उड़ान

छवि आज बहुत ही खुश थी। जिस सम्मान को पाने के लिए वह इतनी मेहनत इतना बड़ा संघर्ष करके इस मुकाम तक पहुंची आज अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रही थी। उसके सामने प्रेस के रिपोर्टर और बड़े-बड़े नेता उसके कड़े संघर्ष की कहानी सुनने के लिए उत्सुक थे। उसे आज उसी के एक छोटे से गांव में सम्मान देने के लिए बुलाया गया।  यह सम्मान उसे एक सपने की तरह महसूस हो रहा था। वह सपना तो नहीं देख रही है उसने अपने आपको च्योंटी काटी उसे दर्द महसूस हुआ अपने सामने गांव के स्कूल के ग्राउंड में 26 जनवरी के समारोह में उसे भी आमंत्रित किया गया था और सपनों की उड़ान में   हिलोरे खाने लगी। जह जब वह छोटी सी थी अपने बाबा की उंगली पकड़कर स्कूल की दहलीज पर कदम रखती थी उसके जाते ही एकदम रोना शुरु कर देती थी उसकी अध्यापिकाएं उसे बड़े प्यार से चुप कराती। बचपन में शरारती गुड़िया आज एक गंभीर और समझदार इन्सान की तरह अपनी मंजिल के करीब पहुंच गई। सच ही कहा है जिसके इरादे मजबूत होते हैं उसे कामयाबी तक पहुंचाने में कोई भी नहीं रोक सकता।

 

एक छोटे से गांव में पली बढ़ी सुमीता के पिता उसे प्यार से  सुम्मी और उसके भाई को सुबोध बुलाते थे। दोनों बच्चे बड़े प्यारे थे। सुबोध उससे उम्र में पांच साल बड़ा था। सुम्मी इतनी समझदार  और सुबोध उसक बिल्कुल  विपरीत स्कूल जाते जाते अधिक देर कर देता। बहुत देर तक सोया रहता। सुम्मी जैसे ही उसकी मां उठती उसके पीछे पीछे वह भी उठ जाती। मां को काम करते देख उसे बहुत ही आनंद आता था। वह भी अपने छोटे छोटे हाथों से कभी झाड़ू लगाने लगती।  चाहे उसे देर लगती। कभी उनके साथ खेंतों को चली जाती। उनके गांव में लड़कियों को पढ़ाना अच्छा नहीं समझा जाता था। लड़कियों के मां बाप उन्हें थोड़ा बहुत पढ़ा लिया करते थे। गांव के लोग कहते कि हम ने कौन सा इन लड़कियों से नौकरी करवानी है। बेटे और बेटी में अंतर समझ समझा जाता। कई बार वह अपने बाबा से पूछती बाबा मैं क्यों आगे नहीं पढ़ सकती? उसके बाबा कहते बेटा तुम्हें पढ़ लिखकर कौन सी नौकरी करनी है? थोड़ा बहुत पढ़ लिए यही तेरे लिए बहुत है। बाबा की राजदुलारी थी

 

उसके गांव में एक ताया ताई और एक चाचा चाची थे। वह भी उस से प्यार करते थे। कभी-कभी अपने ताया ताई जी के पास चली जाती उनके ताया जी ऑटो चलाते थे। वह ऑटो चलाते वह उन्हें देखा करती थी। क्या मैं भी  ऑटो चला सकती हूं। वह कहते बेटी ऐसी बातें लडकियों को शोभा नहीं देती है। लड़कियों  से काम कराना बुरा समझा जाता है। वह थोड़ी बड़ी हो चुकी थी। दसवीं कक्षा में पहुंच चुकी थी। उसके स्कूल में बाहर से सेमिनार में बड़े-बड़े प्रशिक्षित अध्यापक और अध्यापिकाओं को बुलाया गया था। वह बच्चों को संबोधित करके कह रहे थे बेटा इस गांव में आकर हमें बहुत ही बुरा लगा क्योंकि यहां पर आज भी लड़कियों को नहीं पढ़ाया जाता। लड़कियों का लड़कों से आगे आना बुरा समझा जाता है।

 

बेटा लड़का और लड़की दोनों एक ही मां बाप की संतान होते हैं उनमें क्यों इतना अंतर समझा जाता है? इसलिए कि वह  अपने बाबा की उंगली पकड़कर स्कूल की दहलीज पर कदम रखते ही उसके जाते ही एक दम होना शुरु कर देती थी उसकी अध्यापिका से बड़े प्यार से चुराती बचपन में शरारती गुड़िया आज एक गंभीर और समझदार लगती अपनी मंजिल के करीब पहुंच गई। किसी नें सही ही कहा है जिसके इरादे मजबूत होते हैं उसे कामयाबी तक पहुंचाने में कोई भी नहीं रोक सकता। एक छोटे से गांव में पली बढ़ी। सुमीता के पिता उसे सुम्मी और उसके भाई को सुबोध बुलाते थे। दोनों बच्चे बड़े प्यारे थे। सुबोध उस से  उम्र में पांच साल बड़ा था। सुम्मी जितनी समझदार सुबोध उसकी विपरीत।स्कूल जाते जाते अधिक देर कर देता।  ,  बहुत देर तक सोए रहता। सुम्मी जैसे ही उसकी मां सुबह उठती मां को काम करते देख कर उसे बहुत ही आनंद आता था। वह भी अपने छोटे छोटे हाथों से कभी झाड़ू लगाने लगा देती। कभी बाबा को चाय देने लगती। कभी उनके साथ खेतों को चली जाती। उसके गांव में लड़कियों को पढ़ाना अच्छा नहीं समझा जाता था। लड़कियों के मां-बाप उन्हें थोड़ा बहुत ही पढा  दिया करते थे। गांव के लोग कहते हमने कौन सा इन लड़कियों से नौकरी करवानी है।  बेटे और बेटी में अंतर समझा जाता। कई बार वह अपने बाबा से पूछती बाबा में क्यों आगे नहीं पढ़ सकती। उसके बाबा कहते बेटा तुम्हें पढ़ लिखकर कौन सी नौकरी करनी है। तू तो थोड़ा बहुत पढ़ ले यही तेरे लिए बहुत है। अपने बाबा की राजदुलारी थी।

 

उसके गांव में उसके एक ताया  और ताई एक चाचा चाची थे। वह भी उसे खूब प्यार करते थे। कभी-कभी  वह अपने ताया जी के पास चली जाती। उसके ताया जी ऑटो चलाते थे। वह जब ऑटो चलाते वह उन्हें देखा करती थी वह उन्हें कहती क्या मैं अभी ऑटो चला सकती हूं? वह कहते चुप लड़कियों को यह बातें शोभा नहीं देती। हमारे यहां लड़कियों से काम कराना बुरा समझा जाता है। वह कुछ थोड़ी बड़ी हो चुकी थी। सातवीं कक्षा में पहुंच चुकी थी। उसके स्कूल में बाहर से सेमिनार में बड़े-बड़े प्रशिक्षित अध्यापक और अध्यापकों को बुलाया गया था। वे बच्चों को संबोधित करके कह रहे थे बेटा इस गांव में आकर हमें बहुत ही बुरा लगा क्योंकि यहां पर आज भी लड़कियों को नहीं पढ़ाया जाता। लड़कियों का लड़कों से आगे आगे आना बुरा समझा जाता है। बेटा लड़का और लड़की दोनों जब एक ही मां बाप की संतान होते हैं तो इनमे  क्यों इतना अंतर समझा जाता है। इसलिए कि वह लड़की है वह बाहर नहीं निकल सकती। वह हालात का मुकाबला नहीं कर सकती। नहीं ऐसा नहीं है। मेरा सभी अभिभावकों से अनुरोध है अपनी बेटी को भी उसी सम्मान की दृष्टि से देखें जैसे अपने बेटे को देखती हैं। अगर बेटा उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है तो बेटी क्यों नहीं? मैं तो समझती हूं लड़कियों को अकेले बाहर जरूर जाने देना चाहिए। तभी उनमें हिम्मत आएगी हम अगर डरते रहे हमारी बेटी के साथ कहीं कुछ बुरा तो नहीं हो जाएगा तुम अपनी बेटी को ऐसे संस्कार दो जिससे वह अपना भला बुरा पहचान सके। उसे वह कहीं भी चली जाए कुछ नहीं होगा। अध्यापिका के शब्द उसके कानों में गूंजने लगे। शाम को जब वह घर आई अपने बाबा से कहने लगी मैं खूब पढ़ूंगी। उसके बाबा ने कोई उत्तर नहीं दिया उसके माता-पिता एक साधारण परिवार के थे। धीरे-धीरे उसके कोमल मन पर अमिट छाप पड़ गई।

वह सभी से कहती मैं खुद पढाई करूंगी। वह छुट्टियों में अपने ताया जी के पास चली गई। वहां पर अपने ताया जी को ऑटो चलाते देख कर कभी-कभी वह भी ऑटो चलाने लगती। उसके ताया  प्यार प्यार में  उसे थोड़ा चलाने देते। इस तरह वहऑटो चलाना सीख गई। उसके ताया जी का घर उसके घर से  आठ किलोमीटर की दूरी पर ही था। एक दिन जब वह अपनें ताया जी के घर पहुंची तो देखा ताई दर्द से कराह रही थी। उसके घर के इर्दगिर्द  औरतें   इकट्ठा होकर तमाशा देख रही थी। उसकी ताई के प्रसव पीड़ा शुरू हो चुकी थी। उसके ताया जी किसी काम से बाहर गए हुए थे वह घर में पहुंच नहीं सकते थे। गांव में एंबुलेंस तो दूर कोई ऑटो चलाने वाला भी नहीं था। गांव के लोग निरक्षरता के कारण कुछ नहीं करते थे। उसने अचानक सारा हाल मालूम किया। उसे समझ में आ चुका था कि अगर वह अपने भाई को समय पर अस्पताल लेकर नहीं गई तो उसकी ताई सदा के लिए परलोक सिधार जाएगी। उस नें आव देखा ना ताव अपनी ताई को  दो तीन औरतों की मदद से ऑटो में बिठाया और अस्पताल तक ऑटो लेकर गई।। समय पर सुविधा मिलने के कारण उसकी  ताई की जान बच गई। उसके भाई की जान भी बच गई थी।  उसक छोटा सा प्यारा भाई भी आ चुका था गांव वालों ने उसके हौसले की दाद दी। उन्होंने जाना कि एक लड़की भी अपने परिवार के लिए सब कुछ कर सकती है जो एक बेटा कर सकता है।  उस दिन से उसे  सब लोग सम्मान की नजरों से देखने लगे। जब कभी गांव में कोई औरत बीमार होती तो और उसके ताया जी कहीं बाहर गए होते तो वह ऑटो लेकर खुद ही उस बीमार व्यक्ति को अस्पताल पहुंचा देती। उसके ताया जी ने उसे ऑटो चलाने की इजाजत दे दी थी। क्योंकि अपने भाई को उसने बचा लिया था ना जाने अगर वह उस वक्त समय पर नहीं पहुंचती तो उसकी ताई तो मर ही गई होती।

 

वह दसवीं कक्षा में पहुंच चुकी थी उसका भाई तो कुछ काम धंधा नहीं करता था पढ़ाई में भी वह अच्छा नहीं था। अपने माता-पिता का भी काम में हाथ नहीं बंटाता था। एक बार सुम्मी के पिता किसी काम से दूसरे गांव गए हुए थे अचानक दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से उनकी टांगे बेकार हो गई। डॉक्टरों ने कहा कि वह अब कुछ नहीं कर सकते। सुम्मी की माता बहुत घबरा गई। सुम्मी भी यह सुन कर रही थी। सुबोध की मां ने अपने बेटे  को कहा बेटा तू कोई छोटी मोटी नौकरी कर ले। तुम्हारे पिता तो अब कुछ करने लायक नहीं रहे। तू ही मेरा सहारा है। सुबोध बोला मैं क्या करूं? सोच लूंगा। पिता के इलाज के लिए ताया जी और चाचा जी से उधार ले ले। सुम्मी की मां उधार लेने के लिए अपने जेठ के पास जाकर बोली कृपा करके मुझे रुपयों का इंतजाम कर दे। मैं किसी ना किसी तरहकर के सारे रुपए चुका दूंगी। उसकी जेठानी बोली मेरे भी  तो दो बेटियां और एक बेटा अभी हुआ है। मेरे पास तो कोई जमा पूंजी नहीं है। उन्होंनें साफ इन्कार कर दिया तो वह अपने देवर के पास गई। उसने भी उसे निराश लौटा दिया।

 

सुम्मी के मन में बड़ा आघात लगा। उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह तो अब नौकरी करके ही दम लेगी। उसके परिवार वालों को उसकी जरूरत है। दुनिया वाले जो भी कहे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता उसने अपनी एक सहेली को बुलाया और उसने कहा मैं तुम पर बहुत विश्वास करती हूं। मैं भी इंटरव्यू देना चाहती हूं

उसके पिता रोजगार कार्यालय में लगे हुए थे। उसने अपनी सहेली को कहा कृपया मुझे ड्राइवर की परिचारिका का इंटरव्यू देना है। मैं ऑटो चलाना जानती हूं। मैं अगर सिलेक्ट हो गई तो मैं छः महीने  का प्रशिक्षण कर लूंगी। तुम यह बात किसी को मत बताना। उसके पिता ने उसकी सहेली सुम्मी को रोजगार कार्यालय से साक्षात्कार के लिए बुला लिया। वह दसवीं की परीक्षा पास कर चुकी थी साक्षात्कार में उसका चुनाव कर लिया गया उसको छः महीने का प्रशिक्षण करना था उसकी माता ने  उसकी शादी के लिए गहनें इकट्ठे कर लिए थे।  अपने गहनों को बेच कर उसने ऑटो ले लिया। वह उस पर अभ्यास करती रही। जो कुछ रुपया मिलता उससे वह अपने परिवार का खर्च चलाने लगी। उसने माता पिता को बता दिया कि उसे बस परिचारिका के रूप में चुन लिया गया है। गांव से बाहर जाना होगा। मुझे आप जाने की इजाजत दे दीजिए क्योंकि आपने देख तो लिया है कि इस दुनिया में वक्त पड़ने पर अपने भी पराए हो जाते हैं। मुसीबत के समय में हमारी किसी ने भी मदद नहीं की। अगर मैं वहां जाकर काम करूंगी तो मैं आपकी भी मदद कर सकूंगी। उसके माता-पिता इनकार करने लगे तो बोली तब बताओ सुबोध जिम्मेदारी संभाले योग्य है क्या। उन्हें अपनी बेटी की आंखों में सच्चाई नजर आई। उन्होंने कहा बेटा ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी।  वह अपनें गांव से दूर आकर ट्रक परिचालिका के रुप मे काम करनें लगी। वह जब ट्रक चलाती लोग उसे घूर घूर कर देखते। उस पर कटाक्ष करते। कभी कभी तो टिकट चेकर भी उसे  खरी-खोटी सुना देता। सबके कटाक्षों को सहन करती हुई वह मुंह से कभी किसी को कुछ नहीं कहती थी। अपना काम इमानदारी से कर रही थी। काम करते उसे एक साल हो गया था। सारे लोग जिस दिन वह थोड़ा देर से आती उसे पूछते बेटा कहां रह गई थी। उसे प्यार करते। उसे प्यार से छुटकी कहते। सबकी आंखों का तारा बन गई। सब उसका इंतजार करते कब वह आए और उसके बस में ही बैठकर अपने घर पहुंचे। आज  वह बहुत मशहूर हो गई थी कि सब उसको देखकर उसकी प्रशंसा कर रहे थे। और कह रहे थे लड़की हो तो ऐसी। उसके पिता भी स्वास्थ हो गए थे।

 

उसके गांव में भी लोगों ने अपनी लड़कियों को पढ़ाना शुरू कर दिया था।  उसके गांव के लोग उसके हौसले को देखकर खुश थे। उसके पिता चाहते थे कि उसकी शादी अच्छे से घर में हो जाए। उन्होंने अपनी बेटी को गांव बुलाया। लड़के वाले उसे देखने आए। लड़की वालों ने कहा कि हमें दहेज में 50, 000, 00 रुपए चाहिए। सुमीता ने आते ही कहा तुम्हें मेरे घर में जरा भी रहने की इजाजत नहीं है। जाओ यह रिश्ता में ठुकराती हूं। मुझे ऐसे व्यक्ति से रिश्ता नंही करना है जो मुझसे प्यार नहीं मेरी धन-दौलत से करता है। सुमीता ने लड़के वाले को लताड़ कर वापस भेज दिया। सुमीता के माता-पिता कहने लगे बेटा तुमने यह अच्छा नहीं किया। वह बोली मां मुझे अभी शादी नहीं करनी है जब मुझे कोई अच्छा लड़का मिलेगा तब ही मैं शादी करूंगी। अपनी बहन के नौकरी करने के बाद सुबोध में भी काफी परिवर्तन आ चुका था। उसने भी एक मैकेनिक की दुकान पर नौकरी कर ली थी। वह भी  कमानें  लग गया था। वह बोला मेरी बहन ठीक कहती है दहेज के लालची लोगों के साथ में अपनी बहन का विवाह नहीं करवाऊंगा।

 

एक दिन सुबोध अपने दोस्त की बहन की शादी में गया हुआ था। शादी के वक्त जब फेरों का समय आया तो दूल्हे के माता-पिता ने लड़की वालों से कहा कि हम बारात को तब लेकर जाएंगे अगर तुम 10, 000, 00 रुपए दहेज दो नहीं तो तुम्हारी बेटी कुंवारी ही रह जाएगी। यह सुनकर सुधीर के पिता को चक्कर आ गया। यह देख कर सुबोध से रहा नहीं गया। फोन उठा और बोला सुरभि उठो इस  गांव में तुम्हें शादी करने का कोई अधिकार नहीं है जहां पर लड़कियों की इज्जत को धन दौलत रूपी तराजू से तोला जाता है। तुम शादी करने से इंकार कर दो मैं तुम्हारे साथ हूं। डरो मत। सुबोध के साहस दिलाने पर सुरभि उठ कर कहने लगी। मुझे भी यह रिश्ता मंजूर नहीं है। दहेज की खातिर लड़कियों को कुर्बानी देनी पड़े। मैं ऐसी शादी से इंकार करती हूं।

 

सुरभि के मां बाप बड़े दुखी हुए वह सुरभि को कोसने लगे तुमसे अब कौन शादी करेगा? सुबोध बोला मैंने तुम्हें पहले इस रूप में कभी नहीं देखा था मगर आज मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूं बिना दहेज के। सुबोध ने पुलिस इंस्पेक्टर को फोन लगा दिया। इंस्पेक्टर ने आकर सुरभि के ससुराल वालों को हथकड़ियां डालकर जेल में दहेज लाने के लालच में अंदर कर दिया। सुबोध सुरभि को विवाह कर घर ले आया सुबोध के माता पिता ने अपने बेटे की समझदारी पर उसे गले से लगा लिया कहा बेटा आज तुम सचमुच में ही मेरा बेटा कहलाने योग्य हो।  सुम्मी ने जब सुना तो वह भी खुश हो गई।  सुम्मी को अचानक जोर का झटका लगा। उसकी तंद्रा टूटी। सामने जब सुम्मी को इनाम के लिए पुकारा गया तो उसे उसके अच्छे  हुनर  के लिए सरकार ने उसे ₹50, 000 की राशि इनाम के तौर पर दी। उसे जब सम्मान दिया जा रहा था गांव वाले सब उसकी तरफ सम्मान भरी नजरों से देख रहे थे। जिसने अपने छोटे से गांव का नाम रोशन किया था। गांव के लोगों के मनसे रूढ़िवादी विचार दूर हो गए थे। थोड़े बहुत ही लोग ऐसे थे जो संकुचित विचारों के थे। उसने बाहर निकल कर गांव वालों के लिए ही नहीं बल्कि अपनी बुलंद हौसलों की उड़ान दी। घर आकर उसने भाई भाभी को गले से लगा कर कहा मेरे प्यारे भाई मुझे तुम पर भी नाज है।

 

सुरभि बोली मैं भी काम करूंगी। मुझे तरह तरह के पकवान बनाने आते हैं। हम घर पर ही एक पकवान गृह बनाते हैं। घर में बैठकर हम बाहर को स्वादिष्ट खाना पैक कर के बाहर खाना भेजा करेंगे। जिससे आमदनी भी हो जाएगी। सुबोध की पत्नी ने अपनी होशियारी से पाक कला में अपनी मिसाल कायम कर दी उसका होटल खूब चला। धीरे धीरे चल कर सुबोध और उसकी पत्नी ने एक बड़ा रेस्टोरेंट खोल दिया। उसके परिवार में किसी को भी किसी वस्तु की कमी नहीं थी। सुबोध अपनी पत्नी अपने माता पिता और बहन के,,,,,,,  के साथ आनंद से रहने लगा।

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