वारिस

शैलेश के परिवार में उनका बेटा सोनू था। वह अपने बेटे सोनू से बहुत प्यार करते थे। वह दसवीं कक्षा में आ चुका था। उसके पिता की दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। सोमू अपने दादाजी रामप्रसाद जी के पास रहने लगा। उनके  दादा जी अपने पोते को बहुत प्यार करते थे। वह सोचते थे कि मेरे पोते के सिवा मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। वह एक स्कूल में हेडमास्टर के पद पर थे। वहां से रिटायर हुए थे। सोमू अपने दादा जी से बहुत ही प्यार करता था। उन्होंने सोनू को पढ़ाया लिखाया।। सोनू को विदेश में जाने का अवसर मिला। उसके दादा जी उसे विदेश नहीं भेजना चाहते थे। सोमू बोला दादाजी मुझे विदेश में जाना है। वह बोला अगर मुझे वहां अच्छा नहीं लगा तो मैं वहां से जल्दी ही वापस लौट आऊंगा। मैं आपको छोड़कर नहीं जाऊंगा।। उसके दादा जी ने स्वीकृति में हामी भर दी। सोमू विदेश चला गया था। वह डॉक्टर बन गया। विदेश में उसे नौकरी मिल गई। उसे वहां अच्छा लगने लगा अपने दादाजी को कहा दादा जी यहां पर तो बहुत ही अच्छा है कुछ दिनों बाद वह आपको भी वहीं पर बुला लेगा। आपके सिवा मेरा यहां पर कोई नहीं है। मैं आपको जल्दी लेने आऊंगा।

 

इस बार छुट्टियों में सोमू गांव आया था उसके दादा जी ने सोमू को कहा बेटा छोड़ो विदेश विदेश का चक्कर यहां पर जो कुछ है वह तुम्हारा ही तो है। वह बोला नहीं दादा जी उसके दादा जी ने उसे गांव में एक लड़की भी देख रखी थी। उसने अपने दादाजी की बात नहीं मानी नाराज होकर विदेश चला गया। उसको गए हुए पांच साल हो गए। उसके दादा जी का कोई खत नहीं आया। और न ही उसनें अपनें दादा जी को अमेरिका बुलवाया। उसके दादा जी से बहुत याद करते रहे मगर उन का पोता तो उन्हें भूल चुका था। दादाजी सोचने लगे यहां पर इतनी जमीन जायदाद है यहां पर कौन इसकी देखरेख करेगा। मैं ही अपने पोते को विदेश से मना कर वापिस ले आऊंगा। उन्होंने कुछ दिनों के लिए बाहर जाने का प्रोग्राम बना लिया। उन्होंनें वीजा भी बनवा लिया था। कुछ दिनों के लिए अपने खेत अपने दोस्त के पास रख दिए। उसनें अपनें दोस्त को कहा मेरे खेतों की देखरेख करना। मैं अपने पोते को मना कर वापिस ले कर घर आऊंगा। मैं न जाने कितने दिनों तक का मेहमान  हूं इस से पहले  मैं अपने पोते के नाम पर यह सब कुछ कर देना चाहता हूं। उन्होंने ट्रेन पकड़ी और हवाई जहाज द्वारा यात्रा की और विदेश में पहुंच गए।

 

जैसे ही अमेरिका एयरपोर्ट पर उतरे तो इधर उधर देखने गए उनके पास अपने पोते का पता था। उन्होंने जैसे ही पर्स में पता निकाला वह कागज तो गुम हो चुका था। वह सोचने लगे कि इस अनजान शहर में कैसे अपने पोते को ढूंढे क्या करें वह डरते डरते प्लेटफार्म से आगे बढ़ने लगे। चलते चलते काफी दूर निकल आए उसके पास उनका पता तुम हो चुका था। चलो क्यों ना आज रात किसी होटल में ही व्यतीत की जाए। वह एक हट्टे-कट्टे इंसान थे। उन्होंने कुली को कहा क्या यहां कोई होटल खाली मिलेगा ः।? कुली नें कहा होटल ताज यहां से दो किलोमीटर की दूरी पर एक होटल है। वहां आपको किराए पर कमरा मिल जाएगा। धीरे-धीरे ₹500 में एक कमरा मिल गया उन्होंने रात गुजारी सुबह चाय पीने के लिए बाहर निकले वहां से बाहर जाने लगे थे एक चमचमाती गाड़ी बड़ी तेजी से आगे से आ रही थी। होटल के पास एक छः साल का बच्चा उस गाड़ी के आगे आ ही गया होता अगर उस बूढ़े इंसान ने उस बच्चे को वहां से हटाया ना होता। इस से पहले की गाड़ी वाला रुकता उन्होंने जोर-जोर से कहना शुरू कर दिया अरे भाई तुम ठीक तरह से गाड़ी चला नहीं सकते। इस बच्चे को आज तुमने मार ही दिया होता तुम बड़े लोगों को किसी की जान की क्या पड़ी है। गाड़ी वाला भाग गया।

 

निक्कू के पापा बोले धन्यवाद। उन्होंने रामप्रसाद जी को कहा कि मैं आपको छोड़ दूंगा। वे बोले मैंने यहां पर एक होटल किराए पर लिया है मैं गांव से अपने पोते को ढूंढने आया हूं। उनके पापा बोले मुझे बताओ मैं शायद तुम्हारी मदद कर सकूं। मेरे पास उनका पता था परंतु वह कागज नहीं गया मुझे तो अब अपने पोते के बिना ही वापस गांव जाना पड़ेगा। नीकू के पापा बोले कुछ दिन आप मुझ में ही अपने बेटे की छवि देख लो।  निक्कू के पापा ने जोर लगाया  तब वह उनके साथ कुछ दिनों के लिए रुकने के लिए तैयार हो गया। उनके साथ उनके घर चला गया। हर रोज अपने पोते को ढूंढने की कोशिश करता मगर उस अनजान शहर में अपने पोते को ढूंढने में सफल नहीं हो सका। उनके साथ उनके घर चला गया।। हर रोज अपने पोते को ढूंढने की कोशिश करता मगर उसे अपने पोते को ढूंढने में सफल नहीं हो सका। निक्कू के साथ घुल मिल गया उसके साथ खेलता उसे पढ़ाता अपने बेटे को जब वे स्कूल भेजते एक दिन रामप्रसाद जी घूम रहे थे। उन्होंने सैर करते हुए गाड़ी से आते हुए निक्कू को देखा। उनके साथ बड़े-बड़े बालों वाले दो आदमी थे। उसने निक्कू को इशारा किया। निकुंज नें  अंकल को कहा अंकल जी धन्यवाद। मेरे दादाजी मुझे लेने आ गए हैं। आगे से मैं इनके साथ जाऊंगा। उन्होंने गाड़ी खड़ी कर दी। नीकू के दादाजी बोले बेटा हमें हर किसी मनुष्य के साथ दोस्ती नहीं करनी चाहिए। जब तक कि हमें उस व्यक्ति के बारे में पूरी जानकारी हासिल ना हो। दादा जी वे लोग कल मेरे स्कूल के पास मुझे मिले उन्होंने कहा कि हम तुम्हारे पापा को जानते हैं। नीकू के दादाजी ने कहा बेटा नीचे उतरो। उसे  उसी वक्त उसका दोस्त  बिटू वहां मिला वह उसके साथ बातें करने में मस्त हो गया। निक्कू के दादाजी ने  उन गाडी वाले नवयुवकों कोकहा कि तुम निक्कू के पापा को जानते हो। वह बोले हां हम जानते हैं। वह हमारे दोस्त हैं। रामप्रसाद जी ने पूछा तुम क्या काम करते हो? बोले कि हम बैंक में काम करते हैं। वह दोनों जब निक्कू से बात कर रहे थे उनसे कह रहा था बैंक। तभी निक्कू के दादाजी ने गाड़ी रुकवा दी थी। उसी से उन्होंने अंदाजा लगा लिया शायद निक्कू के पापा बैंक में काम करते हैं।

 

रामप्रसाद जी घर पहुंचे हुए नीकू के माता पिता से बोले  आज मैं आप दोनों को कहता हूं तुम दोनों निक्कू के मम्मी पापा  हो।  हमें कभी भी किसी के साथ अपने बच्चे को यूंही भेजना नंही चाहिए जब तक उस इंसान के बारे में सही जानकारी ना हो। आज मैंने जब इनमें अजनबियों के साथ  नीकू को आते देखा मेरा माथा ठनका। गाड़ी रुकवाई। आप दोनों अपनें बेटे को समझाओ। हर किसी से लिफ्ट नहीं मांगनी चाहिए। मुझे तो वे दोनों इंसान ठीक नहीं लगे। मैंने गाड़ी रुकवाकर निक्कू को जब पूछा कि यह दोनों कौन है तो उन्होंने उसने कहा कि हम उन्होंने कहा कि हम बैंक में काम करते हैं।

 

निक्कू के पापा बोले बैंक में तो मेरा कोई दोस्त नहीं है। दूसरे दिन अखबार में दो व्यक्तियों के पकड़े जाने की खबर थी। फोटो देखकर निक्कू के पापा हैरान रह गए वह तो वही दोनों आदमी थे। जिसकी गाड़ी में   निक्कूनें लिफ्ट ली थी। नीकू के मम्मी पापा ने रामप्रसाद जी को कहा आप तो सचमुच में ही महान है। निक्कू को उसके दादा जी नें कहा कि बेटा हमें पैदल स्कूल जाना चाहिए। मैं तुम्हें हर रोज स्कूल छोड़ने जाया करूंगा और शाम को लेने आया करूंगा। रास्ते में हम खूब बातें करते घर वापिस आया करेंगे।

 

निक्कू हमेशा चॉकलेट टॉफी बरगर-पीजा खाता था। वह खाना खाना तो जानता ही नहीं था। उसे तो इन्हीं चीजों की आदत थी। रामप्रसाद जी ने कहा बेटा हमें बाजार की गंदी वस्तुएं नहीं खानी चाहिए। हमें घर में बनी हुई चीजें खानी चाहिए। हमें तली हुई चीजें नहीं खानी चाहिए हमें स्वस्थ रहने के लिए दूध हर रोज पीना चाहिए। दूध में दूध पीने से रतौंधी रोग नहीं होता। मैं तुम्हें अपने हाथ से बनी चीजें खिलाऊंगा। मैं तुम्हें परांठे बनाकर खिलाता हूं। पहले पहल तो नीकू को  अच्छा नहीं लगता था। दूध में गुड़ का प्रयोग करना चाहिए। चीनी तो हड्डियों के लिए बहुत ही हानिकारक होती है। हड्डियों के लिए हमें दूध भी बहुत जरूर होता है।  विटामिन डी की हमें जरूरत होती है। वह हम धूप में थोड़ी देर बैठ सकतें हैं। खट्टी वस्तु में विटामिन सी होता है। हमें संतरे नींबू आंवला आदि का अधिक उपयोग करना चाहिए। सभी दालों में प्रोटीन होता है। हमें हमें दालें अवश्य खानी चाहिए।

 

निकु को खाने का स्वाद अच्छा लगने लगा था वह दादाजी से चलते हुए कहानी सुनता। घर में बनाई हुई चीजें खाता। और सैर करते हुए बहुत ही आनंद महसूस करता। उसे नींद भी अच्छी आती थी। उसके दादा जी सुबह लोगों को इकट्ठा कर योगा भी सिखाते थे।

 

एक दिन दादा जी कहने लगे बेटा मेरा बेटा मुझे अब नहीं मिलेगा। मुझे वापस जाना पड़ेगा कब तक यंहा पड़ा रहूंगा। मुझे वापस जाना होगा। वहां पर उन्होंने योगा का स्कूल भी खोल लिया था। अपने लिए उन्होंने न जाने कितने रुपए इकट्ठे कर लिए थे। वह कहने लगे मेरे पास तो गांव में भी इतनी जमीन में है मैं अपने पोते को ढूंढने आया था शायद मेरा पोता इन इस जन्म में मुझे मिलने वाला नहीं है बेटा यह सब मैंने जो रुपए इकट्ठे किए सब मैं निक्कू के नाम कर देता हूं। निक्कू के पापा बोले हमारे पास तो सब कुछ है मगर हमारे पास आप जैसे बुजुर्गों का आशीर्वाद नहीं है। हमारे पास हमारे मम्मी पापा नहीं है। हम तो समझे थे कि हमें अपने बुढ़ापे में अपने पापा का प्यार मिल गया मगर हमें यह नहीं मालूम था कि जिससे हम प्यार कर बैठे वह हमारे कोई नहीं लगते।

 

रामप्रसाद उनका प्यार देखकर बोले बेटा ऐसा नहीं कहते कौन कहता है तुम्हारे पास बुजुर्गों का आशीर्वाद नहीं है? मैं तुमको आशीर्वाद देता हूं। तुम खूब फलो फूलो। नीकू को तो मैं इतना प्यार करता हूं क्या कहूं। इतना प्यार बढ़ाना ठीक नहीं होता कल कहीं तुम मुझे इससे दूर जाना पड़े तो मैं उससे दूर नहीं जा पाऊंगा। आया तो अपने पोते को ढूंढने था मगर मुझे अपने पोते के रूप में अपना प्यार मिल गया।

 

निक्कू का जन्मदिन था निक्कू के मम्मी पापा ने निक्कू के दोस्त बन्टू को खाने पर बुलाया वह अपने सभी अपने मम्मी पापा के साथ आने वाला था। निक्कू के दादाजी निक्कू को जन्मदिन का उपहार देना चाहते थे। वह बाजार से जब उपहार लेने गए तो वहां पर दुकान पर अपनी बहू और बेटे को देख कर चौक  गए। वेे वहां से कुछ तोहफा ले रहे थे। उनके बेटे सोनू ने देखकर नजरें झुका ली जैसी वह उन्हें जानता ही नहीं रामप्रसाद जी को इतना दुख हुआ वह तो अपना सब कुछ छोड़ कर अपने पोते को ढूंढने आए थे मगर उन का पोता तो उन्हें देखकर आंखे फेर रहा था। उन्हें समझ में आ गया इसलिए नजर झुका रहा था शायद वह उन्हें पहचानने से इसलिए इन्कार कर रहा है कि कंहीं  अपने बूढ़े दादा जी को अपने साथ रखना पड़ेगा। वे चुपचाप आकर  एक किनारे बैठ गए। एक दुकान के पास उपहार पसंद करने लगे।  दादा जी उनकी आवाज को साफ सुन सकते थे। सोनू की पत्नी मेघा बोली अच्छा हुआ तुमने अपने दादाजी देखकर नजरअंदाज कर दिया नहीं तो इस बूढ़े को अपने घर पर रखना पड़ता। अच्छा हुआ उन्होंने हमें नहीं पहचाना। सोनू बोला ठीक है दादा जी ने सब कुछ सुन लिया था। उनकी आंखों में आंसू आने ही वाले थे।

 

शाम को जब राम प्रसाद घर आए तो वह बहुत ही उदास थे। निकूंज बोला दादा जी आपको क्या हुआ है? रामप्रसाद बोले बेटा अगले हफ्ते मैं गांव जाने वाला हूं बेटा। मुझसे इतना प्यार मत बढ़ाओ। उन्होंने निक्कू को एक बड़ा सा टेडी बेयर उपहार में दियाह शाम को जब बन्टू आया तो निक्कू ने कहा चलो बन्टू तुम्हें मैं अपने दादाजी से मिलवाता हूं। उसके साथ उसके मम्मी पापा भी थे। राम प्रसाद ने जैसे सोनू को देखा मगर अनजान बनकर उन्होंने उनसे बात नहीं की। नीकू के पापा ने रामप्रसाद जी के साथ अपने दोस्त को मिलवाया। रामप्रसाद जी ने कुछ नहीं कहा। जैसे ही नीकू के पापा गए तो राम प्रसाद ने चुपके से एक कोने में ले जाकर सोनू को कहा मैंने तुम्हारी बातें सुन ली थी बेटा। मैं तुम्हें देखने शहर आया था। मगर मैं उन्हें नहीं बताऊंगा कि तुम मेरे पोते हो। तुम मुझे अपने साथ नहीं रखना चाहते कोई बात नहीं तुम खुश रहो।

 

निक्कू के पिता रवि ने कहा यह बूढ़े दादा जी अपने पोते को ढूंढने आए थे मगर उन्हें अपना पता नहीं मिला। उन्होंने तो हमें इतना प्यार दिया। हम तो इनका प्यार पाकर फूले नहीं समाए। काश  वे हमारे साथ ही यहां रहे। जब सोमू ने यह सुना तो उसे अपनी करनी पर बड़ा दुख हुआ।

 

दादाजी अपने गांव वापस आए। निक्कू के पापा ने कहा कि हम भी अगली छुट्टियों में गांव आएंगे। हम  हम सोचेंगे कि हमारा भी गांव है। हमारा बेटा तो अपने दादाजी को पाकर फूले नहीं समाया। हम तो सोचते हैं कि यहां से छोड़ छाड़ कर गांव में ही बस  जाने। जहां पर हमारे बच्चों को खुला खुला वातावरण मिलेगा। वह छुट्टियों में गांव आए। दादाजी ने अपना सब कुछ नीकू के नाम कर दिया। उन्होंने एक हिस्सा अपने पोते के नाम रख छोड़ा था। अगर कभी वह गांव आए तो उसे भी गांव में रहने को मिले। निक्कू के माता-पिता गांव में ही आकर बस गए। दादाजी ने निक्कू के नाम सारा घर कर दिया।

 

सोमू जब गांव आया तो वहां पर अपने घर में निक्कू को देखकर हैरान रह गया। निक्कू के दादाजी तो इस संसार से विदा हो चुके थे। सोनू ने बताया कि मैंने अपने दादाजी को पहचानने में से इंकार कर दिया था। मुझे भगवान कभी माफ नहीं करेगा। वह मुझे ढूंढते हुए शहर आए थे मैंने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया। उन्होंने हमें इतना प्यार दिया। हम अपने दादा जी के प्यार की कीमत को पहचान नहीं सके। मुझे उन्होंने बताया कि तुम अपने दोस्त को मत बताना। दूसरे दिन ही अपने गांव को वापिस आ गए। मैं अपनी पत्नी की बातों में आ गया था। मैंनें अपने दादा जी के साथ बड़ा अन्याय किया फिर भी वह हमारे नाम अपनी जमीन छोड़ गए। मैं उनके उनकी दान की हुई जमीन पर स्कूल खुलवा लूंगा। उनकी इच्छा को उनके मरने के बाद अवश्य पूरी करूंगा। दादाजी अलविदा। मुझे माफ कर देना तुम्हारा प्यारा सोमू। सोमू नें दादा जी की जमीन पर स्कूल बना दिया और उसे बच्चों को देख कर खुशी होती थी।

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