाता है तो ठीक है वरना तेरी मर्जी। उसका पिता अपनी पत्नी को लेकर गांव आ गया।
इतने सालों के बाद उसे अपने पिता की याद आई। मेरे पिता नें मुझे कितना समझाया था कि प्राइवेट नौकरी में कुछ नहीं रखा है। तू इस जमीन को मत बेचना। आज मेरी प्राइवेट नौकरी भी छूट गई। कम्पनी भी घाटे में चले गई। मेरे पिता ने उस समय मुझे सलाह दी थी कि एक ना एक दिन तुझे यह जमीन ही काम आएगी। आज वह बात सच हो गई। अच्छा ही हुआ जो मैंनें यह जमीन नहीं बेची। आज यही जमीन मेरे काम आएगी। हे भगवान मेरे बेटे को भी अक्ल देना।
उसने अपने पिता की तरह लग्न से काम करना शुरू कर दिया। सुबह 4:00 बजे उठकर खेत में चला जाता। उसने अपना खेत हरा भरा कर दिया। जितनी मेहनत करता उतनी ही उसकी फसलें लहलाती थी। वह उनको बाजार में बेच देता। उससे गुजारा भी ठीक-ठाक होनें लगा। उस की उदासी दूर हो गई थी। अगर आज मेरे पिता जिंदा होते अपनें बेटे को यूं मेहनत करता देख कर खुश होते। मैनें अपने पूर्वजों की जमीन को नहीं बेचा। धीरे-धीरे करके उसका व्यापार बढ़ने लगा। उसके इतने सारे खेत थे उसने अपने गांव के लोगों को भी साथ में ले लिया जो उसके साथ मिलकर उसकी खेती में देख रहे कर लिया करते थे। उसने एक खेत में सब्जियां लगाई।
एक खेत में गेहूं और एक खेत में मक्की। गांव में उस बार इतना अकाल पड़ा कि सभी लोगों को कुछ भी खाने को नहीं मिला, लेकिन उसके खेत में सारी की सारी चीजें अभी भी मौजूद थी। उसने अपने गांव वाले लोगों को कहा कि तुम्हारे खेतों में अनाज नहीं हुआ कोई बात नहीं तुम मेरे साथ मिलकर खेती कर सकते हो। तुम जितनी मेहनत करोगे उतना फल तुम्हें भी मिलेगा। जब तक तुम्हारे खेतों में अनाज नहीं पैदा होता मेरे साथ मिलकर खेती करो और मिल बांट कर खाओ। कई लोग तो अकाल की त्रासदी से डर कर गांव को छोड़कर शहर की ओर पलायन कर गए। कुछ लोगों ने किसान के बेटे की बात मान ली। उन्होंने उसके साथ मिलकर खेती-बाड़ी करनी शुरू कर दी। उसका व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करने लगा। गांव वाले भी उसकी मेहनत की प्रशंसा करने लगे। दूर-दूर से गांव वाले लोग भी उसे देखने आने लगे। यह देखने के लिए कि इनकी मेहनत का क्या राज है? आस पास दूर से आने वाले लोग उन सभी को लड़ाने की कोशिश करने लगे। उन सबने लड़ाई छोड़ कर एक साथ मिलकर सभी को मात दे दिया। विश्वास दिला दिया कि सहयोग से हम अपने गांव की बंजर भूमि में भी फसल उगा सकते हैं। जिन लोगो ने हिम्मत नहीं हारी थी उनकी जमीनों में भी धीरे-धीरे फसलें लहलानें लगी। वह भी मेहनत करके अपने खेतों में कमाने लगे।
गांव में एक ने सब्जी की मार्केट खोल दी थी। एक नें शहर में जाकर सब्जी बेचने का काम चला लिया था। रात को खेत में बारी-बारी सभी ने पहरा देने का निर्णय कर लिया था। उनके बच्चे भी खुशी-खुशी शिक्षा हासिल कर रहे थे। एक ने गाय का दूध बेचने के लिए सभी लोगों को इधर-उधर इकट्ठा कर बेचने का काम संभाल लिया था। जो भी रुपये आते थे वह सभी आपस में बराबर बांट दिया करते थे। सभी की आमदनी अच्छी चल रही थी। उनका घर खुशहाल हो गया था। इस बार ग्राम पंचायत की ओर से उस गांव को चुना गया। सभी के चेहरे पर खुशियां थी।
गांव वालों ने सभी ने मिलकर अपनी एकता का मजबूत उदाहरण देकर गांव की काया ही पलट दी थी। वह किसान अपने बेटे को पढ़ाई के लिए रुपया भेज रहा था। एक बार उसका बेटा रवि अपने पिता को देखने के लिए गांव में आया। उसने सोचा यहां तो कुछ भी नहीं होगा परंतु वहां के वातावरण को देखकर वह दंग रह गया। शहर में तो उसे अच्छी सब्जियां खाने को नहीं मिलती थी। गांव में उसे स्वादिष्ट सब्जी खाने को मिली और सभी लोग मिल बांटकर फल भी खा रहे थे और एक दूसरे में के घरों में जाकर गर्मा गर्म खाने का, घी मक्खन खानें का भरपूर आन्नद ले रहे थे। गांव में घी मक्खन दूध की कमी नहीं थी। वहां पर यह सब देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। उसने अपने मन में सोचा कि शहर में रहने से कोई लाभ नहीं। वहां पर तो सब कुछ बाजार से खरीदना पड़ता है। वह अपने घर में आकर बोला पिताजी मैं यही पर रह कर पढ़ाई करूंगा और यही मेहनत करके कमा लूंगा। अपने बेटे की बात सुनकर किसान की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। यही बात अगर मैंने अपने पिता को कही होती तो कितना अच्छा होता? मुझे अपनी भूल का पछतावा तो हुआ। जो काम मैं नहीं कर सका वह मेरे बेटे ने कर दिखाया।
उसका बेटा गांव में ही आकर रहने लग गया था। वहीं पर पढ़ाई करने लग गया था अपने बेटे को गांव में आया देखकर उसने गांव में उत्सव मनाया। सभी के सभी लोग उसके उत्सव में शामिल हुए। वे सभी कहने लगे कि हम भी अपने बच्चों को गांव में ही शिक्षा देंगे जिससे कि हमारे बच्चों का भविष्य भी सुरक्षित होगा और हर एक बच्चा गांव में रहकर ही बड़ा बनकर अपने गांव को और भी खुशहाल बना पाएगा।