वनस्पति वैज्ञानिक हितेश

एक बच्चा था उसका नाम था। हितेश। वह बहुत ही शरारती था ।  वह प्रकृति की गोद में अर्थात् जंगल में पैदा हुआ था । हितेश की नानी ने उसके पापा को कहा था कि सविता मेरे ही घर पर बच्चे को जन्म दे गी। तुम इसको वहां पर छोड़ देना अभी हितेश के पैदा होने में पूरा एक महीना शेष था ।जिसने जल्दी आना होता है वह तो आकर ही रहता है सविता के पति अपनी पत्नी को अपनी ससुराल छोड़ने जा रही रहे थे कि आधे रास्ते में ही सविता को प्रसव पीड़ा होने लगी। दूर-दूर तक डॉक्टर का कहीं नामोनिशान ही था तभी रास्ते में उन्हें एक बुढ़िया दिखाई दी बड़ी मुश्किल से सविता के पति ने उस बुढ़िया को सारी बात बताई ।वह दूसरे गांव में जाना चाह रही थी सविता के पति ने उसको अपनी गाड़ी में लिफ्ट दे दी थी। वह दाई का काम जानती थी उसने रास्ते में ही प्रसव करवाया और  आठ किलोमीटर दूरी पर एक अस्पताल था वहां पर जाकर बच्चे की नाल कटवाई ।सौरभ ने अपने बेटे का नाम हितेश रखा था ।प्रकृति की गोद में ही वह बालक जन्मा था ।यहां तक की अब हितेश बारह साल का हो चुका था। उसका पढ़ने में जरा भी मन नहीं लगता था ।वह हरदम बाग-बगीचों में फूलों की क्यारियों में रहता था ।उसे प्रकृति की गोद में बैठना बहुत ही अच्छा लगता था ।दो-तीन घंटे तक पक्षियों की मधुर मधुर गुंजन के साथ कभी फूलों की क्यारियों में कभी हरि हरी-भरी वादियों में उसे टहलना बहुत ही अच्छा लगता था। उसके माता-पिता को इसका इस तरह से भटकना बहुत ही बुरा लगता था ।जब उसके पापा और बच्चों को किताबें पढ़ते देखते तो, उन्हें अंदर ही अंदर टीस पैदा होती कि मैंने सब कुछ कर के देख लिया परंतु मेरा बेटा कभी नहीं पढता है इस कारण कभी-कभी अपनी पत्नी पर इतनी जोर से चिल्लानेे लगते थे और कहने लगते थे तुम्हारे लाड प्यार ने  तुम्हारे बेटे को बिगाड़ कर रख दिया है। वह तो हमारी बात जरा भी बात नहीं मानता है।यह अपनी परीक्षा में पास भी होगा या नहीं ।उसके पापा उसके भविष्य को लेकर बहुत ही चिंतित रहते थे। एक दिन स्कूल से आने के बाद वह चुपचाप टेलीविजन देखने दौड़ पड़ा। टेलीविजन पर बच्चों की फिल्म आ रही थी ।उसके पापा ने उसे दो बार आवाज लगाई ।उसने अपने पापा की आवाज भी नहीं सुनी। उसके पापा को गुस्सा आ गया था। उसने दो तीन चांटे अपने बेटे को जड़ दिए और बाजू पकड़कर कहा जा मेरे घर से निकल जा ।मेरे नसीब में कैसा बेटा लिखा है।।मैंने पिछले जन्म में ना जाने कैसे कर्म किए थे जिसका आज मै यह परिणाम भुगत रहा हूं। उसने हितेश को बालकनी से बाहर निकाल दिया था ।शाम का समय था उसके पिता पर इतना पागलपन सवार था उन्होंनें यह भी नहीं देखा कि बाहर अंधेरा होने वाला था। हितेश की मां उसको अंदर ले जाने वाली थी। सौरभ ने अपनी पत्नी को भी अंदर बंद कर दिया और कहा कि आज  तुम्हारे बेटे के लिए दरवाजा नहीं खुलेगा। मासूम सा हितेश सोच ही नंही पा रहा था मेरे पिता ने मुझे इतनी कड़ी सजा क्यों दी? मैं टैलिविजन में जानवरो से सम्बन्धित फिल्म देख रहा था। मैं फिल्म देख तो रहा था लेकिन वह जानकारी वाली फिल्म थी। मै थोड़ी थोड़ी पढाई भी अवश्य करता हूं। उस ने सोचा मेरी मां तो मुझे अवश्य ही मना कर अन्दर ले कर जायेगी और अपने हाथों से मेरे आंसू पौंछेगी। उसे क्या मालूम था कि उसकी मां को उसके पापा ने कसम दे दी अगर तुम ने हितेश को अन्दर बुलाया तो मैं तुम से कभी भी बात नंही करूंगा। यह बात उसके पापा ने गुस्से में कही थी। वह गैलरी में बैठ कर अपनी मां के आने का इन्तजार कर रहा था।

जब बहुत देर तक उसकी मां उसको मनाने नंही आई तो वह अपने आप को रोक नंही पाया। उसके कदम बाहर की ओर बढ गए। वह अंदर ही अंदर रो रहा था।  वह सोच रहा था कि मेरे पापा बहुत ही गंदे हैं क्या कोई पिता अपने बच्चे के साथ ऐसा कर सकता है? शायद यह मेरे असली पिता नहीं है तभी उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया है शाम के छ: बजे थे।  हितेश घर से निकल चुका था। चलते -चलते वह दूर सुनसान जंगल में पहुंच गया। वहां पर पक्षियों की चहक से सारा वातावरण गूंज रहा था ।वह काफी देर तक चिड़ियों और तितलियों को निहारता रहा तभी उसे सामने से आता हुआ हाथियों का झुंड दिखाई दिया ।वह एक  हाथी को देख कर मुस्कुराया क्योंकि एक बार उसने हाथियों के झुंड मे से हाथी के एक छोटे से बच्चे को बचाया था ।कुछ लोग एक छोटे से हाथी के बच्चे को पकड़ने के लिए चिड़ियाघर में रखने के लिए ले जा रहे थे ।उन हाथियों ने हितेश को पहचान लिया । वे हितेश को अपनी सूंड से चाटने  लगे। रात भी होने को आई थी। उसे रात को ठंड भी लग रही थी । सर्दियों के दिन थे । उसकी जेब में माचिस की डिबिया थी ।जब उसके पिता ने हितेश को बाहर निकाला था उसकी मा हितेश को आवाज दे रही थी कि बेटा मुझे माचिस देकर जा। मैं धूप जलाना चाहती हूं । उसके पापा ने तो उसे एक झटके से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।

रात को उसने  एक सुनसान पेड़ के नीचे आग जलाई। हाथियों ने उसके सामने घास पुस का ढेर लगा दिया था ।उसने आग जलाई तब उसे थोड़ा गर्मी का आभास हुआ । हितेश  को अब तो भूख भी लगने लग गई थी ।हाथियों के साथ वह अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहा था ।इसी तरह उसने एक दिन व्यतीत कर दिया। उसे भूख बहुत जोर की लग रही थी। उस दुर्गम जंगल में उसे खाना कहां मिलता ?सभी बंदरों, ने उसे  खाने के लिए फल फैंके क्योंकि वह सभी जानवरों के साथ बहुत ही घुल मिल चुका था। सभी जानवरों और पक्षियों को वह अपनी मधुर मुस्कान से अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। उस ने कंदमूल फल खाकर अपना पेट भर लिया था। । उसने इसी तरह  दो दिन व्यतीत किए। तीसरे दिन वह सोचने लगा कि इस तरह कैसे काम चलेगा।?मैं अपने पिता के पास तो लौट कर नहीं जाऊंगा। सोचने लगा कुछ ना कुछ तो करुंगा ही। अंधेरा होने को आया अभी थोड़ी ही दूर पर उसे शेर की दहाड़ सुनाई दी ।शेर ने किसी जानवर को मार दिया था। शेर को कुछ ही दूरी पर खड़े देखकर उसके तो रोंगटे खड़े हो गए  . वह डर से थर थर कांपने लगा हाथियों ने उसे डरते हुए देख लिया था ।हाथियों ने उस पर खूब घास पूस की बिछा दी।

हितेश उस   घास फूस के नीचे छुप गया था । हाथियों ने उसके ऊपर इतनी घास फेंक दी थी की उसका एक बिस्तर जैसा बन गया था। उसे वहीं पर नींद आ चुकी थी जब उसकी आंख खुली तो सुबह हो चुकी थी ।सूरज की रोशनी उसकी आंखों पर पड़ी तो वह जल्दी में उठा और सोचने लगा मेरी मां मुझे ना पाकर बहुत ही उदास होगी ःमैं क्या करूं ?वह उठा और रास्ते में चलने लगा ।चलते चलते हुए एक सड़क पर निकल आया। रास्ते में एक जीप को जाते हुए उसने देखा ।वह जीप बहुत ही तेजी के साथ चल रही थी ।उस जीप  में बहुत सारी किताबें थी। उस जीप में से चार पांच किताबें नीचे गिर गई थी ।जीप तो जा चुकी थी मगर उसे चार-पांच किताबें पढ़ने को मिल गई। वह सोचने लगा ना जाने यह किताबे किस व्यक्ति की है?वह बार-बार किताबें पढ़ने लगा किताबों में उस संस्थान का नाम और पूरा पता छपा था ।उसे पता चल चुका था कि यह किसी संस्थान की है ।उसने निश्चय कर लिया कि वह उस संस्थान का पता करके वह उन किताबों को लौटाने जाएगा ।उन किताबों में प्रकृति से संबंधित काफी तस्वीरें थी ।पेड़ पौधे ,जंगली जीव जंतु   सम्बंधित जानकारियां थी उसने एक मारूति कार वहां से गुजरते हुए देखी ।उसने अपने हाथ से उस कार वाले को ईशारा किया। उस कार के मालिक ने गाड़ी रोक कर कहा कहां जाना चाहते हो? हितेश नेे उस संस्थान का नाम लिया तब उस कार चालक ने कहा कि हम भी उसी शिक्षा संस्थान में जाना चाहते हैं क्योंकि वहां पर उनका बेटा भी उसी स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहा है ? ,हितेश ने झूठ मूठ ही कह दिया कि वह भी उसी स्कूल में पढ़ता है ।कार चालक ने उसे कहा बेटा बैठ जाओ तुम भी मेरे साथ चलो अब तो उसे उस

शिक्षण संस्थान पहुंचने में जरा भी मुश्किल नहीं आई। वहां जाकर सबसे पहले वह उस शिक्षा संस्थान के प्रधान अध्यापक से मिला और उसे सारी बात बताई कि आप की किताबें उस गाड़ी में से गिर गई थी ।मैंने गाड़ी का नंबर भी नोट कर लिया था ।मैं आपकी किताब लौटाने आया हूं।उस प्रधाना अध्यापक ने उसे कहा कि तुमने यह किताबें पढ़ी भी या  यूं ही लौटा रहे हो। हितेश बोला अंकल मुझे पढ़ाई करना जरा भी अच्छा नहीं लगता। आप की किताबों ने तो मेरा मन मोह लिया। आपके यहां प्रकृति से संबंधित विषय, जानवरों से संबंधित विषयों की जानकारी भी दी जाती है।मुझे तो पेड़-पौधों जानवरों से बहुत ही लगाव है ।मेरे पापा जब मैं उन्हें काफी देर तक निहारता रहता हूं तो मेरे पापा मुझे पागल कहते हैं ।मेरे पिता ने तो मुझे  पढाई न करने पर जोरदार चांटा मारा और कहा कि तुम मेरे घर से निकल जाओ ।मैं तो प्रकृति से संबंधित फिल्म देख रहा था ।मेरे पापा ने गुस्सा करके मुझे कहा कि मेरे घर से निकल जाओ। आप ही बताओ क्या मैं गलत था ? मैं जंगल में चला आया। वहां पर तीन दिनों तक जंगली जीव जंतुओं और फूलों की क्यारियों में मैं भूल ही गया कि मुझे तीन दिन तक हो चुके हैं। चौथे दिन मुझे एक लड़के के पिता मिले जिन्होंने बताया कि मेरा बेटा भी वही शिक्षा ग्रहण कर रहा है ।वह भी मुझे यहां पर लेकर आए । अंकल मैं आपकी किताबे  लौटाकर फिर कंही पर चला जाना चाहता हूं। प्रधानाध्यापक ने कहा बेटा तुम्हारे पिता ने तुम्हें घर से यूं ही निकाला ।वह उनकी बहुत बड़ी भूल थी । शायद तुमने इस संस्था में प्रवेश लेना था इसलिए तुम बिल्कुल निराश ना हो ।तुम यहां शिक्षा ग्रहण कर सकते हो नहीं तो तुम्हें अपने घर वापिस लौट जाना चाहिए। उस प्रधान अध्यापक जी ने उसे कहा देखो बेटा यहां पर हमने इतनी वाटिकाएं लगाई है ।और जानवरों ू के रहने के लिए अभ्यारण्य भी बनाए है। तुम शाम के समय उस वाटिका में आकर और अभयारण्य में घूमकर तरोताजा महसूस कर सकती हो ।हमारे पास प्रकृति से संबंधित  अनेक विषय है। जो विषय तुम्हें रुचिकर लगे तुम वही पढ़ सकते हो ।हम शाम के समय बच्चों को टेलीविजन के द्वारा यह सब दिखाते हैं। शिक्षा केंद्र में उसका इतना मन लग रहा था वह बोला अंकल यह संस्थान मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा है।यहां पर मेरी रुचि के अनुसार विषय है परंतु अचानक हितेश उदास हो गया और बोला अंकल आप मेरे बारे में मेरे पिता को बता देंगे तो वह मुझे यहां से निकाल कर ले जाएंगे प्रधानाचार्य ने उसे विश्वास दिलाया कि बेटा ऐसा कदापि नहीं होगा ।तुम अपने घर का पता मुझे लिखवा दो।

प्रधानाचार्य ने हितेश के पिता को फोन करके कहा कि आपका बेटा हमारे शिक्षा संस्थान में है। आपने अपने बेटे को घर से निकाल कर अच्छा नहीं किया। आपको अपने बेटे की इच्छा को देखते हुए किसी विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए थी । मेरा बेटा पढ़ाई में मन क्यों नहीं लगा रहा है ?आपने तो बिना उसकी राय जाने एकदम फैसला सुना दिया और उस बारह साल के बच्चे को बाजू से पकड़ कर बाहर का रास्ता दिखा दिया। यह तो शुक्र करो कि आपका बेटा सही सलामत है ।उसे कुछ भी हो सकता था  ।वह एक घने जंगल में पहुंच चुका था। आपके बेटे को प्रकृति और पेड़ पौधों और जंगली जानवरों में से इतना अधिक लगाव है।मैंने उसकी इच्छा को देखते हुए ही उसे ऐसे विषय चुनने के लिए प्रेरित किया है और आपको यह सुनकर हैरानी होगी कि आपका न पढने वाला बेटा छः घंटे से अपनी किताबें पढ़ रहा है। आप अब तो उसको देखकर हैरान रह जाएंगे ।उसका यह चमत्कार किसी देवी शक्ति से कम नहीं ।जंगल में उसने कैसे जंगली जानवरों के बीच अपने आप को बचाया। जब उसकी मां को पता चला कि हितेश किसी शिक्षा संस्थान में पहुंच चुका है वह बहुत ही खुश हुई। वह सोच रही थी कि मेरे पति ने उसे घर से निकाल दिया था। उसने अपने पति से तब से लेकर बात भी नहीं की थी ।जब उसके पति ने उसे कहा कि तुम्हारे बेटे का पता चल चुका है चलो दोनों चल कर उसे देख आते हैं ।    माता-पिता शिक्षा संस्थान में आकर उसे मिले अब तो हितेश के पिता को यह महसूस हो चुका था कि मैंने अपने बच्चे पर बिना सोचे समझे उसे घर से निकाल दिया ।वह अब अपने आप को कोसने लगे ।मेरे हाथ टूट क्यों नहीं गए?मैंने इन हाथों से अपने बेटे को मारा और मारा ही नहीं उसे घर से बाहर निकाल दिया था। उन्होंने सोचा की जब गुस्सा ठंडा हो जाएगा तो हितेश अपने आप घर आ जाएगा परंतु कहीं नं कहीं अपने बेटे को घर से निकालने के बाद वह बहुत ही बुरा महसूस कर रहे थे। उन्होंने पुलिस वालों को भी सूचना दे दी कि हितेश कहीं चला गया था ।हितेश के पापा ने पुलिसवालों को फोन करके बता दिया था कि हमारा बेटा किसी शिक्षा संस्थान में पहुंच चुका है हितेश के माता-पिता उस शिक्षा स्थान में जाकर उससे उस उच्च शिक्षा संस्थान में मिले । हितेश को  अपनी पढ़ाई करते देखकर उसके पिता पिता बहुत खुश हुए बोले बेटा ,मुझे माफ कर दो मैं तुम्हारी भावनाओं को समझ नहीं सका ।मुझे लगता था कि तुम सारा दिन इधर से उधर मटरगस्ती करते रहते रहते हो। मुझे यह मालूम नहीं था कि तुम इस प्रकृति की अमूल्य धरोहर के साथ लुत्फ उठा रहे थे ।हमने तुम्हारी भावनाओं को बहुत ही ठेस पहुंचाई है बेटा अब जो तुम करना चाहते हो वह करो। मैं तुम्हारे काम में कभी भी हस्तक्षेप नहीं करूंगा ।आगे चलकर हितेश एक बहुत ही बड़ा वनस्पति वैज्ञानिक बना।

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