नन्हीं परी

एक छोटे से कस्बे में हीरालाल अपनी पत्नी रेशमा के साथ रहा करता था। हीरालाल की अपनी एक छोटी सी दुकान थी जिसमें वह काम किया करता था। घर के कामकाज में कभी अपनी पत्नी का हाथ नहीं बटांता था उसकी पत्नी रेशमा भी अपने पति से चिड़ी चिड़ी रहा करती थी। वह भी प्राइवेट ऑफिस में काम करती थी। सुबह ऑफिस को निकल जाती शाम को घर आती। उसके पति जब घर आते तो अपनी पत्नी को कहते खाना  तैयार है। वह कहती अभी नहीं बना है। बना दूंगी। मैं भी तो सारा दिन थक हारकर घर आती हूं। दोनों आपस में झगड़ कर काम चला लेते। उनके घर में उनकी बेटी भी हो चुकी थी। बेटी के जन्म लेने पर सुकन्या के पिता को जरा भी खुशी नहीं।  रेशमा से और नाराज रहने लगा। बेटी को भी गोद में नहीं लेता था। अपने पति के दुकान जाते ही वह सारी भड़ास अपनी छोटी सी बेटी सुकन्या पर निकाल देती थी।  

नन्ही सी बेटी जोरों से भूख के मारे जब बेहाल नहीं हो जाती थी तब तक वह उसे खाने को नहीं देती थी।कभी जब उसकी सहेलियां तो वह अपनी सहेलियों के साथ इतना मस्त हो जाती  कि बेटी की तरफ ध्यान ही नहीं जाता था। एक बार जब रेशमा की सहेलियां  घर पर आई थी तो सुकन्या जोर-जोर से रोने लगी। उसकी सहेलियां बोली पहले तुम अपनी बेटी को चुप करवाओ। लेकिन वह उन्हें कहती उसे कुछ नहीं होगा। उसे रोने की ऐसीे ही आदत है। बेचारी सुकन्या का क्या कसूर था? दोनों पति-पत्नी के बीच दूरियां बढ़ गई थी। वह 5 वर्ष की हो चुकी थी। उसके पिता ने  उसे स्कूल में दाखिल करवा दिया था। उसे दो-तीन किलोमीटर पैदल जाना पड़ता था। उसके घर के पास कोई स्कूल नहीं था। एक दिन सुकन्या को बुखार था। हीरालाल बोले इसे आज तुम ही स्कूल छोड़ आओ। उनकी पत्नी  रेशमा बोली तुम ही क्यों नहीं छोड़ देते? इस बात पर दोनों लड़ाई झगड़ा करने लगते बेटी उन्हें हरदम लडाई झगड़ा करते देखा करती थी। उसे अपने माता-पिता पर गुस्सा आता था। छोटी सी बच्ची अपने माता पिता को क्या कहती?  

स्कूल में अध्यापक  जब उसे होमवर्क करनें को देते तो वह अपनी मां के पास समझनें के लिए आती-उसकी मां उसे कहती तुम्हारे अध्यापक किस लिए हैं? उसे जब कुछ काम समझ नहीं आता वह काम करके नहीं ले जाती थी। स्कूल में उसके अध्यापिकाएं उसे सज़ा देती। काम करके क्यों नहीं लाई। वह सारा दिन बेंच पर खड़ा हो जाती। सुकन्या 5वर्ष की हो गई थी वह अपनी मां के साथ रसोई घर में काम संभाला करती थी। एक दिन सुकन्या ने चुपके से अपने मम्मी पापा को लड़ते सुना उसके पिता कह रहे थे कि अब की बार हमारे घर में लड़का ही आएगा। तुम अपने खाने-पीने का ध्यान रखा करो। सुकन्या से काम करवा लिया करो। छोटा-मोटा काम तो वह भी देख सकती है। काश हमारे घर में पहले ही बेटे ने जन्म लिया होता। हमारे जीवन की खुशियों को किसी की नजर लग गई। पहले ही हमें लड़की दे डाली। काश  ये पैदा ही नहीं हुई होती। ना काम की ना काज की दुश्मन अनाज की। रेशमा बोली ऐसा क्यों कहते हो? है तो वह तुम्हारी ही बेटी। हीरलाल बोला इसकी बीमारी पर न जानें कितना खर्चा हुआ? कंही अब जा कर वह  ठीक हुई है? इसकी  पढाई पर और शादी पर न जानें कितना खर्चा होगा? इससे अच्छा होता कि वह पैदा ही नहीं होती। तुम इसके लिए परेशान मत हुआ करो। आने वाले की चिंता करो। वह बोली कि तुम्हें कैसे पता है? कि हमारे घर में इस बार लड़का ही होगा। अगर लड़की हो गई तो क्या होगा? हीरालाल बोला एक दिन मैं तुम्हें इसलिए अस्पताल नहीं  ले गया था। तुम्हारी जांच करवाई थी। मैंने तुम्हारे गर्भ में लड़का है या लड़की यह देखने के लिए मैं तुम्हें अस्पताल ले गया था। शुक्र है इस बार भगवान ने हमारा  पुकार सुन ली। हमारे भी लड़का ही होगा। डॉक्टर को मैंने इस टेस्ट को करवाने के पूरे 10,000 रुपये दिए। वह हक्का बक्का हो कर अपने पति की बातें सुन रही थी। उसे थोड़ा सा दिलासा  तो हुआ कि इस बार लड़का ही है।  सुकन्या ने यह सब सुन लिया था। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे वह सोचनें लगी मेरी मां ने मुझे इस संसार में लाना ही नहीं था तो मुझे उस दिन मार क्यों नहीं दिया? मेरे माता-पिता की सोच कितनी छोटी है? क्या माता-पिता अपने बच्चों के साथ इस तरह से पेश आतें हैं?

एक दिन सुकन्या जब स्कूल से घर पहुंची तो देखा उसकी मां पहले ही घर पहुंच चुकी थी। वह रास्ते में खेलनें लग जाती थी। उसे रोकने टोकने वाला तो कोई नहीं होता था। उसकी मां ने कहा इतनी देर कहां लगाई? जल्दी घर क्यों नहीं आई? वह बोली मां मैं अपने मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलने लग गई थी। उसकी मां ने उसको मारा और कहां स्कूल से सीधे घर आया करो। आज पता चला तुम हर रोज देर से स्कूल से आती होगी। वह बोली मां मैं पड़ोस की लड़कियों के साथ खेलती हूं। तुम घर में साफ सफाई कर दिया करो। तुम्हें पता है कि मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती।

शाम को जब उस के पिता घर आए तो उसकी मां ने सारी शिकायत उनसे कि वह बोले कल से सुकन्या स्कूल नहीं जाएगी। कोई बात नहीं। इस साल वह  स्कूल नहीं जाएगी तो कोई घाटा नहीं हो जाएगा। सुकन्या को पांच-छह दिन  स्कूल जाए  बिना हो गए थे। स्कूल से घर में पत्र आ गया था वह स्कूल नहीं आ रही है। अगर वह स्कूल नहीं आई तो अगले सप्ताह उसका नाम स्कूल से खारिज कर दिया जाएगा। वह अपनी मां पिता के पास जाकर बोली मुझे स्कूल जाना है। उसके पिता ने उसके कान पकड़कर कहा  मैं भी देखूं कैसे स्कूल जाती है?

सुकन्या की मां अपनें को हॉस्पिटल दिखानें चली गई। सुकन्या के पिता अपनी दुकान पर चले गए। वह  भी अपनी मां के साथ अस्पताल गई। उसकी मां ने उससे कहा कि तू बाहर बैठ मैं अस्पताल के अंदर  जाती हू। उसने वहां से दौड़  लगाई। उसने अध्यापकों से सुना था कि अगर तुम्हारे माता पिता तुम्हे स्कूल भेजनें में आनाकानी करे तो तुम्हे उनका विरोध करना चाहिए।  मेरे माता-पिता को तो बस मेरी परवाह ही नहीं है। वह तो बस बेटे की आस लगाए बैठे हैं। मैं अब घर नहीं जाऊंगी। मुझे तो वे फूटी आंख नहीं सुहाते। इससे अच्छा होता कि मैं कहीं चली जाती?

यह सोचते हुए वह धीरे धीरे कदम बढ़ाते हुए अस्पताल से बहुत ही दूर निकल गई। उसकी मां जब अस्पताल से बाहर आई तो  उसकी मां ने सोचा शायद वह घर पहुंच गई होगी, जब उसकी मां घर लौट आई तो अपनी बेटी को ना पाकर सोचने लगी इतनी छोटी सी बच्ची कहां जा सकती है? जब गुस्सा ठंडा होगा तो वापस घर आ जाएगी।  पड़ोस में खेलने चली गई होगी। शाम को हीरालाल भी घर आ गए थे। आते ही रेशमा बोली क्या सुकन्या दुकान पर आई थी? वह बोला नहीं। आ जाएगी कहां जाएगी? कहीं खेल रही होगी? आ जाएगी। जल्दी से खाना निकालो। बड़े जोर की भूख लगी। है जल्दी खाना निकालो। भूख लग रही है। वह कहने लगा उसे भूख लगती है तो वह कहीं भी खा लेती है। बच्ची है कहीं भी खा लेगी। रेशमा को कहा कि तुम भी खाना खाते लो। ठीक ही तो कह रहे हैं किसी न किसी के घर खाना खा कर आ जाएगी? रेशमा नें भी खाना खा लिया।

जब काफी अंधेरा हो गया तो सुकन्या  10:00 बजे के करीब घर वापस आई। उसे डर भी लग रहा था। वह अंदर जानें ही लगी थी तो देखा उसके माता-पिता दोनों आपस में बातें कर रहे थे। मां बोली सुकन्या ना जानें कहां चले गई? हीरलाल बोले अच्छा ही हुआ। आज कहीं जाकर चैन की नींद आई है। घर वापस न ही आए तो ठीक है।

सुकन्या की जब जाग खुली थी  तो उसनें सोचा था कि घर वापस चले जाती हूं। माता-पिता चाहे कितने भी सख्त हों वह अपनी औलाद का बुरा नहीं चाहते।  उसने अपने माता पिता को यह कहते सुना कि सो जाओ तो वह अपने मन में बहुत ही उदास हो गई। रेशमा बोली की पुलिस में रिपोर्ट कल लिखवा देंगे। हीरालाल बोला रिपोर्ट लिखवाने की  कोई जरुरत नहीं। डूब कर कहीं मर जाती तो अच्छा होगा। सुकन्या ने यह सब सुन लिया था। वह अपनी फुलवारी में ही सो गई थी। सुबह 4:00 बजे उठकर वहां से चल पड़ी। उसका भाग्य उसे  न जानें कहां ले जा रहा था? उस बेचारी को यह भी नहीं पता था कि वह कहां जा रही है? चलते चलते वह काफी दूर निकल गई थी। अचानक उसे एक स्कूल बस दिखाई दी। वह स्कूल के बच्चों की बस थी। स्कूल के  बच्चे  बाहर से पिकनिक मनाने  आए हुए थे। उसने देखा कि बस के पास एक बैग पड़ा हुआ था जिसमें बच्चों की ड्रेस थी उसने जल्दी से वह ड्रेस चुपके से पहन ली और उस बस में चढ़ गई टूरिस्ट लोगों की वह बस थी। उसमें शहर से बच्चे पिकनिक मनाने आए हुए थे जब दूसरे दिन बस अपने गंतव्य स्थान पर पहुंची सारे के सारे बच्चे उतर चुके थे केवल दो बच्चा बच्चे ही रह गए थे। उन्हें लेने कोई नहीं आया था बस चालकों को भी बस में नींद आ गई थी।

सुकन्या ने देखा कि एक बहुत ही रईस आदमी अपने बेटे को लेने आए। वे अपने बेटे को बस से जैसे ही उतारने की कोशिश करने लगे तो सुकन्या बोली अंकल मुझे भी अपने घर ले चलो। वह बोले बेटा तुम्हारे मां बाप कहां है? वह  बोली अंकल मेरे माता-पिता नहीं है। वह व्यक्ति उसे चौंक कर देखने लगा। ऐसे कैसे हो सकता है? तुम जल्दी बताओ वरना तुम्हारी रिपोर्ट पुलिस थाने में कर दूंगा। वह बोली अंकल रिपोर्ट कर कर देना पहले आप मुझे अपने घर ले चलो। आदमी छोटी सी लड़की की मीठी मीठी बातें सुनकर खुश हो गया बोला तुम मेरे घर चल सकती हो। एक शर्त पर तुम्हे ले  कर चल सकता हूं। कल मैं पुलिस थाने चलकर तुम्हारी रिपोर्ट दर्ज करवा दूंगा। वह आदमी अपने भाई के बेटे को लेने आया था। उसके भाई के एक ही बेटा था लेकिन उसके अपनी कोई संतान नहीं थी। वह अपने भाई के बेटे को ही अपने बेटे की तरह प्यार करता था।

अक्षय की पत्नी कितनी बार अपने पति को कहती थी कि चलकर किसी बच्चे को गोद ले लेते हैं। वह कहता था कि ठीक है किसी दिन हम अनाथालय जाकर बच्चे को गोद ले लेंगे। आज उस बच्ची को देख कर सोचने लगा कि यह हमारे पास ही रहे। मैं और पलक उसे अपनी बेटी जैसा प्यार देंगे। थोड़ी ही देर में सोचने लगा शायद वह अपनी मां से बिछुड़ गई है। उसकी मां का तो रो-रो कर क्या हाल हुआ होगा? मुश्किल से 5 वर्ष की होगी। उसको जल्दी से नीचे उतारा।  घर पहुंच कर  अपनी पत्नी को दे कर बोला यह लो मैं तुम्हारे लिए नन्हीं सी परी को लाया हूं। उसकी पत्नी उसे देख कर बहुत खुश हुई। उसकी पत्नी बोली जल्दी से आयुष को छोड़कर आओ।  हम फिर तीनों मिलकर खाना खाते हैं। उसे देख कर बोली तुम कहां की हो?मैं अंकल के आ जानें पर आपको सारी कहानी  सुनाऊंगी।  आप अगर मुझे अपने घर में रखोगे। मुझे अपनी बेटी मानोगे। मैं अपने घर नहीं जाना चाहती। पलक उस नन्ही सी परी के मुख से यह बात सुनकर दुःखी हुई। वह क्यों-अपने घर जाना नहीं चाहती? ऐसा अचानक क्या हुआ होगा? उसके पति अक्षय वापिस आ चुके थे। वह अपनी पत्नी से बोले वह लड़की मुझे बस में मिली। उसने बताया कि वह घर से भाग कर आई है। उसके माता पिता आपस में लड़ते ही रहते हैं। उन्होंने उसे कभी भी प्यार नहीं किया। नन्ही परी बोली मैंने  माता पिता को कहते सुना कि घर में  एक छोटा सा मेहमान आने वाला  है। इस बार लड़का ही होगा। बेटी की हमें जरूरत नहीं है। इस हमने  सुकन्या पर बहुत खर्चा कर डाला। ना जाने इसकी पढ़ाई पर और शादी पर कितना खर्चा होगा? अच्छा होता यह कहीं चली जाती। मैं इतना सुनकर भी घर वापस आ गई थी लेकिन उन्होंने मेरा स्कूल जाना भी बंद करवा दियां। इस वर्ष यह स्कूल नहीं जाएगी  तो क्या हुआ? हम इसे  आगे अभी नहीं पढ़ाएंगे। यह पढ़ कर क्या करोगी? तब मुझसे रहा नहीं गया। मैं चुपचाप घर से भाग कर आ गई। 6 दिन तक स्कूल ना जाने के कारण मेरा नाम स्कूल से  खारिज कर दिया था। मेरे माता-पिता  नें स्कूल में कहला  दिया था कि सुकन्या बीमार है इसलिए  वह स्कूल नहीं आएगी। अंकल आंटी आप ही बताओ क्या, बेटा आने पर लड़कियों की ओर ध्यान देना बंद कर दिया जाता है?

पलक बोली बेटा तुम्हारा घर कहां है? वह  बोली मेरा घर से तारापुर में है। हो सकता है यह छोटी सी बच्ची झूठ बोल रही हो। अभी तक तो उसके पिता ने पुलिस में रिपोर्ट  भी दर्ज  करवा दी होगी। वहां जाकर पता करता हूं।उन्होनें  पलक को कहा में इसे उस के घर छोड़ कर आता हूं। सुकन्या पलक के पांव पकड़कर बोली आप मुझे वहां मत भेजो। पलक की आंखो से अश्रुधारा बहनें लगी। वे दोनों बोले पहले वहां जा कर पता करते हैं फिर कोई निर्णय लेंगें। अपनी गाड़ी में सीतापुर पहुंचे। उनके घर का पता पूछते पूछते उनके घर पहुंचे।अक्षय वहां पर जा कर बोले  मैं हीरालाल जी से मिलने आया हूं। वे बोले कि  आप को मैनें नहीं पहचाना। वह बोला मैं बड़ी दूर से आया हूं। रास्ते में मुझे एक लड़की मिली थी वह कह रही थी कि मैं सीतापुर में रहती हूं। मेरे पिता का नाम हीरालाल है। वह बोली क्या आप  मुझे मेरे घर छोड़ देंगे। मैं उसे छोड़ने के लिए तैयार हुआ था। मैं  पता पूछते पूछते यहां तक पहुंच गया। आप शायद हीरालाल ही होंगे। मैं बड़ी दूर से आया हूं। छोड़ने के लिए मैं तैयार हुआ ही था कि वह वहां से भाग गई। हीरालाल बोला वह लड़की है ही ऐसी। ना जाने कहां  चले  गई होगी। अपने आप वापिस आ जाएगी। अक्षय वाला फिर भी मैं आपको बताने चला आया। आपने पुलिस में रिपोर्ट तो लिखा ही दी होगी। वह बोला हां में लिखवा दूंगा। बताने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

अक्षय यह कहकर चलने के लिए तैयार हो गया था उसे पता लग गया था कि वह लड़की जो कुछ कह रही थी वह ठीक ही कह रही थी। सचमुच ही वह दोनों उस बच्ची को प्यार नहीं करते। शाम के समय वह पुलिस अधिकारी महोदय से मिला उसे सारी बात बताई। हीरालाल अपनी बेटी को अगर ढूंढने के लिए रिपोर्ट लिखवाने आए तो ठीक है वरना उसकी बेटी मेरे पास सुरक्षित है। मैं पाल पोस कर बड़ा कर लूंगा। इस तरह 20 साल बीत गए। उन दोनों ने कभी भी अपनी बेटी को ढूंढने की कोशिश नहीं की। अक्षय ने सुकन्या को कानूनी तौर पर अपना लिया।

आज सुकन्या डॉक्टर बन गई थी। वह अपनी मां पलक और पिता अक्षय से इतना प्यार करती थी  कि वह उनके बिना  एक पल भी नहीं रह पाती थी। वह अपने पिछले सारे दुख भूल गई थी। उसका बचपन बहुत ही भयानक था। उसका भविष्य बहुत ही सुनहरा हुआ। उसकी मां उसे एक राजकुमारी की तरह पलकों पर बिठा कर रखती थी। और अक्षय के जीवन में बच्ची के आ जाने से बाहर आ गई थी। उनके चेहरों पर मुस्कान बन कर उनके होठों पर और  उनके उनके घरों में  मुस्कान ले आई थी

सुकन्या के जाने के बाद हीरालाल और उसकी पत्नी रेशमा जो खुशियां देखना चाह रहे थे वह उन्हें नसीब ही नहीं  हुई। उनके घर में एक बच्चे ने जन्म लिया। पैदा  होते ही उसकी एक आंख फूटी हुई थी और एक टांग टेडी। वह दिव्यांग पैदा हुआ था।  उसके माता-पिता जब विवेक को गोद लेते उसके आंख और टेढ़ी टांग देखकर बहुत दुःखी होते थे। हम सोचते थे कि बेटा होने पर हमें सारी खुशियां मिलेगी। लेकिन हुआ उसके विपरीत। उनकी रही सही खुशी भी दुःख में परिवर्तित हो गई। उनका बेटा हमेशा बीमार हो जाता था। कभी अपनी बेटी को याद कर रो लिया करते। अब क्या हो सकता था? आसपास के घरों के लोग उन दोनों को कहते कि तुमने अपनी नन्ही सी बेटी को कितना सताया? उसका हिसाब तो देना पड़ेगा। दोनों के दोनों सोचते थे कि बेटा किसी ना किसी तरह ठीक हो जाता उसका इलाज हो जाता ठीक है। इसके लिए ना जाने क्या-क्या उपाय करते रहते थे।

बेटा भी 18 साल आ चुका था। घर पर अपने पिता की दुकान पर बैठा रहता था। कभी-कभी आहिस्ता आहिस्ता अकेलाा बाहर चला जाता था

एक दिन मोहन घूमने गया था वह आईस्ता  आईस्ता चल रहा था उसके सामने से एक गाड़ी बड़ी तेजी से गुजरी वह बाल-बाल बचा। उस कार में से  एक युवती उतरी।  उसने अपने हाथ का सहारा देखकर उसे ऊपर उठाया। बोली भाई तुम्हें कहीं चोट तो नहीं आई। भाई शब्द सुनकर वह बोला नहीं बहना मुझे कहीं नहीं नहीं लगी। थोड़ी सी खरोंच लगी। आईस्ता आईस्ता  आगे चलने लगा। उस का लॉकेट नीचे गिर गया था। उसको उठाकर  सुकन्या ने देखा  दूसरी तरफ  शायद उसके माता पिता की तस्वीर होगी। आज मेरा भाई भी इतना बड़ा हो गया होगा । दूसरे दिन मोहन  भी उसी रास्ते से जा रहा  था। वह गाड़ी से उतरी और उसके पास जाकर बोली  कल तुम्हारी जेब से  लॉकेट  गिर गया था। शायद उसमें तुम्हारे माता-पिता की तस्वीर है। वह बोला  हां मेरे माता-पिता की है। वह बोली तुम्हारे माता-पिता कहां रहते हैं? वह बोला मेरे माता-पिता  पास ही एक छोटी सी दुकान में काम करते हैं। मां तो घर पर ही रहती हैं। मां पिता दोनों  बुढे हो चुकें हैं। मैं भी उनका काम नहीं संभाल सका। तुम नें  अपनी आंख का इलाज नहीं करवाया। कहां से करवाता?। मेरे माता पिता के घर का सारा खर्च  बडी़ मुश्किल से चलता है। उसे याद आ गया कि उसके माता पिता ने भी उसे किस प्रकार  घर से बाहर कर दिया था।? उसे  मोहन पर दया आई।  मैंने इस लड़के को भाई कहा है।  वह  बोली मैं तुम्हारा इलाज करवाऊंगी। तुम मेरे भाई के समान  हो। तुम अपने माता पिता को बताए बगैर मेरे साथ शहर चलो। वहां चल कर तुम्हारा इलाज करवाऊंगी।  तुम्हें देख कर  मुझे अपने भाई की याद आ गई। मेरी कहानी भी बहुत दर्दनाक है। फुर्सत के समय सुनाऊंगी। वह कहने लगा यदि मेरी टांग और आंख ठीक हो जाएगी तो मैं भी कमा सकता हूं।

सुकन्या उसे शहर ले आई। उसने अपनी मां और पिता को सारी कहानी सुनाई और कहा कि यह लड़का मुझे रास्ते में मिला। यह मेरे गांव का है। उसमें मुझे अपना भाई नजर आया। मैं उसका इलाज करवाने के लिए शहर ले आई हूं। जब उसकी  आंख और टांगे ठीक हो जाएगी तो वह अपनें गांव चला जाएगा।जब मोहन की आंखें ठीक हुई तब सुकन्या नें अपनें भाई को सारी कहानी सुनाई मुझे मेरे माता-पिता नें बचपन में वह प्यार नहीं दिया जो देना चाहिए था। मैं भी तुम्हारे गांव की हूं। बेटे की लालसा में उन्होने बेटी की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। उन्होनें जब मुझे स्कूल में नहीं भेजा मैं घर छोड़ कर घर से भाग गई। ये ही मेरे मां बाबा है। इन्होनें मुझे पढाया लिखाया ही नहीं बल्कि आज डाक्टर बन कर अपनें ही गांव में आ गई  हूं। मैनें  यहां कर अपनें मां बाबा को ढूंढनें की कोशिश की लेकिन वे  सब छोड़ कर कहीं चले गए। मोहन जब घर चलने के लिए तैयार हुआ तो बोला बहना आज तो मैं तुम्हारी फोटो ले जा रहा हूं। इस में तुम्हारी  बचपन की भी तस्वीर है।  तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद। वह बोली किसी दिन तुम्हारे घर चलूंगी। अपनी बहना से विदा हो कर जब घर आया उसने अपनें माता पिता को सारी कहानी सुनाई। कैसे  उस नें मेरी मदद की। वह इसी गांव की ही है।  वह  डाक्टर बन गई है। उस नें ही  मेरी सहायता की है। मुझे आंखें ही नहीं दिलवाई बल्कि टांग का भी इलाज कराया। वे दोनों अपनें बेटे को ठीक हुआ देख कर बहुत खुश हुए।  वे बोले हम भी  उस लड़की से मिल कर उसे धन्यवाद  देंगें।

वह बोले अब तो जल्दी से घर में बहु आनी चाहिए।  अपनी बहन को भी शादी में बुलाना। मोहन बोला मां उस लडकी को उसके मां बाप ने बेटे की लालसा में घर छोड़नें पर मजबूर कर दिया था। अचानक रेशमा बोली बेटा उसका क्या नाम है? मोहन बोला उस का नाम तो मैनें पूछा ही नहीं उसकी फोटो मेरे पास  है।रेशमा नें जब फोटो देखी वह फूट फूट कर रोनें लगी। यह तो हमारी बेटी है। मोहन को बोली यह तो हमारी सुकू है। मोहन को गुस्सा आ गया बोला क्या आप  ही दोनो थे जिन्होंनें मेरी फूल सी कोमल बहना को बहुत सताया? मैं भी आप दोनों को छोड़कर आज सदा के लिए चला जाऊंगा।  वह उन को छोड़कर चला गया। वह उन दोनों से बोला जब तक मेरी बहन तुम को माफी नहीं देगी तब तक आप यहां नहीं रह सकते।आप नें  बेटीके साथ साथ न जानें क्या क्या अन्याय किया? बहु के साथ भी इसी तरह पेश आओगे। मैं तो यहां से जा रहा हूं। दोनों मां बाप  यह सुन कर घर  छोड़ कर चले गए। दोनों दर दर भटकनें लगे। वक्त पडनें पर किसी नें  भी उन का साथ नहीं दिया। फटे वस्त्रों में दर दर कभी पत्थर तोड़ते। दुर्गम रास्तों पर चल कर कभी भीख मांगनें  लगते।

एक दिन जब सुकन्या अपनें भाई से मिलने आई तो वह मोहन को कहनें लगी क्या तुम मुझे अपनें माता पिता से नहीं मिलवाओगे? वह बोला तुम मेरी  सगी बहन हो। बहन उस के गले लग कर फूट फूट कर रोनें लगी। एक बार मेरे माता-पिता से मुझे मिलवा दो। वह बोला मैंनें  अपनें माता पिता को कहा जिसमें  मेरी फूल सी कोमल बहन को घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया उन को मैं अपने साथ नहीं रखूंगा। जाओ मैं भी आप का बेटा नहीं। वह जब तक आप को क्षमा नहीं करेगी तब तक मैं भी आप को क्षमा नहीं करुंगा। सुकन्या बोली भाई मेरे वह कहां जाएंगे? वह बूढे हैं।  मोहन बोला वह तुम्हें खोजनें निकल पडे।  अच्छा है जब बाहर दर दर भटकना पड़ेगा तब पता चलेगा। वह कहने लगे हमनें अपनी बेटी के साथ अन्याय किया है। हम उस से क्षमा मांग कर ही रहेंगें। वह न जानें कहां चले गए।

एक दिन सुकन्या नें अखबार में उन दोनों की फोटो  दे कर कहा जो कोई भी उन दोनों को ढूंढने कर लाएगा उन्हें मुंहमांगा ईनाम दिया जाएगा।

दर दर की ठोकरें खानें के बाद उन्हें समझ आ गया था कि बाहर रह कर कमाना  कितना मुश्किल होता है। काश हमारी बेटी हमें मिल जाती।  हमें आज पता चला बाहर निकल कर कमाना कितना मुश्किल होता है?  उस छोटी सी मासूम बच्ची  नें कितने दुःख सहे होंगें। पुलिस के कर्मचारियों नें उन दोनों को ढूंढ  कर उन्हें अपनें साथ चलने को कहा। वे बोले हम दोनों कहीं नहीं जाएंगें। हमनें अपनी बेटी का दिल बहुत दुःख आया। वह यहां हमें जब मिलेंगी तब हम उस से अपनें गुनाहों की माफी मांगेंगें। हम नहीं तो यहीं  पर अपनी जाने देंगें। आप हमें नहीं ले जा सकते। आप हमें मौत दे दिजीए या जहर दे कर मार डालो। हम यहां से अपने बेटे के पास भी वापिस नहीं जाएंगें। पुलिस वालों नें बहुत कोशिश की मगर वे उन्हें अपने साथ ले जानें में सफल नहीं हुए।सुकन्या नें जब यह सुना तो बहुत दुःखी हुई। वह अपनें भाई के पास जा कर बोली मां पिता को वापिस ले कर आओ। मोहन जब अपनें माता पिता के पास पहुंचा वह बोला मां पिता जी  मेरी बहन घर आई थी उसने मुझे कहा कि मैं आप दोनों को घर ले आऊं। वह दोनों बोले हम तुम्हारे साथ नहीं चलेंगें। सुकन्या जब तक हमें माफ नहीं करेगी हम कहीं जाने वाले नहीं। तुम घर जाओ बेटा। अपना ध्यान रखना। हमें अपनें गुनाहों की सजा मिल रही है। सुकन्या से रहा नहीं गया। वह अपनें माता के पास पहुंची। उससे अपने माता पिता की शोचनीय अवस्था नहीं देखी गई। वह फूट फूट कर बोली मां पिता चलो अच्छा ही हुआ आप दोनों को एहसास तो हुआ। मेरे लिए यही बहुत है। वह उन्हें अपनें घर ले कर गई।

सुकन्या को देख कर  वे बोले बेटी क्या तुम हमें मौफ नहीं करोगी? हम माफी के काबिल तो नहीं। सुकन्या बोली कोई बात नहीं आप दोनों को अपनी गल्ती का एहसास हुआ जाओ मैं आप दोनो को माफ करती हूं। वे बोले बेटी अब हमें इजाजत दो। सुकन्या बोली जाते जाते क्या आप मेरे माता-पिता से नहीं मिलोगे? वह बोले क्यों नहीं? हम उन के पैरों पड़ कर माफी मांगना चाहते हैं। अचानक पलक और अक्षय उनके सामने आ गए। अक्षय को देख कर दोनों  को याद आ गया  इन्होंनें ही हमारी बेटी कि रिपोर्ट लिखवानें के लिए कहा था। वे दोनों बोले हमारी आंखो पर काली पट्टी चढी हुई थी हमें उस समय-कुछ नजर नहीं आया। बेटे के मोह में अपना भला बुरा  समझनें की क्षमता को खो बैठे थे।

सुकन्या नें फोन कर अपने भाई को  अपनें घर बुला लिया और कहा  माता पिता को मैनें मौफ कर दिया है। तुम भी उन्हें माफ कर उन्हें यहां से ले कर जाओ।

मोहन बोला बहना मैं आ रहा हूं। मोहन अपनी बहन के घर पहुंचा। अपनें माता पिता को अपने साथ ले आया। वे कहने लगे अगर हर लोग लडके और लड़की मेंअन्तर न कर दोनों को एक दृष्टि से उनकी परवरिश करें तो सभी का जीवन धन्य हो जाएगा।  असली मायनों में आज हमारी आंखें  खुल  गईं हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published.