सच्चा साथी

एक सेठ था उनका नाम अधिराज था। उनके एक बेटा था। उनका बेटा जब थोड़ा बड़ा हुआ तो उसका भी अपने दोस्तों के साथ खेलने का मन करता था परंतु सेठ अपने बेटे को बाहर जाने से रोकता था। कहीं मेरा बेटा गलत संगत में ना पड़ जाए इसलिए उसने उसकी शिक्षा के लिए बड़े-बड़े अध्यापकों को अपने घर पर ही लगवा लिया था। उसके बेटे को कोई ना कोई तो साथ खेलने के लिए चाहिए था। एक दिन जब वह स्कूल से वापस आ रहा था उसके पिता के दोस्त उसे मिले वह विदेश में बस चुके थे। उनके पास एक बहुत ही अच्छी नस्ल का कुत्ता था। उसका नाम था टोबु। वह उस कुते को विदेश से लाए थे। उस कुत्ते को देखते ही उसके मन में ख्याल आया कैसे ना कैसे करके अपने पापा को मनवा कर इस कुत्ते को हासिल करके ही दम लूंगा। मेरे पापा भी मेरी इस इच्छा को तो अवश्य ही पूरी कर ही सकते हैं। वह उस कुत्ते को लेने की जिद करने लगा। उसके पापा तो कुत्तों से बहुत ही नफरत करते थे। वह तो उसको लेना तो दूर उस की तरफ देखना भी पसंद नहीं करते थे। अधिराज की बेटे सन्नी ने दो दिन तक कुछ भी नहीं खाया। अधिराज को अपने बेटे पर तरस आ गया उसने अपने बेटे को कुत्ता लाने की आज्ञा दे दी। कुत्ता लेकर घर आ गए जब कुत्ते को लेकर आए तो सन्नी को ऐसा लगा मानो उसे एक साथी मिल गया हो। वह हर वक्त जहां भी जाता अपने कुत्ते के साथ जाता। उसको घुमाने ले जाता। वह बहुत ही खुश रहने लग गया था। उसके पिता ने उसकी इच्छा को पूरी कर दिया था। सेठ अधिराज उस कुत्ते को घर लाने पर खुश नहीं थे। वह उस से इतना प्यार नहीं करते थे परंतु अपने बेटे के प्यार के कारण उन्हें झुकना ही पड़ा। कहीं ना कहीं वह भी टोबु से प्यार करने लग गए थे। सन्नी भी टोबु को पाकर खुश हो गया था। एक दिन की बात है कि अधिराज ने अपने बेटे सन्नी को बुलाया और कहा बेटा मैं बहुत दिनों से सोच रहा था कि मैं कहीं बाहर घूम कर आता हूं। मेरी अनुपस्थिति में तुम्हें ही दुकान संभालने होगी। मुझे तुम पर पूरा विश्वास है। तुम दसवीं की परीक्षा भी दे चुके हो। तुम्हारा परिणाम आने में अभी देर है। मेरी दुकान को तुमसे अच्छा और कोई नहीं सम्भाल सकता है। मैं तुम से फर्माईश कर रहा हूं। अधिराज सेठ अपने बेटे के पास दुकान का सारा कारोबार संभाल कर चला गया। दो-तीन दिनों तक सन्नी दुकान के काम में इतना मसरूफ रहा कि टोबु की भी अच्छी सेवा नहीं कर सका। उसके मन में आया कि मैं अपने टोबु के साथ ऐसे ही दिल लगा बैठा। मेरा इसके साथ इतना प्यार बढ़ाना ठीक नहीं है। किसी दिन यह मुझसे बिछड़ गया तो मैं इसके बिना जिन्दा नहीं रह पाऊंगा। क्या करूं? इस प्रकार सोचते-सोचते उसे नींद आ गई। टोबु उसके साथ कुछ देर खेलना चाहता था। सन्नी के पास समय नंही था। उसे दुकान भी सम्भालनी थी। सन्नी को टोबु पर गुस्सा आया। उसने अपने कुत्ते को एक कमरे में बंद कर दिया था। वह उसे काम नहीं करने दे रहा था। इस बात को वह भूल गया था कि उसनें टोबु को बन्द कर दिया था। उसे दुकान में ही नींद आ गई उसने अपने टोबु को कमरे में ही सारी रात बंद रखा।। रात को चोर आए उसकी दुकान में से सब कुछ चुरा कर ले गए। टोबु कुछ नहीं कर सकता था। क्योंकि वह अंदर बंद था। अधिराज की दुकान में कुछ भी नहीं बचा था। सुबह जब उसकी नींद खुली तो देखा उसका लॉकर खाली था। चाबियां ‘सारे के सारे कपड़े और सारा रूपया चोरी हो चुके थे।। दूसरे दिन उसके पिता घर पहुंच चुके थे। उन्होंने देखा सारी दुकान खाली थी। सारा का सारा सामान चोरी हो गया था। उन्होंने अपने बेटे को कहा तुम्हारे ऊपर विश्वास कर के मैं दुकान तुम्हारे भरोसे छोड़ कर गया था। मुझे तुम पर विश्वास नहीं करना चाहिए था। इससे अच्छा होता तुम पैदा ही नहीं हुए-होते। तुमने तो मुझे कंगाल बना दिया। तुम्हें मैं घर से निकाल भी नहीं सकता। ना जाने अपने बेटे को गुस्से में उसके पिता ने क्या-क्या खरी-खोटी सुना डाली। सन्नी सोचने लगा सब कुछ इस टोबु का ही कसूर है। यह मुझे काम नहीं करने दे रहा था। हमारे पास तो अब कुछ भी नहीं बचा है। सचमुच ही मुझे इस टोबु को कहीं छोड़ देना चाहिए था। इससे पहले कि वह कुत्ते को कहीं छोड़ देने का विचार बना रहा था। उसके पिता बोले एक तो तुम कमाते कुछ भी नहीं हो और उस पर कुत्ता पालने का शौक रखते हो। कुत्ते को पालने का इतना ही शौक है तो अपने दम पर पालो। सन्नी को अपने पिता पर क्रोध आया। वह बोला यह मेरा कुत्ता नहीं है। यह मेरा दोस्त है। इसको मैं कहीं छोड़ नें की भी नहीं सोच सकता।उसके पिता ने कहा अगर इस टोबु को घर में रखना है तो मेरे घर में इसके लिए कुछ भी नहीं है सन्नी फूट-फूट कर रोने लगा। दो दिन तक ऐसे ही परेशान घूमता रहा। तीसरे दिन उसने सोचा ठीक है अगर मेरे परिवार वाले ऐसा नहीं चाहते तो मैं इस टोबु को अपने से दूर कर दूंगा। वह मन मार कर उसे बहुत ही दूर छोड़ कर आ गया ताकि वह वापस ना आ सके। उसके पिता अधिराज ने भी सारा कसूरवार उस टोबु को ही ठहरा दिया था। वह भागकर सन्नीको जगा सकता था। उन्हें क्या पता कि कि इसमें टोबु का-कोई कसूर नहीं था। वह तो बेचारा कमरे में अंदर बंद था। थक हार कर उसे वहीं नींद आ गई थी। सन्नी अपने कुत्ते को छोड़ तो आया परंतु अपने पिता अधिराज उसे एक दुश्मन नजर आने लगे।उन्होंने सारा दोष उस कुत्ते को दे दिया था। इस कारण जल्दबाजी में सन्नी ने यह फैसला ले लिया। वह अपने टोबु से बिछड़ कर बहुत ही पछता रहा था। एक दिन उसके पिता और सन्नी दोनों अपने घर के दूसरे गैराज में जिसको कभी नहीं खोलते थे वहां पर गए। वहां पर किसी के करहानें की आवाज जोरों से आ रही थी। सन्नी ने देखा उसका टोबु लौटकर वापिस आ गया था। सन्नी ने आव देखा ना ताव कस कर टोबु को प्यार करते हुए कहा अच्छा हुआ जो तू वापिस आ गया नहीं तो मैं अपने आप को कभी माफ नहीं करता। उसकी आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे। टोबु भी प्यार भरी नजरों से कुछ मानो वह कुछ कहना चाहता था। उसके पिता ने गोदाम खोला तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। उसके घर का सारा चोरी हुआ माल बोरियों में फेंका हुआ था। सामने एक कागज का पुर्जा पड़ा था जिस पर लिखा था यहां से जल्दी भागो वर्ना पुलिस हमें पकड़ लेगी। यहां पर मैंने एक डिब्बे में कपड़े रुपए अधिराज सेठ की दुकान से चोरी की है। जल्दी भागो’ कपड़े भी डिब्बे में वहीं पड़े थे। अधिराज को अपना सारा खोया हुआ सामान मिल गया था और करोड़ों रुपए भी। शायद टोबु यहां इसलिए बैठा था ताकि वह बता सके यहां रुपया है। वहां का ताला भी टूटा हुआ था। वह उसकी रखवाली कर रहा था। अधिराज खुशी के मारे पागल हो गया था। सन्नी बोला आज से मैंने सबक ले लिया है मैं अपने टोबू को अपने दम पर पा लूंगा। मैं उसे कहीं भी छोड़कर नहीं आऊंगा। वह वापिस आ गया नहीं तो मैं अपने आपको सारी जिंदगी कभी माफ नहीं करता। उसने दौड़कर टोबु को अपने गले से लगाते हुए कहा मेरे दोस्त भाई तुम मुझे कभी छोड़ कर मत जाना। तुम्हारे सिवा मेरा इस संसार में कोई नहीं है। तुम ही तो मेरे एक सच्चे दोस्त हो मुझे माफ करना मेरे दोस्त।

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