चिन्टू का कमरा

किसी पहाड़ी की तलहटी पर एक छोटा सा गांव था। उसमें बिहारी बाबू अपनी पत्नी  निर्मला और दो बच्चों के साथ रहते थे। बीनू बड़ी थी और चीनू छोटा था। चीनू छोटा होने के कारण घर में सबका लाडला था। मां बाप ने उसको इस कदर बिगाड़ दिया था कि वह हर काम को करने में देर लगाता था। जब तक उसके मम्मी-पापा बार बार आवाज लगाकर उसे बुलाते नहीं थे तब तक वह किसी की भी नहीं सुनता था। वह कभी भी खाना खाने की मेज पर नहीं आता। बीनू एकदम गंभीर शांत और चीनू नटखट  स्वभाव वाला। उसकी मां उसे समझाती कि बेटा तुम अब आठ साल के हो चुके हो  कब तक कहना नहीं माना करोगे मगर उसको लगता कि मां-बाप उसे बेवजह डांट रहे हैं। वह खाने को नीचे फैेंक देता और जल भून कर बाहर चला जाता।  उसे जब तक मनाया नहीं जाता वह खाना भी नहीं खाता था। बीनू भी अपने मम्मी-पापा को कहती मां स्कूल जाते हुए भी यह मुझे बहुत ही तंग करता है। एक दिन तो चिन्टू नें घर आते समय इतनी तेज दौड़ लगाई बेचारी वीनू दौड़ दौड़ कर परेशान हो गई।

उसकी बहन नें घर आकर अपनी मां को कहा मां आप अपने लाड़ले को समझाते क्यों नहीं? वह तो मुझे भी बहुत तंग करता है। वह अब उसकी कोई भी बात नहीं मानेगी। आपको इसको समझाना होगा। मैं इसे स्कूल नहीं लेकर जाया करूंगी। उसकी मां बीनू को डांटते हुए बोली तुम्हारे एक ही तो भाई है। तुम इसके बारे में ऐसा क्यों सोचती  हो? वह बोली मां यह मेरा भाई है इसका भला मैं भी चाहती हूं।  मां बाबूजी आप दोनों को इसके साथ सख्ती से पेश आना होगा। उसके पापा बोले बीनू ठीक ही कहती है। उसकी मां बोली जब यह शरारत करे तो आपको इसको डांटना होगा नहीं तो बड़ा होकर इस को सुधारना मुश्किल हो जाएगा।

एक दिन उसकी मौसी उसके घर पर आई थी। उसकी मौसी उसे बुलाते बुलाते थक गई मगर वह नहीं आया। स्कूल से  आते हीअपना बस्ता एक ओर फैंका और अपने कपड़े  भी कुर्सी पर फेंके अपना खेल का बैट जोर से इस तरह पटका  वह टूटते टूटते बचा। उसनें अपना बस्ता भी  जोर से घुमा कर फैंका। बस्ते की जीप का मुंह खुला हुआ था। कुछ किताबें सोफे के नीचे गिरी, कोई  कहीं, कोई कहीं। उस की मां ने  उसे बुलाया तो  उसनें आने में बहुत देर कर दी। उसनें अपनी मां को ऐसे देखा जैसे उसनें उसे बुलाकर कोई गुनाह किया हो। खाने की प्लेट को जल्दी से टेबल पर रखा। खाने का एक कौर मुंह में लेकर बोला यह क्या बनाया है? खाने की थाली को नीचे गिरा दिया। वह जोर से चिल्ला कर बोला हर रोज भिंडी बना देती हो। उसकी मां उसे प्यार करते हुए बोली बेटा आज खा ले, कल से तेरी मनपसंद की सब्जी बनाया करूंगी। बड़ी मुश्किल से उसे खाना खाने के लिए मनाया। बीनू यह सब देख रही थी। उसे गुस्सा आ रहा था मां मुझे तो ऐसे कभी नहीं मनाती। छोटा है तो क्या हुआ?  इसको कहते कि नहीं खाना है तो मत खा, तुझे आज खाना नहीं मिलेगा। मेरे बस में होता तो मैं उसे खाना ही नहीं देती। कामकाज कुछ करता नहीं है। सब की नाक में दम कर रखा है। उसकी मौसी आभा सब कुछ देख रही थी। वह दौड़ी दौड़ी आई और निर्मला को बोली बीनू ठीक ही कहती है।  उसको बिगाड़ने में आप लोगों का ही हाथ है। जब यह कोई चीज मांगता है तो तुरंत हाजिर कर देते हो। आपको इसे काम करना तो सिखाना ही चाहिए। ज्यादा लाड प्यार करना ठीक नहीं होता। जब कभी खाने की थाली गिराए तो किसी को भी इस को मनाना नहीं चाहिए। इसको हर काम को अपने आप करने की आदत डालनी चाहिए। जब भी यह चीजें इधर-उधर पटके इसके साथ बातें मत कीजिए। एक दिन गुस्सा करेगा। दो दिन  गुस्सा करेगा कब तक करेगा? कोई भी उसके साथ घर में बात ना करें। और मनाओ भी मत। मनानें से और पिटाई करनें से तो वह ढीठ बन जाएगा। उसकी मां ने खाना मेज पर लगा दिया।

चींटू के स्कूल में जब उसकी मम्मी निर्मला गई तो उसकी कक्षा अध्यापिका बोली आपका बच्चा बहुत ही शरारती है। वहीं। कभी भी एक स्थान पर टिक कर नहीं बैठता है। हर  दस मिनट बाद अपनी बहन से कभी कापी कभी पेंसिल कभी पैन लेने आ जाता है। उसे भी कक्षा में डिस्टर्ब करता है। कभी कोई कॉपी लाता है, कभी कोई कॉपी। कभी भी उसके पास किताबे नहीं होती कभी पेंसिल नहीं होती। आप कैसे अभिभावक हैं? आप अपने बच्चे के बैग को चैक करके दिया करो।

यह सब बातें सुनकर निर्मला को बहुत ही बुरा लगा। वह जैसे ही घर आई बहुत ही उदास थी उसकी बहन बोली की क्या बात है? तुम इतनी उदास क्यों हो?  आज चिन्टू के स्कूल गई। स्कूल के अध्यापकों ने भी चिंटू की शिकायत की। स्कूल को कॉपी नहीं ले जाता। कल से उसके बस्ते को चेक कर दिया करुंगी। उसकी बहन आभा बोली न बहना ऐसा मत करना। उसे अपना काम स्वयं करने की आदत डालो। स्कूल में उसकी पिटाई होगी तो होने दो।। तुम उसे कुछ मत कहना।

एक दिन निर्मला की सहेलियां उसके घर पर आई थी। चिंटू ने एक पैर का जूता सोफे पर, एक नीचे, कॉपी इधर उधर फैंकी हुई थी। जब उसकी सहेलियाँ घर में आई तो अपने कमरे की हालत देखकर निर्मला को रोना आ रहा था उसकी सहेलियों ने तो उसे कुछ कहा नहीं परंतु वे आपस में एक दूसरे से बातें कर रही थी। चिन्टू की ममी उनसे कहने लगी हर रोज मैं कमरे की सेटिंग करती हूं।  चिंटू कोई ना कोई चीज इधर उधर फैंक देता है। उसकी मौसी बोली एक छोटा सा कमरा चिंटू को दे दो। वह अपने कमरे को कैसे रखें यह उसकी मर्जी है। निर्मला नें एक दिन स्टोर रूम खाली कर दिया। स्टोर वाला कमरा चिंटू को दे दिया। चिंटू नया कमरा पाकर बहुत ही खुश हो गया। जल्दी से स्कूल से आया उसने जूते एक और फैंक डाले।  उसकी  अपने बिस्तर पर किताबे इधर उधर पड़ी थी। उनको वंहा से उसनें नहीं उठाया और दौड़ कर बाहर की भाग गया उसकी मां कमरे में आई तो कमरे की हालत देखकर उसे क्रोध भी आया। आभा बोली कि आप इसे कुछ नहीं कहेंगी। उसे करने दो जो  वह करता है। जब उसकी कोई वस्तु नहीं मिलेगी तो आप उसे ढूंढ कर मत देना। उससे कोई बात भी नहीं करना। थाली फैंक कर जाता है तो  देना आप उसे पटकने देना। जब तक वह खुद खाना  नहीं मांगे तब तक उसे खाना देना मत। धीरे-धीरे वह खुद ही समझ जाएगा।

तीन दिन बाद उसकी परीक्षा थी। स्कूल से घर आया तो वह अपने  बैग में अंग्रेजी की पुस्तक खोजनें लगा। उस की अंग्रेजी की कॉपी भी नहीं मिल रही थी और न ही किताब। उसने बीनू को बुलाया।  मेरी कॉपी ढूंढ दो। बीनू बोली मैंने  तुम्हारी अंग्रेजी की कापी ढूंढने का ठेका नहीं ले रखा है। खुद ढूंढ ले। वह चुपचाप अपनें कैमरे में आ गया और भूल गया कि उसका कल पेपर है। वह जल्दी जल्दी खेलने बाहर  चला गया।

शाम को जब  खेल करआया तो  उसे अचानक याद आया कल तो उसकी अंग्रेजी की परीक्षा है। अंग्रेजी की कॉपी सारे ढूंढ निकाली मगर नहीं मिली। उसकी मां ने भी उसकी कॉपी ढूंढने में उसकी मदद नहीं की। वह तीन बार अपनी मां के पास आया। मां मैं इस बार फेल हो जाऊंगा। मेरी कॉपी ढूंढने में मेरी मदद करो। सारा घर छान मारा मगर  उसकी अंग्रेजी की किताब  और कॉपी नहीं मिली। बिना पढ़े ही वह स्कूल चला गया। किसी  के साथ बात नहीं की। खाने को भी मेज पर गुस्से के कारण पटका और खाना भी नहीं खाया। उसकी मां को बहुत ही दुःख हुआ। उसने अपने दुःख को अंदर ही अंदर रखा। वह अपनें मन में सोचने लगी जो कुछ भी होगा  उसे अब अपने ऊपर काबू रखना होगा। सब उसे ही कहते हैं कि उसनें चिंटू को बिगाड़ दिया है। कोई बात नहीं इस बार फेल हो जाएगा कोई बात नहीं। इस बार उसको सुधार कर ही दम लूंगी। इसके कमरे की हालत तो खस्ता है। मैं उसके कमरे को भी ठीक नहीं करूंगी।

चिंटू घर वापिस आया तो चुपचाप एकदम अपने कमरे में गया उसने अपना बैट इतनी जोर से फेंका कि वह जाकर सोफे के पीछे जा लगा। उसकी मां ने उसे खाना खाने भी नहीं बुलाया। वह चुपचाप था। उसने सुबह से कुछ नहीं खाया था। उसके पेट में चूहे भी कूद रहे थे। वह  जल्दी  ही उठ कर खाने की मेज पर चला गया बोला खाना लाओ। उसनें खाना खाया किसी से कुछ नहीं बोला और चुपचाप खेलने चला गया।

तीसरे दिन उसका स्कूल में क्रिकेट का मैच था वह अपना बैट ढूंढता रहा। सब जगह ढूंढ निकाला परंतु उसे बैट नहीं मिला। वह रोते-रोते अपनें पापा के पास गया बोला पापा ना जाने मेरा बैट कहां गिर गया। कल मेरा मैच है मुझे दूसरा बैट लाकर दे दो। उसके पिता बोले बेटा मैं तुझे ना जाने कितने बैट लेकर आया। मैं अब तुम्हारी चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आने वाला। मक्खन केवल अपने मां को ही लगाना। वही ही तुम्हें मनाएगी। वह मां के पास जाकर बोला मां मेरा बैट ढूंढने में मेरी मदद कर दो। आगे से मैं कभी भी चीजों को इधर-उधर नहीं फेंका करुंगा। उसकी मां बोली कि मैं बाजार जा रही हूं। मुझे बहुत ही जरूरी काम है। वह अपनी बहन के पास जाकर बोला मेरी प्यारी बहन मेरा बैट ढूंडवानें में मेरी मदद कर दे। वह बोली मैं तुम्हारी  चिकनी चुपडी बातों में नहीं आने वाली। तुम्हें अपना काम खुद करना चाहिए। जो बच्चे आलसी होते हैं उनकी मदद तो भगवान भी नहीं करते।  तुम अगर अच्छे बच्चे बनना चाहते हो तो एक बात गांठ बांध लो। अपना सामान एक जगह पर  रखना सीखो।  जो व्यक्ति अपना सामान ठीक ढंग से ठीक जगह पर नहीं रखता  उसकी मदद  तो कोई भी नहीं करता। तुम जिस दिन अपनी चीजें ठीक ढंग से रखना सीख जाओगे उस दिन से तुम एक अच्छे बच्चे बन जाओगे। वह चुपचाप अपने कमरे में आ गया। वह बिस्तर पर अपने जूतों के साथ ही चढ़ गया और सोचने लगा कि उसका बैट कहां गया होगा? वह कहीं  बाहर तो नहीं भूल गया। अच्छा बिट्टू के घर जाकर उसका बैट ले  कर आता हूं। वह जल्दी जल्दी बिट्टू के घर पर जाकर अपनें दोस्त से बोला। बिट्टू कल के लिए मुझे अपना बै दे दे। कल मेरा मैच है

बिट्टू बोला नहीं मैं तुझे अपना बैट नहीं दे सकता।  तूने अगर   मेरा बैट तोड़ दिया तो मुझे तो कोई भी दूसरा बैट लेकर नहीं आएगा। मेरे माता पिता तुम्हारे पिता माता पिता की तरह अमीर आदमी नहीं है। बड़ी मुश्किल से मैंने अपनी गुल्लक के पैसों को  जोड़ जोड़ कर यह बैट लिया है।

चिंटू को रोना आ रहा था। वह मन ही मन में बोला। अपने आप को क्या समझता है? नहीं देना है तो मत दे। निराश होकर चिंटू घर लौट आया। उसने खाना भी नहीं खाया। कमरे में आते ही बिस्तर पर लेट गया। उस जल्दी हीे नींद आ गई। स्वपन में उसे एक परी दिखाई दी। वह बोलीआज तुम्हें पता चला।  अपने बैट के लिए तुमने सब के पास कितनी फरियाद की मगर किसी ने भी तुम्हारी मदद नहीं की। क्या तुमने कभी सोचा है कि जो बच्चा अपना सामान इधर-उधर  फैंकता है वह कभी भी जिंदगी में सफल नहीं हो सकता। अभी भी समय है। जल्दी से सोचो तुमने अपना बैट कहां रखा होगा? ट्राफी भी हासिल नहीं कर  पाओगे।  तुम  जिस तरह अपने जूते फेंकते हो और जूतों के साथ ही बिस्तर पर चढ़ जाते हो यह बुरी बात है। इस तरह तुम्हारा बैट  कहीं भी गिर सकता है। शायद बिस्तर के नीचे सोफे के नीचे या कहीं और। शांत मन से जल्दी से सोचो। अचानक उसकी आंख खुल गई। ठीक ही तो है जब स्कूल से आया तो जोर से उसने अपना बस्ता  बिस्तर पर  पटका।  वह कभी भी  बस्ते की जीप  बन्द नहीं करता है। बस्ते की जीप खुली थी। उसमें से कॉपी और किताबें बिस्तर के नीचे भी जा सकती हैं। उसने छड़ी लेकर बिस्तर के नीचे से किताब निकाली। उसकी अंग्रेजी की किताब बिस्तर के नीचे मिल गई थी। किताब  पास कर बड़ा खुश हुआ। उसने अपनी किताब को उठाया और चूम लिया उसको जैसे कोई खजाना मिल गया हो। उसने  तकिया उठाया। उसे अपनी  एक जुराब  तकिए के नीचे मिली। उस में से बदबू आ रही थी। एक ही जुराब  थी। दूसरी कहां होगी? उसने सारा बिस्तर झाड़ डाला। दूसरी जुराब चादर के नीचे मिल गई। गल्ती से  चादर  के   नीचे घुस गई थी। उसकी जुराबों से दुर्गंध आ रही थी।  उसे ने साबुन लिया और अपनी जुराबे धोने लगा। मेरी मां को भी तो इसमें से दुर्गंध आती होगी। उसने जैसे तैसे करके नल के के नीचे अपनी जुराबें  धो डाली।

उसकी मां और मौसी उसे देख रही थी।। उसकी मां की आंखों में खुशी के आंसू थे। आज थोड़ी ही सही उसे  अक्ल तो आई। उसकी मां ने जब उसे बुलाया तो वह दौड़ा दौड़ा आया बोला  मुझे बहुत भूख लगी है। उसकी मां बोली बेटा आज भिंडी की सब्जी बनी है। वह बोला मां कोई बात नहीं मैं वही खा लूंगा। उसे भिंडी की सब्जी खाते देख कर उसकी मां बोली कोई बात नहीं कल  तुम्हारी पसंद की सब्जी बनेगी। वह अपने कमरे में आया।

जूते की रैक को खिसका कर बैट ढूंढने लगा। रैक के पीछे  ही उसका बैट पड़ा था। वह बैट पा कर बड़ा  हीखुश हुआ। वह सोचने लगा सभी ठीक ही तो कहते हैं मुझे अपनी चीजों का ध्यान रखना चाहिए। अच्छा हुआ मेरा बैट मिल गया। चलो कल ही  मैच है। कल मैच के लिए तो उसका बैठ मिल गया है। उसने अपना बस्ता शाम को ही पैक कर लिया।

सुबह जब उसकी मां कमरे में आई तो अपने बेटे के कमरे की सफाई देख कर चौंक गई। सारी चीजें अपनी जगह पर ठीक जगह पर थी। उसकी मां  भी अपनी चप्पल  बाहर खोल कर अंदर आकर बोली। बेटा आज  आज मैं बहुत ही खुश हूं। तुमको आज मैं तुम्हारी मनपसंद की चीजें लेकर आऊंगी। वह बोला मां मुझे कुछ नहीं चाहिए। वीनू बोली चल जल्दी से स्कूल चलते हैं। वह बोला आया दीदी। वीनू हैरान हो गई।। आज उसने उसे दीदी कहकर पुकारा था। वह बोली एक बार फिर बोल क्या तू मेरा ही भाई है? उसे गले लगा कर बोली भाई मैं तुझे सुधारना चाहती थी। तू सुधर गया। हम सब थोड़े दुःखी तो हुए मगर तुम्हें सुधार कर हम आज बहुत ही खुश हैं। कल तो मैं भी तुम्हे   उपहार  ला कर दूंगी।  सब के मुख से अपनी प्रशंसा सुन कर चिन्टू बहुत  ही खुश हुआ। परी ठीक ही कहती थी। मै  अच्छा बच्चा बनकर ही रहूंगा। शाम को जब वह सोया तो वह बोला मेरी प्यारी प्यारी परी आपका धन्यवाद। आप मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो। परी बोली मैं  तो  तुम्हारा मार्गदर्शन करने आई थी।  तुम अब अच्छे बच्चे बन गए हो। मैं यहां से जा रही हूं।

अपनें माता पिता का कहना मानना चाहिए। उनको दुःखी नहीँ करना चाहिए। आपकी मां आप के दुःख में बिमार पड़ गई तो उन्हें कौन देखने आएगा? परी बोली तुम अपनी बहन को भी बहुत तंग करते हो। उसको तुम दीदी कह कर पुकारा करो। यह सब बातें अच्छे शिष्टाचार में आतीं हैं। पापा भी तुम्हें प्यार से अपनी गोद में बिठाएंगे  जब आप उनकी बात को ध्यान से सुनोगे और उन का भी कहना मानोगे। चिन्टू बोला धन्यवाद। आगे से वह कभी उन सब को कभी तंग नहीं करेगा।वह जल्दी ही अच्छा बच्चा बन जाएगा। परी वहां से चली गई थी मगर उसकी बातें उसके मन में घर  कर गई थी। वह सचमुच ही सुधर गया था।

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