दादा जी का रहस्यमयी तोहफा

जतिन के दादाजी बूढ़े हो चले थे। वह सोचनें लगे मैं इतना खुश नसीब हूं कि मैंने अपने जीवन के 90 वर्ष में प्रवेश कर लिया है। मेरी सभी इच्छाएं भगवान ने पूरी कर दी हैं। हर साल में अपने परिवार वालों को बहुत सारे उपहार  देता हूं आज भी अपना जन्मदिन मना कर सारे परिवार  को  खुश कर दूंगा। मैंनें जीवन के 90 वर्ष अच्छी ढंग से बिता दिए। मेरे परिवार के सदस्य सभी मुझसे इतना स्नेह करते हैं सभी ने मुझे इतना  भरपूर प्यार  दिया जिस कारण इस दिन तक मैं जीवित रह पाया। सबसे ज्यादा  प्यार तो  वह अपने पोते से करता हूं। मैं अपने पोते को  जब तक देखता नहीं तब तक मेरी दिनचर्या  शुरू ही नहीं होती। वह भी 15 वर्ष का हो गया है। मैं इस बार  अपना जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाना चाहता हूं। बाद में क्या पता मेरे जीवन की अंतिम घड़ी में अपने पोते को देख भी पाऊं  या नहीं सभी लोग कहेंगे बूढ़ा सठिया गया है। कहां अपने पोते का जन्मदिन मनाना चाहिए? और वह अपना जन्मदिन मनाने चला है। चाहे कुछ भी हो जाए अपना जन्मदिन अपनी तरीके से मनाएगा। इसके लिए उसने सब तैयारियां कर ली।

चारों तरफ जन्मदिन की धूम थी। सभी लोग सोच रहे थे कि जतिन का जन्मदिन है। परिवार के लोगों को जन्मदिन पर बुलाया गया था। परिवार के सभी सदस्यों को दादा जी ने कुछ ना कुछ उपहार के रूप में दिया। किसी को घड़ी, किसी को कैमरा, किसी को मोबाइल और बहुत सारे उपहार। जतिन की नजर अपने दादाजी पर थी। वह अपने मन में सोच रहा था सभी को दादाजी  कुछ न कुछ दे रहे मुझे तो ना जाने आज क्या मिलने वाला है? सभी लोग जन्मदिन की दादा जी को बधाई दे रहे थे। उनके बूढ़े दादा जी एक शानदार मेज पर हर आने-जाने वाले का स्वागत बड़ी धूमधाम से कर रहे थे। उन्होंने प्यार भरी आवाज में जतिन को पुकारा जतिन जल्दी से दादाजी की ओर गया। दादा जी ने एक छोटा सा मटका उसे उपहार में दिया। उसकी सारी खुशी  गम में बदल गई। मेरे लिए  बस यह छोटा सा मटका। अपने आप को संभालते हुए धीरे-धीरे दादा जी से  वह मटका ले लिया। दादा जी कहने लगे मेरे गले नहीं लगोगे। दादा जी के गले लगते ही उसके आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा।  दादा जी बोले अरे पगले ऐसे भी क्या कोई रोता है? चुपचाप अपने आंसू  रोक कर अपनें आप को सम्भाला और कहा धन्यवाद। यह तो खुशी के आंसू है। उसके दादाजी  ने कहा मैं  जन्मदिन के उपहार के रूप में  तुम्हे यह छोटा सा मटका दे रहा हूं। जब भी  तुम समस्याओं से घिरे होंगें तभी तुम इस मटके को खोलना।

यह मटका तुम्हारी हर  विपत्ति में रक्षा करेगा उस समय तक मैं तुम्हें देखने नहीं आऊंगा। यह तो मेरा सौभाग्य है कि मैं इतने लंबे जीवन का पड़ाव खुशी-खुशी पार कर गया।

दादा जी से सचमुच ही वह बहुत प्यार करता था। दादा जी को देखकर उसका गुस्सा ना जाने कहां छू मंत्र हो जाता था।   वह चुपचाप सब से नजरे बचा कर अपनें कमरे में चला आया। जैसे ही वह कमरे में आया   दादा जी उसके कमरे में आकर उसके सिर पर हाथ फेरने लगे तो उसका  सारा गुस्सा गायब हो  गया और मुस्कुराकर दादा जी से बोला चलो खाना खाने चलते हैं। मैंने आपको कुछ नहीं कहा एकदम सीधा कमरे में चला आया। मैं इस उपहार को रखने आया था। आपको बुरा लगा होगा चलो हम दोनों  चल कर खाना खाने चलते हैं। दादाजी को एक कोनें  में ले गया और अपनें दादा जी के पास बैठ गया। उसके दादाजी की आंखों से कम दिखाई देने लग गया था।

जतिन ने अपने हाथ से पकड़ कर  अपनें दादा जी को  मेज पर बिठाया। खाने की मेज पर खाना मंगवाया। खाने की मेज पर दोनों बैठकर खाना खाने लगे। पार्टी में आए मेहमान दोनों के प्यार को देखकर फूले नहीं समा रहे थे। जतिन अपने हाथों से दादाजी को अपनें हाथ से खाना खिला रहा था। उनके हाथ से केक के टुकड़े मेज पर बिखर गए। जतिन नें रुमाल से उनका मुंह पोंछा और मेज  को साफ कर उन्हें पकड़कर एक और सोफे पर बिठा दिया। सभी लोग जन्म का उत्सव ले रहे थे। जतिन नें दादा जी का हाथ पकड़ा और उनके साथ डांस किया। सब लोग हैरत भरी नजरों से उनके प्यार को देख रहे थे। जतिन नें अपने मन में विचार किया कि दादाजी ने इतने प्यार से इसे वह मटका दिया है इस मटके में उनका प्यार छुपा हुआ है। इस मटके को मैं संभाल कर रख दूंगा। वह मटके को हमेशा संभाल कर रखता था।

अपने कमरे के पास ही एक उसकी एक छोटी सी अलमारी थी जिसमें उसकी किताबे पड़ी रहती थी। वह उन किताबों को किसी को भी हाथ नहीं लगाने देता था। उसने वह मटका अपनी अलमारी के पीछे रख दिया। उनका परिवार रर्ईस खान दान था। नौकर चाकर गाड़ी बंगला सब कुछ था। एशोआराम से दिन व्यतीत हो रहे थे। जतिन भी अपनें पिता के साथ व्यापार करनें लग गया था। पच्चीस साल का हो चुका था। उसके माता पिता का व्यापार भी अच्छा चल रहा था। धीरे धीरे समय पंख लगा कर उड़ गया। एक दिन उनको व्यापार में बहुत घाटा हुआ। जतिन के पिता को बहुत गहरा सदमा लगा। वह इसी गम में बिमार हो गए। जतिन पर दुःखों का पहाड़ टूट गया।  किसी तरह  उसने अपनें आप को सम्भाला। अपनें पिता को इस सदमें से बाहर निकाला। वह धीरे धीरे ठीक हो गए

 

काफी साल गुजर गए। वह तो दादा जी के द्वारा दिए गए उपहार को भूल ही गया था। उसके दादाजी भी अब इस दुनिया से अलविदा कर चुके थे। उसके माता-पिता ने उसकी शादी एक रईस खानदान में तय कर दी थी। धीरे-धीरे समय बीतने लगा था। वह भी एक कंपनी में काम करने लग गया था। उसके पिता भी उसकी व्यापार में देखभाल किया करते थे। कभी कभी उसका हाथ  बंटा दिया करते थे। उसके माता-पिता ने उसकी शादी एक रईस खानदान में तय कर दी थी जतिन जिस लड़की से शादी करना चाहता था वह भी रईस खानदान की बेटी थी पल्लवी ने घर में जतिन के बारे में कभी किसी को कुछ भी नहीं बताया था। जतिन को व्यापार में घाटा हुआ। उनका व्यापार सफाचट हो गया। सिवाय एक घर के  इलावा उनके पास कुछ भी नहीं बचा। उनका सब कुछ बिक गया। पल्लवी ने घर में बताया कि वह एक लड़के से प्यार करती है। उसके माता-पिता ने कहा रिश्ते के लिए तभी हां करेंगे यदि वह अपने बराबरी का होगा।  जतिन एक रईस खानदान का बेटा है ऐसा पल्लवी नें अपनें माता पिता को बता दिया। उनकी इच्छा थी कि हम तो रिश्ता अपने बराबर बालों में ही करेंगे। जतिन सोचनें लगा उसके साथ पल्लवी अब शादी नहीं  करेगी। उसके माता-पिता उसकी शादी कभी भी नहीं होने देंगे। वह बहुत चिंतित रहने लगा। उसके पिताजी भी उसकी मदद नहीं कर पा रहे थे। पल्लवी जतिन को बोली कोई बात नहीं मैं तुम्हारे साथ ही शादी करुंगी। तुम्हे अपने जीवन साथी के रूप में ही स्वीकार करूंगी। मेरे माता-पिता मेरी शादी के लिए मना करेंगें  तो भी मैं तुमसे ही शादी करूंगी वर्ना कुंवारी रहूंगी। समय बीतता चला गया परंतु फिर भी उनका व्यापार अच्छे ढंग से नहीं जमा।

पल्लवी के माता पिता ने शादी के लिए रिश्ता भेजा। जतिन सोच रहा था कि जब उनको सारी असलियत का पता चलेगा तो वह शादी के लिए कभी भी तैयार नहीं होंगे मैं क्या करूं, पल्लवी उसके घर आकर बोली की मैं घर जाकर क्या कहूं? जतिन बोला कि मैं शादी ही नहीं करुंगा। आज अगर दादाजी जिंदा होते तो वह भी मेरी शादी होते देखते। वह कितने खुश होते? आज तो मेरे पास तुम्हें देने के लिए भी कुछ नहीं है इसलिए तो मैं तुमसे शादी के लिए इंकार करता हूं। तुम घर  जाकर साफ साफ मना कर दो कि वह अभी शादी के लिए तैयार ही नहीं है। जाकर सारा वृतान्त  पल्लवी नें अपनें घर में कह दिया। पल्लवी नें अपनें माता पिता को कहा कि मैं भी अभी शादी नहीं करना चाहती। मैं तो जतिन से ही शादी करूंगी। वह  जब शादी के लिए तैयार होगा तभी मैं शादी करूंगी वर्ना मैं कुंवारी ही रहूंगी। उसके पिता बोले नहीं हम तुम्हारी शादी कहीं और तय कर देते हैं। तुम्हें हमारी बात अवश्य माननी होगी।

एक दिन जतिन उदास होकर अपने दादाजी की याद कर रहा था। मेरे दादाजी ने कहा था कि जब तुम समस्याओं से घिरे होंगे तो मुझे याद करना। उसे अचानक  अपनें दादा जी द्वारा दिए मटके की याद आई। उसने जल्दी से अलमारी खोली और उसमें से मटका निकाला। मटकी को जैसे ही खोला तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं छोटे से मटके में ना जाने कितने हीरे थे। उसकी आंखों से   आंसूंओं की झड़ी लगता गई। इतने हीरे देख कर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। उसकी पिता की भी आंखों में आंसू थे। जल्दी से जतिन तैयार होकर पल्लवी के घर पहुंचा। पल्लवी के माता-पिता उसे देखकर बहुत ही खुश हुए बोले बेटा तुमने इतने दिनों तक हमें कोई खबर नहीं दी। क्या तुम पलवी से शादी नहीं करना चाहते हो? वह बोला नहीं मैं तो सिर्फ पल्लवी से ही शादी करूंगा। आप शादी की तारीख तय कीजिए। पल्लवी भी खुश होकर अपने कमरे में भाग गई। उन हीरो के बदले में उसे काफी रुपए मिल गए थे जिससे उसकी शादी का सारा खर्चा निकल गया था और बाकी रुपयों को उसने अपने व्यापार में लगा दिया।

बारात दरवाजे पर पहुंच चुकी थी उसकी मां आकर बोली बेटा जल्दी करो फेरों का समय होने वाला है। जल्दी ही जतिन अपने में कमरे में गया वहां पर दादाजी की तस्वीर के सामने उन्हें मुस्कुराता देखकर बोला। दादाजी आज मेरी शादी होने जा रही है। एक दिन   आप नें सच ही कहा था  कि जब तुम समस्याओं से घिरे होंगे तब तुम इस मटके को खोलना। सचमुच में ही मैंने जब इस मटके को खोल कर देखा मुझे आप का ढेर सारा आशीर्वाद मिला। आप के बारे में अपनें मन में ना जाने कितनी गल्त धारणा  बनाई थी कि आप नें मुझे  छोटा सा उपहार दिया। इतना मूल्यवान तोहफा आज  मुश्किल की घड़ी में हमारे काम आया। मैं तो इस मटके को तोड़ कर फेंकना चाहता था और सारा गुस्सा आप पर निकालना चाहता था। मगर आपने तो अपनी महानता का उदाहरण आज भी आशीर्वाद के रूप में उपहार देखकर चुका दिया। मेरी बिखरी  नैया को संवार दिया। पल्लवी की शादी जतिन से हो गई थी। पल्लवी को जतिन ने बताया कि उसके दादाजी उसे मूल्यवान तोहफा देकर गए हैं जिसका कि कभी भी मूल्य नहीं चुकाया जा सकता। आज अगर वह जिंदा होते तो अपनी आंखों के सामने  अपने पोते की शादी होते देखते। जहां कहीं भी हो उनकी आत्मा को शांति  मिले। वह पल्लवी को दादा जी की फोटो के सामने ले कर गया और बोला तुम भी उनके चरण छू कर आशीर्वाद ग्रहण करो। वह हमें  आशीर्वाद दे कर हमारी जिंदगी खुशियों से भर चुके हैं। पल्लवी नें देखा तभी एक फूल उन दोनों की झोली में आ कर गिरा। दोनों बहुत ही खुश थे उन को दादा जी का आशीर्वाद भी मिल गया था। वे अपनें परिवार सहित खुशी खुशी रहने लगे। 

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