आज भी रोशनी ऑफिस में अपने से निचले वर्ग के कर्मचारियों पर रौब झाड़ रही थी। रोशनी ने झुमकी को डांटते हुए कहा कि साहब के कमरे में ठीक ढंग से झाड़ू लगाया करो। यह क्या साहब की मेज पर तो चारों तरफ धूल ही धूल है। उसे भी साफ कर दिया कर। रुपए किस बात के लेती है? चल जल्दी जा यहां मुंह बना कर क्यों खड़ी है? झुमकी अपनी बात कह ही रही थी कि रोशनी ने उसे बीच में ही टोक दिया। बेचारी अपना सा मुंह लेकर काम करने जुट गई। रोशनी बाहर आकर चपरासी को बोली इधर आओ क्या तुम्हें सुनाई नहीं देता? वह किसी आदमी से बात कर रहा था। रोशनी ने फिर ज़ोर से आवाज़ लगाई बहरा हो गया है क्या? तुम्हें सुनाई नहीं देता। क्या बात है? चपरासी बोला क्या बात है मैडम जी? अपने कानों में तेल डालकर आया करो। रौशनी बोली।
अपने से निचले वर्ग के कर्मचारियों पर उसका यही दबदबा था। वह किसी की बात नहीं सुनना चाहती थी। उसे ऑफ़िस में आए एक साल हो चुका था। वह किसी भी कर्मचारी के साथ ठीक ढंग से पेश नहीं आती थी। बहुत ही अमीर वर्ग के व्यक्ति होते थे उनके साथ बड़े प्रेम से बात करती थी। ऑफ़िस में उसकी एक ही सहेली थी नैना। उसके माता-पिता विदेश में रहते थे। नैना जैसे ही ऑफ़िस में आई उसका व्यवहार बदल गया। वह बोली मैडम खड़ी क्यों हो? वह बोली चलो बताओ आप क्या लेंगे चाय या कॉफी? गर्मी में तो चाय तो पी नहीं सकते चलो कोल्ड क्रीम वाला दूध मंगवाती हूं। चपरासी को आवाज देती है कि बिल्ला ज़रा पास की दुकान से दो कोल्ड क्रीम वाला दूध ले आना। उसे जैसे ही बौस आते दिखाई दिए वह उनके पास जाकर बड़े प्यार से कहने लगी गुड मॉर्निंग सर। आपका कमरा तो एकदम मैंने साफ करवा दिया है। निम्न स्तर के कर्मचारी यह तो काम करने में आनाकानी करतें हैं। इनसे तो काम लेना पड़ता है। सर आपके लिए मैं आज घर से पास्ता लाई हूं। एक कर्मचारी ने अंदर प्रवेश किया। सर क्या मैं अंदर आ सकता हूं? उस कर्मचारी को डांटते हुए बोली क्या तुम्हें दिखाई नहीं देता? तुम अंधे हो गए हो जब ऑफिस में कोई बैठा हो तो अंदर आने की कोई जरूरत नहीं होती। मैं बाहर ही आ रही हूं। तुम तब अंदर आकर बातचीत कर लेना। अपना सा मुंह लेकर वापिस चला गया। दूसरे कर्मचारी की तरफ देख कर बोला इन मेंम साहब को आए हुए अभी एक ही साल हुआ है। वह बौस के सामने अपना रौब इस प्रकार झाड़ती है जैसे वह कोई किसी कम्पनी की मालकिन हो। बौस इसके मधुर व्यवहार के कारण उससे बहुत ही खुश हैं। उन्हें पता नहीं है कि इस मधुर मुस्कान के पीछे कितनी ज़हरीली नागिन छिपी बैठी है। यह तो एकदम मीठी छुरी है। बौस को दिखाने के लिए मीठी मीठी बातें करके प्रभावित करती है।वह अंदर से काली नागिन है। झूमकी तभी रूम के अंदर आ गई। आलोक बोला रौशनी मेमसाहब क्या तुमको भी झाड़ रही थी? वह बोली कुछ नहीं साहब वह तो बौस के सामने मीठी मीठी बातें करके उन्हें मस्का लगा देती है। मेरा बेटा आज बहुत बीमार है। मैं आज साहब कि टेबल भी ठीक ढंग से भी साफ नहीं कर पाई। मेरा सारा ध्यान अपने बेटे की तरफ था। मैं उन से कहना चाहती थी कि मैडम मैं आज जल्दी काम निपटा कर जाना चाहती हूं लेकिन उन्होंने मेरी बात सुनी अनसुनी कर दी।
रौशनी एक औफिस में काम करती थी। उसके पति चंद्र प्रकाश भी दूसरे ऑफिस में कार्यरत थे। उनके दो प्यारे प्यारे बच्चे थे। लड़का सूरज और बेटी ज्योति। दोनों में एक साल का अंतर था। ज्योति 5 साल की थी और सूरज 6 साल का था। उसका पति चन्द्र शेखर बहुत ही सीधा सादा था। आज भी ऑफ़िस से आते ही चन्द्र पर बरस पड़ी। क्या बात है आप थोड़ा जल्दी घर क्यों नहीं आ जाया करते? आज तो आपको ही खाना बनाना पड़ेगा। आज तो मैं खाना बनाने की स्थिति में नहीं हूं। आज भी नौकरानी काम पर नहीं आई है। जिस दिन बाई काम पर नहीं आती थी वह अपने पति को कहती थी कि बच्चों को तुम ही स्कूल तैयार करवाकर छोड़ कर आया करो। छोटा-मोटा सामान तो तुम भी ला कर दे दिया करो। तुम तो मेरे चंदा हो। अपने पति को मस्का लगाकर मधुर मुस्कान से प्यार प्यार से सारे काम करवाती। उसका पति बेचारा चुपचाप काम करता रहता। एक दिन उसके घर बाई नहीं आई थी वह बोली जानू आज बाई काम पर नहीं आई है। आप ही चाय बना दीजिए ना। उसकी सहेलियाँ बातों में मशगूल हो गई। उसकी पांच छः सहेलियाँ उसके घर पर बिना बुलाए आ गई थी। उसकी सहेलियां बोली हमने सोचा रोशनी को सरप्राइस दे कर चौंका दिया जाए। आज उसका खाना बनाने का मन ही नहीं कर रहा था। वह बोली जानू कृपा करके आज होटल से ही खाना ऑर्डर कर दो। आप भी थक गए होंगे। उसके पति ने झट से खाना होटल से मंगवा दिया। बच्चे भी सो कर उठ चुके थे। वह अपनें ममी पापा को बोले आज घूमने ले चलो। ज्योति अपनी मम्मी के पास आकर बोली आज तो हम पार्क देखने जाएंगे। रौशनी बोली आज कोई कहीं नहीं जाएगा। आज तो तुम्हारी आंटियां हमारे घर आईं हैं।,, रोशनी ने दोनों बच्चों को चॉकलेट देकर चुप करवा दिया उसकी सहेलियाँ बातें करने में मशगूल हो गई शीतल बोली यह देखो यह सेट मैंने विदेश से मंगवाया है। करुणा बोली यह साड़ी देखो यह मैंने बनारस से मंगवाई है। सुमन बोली मेरे पास तो इतनी सारी साड़ियों से अलमारी भरी पड़ी है। कामिया बोली मैं तो जो लेटेस्ट जान की साड़ी बाजार में आती है उसको एक बार पहन कर दूसरी बार नहीं पहनती। उनको इस प्रकार कहते देखकर रोशनी चुप हो गई तभी सूरज आकर बोला मेरी मम्मी तो हर रोज नई से नई साड़ी पहनकर ऑफिस जाती है। हर रोज लिपस्टिक भी मैच करके लगाती है। सुमन बोली बेटा आप क्या उनको देखते रहते हो? सूरज बोला मैं मैं बार-बार मां को कहता हूं कि मेरे लेस बांध दो लेकिन वह जोर-जोर से कहती है कि बाई आई है ना उस से बंधवा लो। वह तो घर आते ही फोन पर जुट जाती है। बहन आज क्या बना है? तुम यह साड़ी कहां से लाई हो? शीतल बोली बेटा आप इनकी बातें सुनते हो। सूरज बोला आंटी मैं कान तो बंद नहीं कर सकता। मां जोर जोर से बोलती है तो सुनाई ही पड़ता है। पापा पर भी जोर जोर से चिल्लाती है। जल्दी बच्चों को स्कूल छोड़ आओ। बेचारे पापा।
एक दिन की बात है कि रोशनी अपने कपड़ों की अलमारी ठीक कर रही थी उसकी इतनी साड़ियां स्वेटर देखकर उसकी बेटी ज्योति बोली यह सब क्या साड़ियां आपकी हैं। रौशनी बोली हां ये सभी साडियां मेरी हैं। मां तो एक साड़ी मुझे दे दो। मैं भी बांधकर देखूंगी। रौशनी बोली अभी नहीं तुम्हारी गुड़िया के लिए मैं बाजार से लाकर दे दूंगी। लेकिन आज तक वह दिन नहीं आया जो मेरी मुझे और मेरी गुड़िया के लिए मां नें एक भी साडी ला कर दी हो।
एक दिन जब मां घर में काम कर रही थी तो एक भिखारिन आकर बोली बेटा मैं ठंड में कांप रही हूं। मुझे अपनी एक शाल दे दो। वह बोली कि अरी भिखारिन क्या दिखावा करती है? मांगने का तो बहाना है। रौशनी बोली जल्दी से सारे ग्राउंड में झाड़ू लगा दे। तुझे तब कुछ लेने देने की सोचूंगी। बुढ़िया बेचारी सचमुच ठंड से कांप रही थी। छोटी सी ज्योति से यह सब देखा नहीं गया। उसने भिखा रिन के हाथ से झाड़ू छीन लिया। दादी मां आप बैठो में झाड़ू लगा देती हूं। उसकी मां नें ज्योति को अपने हाथों से झाड़ू लगाते देख लिया था। वह बुढिया पर गुस्से होकर बोली क्या बात है? जब तू झाड़ू नहीं लगा सकी तो तूनें मेरी बेटी के हाथ में झाड़ू थमा दिया। वह बुढ़िया बोली नहीं बेटा ऐसा नहीं है। ज्योति ने चुपके से अपने कमरे से लाकर अपने हाथों से उसे अपनी छोटी-सी शाल लाकर उसे दे दी। ऐसी थी ज्योति। सूरज भी अपने नाम की तरह बहुत ही दयालु था। उसके दिल में औरों के प्रति बहुत ही स्नेह था।
एक दिन एक गरीब औरत आई। वह रौशनी से बोली खाना खिला दो बेटा। भगवान तुम्हारा भला करेगा। सुरज भी यह सब देख रहा था। वह पहले तो गरीब औरत पर गुस्सा हुई फिर बोली चल, देती हूं। उसने आज घर में गर्म गर्म पूरी बनाई थी। अपनी मां को ऐसा कहते देख सूरज को खुशी हो रही थी कि मां उस गरीब को खाना दे रही हैं। मां ने जब बासी खाना उस गरीब औरत को पकड़ा दिया तो सूरज की आंखों से आंसू आ गए। वह चुपचाप अपने कमरे में आकर निराश हो कर बैठ गया। अपने हाथों से पकड़कर अपने पापा के पास जाकर बोला पापा जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो मां को भी बासी रोटियां खिलाया करुंगा। उसके पापा बोले बेटा ऐसा क्यों कहते हो? पापा आज एक गरीब औरत हमारे घर में खाना मांगने आई थी। उनका छोटा सा बच्चा भी उनके साथ था। मां नें दो दिन की बासी रोटियां निकाल कर उसे दे दी। मैंने मां को कहा कि मैं आप यह बासी खाना उन्हें क्यों देती हो? मां बोली क्या यह फैंकनीं है? है मैंने मां को कहा इसके साथ आप सुबह की बनी हुई ताजा सब्जी भी दे देती तो वह क्रोधित होकर बोली। बड़ों के मामले में बच्चों को नहीं आना चाहिए। देखना पापा जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो मैं भी मां को बासी खाना दिया करुंगा ज्योति तभी पास आकर बोली पापा आप हमारे लिए सब कुछ लाते हो। हमारे पास सब कुछ है। उन सब चीजों में से कोई अच्छी सी चीज उन गरीबों को दे दें तो हमारा क्या बिगड़ जाएगा? उन के पापा बोले मैं तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं करता। जब खुद अपनी आंखों से देख लूंगा तभी मैं इसके बारे में कुछ सोचूंगा। इस बात को बहुत ही दिन व्यतीत हो गए थे।
होली का त्यौहार था सभी एक-दूसरे को गुलाल लगा रहे थे। घर में सभी के चेहरों पर रौनक थी। उनके घर पर एक वृद्धा और एक अधेड़ अवस्था का आदमी आकर बोला भगवान के नाम पर आज त्यौहार के दिन उसे कुछ दे दो। रौशनी बोली अच्छा देती हूं। चंद्रप्रकाश भी उसके साथ अलमारी के पास जाकर खड़े हो गए। उन्होंनें देखा रोशनी की अलमारी कपड़ों से भरी पड़ी थी। ना जाने कितनी महंगी महंगी साड़ियां थी। जूतों की भी इतनी इतनी भरमार थी। चंद्रप्रकाश बोले तुम इतने कपड़े किस लिए बनाती हो। वह बोली तुम्हें इससे क्या? मुझे कपड़ों का बहुत ही शौक है। इसलिए पहनती हूं। आपको क्या हो? आप तो दो-तीन सूट वही धो धोकर पहनते रहते हो। आप तो भगवान को खुश करने में लगे रहते हो। आप भगवान को खुश कर लिया करो तभी कपड़ों के बारे में सोचना। आपको तो कपड़ों की भी सुध ही नहीं कि क्या पहना है? हर कोई कमीज पहनकर ऑफिस को चल पड़ते हो। मुझे तो अपनी प्रेस्टीज का ख्याल रखना पड़ता है। चंद्रप्रकाश चुप रहने वालों में से नही थे। वह बोले तुम हर दम भगवान को ही क्यों कोसती रहती हो? जब कोई काम नहीं बनता तो कहती हो कि तुम्हारे भगवान नें ही नहीं किया होगा? मेरे पास भगवान का नाम लेने की फुर्सत नहीं। तुम मुझे ऐसा क्यों कहती हो? तुम भगवान का नाम ना लेना चाहती हो तो मत लो खुदा के वास्ते सड़ी सी साड़ी तो उस वृद्धा को तो मत दो। सबके सामने दिखावा करती हो। मेरे पास नहीं है
क्या इन साड़ियों को अपने साथ लेकर जाओगी? यह सब कुछ यहीं रह जाएगा। तुम्हें अभी भी कहता हूं कि इतना अहंकार करना ठीक नहीं। इस वृद्धा को और इस व्यक्ति को अपने हाथों से अच्छा सा उपहार देकर विदा करो। यह साड़ी दे रही हो जो तुम्हें तुम्हारी सहेली न ला कर दी थी तुमने यह कहकर नाक चढ़ा दिया था कि मैंने तो अपनी सहेली को इतनी महंगी साड़ी दी थी मगर उसने तो मुझे इतनी गंदी साड़ी दी। यह मेरे किसी काम की? नहीं भाग्यवान जो साड़ी तुम्हारे काम की नहीं उसको दे रही हो। अगर तुम इतनी साड़ियों में से एक अच्छी साड़ी उस बुढ़िया को दे दोगी तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा? मैं तो कहता हूं लगे हाथों एक अच्छी सी शॉल भी दे डालो। वह अपने पति पर बरस कर बोली आप ही अपनी पैंट ही क्यों नहीं दे देते? चंद्रप्रकाश बोला मैं तो यह भी दे दूंगा लेकिन बेचारा बूढा इस पेंट को नहीं पहने गा।दोनों बच्चे अपने माता-पिता में हुई नोकझोंक को सुन रहे थे।
रोशनी का व्यवहार दूसरों के सामने तो इतना मीठा था कि कोई उसको देखकर समझ नहीं सकता था कि उस भोले वाले चेहरे के पीछे भी एक भयंकर चेहरा छिपा है। आज भी रोशनी ऑफिस से सीधा घर आकर पलंग पर सो गई थी। रोशनी नें अपने बेटे को आवाज लगाई सूरज जरा मुझे पानी पिला दो। उसे हल्का हल्का बुखार था। तुम्हारे पापा भी ऑफिस से नहीं आए हैं। वह बोला ठहरो मैं अभी आता हूं। पांच मिनट तक जब वह नहीं आया तो बोली ठीक है मैं अपने आप ही पानी निकाल लेती हूं। तुम बच्चे भी किसी काम के नहीं। सूरज आकर बोला मां मैं देता हूं। दौड़ कर रसोई में गया। उसकी मां उसे देख रही थी। उसने जानबूझकर बासी पानी मां के पास लाकर दे दिया। फिल्टर का पानी वह नहीं लाया। उसने कहा कि तूने फिलटर से पानी क्यों नहीं निकाला? मुझे बासी पानी पिला रहा है। सूरज बोला मां जब आप गरम गरम खाना घर में होते हुए उस बुढ़िया को बासी खाना दे सकती हो तो मैं भी ऐसा ही करूंगा। आज जाकर कहीं उसे आभास हुआ कि वह गलत कर रही थी। उसे बुखार में तपते हुए हफ्ता हो चुका था। वह अपनी बेटी को बोली बेटी जरा मुझे अलमारी से शॉल लाकर दे दो। ज्योति ने जानबूझ कर अलमारी से फटी हुई शाल लाकर उन्हें दे दी। उसकी मां जल भून कर बोली कि तुम्हें भी यही शॉल मिली। सॉरी मुझे नहीं मिल रही है। रोशन ने सारी बातें अपने पति से की कि मेरे बच्चे भी मेरी बात नहीं सुनते हैं। मैं जो कहती हूं वह नहीं करते हैं। वह उससे उल्टा करते हैं। आज सूरज नें फिल्टर से बासी पानी निकाल कर मुझे दिया और ज्योति ने भी मुझे अलमारी से फटी हुई शाल ला कर दी।
रोशनी को हार्ट की बीमारी हो गई थी। वह हर दिन बुझी बुझी सी रहती थी। डॉक्टर ने उसे कहा था कि तुम अगर ठीक ढंग से अपना ख्याल नहीं रखोगे तो और भी ज्यादा बिमारियों को दावत दे सकती हो। अचानक उसे बिस्तर पर ही नींद आ गई।
उसकी बीमारी जब एक दिन इतनी बढ़ गई कि डॉक्टरों ने भी कह दिया कि इसका उनका बचना मुश्किल है इन्हें किसी भी स्टेशन पर लेकर जाओ। बच्चे भी अपनी मां की बीमारी को सुनकर डर गए थे। उनके पति ने भी ऑफिस से छुट्टियां ले ली थी। सारा परिवार एक साथ नैनीताल चल पड़ा। नैनीताल की हरी-भरी वादियों को देखकर वह कुछ राहत महसूस कर रही थी। बच्चे भी उसके हर इच्छा को पूरी कर रहे थे। उसके पति उसको इतना ध्यान रखते थे आज कहीं जाकर उसे लगा कि मेरे पति और मेरे बच्चे कितने अच्छे है?तीनों की तारीफ करते हुए बोली तुम मुझसे इतना प्यार करते हो मैंने आज यह महसूस किया। उसके पति बोले इस बात की तरफ आज तुम नें ध्यान दिया। पहले अपनी सेहत का ध्यान रखा होता तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता। अभी भी समय है बदल जाओ। हमारे साथ इस संसार में कुछ नहीं जाएगा। सब कुछ बांट दिया करो। इतनी साड़ियां सूट शौलें और न जानें कितनें जोड़े चप्पलें। यह सब कुछ धरे के धरे रह जाएंगें।एक दिन हम सब मर जाएंगे। हम में से कोई भी पहले मर सकता है। अगर इन कपड़ों में से किसी के भी कोई काम आ सके उसे देनें में देरी नहीं करनी चाहिए। उस दिन भी तुम वही साड़ी उठाकर ले आई जो तुम्हें किसी नें दान में दी थी। किसी गरीब को कुछ देना हो तो अपनी तरफ से कोशिश करो कि उसे भी कुछ अच्छा ही दे कर विदा करो। अपने पति पर गुस्सा होकर बोली हर बात पर मेरी कपड़ों के पीछे पड़े रहते हो। घर में ज्योति की सहेली भी आई हुई थी। वह उन दोनों से बडी़ थी। रौशनी के पति बोले
मैं तुम सब से यह नहीं कह रहा हूं। हर इंसान जो पैदा होता है वह एक ना एक दिन मरता अवश्य है। झूठी मोह माया ममता हमारा शरीर सब कुछ एक राख के ढेर के समान है। एक दिन आत्मा हमारे शरीर से उड़ जाएगी तो हम एक नर कंकाल की तरह हो जाएंगे। उसको जलाने पर भी दर्द का आभास नहीं होगा।
बच्चे भी पास में खड़े थे। बाबा क्या हम भी मर जाएंगे एक दिन। वह बोले हां बेटा। तुम्हें भी इस सत्य से अवगत कराना जरूरी है। चुपचाप अपने पिता की तरफ देख रहे थे। बच्चे कह रहे थे कि मां को कुछ ना हो। ज्योति बोली आपकी सारी की सारी साड़ियां सूट अलमारी भरी हुई धरे के धरे रह जाएंगे। इनका क्या होगा? रोशनी की आंखों में आंसू झलक रहे थे। वह कुछ नहीं कह रही थी। सूरज बोला तू मां को क्यों डरा रही हो? वहां पर मां को बासी रोटी ही मिलेगी। यहां पर हर रोज किटटी पार्टी करती है। वहां पर भी बासी पिज्जा ही मिलेगा। उसके पापा आकर बोले चलो दोनों भाग यहां से अपनी मां को परेशान करते रहते हो।।
बच्चे अपने पापा को बोले हम तो अपनी मां के साथ मजाक कर रहे थे। पापा अपने भगवान को कहो वो हमारी मां को जल्दी से ठीक कर दे।
तुम्हारी मां ने तो तुम्हें भी नास्तिक बना दिया है बेटा। मैं यह नहीं कहता की पूजा पाठ करो। लेकिन एक ना एक वक्त राम नाम का जाप हमेशा करना चाहिए। सुबह शाम भगवान का नाम अवश्य लेना चाहिए। श्वेवता बोली अंकल क्या पूजा करनी जरूरी होती है? उसके अंकल बोले बेटा नहीं । सत्य ही पूजा है। अपना जो भी काम हो उसको मन लगाकर करो चाहे पढ़ाई ही करो यह भी एक पूजा है। यह सोचकर करो कि हम पूजा कर रहे हैं। हर एक वस्तु की अहमियत समझो। छोटी से छोटी किसी भी वस्तु को चाहे वह एक गिलास ही क्यों ना हो? उसको भी पटक कर मत रखो। अपने माता-पिता और बड़े बुजुर्गों का सम्मान करो। बड़ों के साथ कभी भी ऊंची आवाज में बात मत करो। जहां पर तुम ठीक हो वहां तो जवाब देने में पीछे मत हटो। चुप्पी भी मत साध लो। जहां गलती हो वहां हाथ जोड़कर क्षमा याचना कर सकते हो। यही सबसे श्रेष्ठ पूजा है और इससे बढ़ कर कोई पूजा नहीं है।
उस दिन रोशनी की सहेलियाँ रोशनी को देखने घर पर आई थी। ज्योति ने ओर श्वेता नें रसोई में जाकर सब को ठंडा बना कर दिया। सब की सब खुश हो गई थी। वह ठंडा कम मगर एक दूसरे की बुराइयां ज्यादा कर रही थीं। अपना सैट दिखाते हुए बोली अरे देखो यह तो पूरे ढाई करोड़ का है। मेरे पति ने मुझे करवा चौथ पर लाकर दिया था। आज रोशनी को उनके सारे शब्द बुरे लग रहे थे। मानो कोई जलता अंगारा उसके कान के पास रख दिया हो। आज उसे उनकी बातों में कुछ भी अच्छा नजर नहीं आ रहा था। वह तो अपने बच्चों को काम करते देख रही थी। जाने के बाद सब की सहेलियाँ खा पी कर ठहाके लगा कर घर चली गई थीं। वह अपने पति को बर्तन समेटते हुए देख रही थी। आज उसे यह सब बहुत ही बुरा लग रहा था। आज उसे अपने ऑफिस में करने वाले कर्मचारी और बाई की भी बहुत याद आ रही थी।उसने भी तो उन सब केे साथ अच्छा नहीं किया था। वह सब के सब पर रौब झाड़ती रहती थी। आगे से वह ऐसा नहीं करेगी। मुझे सब समझ आ गया है।
रोशनी सपने में देख रही थी कि वह मर चुकी है। उसे यमराज जी लेने आए हैं। वह उस से कह रहे थे कि अब तुम्हारा इस घर में कोई नाता नहीं। तुम्हें हमारे साथ चलना होगा। वह उनके सामने रोते गिडगिडा हुए बोली कि मुझे माफ कर दो। मुझे मत ले जाओ। मेरे छोटे-छोटे बच्चे अनाथ हो जाएंगे। यमराज जी उसे पकड़कर बोले तुम्हें तो घोर यातनाएं मिलेगी। तुमने अपनी जिंदगी में कोई भी काम ठीक ढंग से नहीं किया। घर में तुम्हारे दरवाजे पर कोई मांगने भी आया तो तुम उसे भी बासी खाना देती थी। कभी तुमने ताजा खाना किसी को भी अपने हाथ से नहीं दिया। तुमने अपने घर में कपड़ों की अलमार भर भर कर सूट बनवाए। किसी को भी अच्छा सूट अपने हाथ से दान नहीं दिया। तुम नें दिया तो वह जो किसी ने तुम्हें दान दिया था। भिखारी को अपने घर से निकाल दिया। तुमने बूढ़ों को सताया। पानी का एक गिलास भी ठीक ढंग से नहीं पिलाया। तुमसे अच्छे तो तुम्हारे बच्चे हैं जो नास्तिक होते हुए भी यह सब समझते हैं। छोटे छोटे हैं परंतु बहुत तेज हैं। अब यहां की यातनाओं को सहो। वह काफी देर तक रोती चिल्लाती रही। वहां पर तभी एक लंबी जटा वाला बाबा आ कर बोला इसनें एक ना एक कुछ तो अच्छा काम किया है। इस नें किसी को खाना तो दिया चाहे वह बासी ही दिया। इसलिए इसे एक मौका दिया जाता है। अरी मूर्ख अभी भी समझ जा। और इतनी ढेर सारे के सारे कपड़े तू क्या अपने साथ क्या लेकर आई है? क्या तेरी सहेलियां क्या तेरे साथ आई है? तेरे बुरे कर्मों की इतनी लम्बी चौडी है एक अच्छे कर्म की शक्ति है वह तुम्हारे पति की मेरे प्रति अगाध श्रद्धा। वह तुम्हारे जीवित होने के लिए ना जाने कितनी दुआ करते रहते हैं। तुम्हें तो हम एक मौका देना ही पड़ेगा। तेरा सब कुछ पीछे छूट जाएगा। अपने हाथों से जितना किसी का अच्छा कर सको तो कभी भी हिचकिचाना नहीं। वह बोली हे भगवान मुझे ठीक कर दो। आज कहीं जाकर उसके मन से भगवान का नाम निकला हे भगवान मेरी जान बख्श दो। उसने देखा कि डॉक्टर लोग उसको सांसे देने का प्रयत्न करें थे उसके बच्चे उसके सामने जो जो से हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे थे कि हे भगवान हमारी मां को बचा दो। आज ही जाकर उसकी समझ में सारी बातें आ गई थी वह अपने बच्चों की तरफ टकटकी लगाए देख रही थी। वह दौड़कर अपने पापा के जाकर बोले पापा मां को होश आ गया है। बच्चे उनके पास बैठे उन्हें देख रहे थे। अपने मन में सोच रही थी कि मेरे पति और और मेरे बच्चे यह मेरी छोटी सी दुनिया है। मैं इनका ही दिल दुखा रही थी।।
हे भगवान! मुझे माफ करना अब आगे से सब अच्छा ही अच्छा होगा। मेरे पति आकर चिल्लाए जल्दी से उठो। क्या इतनी देर तक सोती रहोगी? जल्दी से आंखें मलते हुए उठी। होठों पर मुस्कान छा गई। मैं तो सपना देख रही थी। अब आगे से अच्छा ही अच्छा होगा। मुझे सब समझ आ गया है।