परिवर्तन

यह कहानी एक छोटे से परिवार की है यह कहानी दो भाइयों की है। दोनों परिवार साथ-साथ रहते थे। रमाकांत और रविकांत। रमाकांत की शादी भी होने जा रही थी

रविकांत उसके चाचा जी का बेटा था। दोनों परिवार साथ साथ ही रहते थे इसलिए घर में शादी की खूब चहल पहल थी रमाकांत ने लड़की को देखा हुआ था। रविकांत ने भी।  

 

दोनों शादियां बहुत धूमधाम से हो रही थी। रवि कांत, उसके चाचा जी का बेटा था। दोनों परिवार साथ साथ ही रहते थे। इसलिए घर में शादी की खूब चहल पहल थी। रमाकांत ने लड़की को देखा हुआ था। रविकांत ने भी दोनों। शादियां बहुत धूमधाम से हो रही थी सभी शादी के वातावरण में व्यस्त थे। सारे घर के सदस्य खूब खुशी-खुशी बरात के आने का इंतजार कर रहे थे। रमाकांत की पत्नी अमीर परिवार से थी। रविकांत की पत्नी मध्यम वर्गीय परिवार की थी। दोनों ने अपनी पत्नियों को सोच समझकर पसंद किया था।  घर वालों ने तो उनके लिए गांव की लड़कियां देख रखी थी। अपने बच्चों की पसंद के आगे झुकना ही पड़ा। रमाकांत के पिता ने कहा बेटा अमीर घर की लड़की से रिश्ता मत रखो। वह घर को तोड़ देगी। वह घर में जो हम सब आज तक इकट्ठे रह रहे हैं शायद वह आकर हमें अलग-अलग ना कर दे। रमाकांत बोले पापा ऐसा नहीं होगा। मैंने अपनी पत्नी का चुनाव करने में कोई गलती नहीं की है। वह अपने परिवार की एक  ही लड़की है। लाड में अवश्य पली है मगर उसके व्यवहार से मैं परिचित हूं। कोई भी ऐसा काम नहीं करेगी जो हमारे परिवार में  दरार डाल दे।  आप मेरा विश्वास करें।

 

रविकांत की शादी तो मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की से होने जा रही थी। उसके बारे में घर के किसी सदस्य ने कुछ भी नहीं कहा। उन्होंने रिश्ता मंजूर कर लिया। और उनके द्वार पर खुशियां दस्तक दे रही थी। बारात आ चुकी थी दोनों  दुल्हन सज धज कर बैठी थी। घर का वातावरण खुशनुमा था। शादी समाप्त हो चुकी थी। बहुएं अपने सास-ससुर से आशीर्वाद ले चुकी थी।

 

रमाकांत और रविकांत को आए हुए हफ्ता हुआ था। सास ससुर को अपनी बहूएं अच्छी लगी। रमाकांत की पत्नी  चारु चंचल स्वभाव की थी। उसने अपने व्यवहार के कारण सबके मन को मोहित कर दिया। उसके माता पिता ने उसे खूब सारे आभूषण देकर विदा किया था। रविकांत की बहू गंभीर चुपचाप  एक मध्यम वर्गीय परिवार से थी। सभी को देख रही थी। रविकांत की पत्नी अरु नें सोचा अच्छा मौका है। अच्छा परिवार है। अभी मैंभी सबके सामने अच्छा बनने की कोशिश करती हूं। मैं अपने गुणों से अपने पति के विश्वास को जीत लूंगी। उसकी सास उसे कहती बेटा जरा यह काम कर दो।। वह कहती मैं थोड़ी देर बाद करूंगी। वह काम को टाल जाती।। वह इसलिए कहती कि उसकी सास उसे किसी काम के लिए ना कहे। उसकी सास को पता लग गया था कि अरु भोली भाली लड़की नहीं है। वह भोला बनने का नाटक कर रही थी। उसनें अपनें बेटे को कहा अपनी    पत्नी को साथ लेकर जाओ। रमाकांत की पत्नी ने अपने व्यवहार के कारण ही नहीं बल्कि अपनी प्रतिभा के कारण सबके दिलों को जीत कर अपनी अमिट छाप उन पर छोड़ दी। सब मां बाप हैरान थे जिस बहू को हम कह रहे थे कि अमीर घर की लड़की हमारे घर में दरार डाल देगी वह तो हर काम को कर रही थी। जो काम उसने कभी किया भी नहीं था उसे भी करने के लिए कह रही थी।

रमाकांत ने अपने बेटे को कहा कि तुमने अपने चुनाव में कोई गलती नहीं की। तुम तो एक हीरे को अपने घर में लाए हो। वह अपने गुणों से हमारे घर को पवित्र कर देगी।अरु थोड़ी नादान है शायद हो सकता है वह भी हमारे घर की छवि को यूंही कायम रखेगी। धीरे-धीरे समय भी पता ही नहीं चला कब पंख लगा कर उड़ गया। वे दोनों सहेलियाँ बन चुकी थी। अरु अपनी सहेली चारु से भी चिडती थीक्योंकि हर दिन वह न्ए नए कपड़े पहनती थी। अरु को तो उसकेउसके मां-बाप ने ले दे कर तीन चार सूट ही दिए थे। वह हर बारअपने पति को कहती थी कि आप मुझे सूट नहीं बनवाते। वह हर महीने अपने पति से सूट ले लेती। तरह-तरह के सेंडल और ना जाने क्या-क्या। घर को कुछ भी नहीं भिजवानें  देती थी। धीरे-धीरे उसके माता-पिता की हालत बहुत ही खस्ता हो गई। उनको सारा माजरा समझ में आ चुका था। उनका बेटा अपनी पत्नी के प्यार के चक्कर में पड़ चुका है। इसी कारण रविकांत की मां बीमार रहने लगी। रवि को मालूम हो गया था कि उसने अपनी पत्नी के चुनाव में गलती कर दी। वहचुप चाप  चुप्पी साधे कुछ नहीं कहता था। अपने मां-बाप के लिए  उसे दुख होता था।

 

रमाकांत की पत्नी ने अपनी सूझबूझ से काम लेना शुरू कर दिया था। वह तो एक अमीर परिवार में पली थी।  उसके पति ने उसे शादी वाले दिन ही समझा दिया था कि अब हम हर बात को एक दूसरे को बताया करेंगे। हर सुख दुख में हमने जीवनसाथी होने का संकल्प लिया है। आज से हम दोनों खुशियां गम एक साथ बांटेंगें। चारु को रमाकांत ने कहा कि आज के बाद तुम अपने पास माता-पिता से कुछ नहीं मांगेगी। जो कुछ मैं कमा कर लाऊंगा उसी में गुजारा करना आना चाहिए। वह मान गई। धीरे-धीरे उसने अपने खर्चों को कम करना शुरू कर दिया। शुरू शुरू में तो उसे तंगी आई मगर धीरे-धीरे वह भी अभ्यस्त हो गई। उसने अपनी चतुराई से काफी  रुपये इकट्ठे कर लिए थे। घर में भी भिजवा देती थी। और हरदम खुश नजर आती थी।

अरु उस से खफा खफा रहने लगी थी।  उससे जितनी भी नफरत करने की कोशिश करती चारु उससे उतने ही प्यार भरी नजरों से देखती। एक दिन रविकांत को ऑफिस के काम से बाहर जाना पड़ा। वह तीन-चार दिन तक  घर में अकेली ही थी। उसकी सहेली चारु नें कहा बहन तुम्हें जिस वस्तु की आवश्यकता होगी मांग लेना। उसे तो काम करने की आदत भी नहीं थी। उसने उस परिवार में आते ही काम करना छोड़ दिया था। वह सोचने लगी कि सारी उम्र भर अपने  मायके में काम किया है। अब तो मेरे राज करने के दिन है। इसी धुन में वह आलसी बन गई थी। वह कहने ही वाली  थी  किउसके पास रुपए भी नहीं बचे थे। उसकी सहेली ने कहा देखो बहन आज तुम्हें एक बात बताती हूं। हम दोनों का परिवार एक है। हम दोनों सहेलियां हैं। हम आपस में सहेलियाँ ही नंही एक दूसरे की बहनें भी बन गई हैं। मैं तुम्हें एक सलाह देती हूं। अपने घर के काम स्वयं करो। बाहर से कभी-कभी ही खाने के लिए मंगवाना चाहिए। अगर कोई अच्छी सी चीज खाने का मन कर रहा है तो घर में भी बनाई जा सकती है। उस सेे थोड़ा खर्चा भी होगा और तुम्हारे रुपए भी बच जाएंगे।

 

अपनी सहेली की बात उसे अच्छी लगी। चारू बोली जब तुम अपने हाथों से अपने पति को खिलाओगी  तो देखना तुम्हारे पति तुमसे बहुत ही खुश होंगें। धीरे-धीरे वह खुद खाना बनाने लग गई थी। रविकांत घर लौट आया था। रविकांत की पत्नी बोली चलो खाना खातेहैं।वह बोला  कौन से होटल चलना है? वह बोली होटल में नहीं। अपने हाथों से बनाया हुआ खाना मैं आपको खिलाऊंगी। वह अपनी पत्नी की ओर हैरत भरी नजरों से देखते हुए बोला मजाक कर रही होक्या? बोली नहीं। उसका पति बहुत खुश हुआ। आज उसे खाना इतना स्वादिष्ट लगा। वह शाम को अपनी पत्नी के लिए एक  गजरा लेकर आया। अरु नें तो सपने में भी ऐसी कल्पना नहीं की थी कि उसका पति सचमुच में ही उसे इतना प्यार करता है।

 

उसके पति ने कहा और आज ही मां का खत आया है। उन्होंने मुझे  घर बुलाया है और कहा कि तुम ही आना। वह बोली नहीं आपको आजकल बड़ा काम है। मैं गांव में चली जाती हूं। अपनी सास की सेवा करना मेरा फर्ज है। मैं कहीं ना कहीं गलत थी। मैंने अपने व्यवहार में परिवर्तन कर लिया है। मैं ही उनके नज़रों में गिरी हूं। मुझे एक मौका दे दीजिए ताकि मैं उनकी नजरों में अच्छी बन सकूं। मैं  कोई भी ऐसा काम नहीं करूंगी जिससे हमारे परिवार में क्लेश बने। मैंआप को आपके परिवार वालों से दूर करना चाहती थी। मेरी बहन चारु ने मुझसे में बदलाव लाकर मेरे नजरिए को बदल दिया है। मैं  अपनें घर को स्वर्ग बना कर ही छोडूंगी। मैं संकल्प लेती हूं जितना मैंने इस घर का रुपया गंवाया है उससे ज्यादा कहीं कमाऊंगी और घर को स्वर्ग बना कर ही दम लूंगी। अरु ने कहा मेरी दोस्त तुमने मुझे एक अच्छी सोच देकर मेरे व्यवहार को ही नहीं बदला मगर मेरे भाग्य को भी संवार दिया है। मैं अपने पति की नजरों में तो गिरी ही थी परंतु अब मैं अपने प्यार से सबके मन को जीत लूंगी। हम दोनों शक्तियां मिलकर अपने घर को स्वर्ग बनाएंगे। मैं आपके चरणों का स्पर्श करती हूं। अरु ने अपनी सहेली  चारुके पैर छूकर आशीर्वाद लिया और कहा मैं गांव जा रही हूं। मेरे जाने के बाद मेरे पति का ख्याल रखना। अरु अपने गांव पहुंच चुकी थी।  उसकी सास बहुत ही बीमार थी। उसको देखने वाला वहां कोई नहीं था। ससुर किसी काम से बाहर गए हुए थे। घर में कोई गाड़ी वगैरह नहीं थी जिससे उसकी सास को अस्पताल पहुंचाया जाता। अरु नें आव देखा ना ताव अपनी सास को अपने कंधे पर उठाया और 5 किलोमीटर तक कंधे पर उठाकर अस्पताल ले आई। उसके पास इतने रुपए भी नहीं थे जल्दबाजी में वह अपने पति से रुपए ले आना भूल गई थी। उसने देखा पास में ही एक दुकान थी। उसने अपने सोने की चेन उस दुकानदार को देते हुए कहा बाबा जल्दी से मुझे  इस चेन के बदले में रुपए दे दो मुझे अपनी सास को  अस्पताल लेकर जाना है। दुकानदार उसकी हिम्मत देखकर बहुत ही प्रभावित हुआ बोला बेटा बीमार व्यक्तियों की मदद करना तो हमारा फर्ज होता है। मैं अपने बेटे को गाड़ी लेकर भिजवाता हूं। यहां से एक किलोमीटर की दूरी पर एक अस्पताल है। वहां पर अपनी सास को दिखाओ। उसने उस दुकानदार के पैरों को पकड़कर कहा बाबा आपने ना जाने आज मुझ पर इतना एहसान किया है। उसने अनु की चेन उसको वापस कर दी। और कहा बेटा ऐसी बहू सबको दे। अस्पताल में रविकांत की मां बच चुकी थी। सब उसकी बहू के साहस की प्रशंसा कर रहे थे। सास को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि क्या वह वही मेरी बहू है जो पहले थी। वह खुशी के मारे झूम उठी।

घर में सभी लोग दीवाली की खुशियों में घर-घर दिवाली मनाने के लिए इकट्ठा हुए थे। घर में चारों और खुशी का माहौल था। उनके घरों में आने जाने वाले सब लोग तारीफ कर रहे थे। अरु  नेंअपनी सास के पास रुपए थमाए और कहा मैंने भी  इस बार अपने रुपए इकट्ठे किए हैं। जो भी थे आप रख लो। आज सारा परिवार एक हो गया था। रमाकांत और रविकांत के पिता ने  अपनें दोनों बेटों को कहा सचमुच में ही तुम दोनों के चुनाव में कोई खराबी नहीं थी। हमारी सोच ही हमें कहीं का नहीं रहने देती।  

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