बुझते चिराग

किसी गांव में एक किसान अपनी तीन बेटियों के साथ रहता था। सबसे बड़ी बेटी 10 साल की उस से छोटी 9 साल की और सबसे छोटी 8 साल की थी। किसान की पत्नी हमेशा ही बीमार रहा करती थी।। किसान की पत्नी को पता चल गया था कि वह ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रह सकती इसलिए उसने किसान से कहा कि तुम दूसरी शादी   कर लेना। तुम शादी करोगे तो   ऐसी पत्नी लाना जो मेरी बच्चियों को भी मां का प्यार दे सके।  गरीब घर की लड़की को लेकर आना। किसान की पत्नी कुछ दिनों पश्चात  सचमुच ही मर  गई।  उसकी छोटी-छोटी बेटियां अनाथ हो गई।अपनी बेटियों की जिम्मेवारी किसान पर आ गई। किसान ने सोचा कि मुझे अपनी पत्नी की बात का मान रखना चाहिए। उसने गांव की एक गरीब लड़की के साथ विवाह रचा लिया। किसान ने अपनी पत्नी को कहा कि मैंने तुम्हारे साथ शादी अपनी बेटियों की खातिर की है। किसान की पत्नी बोली कि मैं अपनी बेटियों का पालन पोषण अच्छे ढंग से  करूंगी। थोड़े दिन तो खुशी से गुजरे । एक  दिन किसान की नई पत्नी सोचने लगी कि अब तो मेरे घर में भी छोटा सा मेहमान आने वाला है। मुझे इन लड़कियों से कोई भी प्यार नहीं है। किसान की खातिर प्यारा झूठा दिखावा करना पड़ता है। किसान को इन बेटियों को कहीं छोड़ने पर मजबूर करवा दूंगी वह अगर नहींंमाना तो मैं अपने दूर के भाई के साथ मिलकर उन्हें यहां से कहीं और  भेजने की कोई योजना बना लूंगी। एक दिन उसने अपने भाई के साथ मिलकर योजना बना डाली। उसने अपने मुंह बोले भाई को अपने घर बुलाया और कहा कि तुम लड़कियों को घने जंगल में छोड़ कर आ जाना।। वहां पर  जंगली जीव जंतु इन्हें खा जाएंगे। इतनी दूर छोड़ कर आना वह कि वह  कभी वापस ना आ सके। एक दिन उसने अपने मुंह बोले भाई को अपने घर बुलाया। उस दिन किसान किसी काम के सिलसिले में बाहर गया हुआ था। उस दिन छोटी गुड्डी को भी नींद नहीं आ रही थी। वह पानी पीने के लिए  उठी ही थी उसे अपनी  नई मां के कमरे से आवाज उसे साफ साफ सुनाई दे रही थी। वह बाहर खड़ी थी। उसकी मां अपनें  मुंह बोले भाई को कह रही थी कि इन बेटियों को जंगल में छोड़ आना। मैं इन बेटियों को कह दूंगी कि तुम्हारे चाचा का निमंत्रण है

गुड्डी को नींद नहीं आ रही थी। वह अपनी मां के पास  गोद में सोने के लिए आई थी। यह क्या? यह उसकी नई मां का चेहरा है। वह हमें जंगल में छोड़ने की बात कर रही है। क्या करूं? बाबा का पता नहीं कहां काम से गए हैं? इसलिए उन्होंनें  बापू के आने से पहले ही हमें बाहर छोड़ने का मन बना लिया है। हे भगवान! क्या यह सच है?  यह बात  अगर सच है तो मुझे कोई तरकीब सोचनी चाहिए ताकि हम वहां से सुरक्षित अपने पिता के पास अपने घर पहुंच सके। उसने रात को ही अपना थैला रख लिया था। उसने उस में कंकर भर लिए थे। उनको  एक जैसे रंग के निशान लगा दिए थे। सारे रास्ते में ककर फेंकती चलूंगी। जहां पर भी यह कंकर गिरे होंगें उसी के सहारे से मुझे घर का रास्ता मालूम हो जाएगा। अपना मुखौटा भी साथ ले चलती हूं। हमारी मां ने मेरे जन्मदिन पर  मुझे यह मुखौटा उपहार दिया था। उसने सभी चीजें अपने बैग में रख दी थी। सुबह 4:00 बजे ही उसकी मां मीठी मीठी बातें करके सभी को जगाने आई बोली बेटा उठो। मैंने तुम सब के लिए गरम-गरम हलवा बनाया है। तीनों अपनी मां का  यह रूप देखकर मुस्कुरा रही थी। हमारी मां कितनी अच्छी है? जल्दी से उसकी मां ने उन्हें कहा कि तुम्हारे  चाचा जी  का  गांव में निमन्त्रण है। तुम सब को भी बुलाया है। तुम अपने मामा के साथ चले जाओ। तुम्हारे बापू जी घर पर नहीं है। तुम सब अपने मामा के साथ वापस आ जाना। 2 दिन बाद तुम्हारे पिता भी लौट आएंगे। तुम भी उनके साथ आ जाना। सभी बेटियां बड़ी खुश हुई। छोटी गुडडी को डर लग रहा था। जब काफी रास्ता तय हो चुका तो शाम होने को आई थी। वह अपनी भांजियों को बोला बेटा मैं जरा बाहर शौचालय जाकर आता तुम यहीं बैठे रहना। मैं ज्यादा दूर नहीं जाऊंगा जल्दी ही शौच जाकर आ जाऊंगा। तुम सब यहीं पर बैठकर मेरा इंतजार करना। यह कह कर वह चला गया। काफी देर तक नहीं लौटा तो सब के सब डर गई। मामा तो हमें अकेला छोड़कर ना जाने कहां चले गए?

गुड्डी बोली मैंने रात को नयी मां की सारी बातें सुन ली थी। वह हमें बाहर छोड़ने की बात कह रही थी। मैंने घर से आते वक्त आपने बस्ते में कंकर पत्थर डाल दिए थे। उस  में मैं सारे रास्ते में ककर  फेंकती चली आई। हमें अपने घर का रास्ता मालूम हो जाएगा। लेकिन रात होने को है। चलो कहीं चल कर रात बिताने का इन्तजाम  करते हैं। हो सकता है कहीं ना कहीं रात को ठहरने के लिए जगह मिल जाए।। जंगली जानवरों की आवाजें उनके कानों में गुंजनें लगी थी।  शौच का बहाना   करनें के बाद उनका मामा अपने दोस्त को गाड़ी लाने के लिए कह आया था गाड़ी में बैठ कर जल्दी ही वहां से वापिस घर आ गया था। गुड्डी बोली अंधेरा होनें से पहले कहीं ठौर ठिकाना ढूंढा जाए।  अपने आप को जल्दी से यहां से निकलते हैं। थोड़ी दूर जाने पर उन्हें एक टूटा फूटा खंडहर दिखाई दिया।  वह भूतिया खडंहर लग रहा था। वहां पर इतनी मकड़ी के जाले थे कि जंगली जानवरों की चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं। तीनों बहनें डर के मारे कांपनें मे लगी। किसी के आने की आहट सुनाई दी। तीनों एक दूसरे का हाथ पकड़कर एक वट वृक्ष के पीछे  छिप  गईं। वहां उन्हें उस वट वृक्ष से ज्यादा अच्छी जगह कोई भी नहीं आई। उन्होंने इस वृक्ष की शाखाओं को कस कर पकड़ लिया और सब से वृक्ष के ऊपर वाले तने पर बैठकर चारों तरफ उन्हें एक हवेली नजर आ रही थी। जल्दी में उसके पैर का जूता नीचे गिर गया। वह अब तो और भी  ज्यादा डर गई। कोई अगर पेड़ पर चढ़ा   तो वह तीनों मर जाएंगी। क्या करें? छोटी गुड्डी ने सभी  को दिलासा दिया ऐसे वक्त में हिम्मत से काम लेना  चाहिए।  मां कहा करती थी कि  तुम्हें जब डर लगे तब राम नाम का जाप करना चाहिए।। डर के मारे  वे राम नाम का जाप करनें लगीं। उन्होंने देखा कि एक बुढ़िया उस खडंहर के अंदर की ओर जा रही है। उसके साथ एक बूढ़ा पुरुष भी था।वे तीनों  सोचने  लगी कि आज तो यह हमें मार ही डालेंगे। बुढ़िया उस पेड़ के पास आई। उसने  वृक्ष के     तने के पास से कुछ निकाला। वह दोनों को पता नहीं चला कि क्या है? बुढिया नें   वहां पर चप्पल नीचे गिरी  देखी तो वह  बहुत जोर से चिल्लाई मेरे इलाके में कौन आया है? जल्दी से यहां मेरे सामने आ जाओ। अतिथि तो भगवान का रूप होता है। मैं अतिथियों का स्वागत करती हूं। उसकी नजर  उस पेड़ पर बैठी उन तीनों बहनों पर पड़ी उसनें कहा जल्दी पेड़ से नीचे उतरो।    

तुम्हे   मैं कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगी।  तुम मुझे दादी बुला सकती हो। तीनो ने सोचा कि अगर इस बुढिया को पता चला कि हमने उसे कुछ पहनते हुए देख लिया था वह तो हमें कच्चा ही चबा जाएगी। गुड्डी बोली इसके पास भी मास्क है। हम इसको जैसा वो कहती हैं करते चलते हैं।  वह  डरावनी जादूगरनी  नजर आ रही  थी। बुढ़िया उनको अकेला छोड़कर अपनी खंडहर में आ गई। अंदर जाकर उसने सारा हाल अपनें  बुढे पति को कह  कि हमारे खंडहर  में तीन छोटी छोटी बच्चियां आ गई हैं। वह डर के मारे पेड़ पर चढ़ गई है। बूढ़ा  बोला वहां तो वे डर के मारे यूं ही मर जाएंगी। जाकर उन्हें ले   आ। वे तीनों रास्ता भटक गई होंगी।

बुढ़िया ने जल्दी-जल्दी अपना मास्क किनारे रख दिया। पेड़ के पास आकर बोली तुम्हारी चप्पल यहां छूट गई है। मैंने तुम तीनों को पेड़ पर चढ़ते देख लिया था। तुम तीनों नीचे आ सकती हो। मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूंगी। अतिथि तो भगवान का रूप होता है अतिथि की सेवा करना हमारा धर्म होता है। तीनों डर के मारे कांप रही  थी।। इस बुढ़िया जादूगरनी से बचना मुश्किल है। क्या करें पेड़ से उतरना ही पड़ेगा नहीं तो वह हमें कच्चा चबा जाए। तीनों पेड़ के ऊपर से नीचे उतर गई। दादी के पैरों  को छुआ। वे उनके पैरों को देखकर डर गई थी। दादी बोली जंगल में इधरधर नंगे पांव से पत्थर पर चल कर मेरे  पैर सख्त हो गए हैं। वह  तीनों को अंदर ले गई। उसने उन्हें खाने के लिए पूछा उन तीनों को भूख  भी बड़ी जोर की लग रही थी। उन्होंने उस बुढ़िया का डरावना रूप  ही देखा था लेकिन अब तो  वह एक सामान्य इंसान दिखाई दे रही थी।  बुढिया बोली बेटा मुझसे डरने की कोई बात नहीं वे तीनों बोली कि हमें भूख नहीं है। बुढ़िया ने कहा कि जल्दी से खाने की मेज पर आ जाओ। वह तीनों मेज पर बैठ गई।  तीनों लड़कियों ने एक दूसरे को इशारा किया उन्होंने खूब भरपेट खाना खाया। वे तीनों बुढ़िया को देखे जा रही थी। रात को बुढ़िया ने कहा कि जाओ  तुम तीनों को मैंने बिस्तर कर दिया है। तीनों को एक छोटा सा कमरा सोने के लिए दे दिया। रात काफी हो चुकी थी छोटी बेटी को डर के मारे नींद नहीं आ रही थी वह अपनी बहनों  बोली अभी तो बूढ़ी जादूगर ने हमें छोड़ दिया है। सुबह जल्दी से भागने की योजना बनानी चाहिए।  मैनें मां की सारी बातें सुन ली थी। मैंने रात को सोने से पहले ही बैग में कंकड़ पत्थर रख लिए थे। अगर  वे हमें  बीच रास्ते में छोड़ कर आ गए तो कम से कम घर तो पहुंच जाएंगे। मैंने रास्ते में कंकड़ गिरा दिए थे। उनके जरिए हम अपने घर आसानी से पहुंच जाएंगे लेकिन अभी तो  बुढिया  से बचने का उपाय करना चाहिए। रात को तो उसने हमें छोड़ दिया। बुढिया के कमरे में जाकर जायजा लेती हूं। वह चुपचाप बाहर आ गई और रात  बुढिया के कमरे की लाइट चल रही थी। छोटी बेटी गुडडी बुढ़िया दादी के कमरे में आकर बोली क्या दादी मां मैं आपके पास सो  जाऊं? मुझे नींद नहीं आ रही है।  बुढ़िया दादी कहने लगी कि मुझे खाने-पीने का प्रबंध करना है। गुड्डी बोली कि दादी मां आपको खाने का प्रबंध करने की क्या जरूरत है? आज से हम तीनों  आपकी पोतियां हैं। बुजुर्गों की सेवा करना तो हमारा फर्ज है।  गुड्डी बोली दादी मां मैं आपके पैर दबा दूं। वह धीरे-धीरे बूढ़ी दादी के  पैर दबानें लगी। बुढिया दादी को नींद आ गई। इतने दिनों बाद उसकी कोई इस तरह से देख  भाल कर रहा था। बुढ़िया के सिरहानें के नीचे तलवार रखी थी। वह उसने देख ली  पलंग के नीचे गुड्डी ने देखा कि एक लोटा रखा था। वह भी ढका हुआ था। उसने जैसे ही लौटे से ढक्कन उठाया जोर से सायरन बजने लगा। अंदर से बुढा चिल्लाया क्या हुआ? अचानक बुढ़िया बोली अच्छा ठहर तू मुझे उल्लू बनाती है। तू पलंग के नीचे क्या कर रही थी? दादी मां मुझे प्यास लगी थी इसलिए पानी का लोटा उठा रही थी। बुढ़ियाा शांत स्वर से बोली पानी पीना ही था तो मुझे कहती। बुढ़िया ने कहा कि तू बैठ मैं तेरे दादा के कमरे में जाती हूं। वह जल्दी से बूढ़े के कमरे की ओर चली गई। उसने उसे जाते देख लिया था। बढ़िया नें कहा कि तू जा रात बहुत हो गई है अपनी बहनों के पास जाकर  सो जा। गुडडी चुपचाप  कमरे में चली गई थी।  गुडडी ने देखा की बुढ़िया ने  तकिया  उठा कर देखा। उसकी तलवार  सुरक्षित थी। बुढ़िया खुश   उस ने उस की तलवार नहीं उठाई। अपने कमरे में आकर  अपनी बहनों से बोली यह बुढ़िया तो है पर वह दिल कि बुरी नहीं है। हमें इसे प्यार से काबू में लाना होगा। प्यार से मान गई तो ठीक है।

वह अपने कमरे में आकर बहनों को कहने  लगी  कि मैं इस  बुढिया के कमरे में गई थी मैंने उसे मस्का लगा कर उसे दादी कहना शुरू कर दिया। उसके साथ मीठी मीठी बातें करके उसके मन को जीतने की कोशिश की थी। मैंने उसे बुढ़िया दादी कहकर उसके पैर दबाए। वह खुश होकर गहरी नींद में सो गई,। दोनों बहने बोली यहां से कैसे छुटकारा पाया जाए। वह बोली कि जो हमारे भाग्य में होगा वह तो होकर ही रहेगा। डरकर काम नहीं चलाया जा सकता। हम यह सोचना चाहिए कि इससे उनके चुंगल से बचकर हम कैसे अपने घर पहुंच सकते हैं गुड्डी  ने कहा क हम इन दोनों की सेवा करेंगे। वह हमारी सेवा से खुश होकर हमें नहीं मारेगी।  सौतेली मां  के कहर से तो हम यहां पर ठीक ही हैं। सुबह जब वह जागी तो तीनों ने एक दूसरे को काफी तरोताजा महसूस किया। हम भोजन की तलाश में जाएंगे। वह तीनों वहां से भागने की योजना बनाने लगी। वे तीनों बोली कि दादी मां हम कुछ खाने के लिए ले आते हैं। दादी मां ने कहा कि तुम बाहर मत जाना। वह बोली नहीं दादी मां हम दूर नहीं जाएंगे। बुढ़िया बोली तुमने अगर यहां से भागने की कोशिश की तो तुम तुम दिनों नहीं बचेगी,। ,  बुढ़िया आकर बोली कि तुम तीनों यहां से भागने का प्रयत्न कर रही थीं।गुड्डी  बोली  की दादी मां हम भाग नहीं रही थी। हम तो खाने-पीने का प्रबंध करने जा रही थी। आप दोनों भी बूढ़े हो चले चले हैं। हमने सोचा जब तक आप जागेंगे तब तक हम कहीं से खाने का प्रबंध करके आते हैं। बुढ़िया सोचने  लगी कि मैं तो यूं ही डर रही थी। उन्होंने अपने बैग से जंगली कल फूल इकट्ठा किए हुए थे। वह तीनों अंदर आकर बोली कि क्या दादाजी से नहीं मिलवाओगी। वह तीनों की तीनों दादा के पास आकर बोली प्रणाम दादा जी। अपने घर में दादा शब्द सुनकर बुढा हक्का बक्का रह गयाी। वे बोली कि आप बूढ़े हो चले हैं। हम आप की देखभाल करेंगे। हमारा भी इस दुनिया में कोई नहीं है। वह बोली  हमारी सौतेली मां ने हमें घर से निकाल दिया है। बुढ़िया उन तीनों से बोली कि मैं अपना चश्मा तुम्हारे दादा के कमरे में छोड़ कर आ गई हूं। मैं चश्मा लेकर आती हू। गुड्डी बढ़िया के पीछे पीछे  उसकी बातें सुनने गई-खिड़की के पीछे से छिपे उनकी बातें सुनने लगी,।

,  बुढ़िया  बुढे से बोली कि हमें यहां पर आए दस साल हो चुके हैं। वे तीनों आप की पोतिया है। इनकी मां ने इन्हें जंगल में छोड़ दिया है। यह बेचारी कहां जाएंगी? वह भी हमारी तरह गर्दिश की मारी है।  हमारे पास सब कुछ है। लेकिन हमारे पास हमारा अपना परिवार नहीं है। बच्चे तो हमें छोड़कर दूर चले गए। उन्होंने तो हमारी परवाह ही नहीं की। हम मर गए हैं या जिंदा है। बुढ़िया बुढे से कहने लगी कि मुझे आज भी याद है कि उनके दोनों बेटे उनको तीर्थ यात्रा पर ले जाने के लिए तैयार थे। एक दिन उन्होंने अपनी मां बाबूजी को कहा कि मां बाबूजी आप दोनों नहा धोकर तैयार हो जाओ। आपको भी हमारे साथ तीर्थ यात्रा पर निकलना है। आप ही तो कहते हैं कि हमें तीर्थ यात्रा करवाने नहीं ले जाते। चलो आपको चार धाम की यात्रा के लिए ले चलते हैं। चले जा रहे थे गाड़ी घने जंगल से गुजर रही थी। एक ढाबे के पास हम दोनों को चाय पिलाने के लिए बिठा दिया। वेटर को बुला कर अपने आप वहां से चले गए। वे दोनो अपनें बेटों का इंतजार करते रहे मगर बेटे नहीं आए। दोनों  पैदल चलते चलते ना जाने  कंहा पहुंच गए। कितने दिनों अपने बच्चों को कहां-कहां नहीं ढूंढा मगर उनके बच्चे उन्हें लेने नहीं आए।

10 साल तक जब उन्हें कोई लेने नहीं आया तो वह निराश हो  वे  एकांत में जंगल के खंडहर में रहने लगे। आज 10 साल उन्हें यहां रहते रहते हो गए थे। वह खंडहर भी ऐसा था जहां कोई आता जाता नहीं था। वे बाहर जंगल के जंगली कंदमूल फल फल  खा कर गुजारा कर रहे थे। उसी से अपना पेट भर लिया करते  थे

उन्होंने जंगली जीव जंतु के डर से आग जलाना शुरू कर दिया जिससे जंगली जानवरों ने वहां आना छोड़ दिया वह घर के अंदर ही कमरे में ही रहते थे

वह खंडहर ऐसा प्रतीत होता था मानो  वहां भूतों का निवास हो।   खंडहर के निचले भाग में सीढ़ियां थी जो कि अंदर से अंदर नीचे की ओर जाती थी। वहीं पर बूढ़ा और उसकी पत्नी रहा करते थे। वे दोनों जादूगर नहीं  थे। लेकिन  लोगों के डर से वहां पर जादूगर का वेश धारण कर रहते थे। वर्षा हो या आंधी तूफान में भी  उस खंडहर को कभी कुछ नहीं होता था। उन्होंने अपना कमरा इतना साफ सुथरा रखा था कि सब देखते ही रह जाए।  जादूगरनी बोली मुझे वह दिन याद है  जब  एक दिन लकडी लेने  जंगल गए थे तो मैं भी पास ही लकड़ियां और फल इकट्ठे कर ही थी खुदाई करते वक्त हमें सोने की खान का टुकड़ा मिला हमने उसको आज तक संभाल कर रखा है जो कि बुरे वक्त में हमारे काम आएगा। कोई हमसे यह छीन ना ले जाए इसलिए हमें जादूगर का वेश धारण करना पड़ा।  उन्होंनें  मास्क  लगा कर जादूगर बन जाते हैं। लोगों को डराने  के लिए वह  मुखौटा पहनते थे।  दादी बोली यह लड़कियां कितनी भोली भाली है। उन्होंने हमें दादा-दादी कहा है हम  इन्हें पढ़ाई लिखाई  करवाएंगे। हम इनके साथ ही रहेंगे। इन्हे भी सहारा मिल जाएगा और हमारा भी दिल बहल जाया करेगा। छोटी बेटी ने सारी कहानी अपनी बहनों को सुना दी।बुढ़िया जादूगरनी  नहीं हैं।वे दोनों भी हमारी तरह हैं। इनके माता-पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया है। हम उन को अपना भरपूर प्यार  देंगेंऔर यहीं पर रहेंगे। आज  हम अपनी दादी मां पर गुस्सा होने लगे थे। वह बोली दादी मां आप हमारे लिए खाना नहीं बना आओगी। छोटी बेटी बोली दादी मां हम आप लोगों को छोड़कर चले जाएंगे। अच्छा है हमको जंगली जानवर खा जाए तो अच्छा है। यहां पर आकर एक पल को ऐसा लगा कि हमें अपने दादी दादा का प्यार मिल गया है। हमारे ऊपर दादा-दादी का हाथ हमारे पर सदा रहेगा मगर आप तो हमें  डरा देती हैं। हम आप की धमकियों से डरने वाले नहीं। आप हमें चाहे आज तलवार से मार  दो तो हम तीनो डरने वाले नहीं है। हमें पता है कि आप हमें कुछ नहीं करेंगे। हम आपके हाथ से मर भी गए तो क्या हुआ? ऐसे भी तो मर मर कर जी रहे थे। अपनी सौतेली मां के कहर से  तो   बच नहीं सकते थे। पिताजी तो कामकाज के सिलसिले में बाहर ही रहते थे। हमारी  सौतेली मां ने हमें निमंत्रण का बहाना बनाकर हमें रास्ते में जंगल में अकेला छोड़ दिया था। जंगल में भयंकर जंगली जीव जंतु हमें खा जाए ऐसे भी तो हम वहां पर मर ही रहे थे। यहां पर आ कर जाना  कि आप दोनों भी कितने अकेले हैं। और  आप दोनों को देखा तो  पहले तो डर गए। हम ने देखा की आप दिल के बुरे नहीं हैं। आप इतने अच्छे ढंग से हमारा ख्याल रखते हैं रात को बार बार आकर देख जाते हैं कि हमारे ऊपर रजाई है या नहीं।

बुढ़िया दादी भी याद कर के रोने लगी उसके दोनों बेटे उनको विदेश में ले जाने के लिए तैयार थे। एक दिन उन्होंने अपने मां-बाप को कहा मां बापू  आप नहा धोकर तैयार हो जाओ। आपको भी हमारे साथ विदेश जाना है। हम आज रात को ही  तीर्थ यात्रा के लिए निकल जाएंगे। हम एक दिन अपने मामा के पास रुक कर दूसरे दिन यात्रा से वापस आकर तुम दोनों को भी साथ ले जायेंगे।

वे दोनों तीर्थ यात्रा के बहाने हमें एक ढाबे पर छोड़कर सदा सदा के लिए वहां से चले गए। मां बाप अपने बच्चों का इंतजार करते ही रहे मगर वह नहीं आए। गुडी बोली दादी मांआप ऊपर ऊपर से हमें डांटते हो ताकि हम यहां से नहीं जाए। है ना यही बात। वह बोली मैंने दादा जी को आप को कहते सुन लिया था कि यह लड़कियां यहां से कहीं नहीं जानी चाहिए। आप दोनों झूठ मूठ में ही जादूगर बनी बैठी हो। इतना सुनते ही दादी मां की आंखों से आंसू आ गए।

वह कहने लगी कि आज 10 साल हो गए जब यहां आए थे तो ऐसा लगता था कि जैसे कल की बात हो। हमारे दो बेटे थे दोनों को अच्छी शिक्षा दिलाई। दोनों अपने अपने कारोबार व्यस्त हो गए थे। घर में किसी चीज की कमी नहीं थी। सब कुछ था दोनों विदेश जाने के लिए राजी हो गए थे। हमने उन्हें समझाया बेटा विदेश में क्या रखा है? वह कहने लगे कि नहीं हमारा विदेश जाना बहुत जरूरी है। वह हमें कहने लगे कि आप दोनों भी हमारे साथ विदेश चल रहे हो। हमने सोचा जंहा हमारे बेटे रहेंगे हम भी वही चल कर रहेंगे। हमें क्या पता था कि वे दोनों भी हमें कहीं छोड़ देने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने एक दिन हमसे कहा कि मां बाबू हम आपको तीर्थ यात्रा के लिए ले चलते हैं। तीर्थ स्थल की यात्रा के पश्चात वे हमें  एक घने जंगल के बीचों बीच से चलते हुए एक जगह विश्राम स्थल देख कर कहा कि हम यहीं विश्राम करते हैं। हम तो चलते चलते थक गए हैं। उन्होंने कहा कि क्या यहां पानी  मिल सकता है? उन के दोनों बेटों ने उन से कहा हम आपके लिए पानी लेकर अभी वापिस आते हैं। वह हम दोनों को एक ढाबे पर बिठाकर हमें चाय  थमा कर  पानी का बहाना बना कर  गए कि हम अभी पानी लेकर आते हैं हम उनका इंतजार ही करते रहे लेकिन वे आज तक वापस नहीं आए। रास्ते में चलते चलते हमारे पांव दुख गए। रास्ते में हमें गाड़ी में छोड़ गए थे।  हम चलते चलते थक गए। शाम का समय था। तभी हमें एक टूटा फुटा खंडहर दिखाई दिया। यह बिल्कुल वीरान था। हमने पुकारा कोई क्या कोई यहां पर है जो हमारी सहायता करेगा। लेकिन उस घने खंडहर में कौन हमारी सहायता के लिए आता?  रास्ते में जो कोई भी मिलता उसकी भाषा हमें समझ नहीं आती थी। वह मांस खाने वाले लोग थे। हम उन से पिछा  छुड़ा कर भाग  खड़े हुए। बड़े भयंकर वेशभूषा वाले लोगों को देखकर हम खंडहर के अंदर  घुस गए। वहां पर हमें ऐसा लगा वही उन का घर हो। उस खंडहर में कोई भी घुसनें का यत्न नहीं करता  था। उस दिन के बाद हम उस में रहने लगे वहीं कंदमूल फल खाकर अपना गुजारा करने लगे। हमें एहसास हो चुका था कि हमारे बच्चे हमें कभी लेने नहीं आएंगे।

छोटी गुड्डी दादी की कहानी सुनकर रोने लगी। बोली दादी आप की कहानी हमारी कहानी से मिलती है। हमने अपना आपको बांधा। आप हम को अपने हाथों से सजा  दे दो। मैं आपके बिस्तर के नीचे से  तलवार ले कर आती  हूं। आप मेरे हाथों को काट दो। मैं पहले आपकी रस्सी खोलती हूं। उसने तकिए के नीचे से तलवार निकाली और दादी के हाथ में तलवार दे कर कहा  हमारे हाथों को काट दो। दादी बोली मेरी प्यारी प्यारी पोत्तियाँ तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं है। मैं इसलिए तुम्हे बाहर जाने से  रोकती थी कि कोई जंगली जीव जन्तु तुम्हें नुकसान ना पहुंचा सके। तीनों बोली आप अकेले नहीं है।  हम सब मिलकर एक साथ रहेंगे। उसकी दादी मां बोली  पढ़ाई लिखाई के लिए तुम्हें शहर ले जाकर बस जाएंगे। हम तुम तीनों को खूब पढ़ाई लिखाई करवाएंगे। हमारे पास तुम्हारी पढ़ाई लिखाई के लिए बहुत पैसा है। हम एक बार अपने पिता के पास जाकर उन्हें सच्चाई से अवगत कराना चाहती हैं कि हमारी सौतेली मां ने हमारे साथ कितना बुरा बर्ताव किया। हम वादा करते हैं कि हम आपके पास लौट कर जरूर आएंगे फिर आपके साथ चलकर  शहर में रहेंगे।

बूढ़े दादा दादी ने कहा कि बेटा  तुम तीनों पर हमें विश्वास है। दादी बोली तुम्हें अपने घर का रास्ता मालूम है। गुड्डी बोली कि जब मैं घर से चली थी तो रास्ते में एक-एक कंकर रास्ते में फैंकती आई  थी। मुझे बचपन से ही   एक  ही प्रकार के पत्थर इकट्ठा करने का शौक था। मैंने एक ही रंग के निशान  उन पर लगा दिए थे।उन के सहारे  से हमें अपने घर का रास्ता मालूम हो जाएगा। बुढे दादा दादी से आज्ञा लेकर वे तीनों अपने घर चलनें के लिए तैयार हो गई। चलते चलते निशानों की सहायता से  वह अपने घर पहुंच गई। अपने साथ ढेर सारे उपहार भी ले आईं। उसके पिता ने  उन्हें जिंदा देखकर बहुत खुश हुए। एक साल बाद अपनी बेटियों को जिंदा देखकर बहुत खुश हुए। तीनों बेटियों ने अपने पिता को अपनी सौतेली मां की कहानी सुनाई और कहा कि  उन्होंनें  निमंत्रण के बहनें हमें जंगल में छोड़ दिया  था ताकि हम कभी वापस ना आए। उसके पिता अपनी पत्नी के इस व्यवहार से बहुत दुखी हुए।  वे बोले अभी इसी वक्त हमारे घर से चली जाओ। तुमने मेरी बेटियों को घर से निकाला और मुझे आज तक नहीं बताया कि मैंने उन्हें घर से निकाल दिया है। उसकी  सौतेली मां माफी मांगते हुए बोली बेटा मुझे तुम तीनों माफ कर दो। तुम मुझे मेरी गलती की इतनी बड़ी सजा मत दो।  उसके बापू बोले मेरी बेटियों से माफी मांगो। वे तीनों बोली कि बापू हमारी मां को माफ कर दो। हम आपके पास भी नहीं रहेंगे। हम तो अपने दादा-दादी के पास ही रहेंगे। उसके बापू रोते-रोते बोले बेटा नहीं नहीं तुम तीनों कंहीं नहीं  जाएंगी। वह बोली पापा हम तो आपसे मिलकर आपको सच्चाई से अवगत करवाना था। हम तो अपनी दादी दादा के साथ ही रहेंगे। उन्होंने हमें इतना प्यार किया कभी भी आपकी कमी महसूस होने नहीं दी। हम आपसे हाथ जोड़कर विनती करती हैं आप हमें जाने से नहीं रोकेंगे। तीनों की तीनों अपने दादा-दादी के पास लौट आईं। उन्हें वापिस आते देखकर बूढ़े और  बूढ़ी की बुझती चिरागों की रोशनी जगमगा उठी।  पोतियों  के वापस आने की मुस्कान उनके चेहरे से साफ झलक रही थी।

एक छोटे से पहाड़ की तलहटी पर हीरा अपनी माँ रूपा के साथ रहता  था।  हीरा भोली मुस्कान लिए जब अपनी माँ की ओर देखता तो उसे हीरा पे बहुत प्यार आता, और फिर उसकी माँ को पता नहीं क्या सूझता वह उसको डांटने लगती कहती कि जल्दी ही अपना काम किया करो।  समय पर अगर  तुमनें काम नहीं किया तो आज खाना नहीं दिया जाएगा। वह सोचता माँ को ना जाने एकदम क्या हो जाता है एक पल में मां दयावान बन जाती है। थोड़ी देर में ना जाने क्या हो जाता है।? कई बार माँ को पूछने का जतन करता लेकिन कभी सफल नहीं होता था। इसी तरह दिन गुज़रते रहे। हीरा माँ को कहता माँ मेरे पिता कहां है? उसकी माँ कहती तुम्हारे पिता हमें छोड़ कर चले गए हैं। तुम आगे से अपने पिता के बारे में कभी भी कोई भी सवाल मुझसे मत पूछना। तुम्हारे पिता को बड़ा बनने की चाह नें  और अंहकार नें मार डाला। इन्सान बड़ा बनकर अपने सगे संबंधियों को भूल जाता है। बेटा इतना याद रखना हम जैसे भी हैं ठीक है। कभी भी बहुत बड़ा इंसान बनने की चेष्टा मत करना वर्ना तुम भी अपने पिता की तरह बन जाओगे। हीरा अपनी माँ की बातें ध्यान से सुनता था।

उसकी माँ जंगल में पशुओं को चराने जाती थी। थोड़ा बहुत जो कमाई होती उसी से घर चलाती। पर अक्सर हीरा की भूख शांत नहीँ हो पाती थी। उसे पानी पी कर ही गुज़ारा करना पड़ता । गाँव मे हीरा के कुछ दोस्त थे।  उसके सभी  दोस्त  स्कूल पढ़ने जाते थे।  वे उस से कहते कि हम तो स्कूल पढ़ने जाते हैं तुम भी हमारे साथ पाठशाला चला करो।  वह कहता कि मेरी माँ कहती है कि हमें पढ़ना लिखना नहीं चाहिए। पढ़ना लिखना बहुत बुरी बात होती है। इंसान पढ लिख कर बड़ा बनकर अपनों को भूल जाता है। उसकी माँ तो अनपढ़ थी। शायद इसीलिए ही उसके पति ने उसे छोड़ दिया था। वह पढ़ाई को बहुत ही बुरा समझती थी वह अपने बेटे को स्कूल जाने से कोसों दूर रखती थी। उस मासूम को तो विद्यालय जाने का मतलब भी पता नहीं था।

उसकी मां पशुओं को चराने के पश्चात आकर घर से 5 किलोमीटर की दूरी पर एक साहुकार के यहाँ थोड़ा बहुत मज़दूरी का काम भी करती थी। वह जो कमाती, उसका मालिक  जो कुछ देता वह उसी से गुजारा करती। वह इसी में अपने बेटे के साथ खुश थी। घर पर आकर घर का काम करने के पश्चात थोड़ी देर अपनें बेटे के साथ समय समय व्यतीत करती थी। उसे अच्छी-अच्छी बातें सिखाती थी।

एक दिन उसका दोस्त पंकज उस से मिला। पंकज उस से बोला तुम भी मेरे साथ पढ़ने चला करो। स्कूल में पढ़ाई करने में बहुत ही मज़ा आता है। स्कूल में अच्छी-अच्छी बातें सिखाई जाती है। स्कूल में अच्छी बातों के साथ  दोपहर को हर बच्चे को भोजन भी  खानें को  दिया जाता है। बच्चों के मनपसंद खेल भी खिलाए जाते हैं। ड्राइंग करने को भी मिलती है। प्यार से  सभी अध्यापक अध्यापिकाएं हमें पढ़ाते हैं। पेट भर भोजन मिलता है! यह सुन कर  हीरा के मुँह में पानी आ गया। उसकी माँ उसे भर पेट खाना नही दे पाती थी। उसकी भूख कभी शांत नहीं हो पाती थी। ं हीरा बोला अब तो  मुझे भी स्कूल जाने का कोई उपाय सोचना ही पड़ेगा। कम से कम खाना तो मिल ही जायेगा।

हीरा अपने दोस्त को बोला तो कल मैं भी तुम्हारे साथ स्कूल चलूंगा। वहां देखूँगा कि तुम क्या क्या सीखते हो? हीरा ने अपनी माँ को कहा माँ  मैं पंकज के साथ खेलने जा रहा हूं। वह अपनी मां को बताता कि वह पंकज के  स्कूल जा रहा है तो उसकी माँ उसे कभी भी स्कूल नहीं भेजती। वह जल्दी से तैयार होकर पंकज के साथ विद्यालय चला गया। रास्ते में चलते चलते पंकज बोला हमें  समय पर स्कूल आना पड़ता है। स्कूल में काम समय पर करना पड़ता है।

मुझे पहले स्कूल का मतलब ही पता नहीं।  पाठशाला या  स्कूल क्या होता है?  हीरा अपनें दोस्त पंकज से बोला, जिस प्रकार हम घर में रहते हैं उसे  गृहालय  या आवास स्थान कहते हैं।  जहां पर हम रहते हैं और आलय का मतलब होता है स्थान या आवास स्थान। ज्ञान या पाठ का मतलब होता है ज्ञान प्राप्त करना है। शिक्षा ग्रहण करने का स्थान यही विद्यालय होता है। यही स्कूल होता है। जहां अच्छी अच्छी बातें सिखाई जाती है।

ये तो हमारी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा है।

हीरा हैरान हो कर बोला, यह दैनिक दिनचर्या क्या होती है? दैनिक दिनचर्या जो काम तुम प्रतिदिन सुबह उठकर करते हो जैसे सुबह उठकर शौच जाना दातुन करना नहाना, भोजन करना, अथवा प्रतिदिन जो काम हम करते हैं यह सब कार्य दैनिक दिनचर्या में आते हैं । तुम पशुओं को जंगल में चराने ले जाते  हो। जहां पशु चराए जातें हैं उसे चरागाह कहतें हैं। सुबह जब उठते हो प्रातः काल का समय होता है।  हमें सूर्य निकलने से पहले उठना  चाहिए। थोड़ा  दूर चले ही थे कि माँ ने उसे आवाज़ दे के वापस बुला लिया। उसे किसी काम के लिए हीरा की मदद की आवश्यकता पड़ी थी। हीरा उस दिन स्कूल नहीं जा पाया पर उसके मन मे एक दिन विद्यालय जाने की इच्छा घर कर गई। कोई बात नहीं मैं कल तुम्हारे साथ विद्यालय ज़रूर जाऊँगा।

अगले ही  दिन फिर बिना अपनी माँ को बताए पंकज के स्कूल में जाने के  लिए तैयार हो गया। वह बोला माँ आज मैं अपने एक दोस्त के घर जा रहा हूँ।जल्दी ही आ जाऊंगा। उसकी माँ बोली बेटा जल्दी आ जाना मैं भी काम पर जा रही हूं। उसकी माँ अपने बेटे को यह  कहकर काम पर चली गई। हीरा अपनें दोस्त के साथ स्कूल में पहुंच गया था। स्कूल में पहुंचकर उसे बहुत ही अच्छा लगा। सभी बच्चे लाइनें बनाकर प्रार्थना के लिए जा रहे थे। उनकी मुख्याध्यापिका ने आकर बच्चों को बड़े ही प्यार से शुभ प्रातः कहकर संबोधित किया। बच्चों ने भी शुभ प्रातः कर एक दूसरे का अभिवादन किया। बच्चों ने प्रार्थना में किसी न किसी विषय पर कुछ ना कुछ बोला। विषय समाप्त होने पर बच्चों ने तालियां बजाई। उसे बड़ा ही अच्छा लग रहा था

स्कूल में उस दिन एक बच्चे का जन्मदिन था। उस दिन उस बच्चे ने स्कूल में टौफियां और  मिठाई  बांटी। सभी बच्चों ने तालियां बजाई। उस बच्चे की अध्यापिका ने उसके सिर पर हाथ रख कर उसे आशीर्वाद दिया। बेटा तुम पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बनना। सच्चाई के रास्ते पर चलना। पंकज नें भी उस बच्चे के लिए तालियां बजाई।

मुख्य अध्यापिका जी ने कहा कि तुम्हारा जीवन हर दिन ख़ुशियाँ ले कर आए।

हीरा को  स्कूल आ कर बड़ा ही अच्छा लग रहा था। वह पंकज से बोला मेरी माँ ने मेरा जन्मदिन कभी भी नहीं मनाया। मुझे तो यह भी पता नहीं है कि मैं कब पैदा हुआ था। मेरी माँ कहती है कि बड़ा आदमी कभी मत बनना और अध्यापिका कहती हैं कि पढ लिख कर  बडा आदमी बनना। मैं अपनी माँ से पूछ कर ही रहूंगा  मेरा जन्म दिन वह क्यों नहीं मनाती। आधी छुट्टी के समय सभी बच्चों को भोजन वितरण किया गया। उसे  भी बड़ा अच्छा लगा। आधी छुट्टी के पश्चात ड्राइंग की क्लास थी। बच्चों की मैडम नें सब बच्चों की उपस्थिति लगाई। पर उनका ध्यान हीरा पर नहीं गया। उस दिन स्कूल में ड्रॉइंग कंपटीशन था। कॉम्पिटिशन में भाग लेंनें के लिए बच्चे अलग-अलग स्कूलों से आए थे।

एक मैडम की नज़र हीरा पर पड़ी तो मैडम बोली बेटा तुम्हारी ड्राइंग नोटबुक कहां  है? पंकज बोला वह अपनी कौपी और रंग आज घर पर ही भूल गया है। मैडम को तो पता ही नहीं चला कि वह उनके स्कूल का बच्चा नहीं  है। वह किसी दूसरे स्कूल से ड्राइंग  कंपटीशन  में भाग लेने के लिए आया होगा। मैडम ने मुस्कुराते हुए कहा के कोई बात नहीं बेटा में अभी तुम्हें ड्राइंग की कॉपी और रंग उपलब्ध करवाती हूँ। रंग और कॉपी मिलते ही वह खुशी-खुशी से ड्राइंग बनाने लगा। उसने जंगल में उगते हुए सूर्य और चरागाह को दिखाया था। मैडम नें घोषणा कि  अगले सोमवार को जिन बच्चों का सबसे अच्छा चित्र होगा उसे ईनाम दिया जाएगा। सभी बच्चे वर्दी डालकर आना। अगले  कालांश में दूसरी अध्यापिका आई। पंकज नें कहा वह विज्ञान की अध्यापिका  है। वह बच्चों को बड़े ही प्यार से पढ़ा रही थी। विज्ञान की अध्यापिका ने बच्चों को  बहुत से जानकरियांं दी। सफाई स्वछता से संबंधित और गंदगी से होने वाली आम बीमारियों और उन के इलाज से संबंधित। यह सब जान कर हीरा बहुत ही हैरान था। उसकी माँ उसे  सारी अच्छी बातें सिखाती थी पर ये सब तो उसे मालूम ही नहीं था।

विद्यालय में आधी छुट्टी के समय सब बच्चे एक पंक्ति बना  के भोजन करने गए।

वहाँ एक कमरे में से एक मेज़ पर भोजन के बर्तन ढक के रखे हुए थे। हीरा को खाने की एसी खुश्बू आ रही थी कि उसके मुँह में पानी भर आया। उसका मन कर रहा था कि भाग के जाए और सीधा बर्तन में से अभी खाना शुरू कर दे। पर सब को देख के वह चुपचाप पंक्ति में चलता रहा। सब बच्चों ने एक कोने में अपने जूते उत्तर के रखे और पास में लगे नल से पानी ले कर साबुन से हाथ साफ किये। हीरा को विज्ञान की मैडम की बात याद आई के भोजन करने से पहले हाथ साफ करने चाहिए नहीं तो बीमार हो सकते हैं। सब हाथ धो के भोजन करने बैठे। आज पहली बार हीरा ने भर पेट भोजन किया था। सब्ज़ी दाल चावल और रोटी। हीरा बहुत खुश था। आज से मैं भी रोज़ स्कूल आऊंगा। चाहे कुछ भी हो जाये। माँ से मुझे झूठ ही क्यों ना कहना पड़े।

भोजन करने के बाद सब ने अपनी अपनी थाली और गिलास उठाये और धो के एक जगह रख दिये। खाने के बर्तन साफ रखने चाहिए पंकज ने कहा। साफ भोजन करने और साफ पानी पीने से हम बीमारियों से बचे रहते हैं। मैडम ने बताया था याद है ना? हीरा ने मुस्कुराते हुए सर हिलाया। फिर सब बच्चे खेल कूद में व्यस्त हो गए।

थोड़ी देर बाद सभी बच्चे अपनी अपनी कक्षाओं में लौट गए।

छुट्टी के वक्त हीरा  ने अपने कदम घर की ओर बढ़ाए। उसे स्कूल में आज बहुत ही अच्छी बातें सिखाई गई थी। गणित, विज्ञान, इतिहास और सबसे रोचक तो उसे अंग्रेजी भाषा  लगी।

घर आ कर वह बहुत ही खुश था। माँ के आने से पहले ही वह वापस घर आ गया था। पता नहीं कब बिस्तर पे गिरते ही उसे गेहरी नींद आ गई। रात को भोजन करते हुए उस ने माँ से पूछा माँ मेरा जन्मदिन कब आता है? आज पड़ोस में एक लड़के का जन्मदिन था मेरा कब आता है माँ? मैं भी सबको मिठाई बांटूंगा। माँ ने झल्ला के कहा मुझे याद नहीं। तांग मत कर जा, जा के सो जा। हीरा उदास हो के सो गया। उसकी माँ ने  सोचा, बेचारा मेरा बेटा, मेने बेकार ही उसे डांट दिया।

सुबह जब हीरा उठा तो माँ ने उसके लिए आटे का हलवा बना के रखा था। उसने हीरा से कहा कि आज से हम हर वर्ष तेरा जन्मदिन आज के दिन ही मनाएंगे। हीरा ने माँ के गले से लग के धन्यवाद दिया और माज़े से हलवा खाया।  हीरा अपनी मां से बोला में खेलने जा रहा हूँ देर से आऊंगा। आप काम पे चली जाना कह कर वह अपने दोस्त से मिलने भाग गया।

अब तो हीरा को  पढ़ने में बहुत ही मज़ा आने लगा था। उसकी माँ जब उसे जंगल में चलने के लिए कहती तो वह कहता माँ आज मेरी तबियत ठीक नहीं है। सिर में दर्द है। बहाने करता रहता। माँ को बिना बताए ही स्कूल जाने लगा अपने मित्र से किताबें उधार ले कर घर मे भी पढ़ने का अभ्यास करता था।

एक दिन स्कूल में शाम को मैडम ने सभी को कहा था कि अपना अपना बैग और ड्रेस साफ सुथरा लाना है। जो बच्चे वर्दी नहीं पहन के आएंगे उन्हें कक्षा में आने नहीं दिया जाएगा। उसके पास तो वर्दी भी नहीं थी। स्कूल से लौटते समय वह अपने दोस्त पंकज के साथ एक दुकान पर रुका क्योंकि उसके दोस्त नें  वहां अपनी वर्दी सिलवानें के लिए दी थी। पंकज ने अपनी वर्दी  दीवान चंद से खरीदी थी। गांव में दीवान चंद की दुकान बहुत ही मशहूर थी। दीवान चंद तो वहां पर रहते नहीं थे। वह तो सिर्फ बच्चों की स्कूलों की वर्दी बेचने के लिए कभी-कभी गांव आते थे।  उन्होंने गांव में एक ही बहुत ही बढ़िया दुकान खोली थी। पंकज ने अपनी वर्दी देखी। हीरा बोला अंकल आप मुझे भी वर्दी दिखाइए, मेरे नाप की।

दुकानदार दीवान चंद बोले  मेरे पास एक बच्चे नें वर्दी सिलवाने के लिए  दी है। उसके पिता का स्थानांतरण हो गया है। वह अब वर्दी नहीं लेगा। यह वर्दी पहन कर तो देखो। हीरा नें जब वह वर्दी पहन कर देखी उसे वह पूरी थी। लेकिन कमीज की बांजुएं थोड़ी लंबी थी। दुकानदार बोला  कल  तुम्हें वर्दी मिल जाएगी। हीरा बोला पहले मैं अपनी माँ से पूछ कर बताऊंगा।

रात को उसने माँ से पूछा कि माँ क्या मुझे थोड़े पैसे दे दोगी? तुझे पैसे की क्या ज़रूरत आ पड़ी? माँ ने हैरान हो के पूछा। हीरा ने माँ से कहा कि उसे खेलने के लिए नई गेंद लेनी है। माँ  ने उसे कुछ पैसे दिए पर वह तो उसकी स्कूल की वर्दी लेने के लिए बहुत कम थे।

अब क्या करे? हीरा ने सोचा।

वह दीवान चांद जी की दुकान में गया और वर्दी देखी। उस समय दीवानचंद वहां नही थे, दुकान पे उनके नौकर ही थे। हीरा को स्कूल की वर्दी पहने की इतनी ईच्छा थी के उसने उसे चुराने का निर्णय कर लिया।

उसने देखा, उस दिन दुकान में काफी भीड़ थी। बहुत से बच्चों के माता पिता उनके लिए वर्दी लेने आये थे । हीरा भी एक दंपति के पास जा के बैठ गया। उस ने धीरे से नौकर से वो वर्दी लाने को कहा। नौकर ने सोचा कि पास बैठे दंपत्ति ही उसके माता पिता हैं। जब सब नौकर थोड़ा व्यसत हो गए तो चुपके से हीरा ने वो वर्दी एक झोले में छिपा दी। उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। उसने दुकान के एक कर्मचारी से पीने के लिए पानी मांगा, जैसे ही वो पानी लाने गया हीरा वहां से चुपके से बाहर निकल गया। फिर वहां से उसने बहुत तेज़ दौड़ लगाई। उल्टी सीधी गलियों से होता हुआ वह सीधा अपने घर आ के ही रुका। घर के अंदर जाते ही उसने जल्दी से दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। उसकी माँ अभी वापस नही लौटी थी। उसने जल्दी से वर्दी झोले  से बाहर निकाली। उसे अब भी विश्वास नहीं  हो रहा था कि अब उसके पास भी स्कूल की वर्दी है। अब वह भी रोज़ वर्दी पहन के स्कूल जाने लगा।

कुछ समय में ही उसने थोड़ा थोड़ा पढ़ना लिखना भी सीख लिया था। हीरा बहुत ही होनहार चैत्र था,  वह गणित के सवाल भी असानी से हल कर लेता था। उसे नोटों  के बारे में काफी जानकारी  हो गई थी। वह घर में नोटों को उल्टपल्ट कर देखा करता था। बीच बीच में पंकज  के साथ स्कूल चला जाता था।

एक दिन  हीरा की मां जब काम पर से वापस आई तो हीरा  को घर पर ना पाकर उदास हो गई। वह बीमार होने की वजह से जल्दी ही घर वापस आ गई। । वह तो हर रोज उसकी अनुपस्थिति में स्कूल चला जाता  था।

 जब काफी देर तक हीरा घर नहीं आया तो वह उसके  दोस्त पंकज के घर गई। और पंकज की  मां ने दरवाजा खोला। हीरा की माँ बोली मेरा बेटा तुम्हारे घर तो नहीं आया। पंकज की माँ बोली आप का बेटा तो मेरे बेटे के साथ स्कूल गया है। वह कहने लगी

मेरा  बेटा तो स्कूल में नहीं पढ़ता है। उसकी माँ को विश्वास नहीं हुआ। हीरा की माँ को क्या पता होगा? वह तो मुझे से पूछ कर गया था। अपने आप पता करूंगी। वह ठीक ही कह रही है या गलत। आज  जल्दी में उसके  साथ  स्कूल चला गया होगा। उसे कहना होगा कि पंकज के साथ मत रहा कर। वह कभी भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहती थी। इसी कारण  उसने  पढ़ाई नहीं   की।

काफी दिन तक उसकी माँ बीमार रही। उसे तेज़ बुखार था और पेट मे भी दर्द था।घर में

हीरा  ने देखा कि रसोई में माँ ने जिस कपड़े में रोटियां  लपेटी थी वह कई दिन से साफ नहीं किया गया था। उसने रोटी लपेटने के कपड़े को साफ कर दिया। पानी पीने के लिए उसने एक तार को मोड़ कर गिलास के चारो और लपेट कर उस की हत्थी बना दी थी। गिलास के चारों ओर तार लपेट दी थी। उसको पानी की बाल्टी में पीने के लिए प्रयोग किया। उसने वह बाल्टी  साफ करके उसको ऊपर से ढक दिया। घर को  भी साफ कर रख दिया।

उसकी मां को  डिहाइड्रेशन हो गया था।  दस्त लग जाने के कारण उसके शरीर में पानी और नमक की कमी हो गई थी।

उसकी मां बोली बेटा तुम मेरे मालिक के पास जाकर मेरी पगार ले कर आना। मुझे दवाइयाँ लानी है। वह अपने मित्र पंकज के साथ साहुकार के यहां गया जहाँ उसकी माँ काम करती थी। उसकी माँ नें कागज़ की एक पर्ची दे कर कहा था कि उसे इतने रुपए मिलते हैं। उसके मालिक ने उसे 300 रुपये थमाते हुए उसे एक काग़ज़ पर हस्ताक्षर करने को कहा। हीरा ने देखा उस पे दी गई रकम 800 रुपये लिखी थी। उसकी इस करतूत को देख कर हीरा साहुकार को बोला  मेरी माँ को आप  ₹300 दे कर 800रु की जगह पर हस्ताक्षर करवाते हो। मेरी मां पढी लिखी नहीं है।  मेरी मां दिन-रात मेहनत करके कमाती है आप उन्हें कम पगार देते हैं।  शेष राशि को आप अपनी जेब में डाल देते हैं क्या? उनको 800रु की जगह पर 300रु  ही देते हो। हीरा  पंकज से बोला मेरी मां की  पर्ची पर आठ सौ ही लिखा है न, तुम देख के बताओ। पंकज बोला हां दोस्त यह 800रू ही है। साहूकार ने  हीरा को कहा के गलती से गलत पढ़ लिया होगा। और हीरा को 800 रुपये दे दिए।

आज मेरी मां पढ़ी-लिखी होती तो हमें यह दिन नहीं देखना पड़ता। माँ मुझे  भी स्कूल न भेज कर मेरा भी नुकसान कर रही है। उसे आज समझ आ गया कि पढ़ना लिखना जरूरी होता है।

घर आ कर उसने अपनी माँ को  ओ आर एस का घोल अपने हाथ से बना कर दिया। 1 लीटर पानी को ठंडा कर उसको बनाकर घोल बनाया।  मां की हालत पहले से बेहतर हो गई थी। उसकी मां बोली बेटा तुमने यह कहां से सीखा। तुम्हें यह घोल बनाना किस से सीखा। मां आप ने  एक दिन मुझ से कहा था कि  हमें पढ़ना  लिखना नहीं चाहिए। आप  कितना गल्त थी। यह मैनें स्कूल जा कर जाना।  मैं अगर स्कूल नहीं गया  होता तो मैं यह सब कहां सीखता?आज आपको एक बात बताता हूं पढ़ना लिखना सबके लिए जरूरी होता है आज मैंने यह जाना। जहां पर आप काम करती है उसका मालिक आपको ₹800  आप की पगार के देता है लेकिन आपको ₹800 के बदले वह ₹300 ही देता है। ₹500 अपनी जेब में डाल देता है आप अनपढ़ होने के कारण यह बात नहीं समझ सकती हो। वह आप का फायदा उठाता है। यह सारी बातें मैंने स्कूल में सीखी। हां ‘मैंने भी एक गलत काम किया है। स्कूल जाने के लालच में  एक सेठ जी की दुकान से वर्दी चुरा ली।मां मुझे माफ कर दो।

उसकी मां बोली मुझे नहीं पता था कि पढ़ना लिखना जरूरी होता है। मैं तुम्हें इसलिए पढ़ाना नहीं चाहती थी कि तुम वहां पर जाकर अपने पिता की तरह बन जाओगे। तुम्हारे पिता ने मुझे इसलिए छोड़ दिया कि उन्हें ज्यादा रुपए का लालच हो गया था। शायद मेरे अनपढ़ होनें के कारण। मुझे तो यही लगा कि उन्हें धन पा कर घमंड हो गया था। बेटा मैं भी तुम्हें पढ़ाऊंगी पर एक बात का ध्यान रखना अपने पिता की तरह मुझे छोड़कर ना जाना। मैं तुम्हें स्कूल अवश्य भेजूंगी। तूने तो घर की काया ही पलट दी।

इतनी अच्छी अच्छी बातें स्कूल में सिखाई जाती है यह मैंनें तुम से जाना। सबसे पहले तुम कसम खाओ कि तू उस दुकानदार की वर्दी वापस करके आएगा। । मैं तुझे वर्दी दिलवाने का प्रयत्न करूंगी।

पंकज दौड़ता दौड़ता आया दोस्त तुम्हारी ड्राइंग तो सबसे अच्छी थी। मैडम ने तुम्हें स्कूल में बुलाया है। तुम्हें स्कूल में पारितोषिक वितरण किया जाएगा। स्कूल  वालों नें  तुम्हें इनाम देने की घोषणा की है।

स्कूल में हीरा  की मां  पंहुच गई थी। वह स्कूल पंहुच कर औफिस के पास जा कर खड़ी हो गई। चौकीदार नें उसे अन्दर जाते देख लिया था वहीं बोला आप बिना इजाजत के अन्दर नहीं जा सकती। स्कूल कीअध्यापिकाओं नें उससे वहाँ आने का कारण पूछा।वह बोली मैं आप सभी को धन्यवाद देना चाहती हूं। मैं आप के स्कूल की मुख्याध्यापिका जी से मिलना चाहती हूं जिन की वजह से आज मेरा बेटा कुछ पढना लिखना सीखा गया है। वे उसे अन्दर ले कर गई।  हीरा  की मां बोली पर मेरे बेटे नें एक गल्त काम किया है। मेरा बेटा कभी भी किसी की चोरी नहीं करता लेकिन उसने यह लालच में कर डाला। मुख्याध्यापिका जी नें उसे बिठाया। ठन्डा पानी पीनें को दिया। मैडम नें कहा तुम्हारे बेटे का नाम क्या है।? वह बोली मेरे बेटे का नाम हीरा है। मैडम ने एक बच्चे को कागज़ का पर्चा थमा कर हीरा को बुलाने के लिए कहा। चपरासी नें आ कर कहा कि हीरा नाम का कोई भी बच्चा यहां नहीं पढ़ाता। मुख्याध्यापिका जी बोली इस नाम का कोई भी बच्चा यहां नहीं पढ़ाता। हीरा की मां बोली आप के स्कूल में पंकज चौथी कक्षा का छात्र है। उसके साथ स्कूल आ जाता था। मैंनें ही उसे पढ़नें से रोका था। घर में कूड़ा कचरा फैलाने वाला मेरा बेटा समझदार बन गया। यहां तक के उसने मुझे एहसास दिलाया कि पढ़ना लिखना सभी वर्ग के लोंगो के लिए जरुरी होता है।

पढ़ा लिखा इन्सान कभी भी जीवन में किसी के आगे धोखा नहीं खा सकता। मेरे बेटे को भी कुछ लिखना पढ़ना नहीं आता था।वह पंकज के साथ दो तीन महीने  से चुपके से स्कूल में आ रहा है। उस के साथ आ कर बहुत कुछ पढ लेता है। एक दिन जब मैं बीमारी की वजह से जल्दी घर पहुंची तो मुझे पता चला कि वह तो पंकज के साथ स्कूल जाता है। उसने मुझे बीमारी से ठीक किया। ये सब उसने स्कूल में ही सीखा है। मैंने उसे स्कूल न जानें की कसम दी थी आज मैं वह अपनी कसम तोड़ने आई हूं। आज मैं उसे स्कूल में दाखिल करवाने भी आई हूँ। मेरे बेटे नें आज एक साहुकार की दुकान से वर्दी चोरी की। वह आज आप के स्कूल में पहन कर आना चाहता था लेकिन अपनी ग़लती के कारण वह आज मेरे साथ स्कूल नहीं आया। स्कूल के अध्यापक अध्यापिकांएं हैरान हो कर उस बच्चे की कहानी सुन रहीं थी। पंकज आ कर बोला मेरा दोस्त मेरे साथ स्कूल आया है। लेकिन वह बाहर ही खड़ा है कह रहा है कि मैं स्कूल जानें योग्य नहीं हूं। मैंनें अपनी मां के साथ विश्वासघात किया है। उस दुकानदार को जब पता चलेगा तो वह भी मुझे चोर समझेगा। मुख्याध्यापिका जी  नें हीरा को अपने पास बुला कर कहा कि कौन कहता है कि तुमनें चोरी की है? चोरी कर के जो अपनी गलती स्वीकार कर लेता है वह तो अच्छा इन्सान होता है। हमें नहीं पता था कि तुम तो पढ़ाई के लिए यह सब कर रहे थे। हम तुम्हे अपने विद्यालय में प्रवेश देतें हैं।

हीरा की मां जब सेठ जी की दुकान  के पास वर्दी लौटानें गई तो सेठ जी को बोली मेरे बेटे नें पढाई करनें के लालच में आप की दुकान से चोरी की। आप नें उसके दोस्त पंकज को वर्दी दिखाई। उसने वह वर्दी पहन कर देखी थी। उसे लालच आ गया था। मैने उसे कभी स्कूल न भेजने का निर्णय किया था मगर उस बच्चे ने मुझे भी शिक्षा दे कर मुझे शिक्षा का महत्व क्या होता है सिखा दिया। साहुकार दिवानचन्द ने हीरा की माँ की ईमानदारी से प्रसन्न ही नही हुए बल्कि उस के बच्चे के नेक विचारों से भी खुश होकर बोले आप का बेटा पढ़ाई करनें के लिए कितना इच्छुक है और एक मेरा बेटा है वह कभी स्कूल जाना ही नहीं चाहता। अपनी तरफ से मैं भी उसे उस की ईमानदारी के लिए उसे वह वर्दी  ईनाम के तौर पर देता हूं। उस की पढ़ाई के लिए में भी उस के स्कूल आ कर उस को कौपियां किताबें उपलब्ध करवाऊंगा।  मैडम नें उसे अच्छी चित्रकारी करने पर रंग और  ड्राइंग की कॉपी भी ईनाम में दी। स्कूल जा कर हीरा एक अच्छा बच्चा बन गया था। पढ लिख कर एक दिन  हीरा नें अपनी माँ को सभी खुशियां दी।

ा बोली मुझे उस दिन की याद है जब आप लकडी लेने जंगल गए थे मैं भी पास ही रख लिया और पर इकट्ठा कर रही थी खुदाई करते वक्त हमें सोने की खान का टुकड़ा मिला हमने उसको आज तक संभाल कर रखा है जो कि हमारे बुरे वक्त में हमारे काम आएगा कोई हमसे या छीन कर नहीं ले जाएगा इसलिए हमें जादू का काव्य स्थान करना पड़ा यह लड़कियां कितनी भोली भाली है उन्होंने हमें दादा दादी का है मैंने पढ़ाई के लिए खाएंगे और इन्हें और इनके साथ रहेंगे इन्हे भी सहारा मिल जाएगा और हमारा भी जी बहल जाया करेगा बेटी ने सारी कहानियां अपनी बहनों को सुना दी यह बुढ़िया बुढ़िया दूगड़ नहीं है यह दोनों भी हमारी तरह है इनके माता-पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया है हम इन्हें भी अपना भरपूर प्यार देंगे इनकी खूबसूरत करेंगे और यही रहेंगे आज हम अपनी गुड्डी जल से अंदर आई और वह बूढ़ी दादी पर गुस्सा होकर कहने लगी बोली दादी मां आप हमारे लिए खाना नहीं बनाओगी छोटी बेटी बोली दादी मां हम आप लोगों को छोड़कर चले जाएंगे अच्छा है हमको जंगली जानवर खा जाए तो अच्छा है यहां पर आकर एक पल को ऐसा लगा कि हमें हमारे दादी दादा का प्यार मिल गया है हमारे सिर पर हमारे दादा दादी का साया रहेगा मगर आप तो हमें धमकी देती हैं हम आप की धमकियों से नहीं डरने वाले आप चाहे हमें आज तलवार से मार भी दो तो हम तीनों डरने वाले नहीं हैं हमें पता है कि आप हमें कुछ नहीं करेंगे हम आपके हाथ से मर भी गए तो क्या वैसे भी तो हम मर मर कर जी रहे थे अपनी सौतेली मां के कहर से पिताजी दो कामकाज के सिलसिले में सदा ही बाहर रहते हैं हमारी सौतेली मां ने हमें निमंत्रण का बहाना बनाकर हमें रास्ते में जंगल में अकेला छोड़ दिया था कि जंगल में भयंकर जंगली जीव जंतु हमें ख्वाजा हसन अभी तो हम मर ही रहे थे यहां पर आकर हमने जब आप दोनों को देखा तो सोचा की आप दिल के बुरे नहीं हैं आप इतने अच्छे ढंग से हमारा ख्याल रखते हो रात को उठ उठ कर बार-बार देख जाते हो कि हमारे ऊपर रजाई है या नहीं ऊपर ऊपर से हमें डांटने का दिखावा करते हो ताकि हम यहां से नहीं जाए है ना यही बात मैंने आप दोनों को कहते सुन लिया था कि यह लड़कियां यहां से कहीं नहीं जानी चाहिए आप दोनों झूठ मूठ में ही जादूगर बने बैठे हो इतना सुनते ही दादी मां की आंखों में आंसू आ गए वह कर ले गए कि आज 10 साल हो गए जब हम यहां आए थे तो ऐसा लगता था जैसे कल ही की बात हो हमारे दो बेटे थे दोनों को अच्छी शिक्षा दिलाई दोनों अपने अपने कारोबार में व्यस्त हो गए थे घर में किसी चीज की कमी नहीं थी सब कुछ था दोनों विदेश जाने के लिए राजी हो गए हमने उन्हें समझाया बेटा विदेश में क्या रखा है वह कहने लगी नहीं कि हमारा देश जाना बहुत झूठ भी हमें कहने लगी कि आप दोनों भी हमारे साथ देश चल रहे हो हमने सोचा जा हमारे बेटे रहेंगे हम भी वही चल कर रहेंगे ताकि वे दोनों भी हमें कहीं छोड़ देने की योजना बना रहे हैं उन्होंने एक दिन हमसे कहा कि मां बापू हम आपको तीर्थ स्थल की यात्रा के लिए ले चलते हैं दो-तीन तीर्थ स्थलों की यात्रा के पश्चात एक घने जंगल के बीचो बीच उन्होंने हमसे कहा कि हम यहीं विश्राम करते हैं हम चलते चलते थक गए थे हमने उन्हें कहा कि क्या यहां पानी मिल सकता है उन दोनों ने कहा कि क्यों नहीं हम आपके लिए पानी लेकर अभी वापस आते हैं हम दोनों उनका इंतजार करते ही रहेगी वह वापस नहीं आ रास्ते में चलते चलते हमारे पास 2 गए रास्ते में हमें गाड़ी में छोड़ गए थे हम जब लोग को पार करते जा रहे थे तभी हम एक टूटा फुटा खंडहर दिखाई दिया यह बिल्कुल विरान था हमने पुकारा क्या कोई है जो हमारी सहायता करेगा लेकिन इस युवरानी सुनसान खंडहर में कौन है हमारी सहायता करने आता लेकिन इस बिरानी सुनसान खंडहर में कौन हमारी सहायता करने आता रास्ते में जो कोई मिलता उसकी भाषा हमें समझ नहीं आती थी वह मांस खाने वाले हमें मां से काफी नफरत थी हमें नहीं छोड़ कर आगे बढ़े भयंकर वेशभूषा वाले लाखों लोगों को देखकर हम खंडहर के अंदर छिपे हमें ऐसा लगा जैसे वह डाकू हो उस दिन के बाद हम इस खंडहर में रहने लगे यही कंदमूल फल खाकर अपना गुजारा करने लगे हमें एहसास हो चुका था कि हमारे बच्चे हमें कभी लेने नहीं आएंगे छोटी बेटी दादी की कहानी सुनकर रोने लगी वे तीनों बोली दादी मां आप की कहानी हमारी कहानी से आप इन्हीं हाथों से हमें सजा दो मैं आपके बिस्तर के नीचे से तलवार लाती हूं आप मेरे हाथों को काट दो मैं पहले आप की रस्सी खोलती हूं ताकि एक चुटकी नेता की के नीचे से तलवार निकाली और दादी की रसिया खोल दी बोली लो अपनी पोती को इन हाथों को काट डालो बढ़िया दादी बोली मेरी प्यारी बच्चों तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं है मैं तो तुम्हें इसलिए बाहर जाने से मना करती थी कि तुम्हें कोई जंगली जीव जंतु नुकसान न पहुंचाए तीनों बोली आज से आप अकेली नहीं है हम आप की पोती हैं हम सब मिलकर एक साथ रहेंगे उसकी दादी मां बोली तुम्हें पढ़ाई लिखाई के लिए हम जाकर वही पर बस जाएंगे हम तुम तीनों को खूब पढ़ाई लिखाई करवाएंगे हमारे पास तुम्हारी पढ़ाई के लिए बहुत सारा पैसा है फिर बोली ठीक है हम एक बार अपने पिता के पास जाकर उन्हें सच्चाई से अवगत कराना चाहते हैं कि हमारी सौतेली मां ने हमें हमारे साथ कितना बुरा बर्ताव किया हम वादा करते हैं कि हम आपके पास लौट कर जरूर आएंगे चल कर शहर में रहेंगे दादा दादी ने कहा कि बेटा हम तीनों तुम तीनों पर हमें विश्वास है तुम्हें अपने घर का रास्ता मालूम है तो वह कंधे की कि जब हम घर से चली थी तो रास्ते में 11 कंकर गिराते आई थी उस पत्थर ओके निशांत से हमें अपने घर का पता मालूम है पत्थर पर मैंने निशान लगाए हुए थे मुझे बचपन से ही घटिया इकट्ठा करने का शौक था मैंने उन घड़ियों में एक ही एक ही एक ही रंग के निशान लगाए हैं उनके सारे हम अपने घर का रास्ता मालूम हो जाएगा तीनों बेटियों ने दादा दादी का आशीर्वाद लिया और अपने घर की ओर चलने लगी उन उन गोपियों के निशानों की वजह से वह अपने घर में पहुंच गए वह अपने साथ ढेरों सारी उपहार भी लाई उसके पिता उन्हें जिंदा देखकर बहुत ही खुश हुए साल बाद अपनी बेटियों को जिंदा देखकर बहुत खुश हुए तीनों बेटियों ने अपने पिता को अपनी सौतेली मां की कहानी सुनाई और कहा कि उन्होंने हमें निमंत्रण का झूठा बहाना बनाकर हमें जंगल में छोड़ दिया था ताकि हम कभी भी वापस ना आए किसान ने अपनी पत्नी के इस व्यवहार से बहुत ही दुखी हुए वे बोले कि अभी इसी वक्त हमारे घर से चली जाओ तुमने मेरी बेटियों को घर से निकाला और मुझे आज तक नहीं बताया कि मैंने उन्हें घर से निकाल दिया है किसान की पत्नी माफी मांगते हुए बोले कि बेटा मुझे तुम तीनों माफ कर दो मेरी गलती की इतनी बड़ी सजा मुझे मत दो मुझे अपने घर से मत निकालो किसान बोला कि जब तक तुम तीनों बेटियों से माफी नहीं मांगोगे तब तक मैं तुम्हें घर में रहने की इजाजत नहीं दे सकता रोते-रोते बोली कि मैं चुन्नू को लेकर कहां जाऊंगी तीनों बेटियां बोले कि मां हमने तुम्हें माफ कर दिया है आपको कहीं पर भी जाने की जरूरत नहीं है आप यही रहेंगे हम आपके पास नहीं रहेंगी उसके बापू रोते-रोते बोली बेटा नहीं नहीं तुम तीनों कहीं नहीं जाऊंगी वह बोली बाबा हम तो आपसे मिलकर आपको सच्चाई से अवगत करवाने आए थे हम तो अपने दादा दादी के साथ रहेंगे उन्होंने हमें इतना प्यार दिया कभी मां पिता की कमी महसूस नहीं होने दे हम आपसे हाथ जोड़कर विनती करती हैं आप हमें हमें जाने से नहीं रोकेंगे वे तीनों की तीनों अपने दादा-दादी के पास लौट आई उन तीनों को वापिस आते देखकर बुझते चिरागों की रोशनी फिर से जगमग आने लगी उनकी पुत्रियों के वापस आने की मुस्कान उनके चेहरे से झलक रही थी

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