मेहनत

एक छोटी सी बस्ती में चीनू अपने मां बाबा के साथ रहता था। वह केवल 5 वर्ष का था और हर एक बात को जानने की जिज्ञासा रखता था। उसकी मां उसे कहती बेटा तेरे कई प्रश्नों के उत्तर तो मेरे पास भी नहीं है। वह जब उसके प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाती तो वह उसे डांट कर चुप करा देती। वह अपनी मां से कम ही प्रश्न पूछता था। एक दिन उसके मामा उनके घर आए हुए थे। उसके बाबा उसके मामा से कह रहे थे कि बेटा इंसान को मेहनती होना चाहिए। छोटा सा चीनू अपने पिता से पूछना ही चाहता था कि वह मेहनती क्या होता है? उसके पिता ने कहा अच्छा बेटा मैं काम पर जा रहा हूं। तू भी सारा दिन अपनी मां के साथ मेहनत करना। शरारते मत करना।

उसकी मां काम कर रही थी। उसने चीनू को आवाज लगाई बेटा यही पर खेलना। मैं खेत में घास काटने जा रही हूं। उसकी माता घास काटनें चली गई। वह सोचने लगा कि बाबा मेहनत करते हैं। मैं भी मेहनत करूंगा। शाम को जब उसके बाबा आए उसने अपने बाबा को कहा कि आप कहां जाते हो? वह बोला मैं काम करने जाता हूं। उसके पिता बोले अब तुम भी स्कूल में पढ़ने जाया करोगे। मैं सारे दिन पत्थर तोड़ता हूं फिर कहीं खाने को रोटी मिलती है। वह बोला अच्छा बाबा।

एक दिन उसके पापा उसे गांव की शादी में ले गए। वहां पर सब लोगों को अच्छी अच्छी पोशाक में देख कर उसे बहुत ही अच्छा लगा। उसने जब अपनी कमीज की तरफ देखा तो उसे बहुत ही बुरा महसूस हुआ। उसकी मां ने उसकी फटी हुई कमीज को सिल दिया था। कपड़े उसके साफ सुथरे थे। वह भी ठाठ से शादी में खूब खा पीकर आनंद महसूस कर रहा था। कभी मिठाइयां, कभी पूरी हलवा। आज जिंदगी में उसने डट कर अच्छे-अच्छे स्वादिष्ट पकवान खाएं। जब खाना खाने के बाद छोटे-छोटे बच्चों को एक ₹1 दक्षिणा मिली उसने वह सिक्का हाथ में दबा दिया। उसके पिता ने उसे बताया कि सिक्का दुकानदार को देने से टॉफी मिलती है। उसने वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया। आज से पहली बार इतना खुश कभी नजर नहीं आ रहा था। अपने कुर्ते को देखकर थोड़ा उदास जरूर हुआ। थोड़ी देर बाद में वह मस्त हो गया। जब उसकी नजर अपने जैसे बच्चों पर पड़ी तो वह देख कर हैरान हो गया कि उन सब के पैरों में तो इतनें सुंदर सुंदर जूते थे। उसने अपने पैर की तरफ देखा एक जूते में से एक छेद साफ नजर आ रहा था। वह रोनी शक्ल बनाकर अपनें बाबा को बोला। बाबा मेरा जूता ऐसा क्यों है? उसके बाबा बोले बेटा घर चल कर इसके बारे में बात करेंगे। अभी तो मौज मस्ती कर। ऐसा रंगीन माहौल देखकर उसे अच्छा लग रहा था।

शाम को घर आया तो बाबा को बोला ऐसा उत्सव हर रोज क्यों नहीं होता? आज तो मुझे बहुत ही अच्छा लगा। उसके पिता बोले ऐसा उत्सव तो तुम्हें देवालय में ही मिल सकता है। वहां पर ही ऐसी चीजें खाने को मिलती हैं। वह बोला बाबा देवालय क्या होता है? उसके पिता बोले बेटा जहां मंदिर होता है जहां ईश्वर की पूजा होती है। वहां पर लोगों की भीड़ एकत्रित होती है। और दूसरे विद्यालय विद्यालय ही एक ऐसा स्थान होता है जहां बहुत सारे बच्चे होते हैं जहां पर छोटे बच्चे बड़े वहां पर भी खाने को मिलता है। बच्चे वहां पर शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। हम भी तुम्हें विद्यालय में पढ़ने भेजेंगे। तुझे वहां पर जाकर पढ़ाई करनी है वहां पर तुझे खाने को भी मिलेगा। वह बहुत खुश हो गया। ठीक है बाबा।

एक दिन उसके बाबा बोले बेटा मैं काम पर जा रहा हूं। वह जब चले गए तो चीनू अपनी मां के पास आकर बोला मां मैं भी मेहनत करूंगा। उसकी मां उसकी भोली बातें सुनकर हंसने लगी। उसने कहा अच्छा बाबा जा मेहनत कर।

वह घर से चला गया। उसने सोचा शादी में तो उस दिन बड़ा ही मजा आया। आज ऐसा ही स्थान ढूंढते हैं जहां भीड़ हो। वह चला जा रहा था। सामने ही एक मंदिर था। वहां पर दूर-दूर से गानों की आवाज़ आ रही थी। उस दिन मंदिर में खास उत्सव था। सभी लोग मंदिर में माथा टेकने जा रहे थे। वह भी अंदर चला गया लोग मत्था टेक रहे थे। उसने भी उन लोगों को देख कर मन्दिर में माथा टेक दिया। पुजारी ने उसे खूब सारा प्रसाद दिया। उसे वह प्रसाद बहुत ही स्वादिष्ट लगा। अंदर लोग अच्छे-अच्छे कपड़ों में मंदिर में बैठे हुए थे। उसने भरपेट खाना खाया। उस दिन मंदिर में भंडारा था। पुजारी गल्ले में सिक्के डाल रहा था। उसने सोचा यह पुजारी उसे पैसे देगा। अचानक जब वह वापस नहीं गया तो पुजारी ने उसे एक लड्डू और एक सिक्का दिया। वह बहुत ही खुश हो गया। वहां से लौटने ही वाला था उसने मंदिर के बाहर बहुत ही सुंदर जूते देखे। शायद उसी की उम्र के बच्चे के थे। उसने वह जूते उठा लिए। उसने वह जूते पहन कर देखे। उस के नाप के ही जूते थे। वह बहुत खुश हुआ। मानो उसने सारे जहां की खुशियां पाया ली हों। उसने उन जूतों को पहनकर मन्दिर के चार पांच चक्कर लगाए। उसने सबके सामने वह जूते पहने। उसे किसी का भी डर नहीं था।

आज वह बहुत खुश था। उसने भी मेहनत की थी। मंदिर के बाहर उसे एक स्वेटर दिखाई दिया वह वहा से उस सवेटर को उठा कर ले आया।
वह उसे पहनने लगा। वह स्वेटर तो बहुत ही लंबा था। दूसरे दिन वह फिर घूमने गया। उसे एक जगह पर स्कूल का बोर्ड दिखाई दिया। वहां पर बच्चे सुबह की प्रार्थना कर रहे थे। वह बहुत खुश हो गया। छिप कर देखने लगा।

मैडम को सब बच्चों ने न जानें क्या कहा पर उसे वह समझ नहीं आया। जैसे ही मैडम आई सब बच्चे खड़े हो गए। तभी घंटी बज गई बच्चे बाहर इधर उधर घूम रहे थे।

एक बच्चा दूसरे बच्चे से लड़ रहा था उसने दूसरे बच्चे की पेंसिल ले ली थी। दौड़ा दौड़ा मैडम के पास जा कर बोला। मैडम जी इस बच्चे ने मेरे बस्ते से पैसेंल चुरा ली है। मैडम ने उस बच्चे को बुलाया बेटा चोरी करना बुरी बात होती है। हमें किसी की भी चीज बिना पूछे नहीं उठानी चाहिए। मैडम ने उसके कान खींच कर कहा मैंने तुम्हें आज सजा दे दी है। आगे से चोरी मत करना।

चीनू घर आया। जब उसके पापा शाम को घर आए बोले मैं तो मेहनत करके शाम को थका हारा आया हूं मुझे तो बहुत ही भूख लग रही है। चीनू भी बोला मां बाबा मैं भी मेहनत करके आ रहा हूं मुझे भी बहुत भूख लगी है। मां बाबा उसकी भोली बातों को सुनकर हंस कर बोले बता तो सही तुमने आज क्या मेहनत की? वह बोला पापा मैं दिखाता हूं। वह जूते पहन कर आ गया। इतने सुंदर जूते देख कर उसके पापा हैरान रह गए। इतनें सुंदर जूते तुझे किसने दिए।? वह बोला पापा मैंने मेहनत से लाए हैं। उसके पापा बोले बेटा बता तू इन जूतों को कहां से लाया? वह बोला पापा मैं इन जूतों को जहां भगवान जी की पूजा होती है वहां पर बाहर पड़े थे। वहां से लेकर आया। मैं वहां से आपको स्वेटर भी लाया हूं। वह तो मुझे बहुत ही लंबा है। आप को ठंड लगती होगी। उसने वह स्वेटर लाकर अपने पिता को थमा दिया।

उसके पिता समझ गए कि वह छोटा सा बच्चा चोरी करके या किसी की भी वस्तु उठाकर ले आया है। उसे अभी से बताना पड़ेगा कि चोरी करना बुरी बात होती है। उसके पापा बोले बेटा चोरी करना बुरी बात होती है। आज मैं विद्यालय में भी गया। वहां पर एक मैडम बच्चों को कह रही थी। उसने सारी घटना अपने पापा को कह सुनाई। एक बच्चे की किसी बच्चे ने पेंसिल उठा ली थी। मैडम ने उस बच्चे को कहा चोरी करना बुरी बात होती है। उसके कान भी पकड़े। वह बच्चा रोने लगा था। उसके बाबा बोले बेटा तूने भी चोरी की है। वह बोला पापा मैंने तो मेहनत की है। आप भी तो मेहनत करते हैं। वह बोले बेटा इसका उत्तर तुम्हें कल मैं दूंगा। चीनू के बाबा ने कहा तुम आज हमारे साथ काम पर चलोगे। वहां मैं तुम्हें बताऊंगा कि मेहनत क्या होती है? दूसरे दिन चीनू के बाबा उसे तपती दोपहरी में अपने साथ काम पर ले गए। उसके पापा पत्थर तोड़ रहे थे। उसे भी कहा कि तू भी पत्थर तोड़ जब तक पसीना नहीं निकलता वह भी अपने पापा के साथ सारा दिन धूप में काम करता रहा। वह थक चुका था। उसे भूख भी बड़े जोरों की लग रही थी। उसके पापा बोले बेटा आज तुम्हें पता चला गया कि मेहनत क्या होती है? यह मेहनत होती है। जब हम बिना किसी से पूछे किसी की वस्तु उठातें है तो वह चोरी होता है। जैसे तुम घर में चुपके से रसोई में से जाकर गुड़ चोरी करते हो बताते भी नहीं वह चोरी होता है। तुमने जूते और स्वेटर भी चोरी किए। जैसे मैडम ने स्कूल में चोरी करने वाले को दंड दिया वैसे ही चोरी करने वाले को उसका दंड अवश्य मिलता है। मैं तुम्हें भी दन्ड दूंगा। मारकर नहीं बेटा तुम तीन रोटियां खाते हो। आज से तुम्हें दो ही रोटियां खानी है। जब तुम इन चीजों को वापस लौटा कर आओगे तब उस दिन तुम तीन रोटियां खाना। वह बोला पापा आज तो मुझे तीन रोटियां दे दो। पापा मुझे बहुत भूख लगी है। उसके बाबा ने सुना अनसुना कर दिया।

घर में आकर वह सोच में पड़ गया वह कैसे जूते लौटाएगा? ना जाने यह जूते किसके होंगे। एक दिन वह अपने पापा के साथ बाजार जा रहा था। उसे एक बहुत ही सुंदर औरत दिखाई दी। उसके साथ उसकी उम्र का ही एक छोटा सा बच्चा था। इस बच्चे को देखकर वह मुस्कुराया। उस बच्चे ने अपनी मां को कहा कि इस बच्चे के पास मेरे जूते हैं। जब उसने ऐसा सुना तो वह बहुत खुश हो गया। उसने अपने बाबा को कहा बाबा मैं अभी आता हूं। यहां से हमारे घर का रास्ता मुझे मालूम है। आप घर जाओ। चीनू उस औरत की तरफ देख कर मुस्कुराया। उसकी भोली सूरत देखकर वह भी मुस्कुरा दी। वह बोली बेटा तुम्हें यह जूते कहां से मिले? वह बोला आंटी आप जब मुझे एक जगह बिठा कर पूछोगी तभी मैं आपको सारी बात बताऊंगा। उसकी बातें सुनकर वह महिला हंसी और बोली सामने ही एक बहुत ही सुंदर बाग है। वहाँ पर चल कर बैठते हैं। सुनीता ने देखा कि इतना सुंदर, बालक कमीज़ फटी हुई उसमें भी टांके लगे हुए, और जूते बहुत ही बढ़िया। मैं इसके मुंह से सुनना चाहती हूं उसे यह जूते कहां से मिले? यह जूते तो उसके बिट्टू के हैं। वह बोला आंटी जी मैं एक दिन मंदिर गया था। वहां पर यह जूते बाहर पड़े हुए थे। मैंने वह जूते पहने। मुझे वह जूते अच्छे लगे। मैंने सोचा आज मैंने मेहनत की है। मैंनें वहां से एक स्वेटर भी उठा लिया। जब मुझे पता चला की यह मेहनत नहीं होती यह तो चोरी होती है। मेरे पापा ने मुझे काम पर ले जाकर बताया कि यह मेहनत होती है। उन्होंने कहा जब तक तुम उस बच्चे के जूते लौटाकर नहीं आते और यह स्वेटर लौट कर नहीं आते तुम्हें एक रोटी कम खाने को मिलेगी। मेरे बाबा ने मेरी एक रोटी कम कर दी। आज मैं आप का जूता लौटाकर आधी रोटी ज्यादा खा लूंगा। अगर मुझे स्वेटर वाले अंकल भी मिल गए तो मैं पूरा खाना खाऊंगा। उस महिला की आंखों में आंसू आ गए। उसने तो कभी भी किसी भी बच्चे को अपने हाथ से कभी कुछ नहीं किया था। क्या हुआ? अगर इस बच्चे ने जूते चोरी कर लिए। उसने वह जूते उसे देते हुए कहा बेटा तुम्हें यह जूते अच्छे लगते हैं। तुम ही रख लो। वह बोला आज नहीं। कल बाबा को लेकर आऊंगा। उसने अपने थैले में से अपने छेद वाले जूते निकाले और पहन लिए। वह अपने साथ हर रोज अपने जूते लेकर आता था।

आज वह वह बेहद खुश था। दूसरे दिन वह अपने बाबा को लेकर उस मेम साहब के बंगले पर पहुंचा। उस मेम साहब ने चीनू के बाबा को कहा कि यह कितना प्यारा बच्चा है? आपने इसको इतना बड़ा दंड क्यों दिया? उसके बाबा बोले बीवी जी अगर हम अपने बच्चों को आज यह नहीं सिखाएंगे तो वह कभी भी मेहनत नहीं करेगा और चोरी करना ही सीखेगा। उस औरत ने वह जूते चीनू को दे दिए। उसने अपने बच्चे के ढेर सारे खिलौने भी चीनू को दे दिए।

चीनू इसी तरह ढूंढता रहता था। एक दिन उसकी नजर एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी जो ठंड से ठिठुर रहा था। उसने उस व्यक्ति को कहा बाबा आप यहां पर बैठ जाइए। मैं आपको स्वेटर लेकर आता हूं। वह बोला बाबा आपको सर्दी लग रही है। वह दौड़ा दौड़ा घर आया। उसने वह स्वेटर उठाया जो कि चोरी करके उस मंदिर से लाया था। उसे वापिस देने मुड़ गया। चीनू बोला बाबा मैं आपको आगे तक छोड़ देता हूं। बातों ही बातों में उसने पूछ लिया बाबा आप कहां रहते हो? वह चोरी करने वाला चोर था। वह झूठ मूठ में ही ठंड का बहाना कर रहा था। चीनू बोला बाबा यह स्वेटर ले लो। आज मुझे एक रोटी पूरी खाने को मिलेगी। यह स्वेटर आपका तो नहीं। मुझे मंदिर में मिला था। वह बोला हां बेटा यह मेरा ही स्वेटर था। मैं एक दिन मंदिर में प्रसाद लेने गया था। वापस आया तो बाहर मेरा स्वेटर नहीं था। मुझे गर्मी लगी मैंने बाहर स्वेटर टांग दिया था। वह बोला अंकल वह स्वेटर मैंने ही चोरी किया था। मुझे पता ही नहीं था कि किसी की भी वस्तु बिना पूछे नहीं उठाते। मैंने वह स्वेटर और जूते चोरी कर लिए।

मां बाबा ने कहा कि तुम ने चोरी की है इसकी सजा तुम्हें भूगतनी ही पड़ेगी। उस दिन तुम्हें पूरी रोटी खाने को मिलेगी जिस दिन तुम यह दोनों वस्तुएं जिसकी है वह लौटा कर आओगे। मैंने कभी भी चोरी ना करने का अपने बाबा से वादा किया। मैंने सोचा था कि मैंने मेहनत की है। मेरे पापा ने मुझे यह भी बताया कि मेहनत कैसे की जाती है? एक दिन मेरे बाबा मुझे वहां पर लेकर गए जहां पर मेरे बाबा पत्थर तोड़ते थे। सुबह से शाम तक बाबा पत्थर तोड़ने का काम करते हैं। मैं उस दिन मेहनत करते-करते थक गया।

मुझे तब पता चला कि मेहनत करने और चोरी करने में दिन-रात का अंतर होता है। उसकी बातें सुनकर चोर की आंखों से भी आंसू आ गए। वह भी तो चोरी करने चला था। वह बोला बेटा बेटा सुन तो। चीनू तब तक दौड़ गया था। उस बच्चे ने उसे सिखा दिया था कि चोरी करना गुनाह होता है। उस दिन के बाद उस चोर ने भी कसम खाई कि मैं भी कभी चोरी नहीं करूंगा। मेरे तो हाथ पांव सलामत है कोई भी मजदूरी करके मैं कमा सकता हूं जब यह छोटा सा मासूम सा बच्चा चोरी की सजा भुगतने के लिए तैयार है तो वह क्यों नहीं? उसने वह स्वेटर अपने कंधों पर रखा और अनाथालय में दान देकर आ गया। आज उसने भी एक बहुत बड़ा काम किया था। उसने इतने वर्षों तक चोरी करने के उपरांत एक तो अच्छा काम किया था। उस दिन के बाद उसने एक अच्छे इंसान की तरह जीवन यापन करना शुरु कर दिया।

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