काली और भूरी कोवी

एक घना जंगल था वहां पर एक पीपल का पेड़ था। उस पेड़ की शाखाएं दूर दूर तक फैली हुई थी। उस पेड़ की शाखा पर कौवे और कौवी का परिवार रहता था। काली कौवी भी भोजन की तलाश में दूर-दूर तक निकल जाती थी। उस पेड़ की दूसरी तरफ साथ में एक दूसरे पेड़ पर भूरे रंग की कौवी भी अपने परिवार के साथ रहती थी। काली और भूरी कौवी दोनों सहेलियां थी। दोनों आपस में मित्रता रखती थी। कौवे  भी भोजन की तलाश में सुबह सुबह चुगने चले जाते थे तो वे दोनों अपने बच्चों का ध्यान रखती थी। एक दिन वे दोनों   कौवे जब भोजन की तलाश में गए तो वे शाम तक जब वापिस नहीं आए तो वे दोनों बहुत ही उदास हो गई। पांच-छह दिन से कौवे दूर दूर तक दाना पानी की जुगाड़ में गए थे लेकिन वह अभी तक वापस नहीं आए थे। उनकी उपस्थिति में वे दोनों भी अपने बच्चों के भोजन की जुगाड़ के लिए चली जाती थी।

एक दिन काली कौवी परेशान होकर भूरी कौवी  के पास आकर बोली हम दोनों परिवारों के मुखिया घर पर नहीं है। आज चार-पांच दिन से हमें उनका कोई भी  अता पता नहीं है। हमें ही अपने बच्चों के लिए दाने का जुगाड़ करना होगा। भूरी कौवी बोली बहन कुछ दिनों से मेरी तबीयत भी ठीक नहीं है मगर क्या करूं? बच्चों को भूखा भी नहीं छोड़ सकती। मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार हूं। रास्ते में तुम आराम आराम से चलना।

काली कौवी  बोली बहन यह भी भला कहने की बात है। मुसीबत में हम दोनों एक दूसरे की सहायता नहीं करेंगे तो हमारा जीवन बेकार है। चलो  दाना चुगनें  चलते हैं। दोनों दाना चुगने चलने जानें लगी तब अपने बच्चों को कहा कि घोंसले के बाहर भी कदम मत रखना। बच्चे वहीं रह गए। दूर दूर तक भोजन की तलाश में उड़ने लगी। दोपहर हो गई थी मगर उन्हें  दाना नहीं मिला। काली  कौवी  भी परेशान हो गई। यह देखकर कि भूरी कौवी  आईस्ता आईस्ता उड़ रही है।शाम तक  अगर दाना नहीं मिला तो आज  भूखे ही रह जाएंगे। वह अपनी सहेली से बोली बहन जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाओ। भूरी बोली बहन मेरी तबीयत ठीक नहीं है मैं और ज्यादा दूर तक नहीं  उड़ सकती। मैं तो आराम करना चाहती हूं। उन्हें तभी  पास में अनाज का दाना दिखाई दिया। जल्दी से भूरी कौवी ने वह  दाना उठा लिया। यह सब देख कर काली कौवी को बहुत ही बुरा लगा। वह सोचनें लगी मैं तो यह दाना चुगने ही वाली थी मगर इसनें  तो पहले ही कर दी। भूरी कौवी बोली  अनाज का दाना  तुम्हीं रख लो। मैं दूसरा ढूंढ लूंगी। काली कौवी बोली नहीं बहन तुम ऐसा क्यों कहती हो? मुझे और दाना मिल जाएगा।  वह अंदर ही अंदर जल भून रही थी। मैं  यह दाना प्राप्त करना चाहती थी वह तो इस ने हड़प लिया। यह मुझे झूठ मूठ में बीमार होने का नाटक करती है। वह जल्दी-जल्दी उड़ने लगता भूरी  कौवी बोली बहन मुझसे उड़ा नहीं जाता। तुम दाना लेकर घर पहुंच जाओ। यह दाना रख लो। काली कौवी बोली मैं तो दूसरा दाना ढूंढ लेती हूं। तुम आराम आराम से आना। मैं तेजी से उड़ती हूं। शायद वर्षा भी आने वाली है। वह पलक झपकते ही  भूरी कौवी की आंखों से ओझल हो गई।

भूरी कौवी एक पेड़ की कोटर में आराम करने लगी। काली कौवी उड़ते उड़ते थक गई उसे दाना नहीं मिला।  अचानक बड़ी तेजी से आंधी तूफान आ गया।   काली कौवी अपने मन ही मन भूरी कौवी को गालियां देने लगी।  जानबूझ कर  बीमारी का नाटक करती है। झटपट मेरे हक का दाना भी ले उड़ी। मैं तो मन ही मन उससे घृणा करती हूं। जल्दी जल्दी उड ही रही थी कि उसका पंख किसी चीज से टकराया। वह नीचे एक झाड़ी के नीचे गिर पड़ी। वह दर्द से कराह रही थी। हाय! यह मैंने क्या कर डाला? हमारे बच्चे आज  अनाथ हो जाएंगे। जब तूफान रुका थमा तब  भूरी कौवी आराम करने के पश्चात अपने घोंसले में पहुंची। तूफान से पेड़ों की शाखाएं नीचे गिर चुकी थी। उनका घोंसला भी टूट चुका था ।

भूरी कौवी ने बच्चों को डरे डरे सहमे चिल्लाते पाया। उसने आकर उन्हें ढांढस बंधाया। हम दोनों दाना चुगने गई थी। तुम्हारी मां कहां है? बच्चे बोले हमारी मां अभी तक नहीं लौटी है। वह  बोली तुम डरो नहीं  अब मैं आ गई हूं तुम्हारी मां भी दाना ढूंढ कर आती ही होगी। तुफान इतना भयंकर था कि वह कहीं फंस गई होगी। वह भी आती ही होगी। उसने बच्चों को दाना खिला दिया था। अपने बच्चों के साथ उसके बच्चों को रख कर उसकी रक्षा की थी।

काली  कौवी  जब थोड़ी ठीक हुई तो आहिस्ता आहिस्ता उड़ने लगी। वह अपने मन में सोचने लगी मेरी सहेली भी बीमार थी। वह उड़ नहीं सकती थी। मैंने तो उसे मुश्किल की घड़ी में अकेला छोड़ दिया। मुझसे भी नहीं उड़ा जा रहा। मैंने यह क्या कर डाला? अगर आज मेरी सहेली घर नहीं पहुंची होगी तो हमारे बच्चे डर के मारे पता नहीं क्या कर रहे होंगे? मुझे ना चाहते हुए भी उड़ ना ही पड़ेगा। यह सोचते सोचते वह बहुत तेजी से उड़ने लगी। जैसे  ही वह अपनें घौंसले के पास पहुंची वहां पर पेड़ की शाखा को नीचे गिरा  देख कर आंसू बहानें लगी। हाय! मेरे बच्चे कहां गए?  कराते कराहते  वह  बेहोश हो गई। अचानक  भूरी कौवी  को अपनी सहेली की आवाज सुनाई पड़ गई।उसे बेहोशी की अवस्था में देखकर उसे डॉक्टर तेजा (उल्लू) के पास लेकर गई। उसने उसे दवाइयां लिखकर दी।   और जब काली कौवी को होश आया तो उसने अपनी सहेली को अपने बच्चों के साथ   उसके बच्चों को भी प्यार से दाना खिलाते देखा। उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे। सब बच्चे आराम से भोजन कर रहे थे। वह रोते-रोते बोली बहन मुझे माफ कर दो। मैं मुसीबत की घड़ी में तुम को अकेला छोड़ कर यहां आ गई। मैंने ना जाने तुम्हारे बारे में गलत धारणा बना ली थी। मुझे पराई पीड़ा के बारे में समझ में अब आया। जब मुझे दर्द का एहसास हुआ। आज सब कुछ मेरी समझ में आ गया। बहन मुझे माफ कर दे।

भूरी कौवी बोली  तुम मुझसे माफी क्यों मांगती हो? तुम्हें अपनी गलती का एहसास हुआ यही बहुत है। चलो बहन खुशी से अपने बच्चों को दाना खिलाते हैं। कौवे भी  घर वापिस पहुंच चुके थें। सभी परिवार एक साथ खुशी मना रहे थे।

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