कोशिश

चंपा और सुमेश के परिवार में उनकी दो बेटियां थी। सुमेश मेहनत मजदूरी करके अपना भरण-पोषण करता था ।खेतों में भी थोड़ा बहुत अनाज  उगा लेता था और दिन को मजदूरी करके वापस घर आ जाता था। सुमेश की 2 बेटियां थी। मिन्नीऔर विन्नी, दोनों ही बहुत सुंदर सुशील और सभ्य थी। छोटी बेटी मिन्नी जब पैदा हुई थी तो उसकी टांगें   टाईफाइड होनें के कारण  और गलत खान पान के कारण खराब  हो गईं। वह लंगड़ा कर चलती थी। बड़ा होने पर उसकी टांगों से चला भी नहीं जाता था। चंपा और सुमेश अपनी बेटी की टांग ठीक करवाने के बजाय उसे बोझ समझने लगे।वह केवल बिन्नी को ही प्यार करते। बिन्नी को स्कूल में भेजते मगर जब मिन्नी  विन्नी के साथ स्कूल जाती तो कई बार उसे देर हो जाती देरी से स्कूल पहुंचने पर उस मासूम को ही डांट सुननी पड़ती। घर में भी मां पिता से  भी डांट सुननी पड़ती। एक दिन उसनें अपने पिता को कहते सुना कि मिनी को आगे पढ़ाने से क्या फायदा? वह तो कभी ठीक नहीं हो पाएगी यह तो हमारे ऊपर बोझ है । हमने  न जानें पिछले जन्म में कौन से कर्म किए होंगे जिसकी सजा हम आज तक भुगत रहे हैं इसकी तो शादी भी नहीं हो पाएगी। सारी जिंदगी भर हमें इसकी देख-रेख करनी पड़ेगी कभी-कभी तो उसके पिता उसे इतना डांट डपट करते कि मासूम मिनी की आंखों से आंसू बह निकलते। वह चुपचाप अपनी बगिया में आकर चारपाई लगा कर सो जाती। वह जब उदास होती तो गाने सुनती। उसके माता-पिता उसकी बहन सभी  काम पर चले जाते। वह अपधा मन बहलाने के लिए बगिया में बैठ जाती।

मां एक सिलाई सेंटर में काम करती थी ।पिता खेतों में काम करने के बाद बाहर काम मजदूरी की तलाश में चले जाते।  कभी भी अपनी बेटी से बात नहीं करते थे ।इतना अकेला हो जाती की सोचती क्या करूं ?एक दिन इसी तरह वह अपनी बगिया में आंसू बहा रही थी वह उस समय केवल 7 साल की थी। स्कूल जाना  भी  उसका छूट चुका था ।हर रोज देर से स्कूल नहीं जा सकती थी इसलिए घर पर ही रहती थी। उसका भी मन पढ़ने को करता था लेकिन उसकी व्यथा सुनने वाला वहां कोई नहीं था।वह बाहर ही चटाई बिछा कर सो जाती थी।  उसकी बगिया में एक अमरूद का पेड़ था ।वह चुपचाप आकर उस पेड़ को देखा करती थी एक दिन  उसे उस  पेड़ के नीचे नींद आ गई।

पेड़ उसके सपने में आकर उससे बोला मीनू उदास क्यों होती हो? मैं हूं ना तेरे साथ खेलने के लिए। तुम्हें गाने पसंद है ना।  वह बोली तुम्हें कैसे पता?हमनें तुम्हें एक दिन  अपनी मां को कहते सुना गानें बन्द मत  करो। तुम्हें गानें सुननें में आनन्द आता है। तुम को गाना सुननें के लिए अपना   रेडियो ‌यहां लेकर  आना होगा। इसके लिए तुम्हें अपने आप कोशिश करनी होगी। तुम्हें रेडियो लेने घर के अंदर जाना होगा ।कोशिश तो करो। तुम दो-तीन बार गिरोगी।  कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। मैं तुम्हारे साथ हूं । तुम्हें  दिन को जब भूख लगती है तो तुम खाना भी प्राप्त कर सकती हो ।इन सब चीजों के लिए तुम्हें उठना तो जरूरी है ।वह बोली भाई मेरे मैं तुम्हारी बात मानूंगी। मैं तो एक कदम भी नहीं चल सकती ।पहले मैं थोड़ा बहुत चल लिया करती थी। मेरे  इलाज पर घर वालों का बहुत सारा रुपया खर्च होगा।  मुझे इसलिए वे  कभी अस्पताल लेकर नहीं जाते। गरीब हैं ना मेरे मां-बाप । पेड़ बोला यह बातें तो गलत है । गरीब लोग क्या अपने बच्चों का इलाज नहीं करा पाते ?तुम्हारे माता-पिता  की समझ में जब तक यह नहीं आएगा कि हमें अपनी बेटी को ठीक करके ही छोड़ना है तब तक वह कुछ नहीं कर पाएंगे ।उनकी सोच बहुत ही छोटी है। तुम निराश मत हो इस काम में मैं तुम्हारी मदद करूंगा।

मैं भी तो बिल्कुल अकेला होता हूं। तुम्हें पता है कि अकेला वृक्ष कभी फल फूल नहीं सकता ।तुम जैसे बच्चे जब यहां खेलते हैं तो उनकी किलकारियां सुनकर हमारा मन भी खुश हो जाता है ।जब कोई बच्चा आंसू  बहाता है तो हमें बहुत ही दुःख होता है ।हम भी उनका रोना सुनकर  मूर्झा जाते हैं क्योंकि हम उनके घर के सदस्य होते हैं ।लोग पेड़ों को काट देते हैं यह भी नहीं समझते कि तुमने अपने परिवार के एक सदस्य को मार दिया है। बेटा जब तुम हर रोज नहाते हो और सजते  संवरते हो तो तुम्हें कितना अच्छा लगता है ?इसी तरह अगर हम पेड़ों के  आसपास गंदगी को यूं ही पड़ा रहने देंगे तो हम भी मुरझा जाएंगे तुम भी सुंदर दिखने के लिए अच्छे-अच्छे कपड़े पहनते हो तुम्हारे परिवार के सदस्य हर रोज सज धज कर काम पर निकलते हैं तो उनका मन कितना खुश होता है? तुम अगर यहां पर हर रोज गाना लगाओगी और खुद जाकर कमरे से जाकर रेडियो ले कर आओगी तो हमारा भी मनोरंजन हो जाएगा।

मिनी ने सपने में देखा कि वह सरक सरक कर कमरे में जाने की कोशिश कर रही थी। तीन-चार बार जाने की कोशिश की मगर वह गिर पड़ी। पेड़ उससे बोला बेटा हार मानकर कुछ नहीं हो सकता ।जब तक तुम आशा का दामन थामे रखोगी तब  तुम एक ना एक दिन अपने मकसद में कामयाब हो जाओगी। मैं हरदम तुम्हारा मार्ग दर्शक बनकर तुम्हारी सहायता करूंगा।  अपने आप को  कभी अकेला मत समझो।

एक दिन मिनी रेडियो लाने में सफल हो गई। वह  हरदम खुश रहने लगी एक दिन जब उसके घर के सदस्य सभी बाहर गए थे तब  पेड़ उस से बोला बेटा आज  भी तुम उदास क्यूं हो  गई हो?वह बोली कि आज घर में खाने को कुछ नहीं है।पेड़ उससे बोला कि तुम्हारे घर के समीप एक मंदिर है। वहां पर आज ही भंडारा है। तुम स्वयं चलकर धीरे-धीरे उस मंदिर तक पहुंचो वहां तुम्हें खाना  अवश्य ही मिल जाएगा। रास्ते में तुम्हें अपाहिज समझकर  लोग तुम पर दया करेंगे मगर तुम निराश मत होना। तुम उन्हें कहना कि मैं अपाहिज नहीं हूं तुम दया के पात्र मत बनना। तुम्हें उन्हें बताना होगा कि नही,मैं खुद अपने आप वहां पर चल कर  पहुंच जाऊंगी। वह उस दिन सपना नहीं देख रही थी। वह  सचमुच में ही हकीकत में खाना खाने के लिए सरक सरक कर मंदिर में जा रही थी। रास्ते में चलते चलते लोग उससे बोले कि बेटा हम तुम्हें मंदिर छोड़ देते हैं। वह बोली नहीं मैं खुद जाकर प्रसाद ग्रहण करूंगी प्रसाद पाकर भरपेट खाकर वह  आईस्ता आईस्ता चल कर घर आ गई।वह   अब पहले से ज्यादा खुश रहने लगी थी । वह थक हार कर सो गई।जब वह जगी   तो वह पेड की तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी।

वह  अपने मन मन में बोली कि मैं अकेली नहीं हूं ।वहां पेड के पास  हर रोज आईस्ता आईस्ता चल कर  रेडियो  रख देती और संगीत सुनती। उसमें धीरे-धीरे सुधार आने लगा था। वह उठकर खड़ी हो जाती थी।

एक दिन  वह अपनी मां से बोली कि मैं भी कोई काम करूंगी। मुझे पढ़ने का शौक है। मुझे स्कूल जाना है। घर में बैठना मुझे अच्छा नहीं लगता। उसकी मां बोली बेटा तू कहां स्कूल जा पाएगी? तेरे पीछे तेरी बहन को भी देरी से स्कूल  आने  पर मार पड़ेगी ।तू तो घर में ही पढ़ाई कर लिया कर ।

एक दिन पेड़ उस से बोला कि तू पढ़ना चाहती है तो तुम्हारे घर की बगल में एक दंपति परिवार रहते हैं।तू उन के घर जा कर पढाई किया कर ।उनकी म़ा छत पर उन्हें पढाती हैं। उनकी दो बेटियां हैं।एक तो 6 महीने की है।चीनू दूसरी कक्षा में पढ़ती है ।उनके घर चली जाया कर।कोशिश तो तुझे  ही करनी पडेगी।बगल वाला ही घर है।

एक दिन  हिम्मत कर के वह  गिरते पड़ते अपने पड़ोसी के घर में पहुंची ।उनकी पडौसन एक नेक औरत   थी ।वह उसकी हालत देख कर बोली बेटी  तेरी टांगों को क्या हुआ? वह बोली आंटी मैं सामनें वाले घर में रहती हूं। बचपन में  टाईफाईड   होनें के कारण और देखभाल न  होनें के कारण    बहुत  बीमार हुई थी। उस दिन से   सेहत में सुधार नहीं हो पाया। मैं  चल नहीं पाई। लेकिन अब मैं धीरे-धीरे चल पाती हूं। मेरी मां कहती है कि तेरी टांगे कभी भी ठीक नहीं हो सकती ।मैं घर में अकेले बैठे बैठे थक जाती हूं।आप अपनी बेटियों को जोर जोर से पढाती हो  आप मुझे भी पढा दिया करो।मैं तुम्हें अवश्य पढाया करुंगी। तुम यहां तक कैसे आओगी ? ।मिन्नी बोली मैं आईस्ता आईस्ता अपनें आप चल कर आ जाया करुंगी। शायद मेरी टांगे कभी ठीक नहीं होंगी।करुणा बोली बेटा ऐसा नहीं कहते एक न एक दिन तुम्हारी टांगें अवश्य ही ठीक होगी ।वह बोली आंटी  धन्यवाद ।आप नें मुझे  दिल्लासा तो दिया।

करुणा को ऑफिस से उसी वक्त कॉल आई जल्दी  ऑफिस पहुंचो।करुणा सोचने लगी कि चीनू तो स्कूल गई है। लक्की को किसके पास छोड़ कर जाऊं।  करुणा मिन्नी से बोली कि बेटा क्या तुम थोड़ी देर के लिए लककी को संभाल सकती हो?। मिन्नी बोली क्यों नहीं ? आप जाओ मैं लककी की देखभाल कर लूंगी आंटी सारा दिन  मिनी के भरोसे अपने बेटे को छोड़कर चली गई ।जब  शाम को घर वापस आई तो लकी सो चुका था ।वह बिल्कुल ठीक था ।वह  मिन्नी को बोली बेटा कौन कहता है कि तुम किसी पर बोझ हो?तुम   अगर पढ़ना चाहती हो मैं तुम्हें  आज से ही पढाऊंगी।उस दिन से वह उस आंटी के पास पढ़ती ।वह पढ़ने लिखने में तेज हो गई। वह धीरे-धीरे लंगड़ा लंगड़ा कर अपने घर पहुंच जाती थी। करुणा के ऑफिस में तीन चार कर्मचारी ऐसे थे जिनके बच्चे घर पर अकेले रहते थे ।करूणा नें अपनें औफिस के कर्मचारियों के पास मिनी की खुब प्रशंसा की। वह भी अपने बच्चों को मिनी के पास छोड़ जाते । जब किसी बच्चे को प्यास लगती तो वह पानी मांगता तो मिन्नी उठकर उन्हेँ जल लेने जाती। सभी बच्चे आगे बढ़कर उसकी मदद करते ।वह अपने आप को अकेला नहीं समझती थी ।

उसके घर पर ही आकर बच्चों के माता-पिता उसके पास अपनें बच्चों को  छोड़ जाते शाम को उन्हें ले जाते। सारी की सारी कर्मचारी वर्ग उसकी प्रशंसा करते तो मिन्नी के माता-पिता हैरान रह जाते। जिस बच्ची को वह बोझ   समझ रहे थे वह तो एक हीरा थी। एक दिन उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ।  सभी कर्मचारियों ने मिलकर मिन्नी को डॉक्टर शुक्ला को दिखलाया। सभी ने उसकी टांगों की ऑपरेशन के लिए रुपए इकट्ठे किए ।मिनी की टांगे ठीक हो चुकी थी ।वह खुशी के मारे चिल्ला कर बोली मेरे भाई का मेरे प्रति सहानुभूति का परिणाम है। उसने अगर मुश्किल की घड़ी में मेरा  साथ ना  दिया होता तो मैं कभी भी आगे नहीं बढ  सकती थी।  उसने ऑपरेशन के बाद सबसे पहले अमरूद के पेड़ के पास जा कर पैर छू कर  उनका आशिर्वाद लिया और कहा कि भैया आपके आशीर्वाद से आज मैं कहीं जाकर ठीक हो सकी हूं। मैं अगर कोशिश नहीं करती तो सारी उम्र भर यूं ही अपाहिज रहती। तुम्हारा प्रयास और मेरी कोशिशों का  नतीजा मुझे  सफल कर पाया ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.