सच्ची मित्रता

राम और श्याम बहुत ही पक्के मित्र थे। एक दिन की बात है कि दोनों दोस्त जंगल में शिकार  करने गए हुए थे। छोटे छोटे जानवरों का शिकार किया करते थे । उन्हीं शिकार करने का बहुत ही शौक था जो कुछ शिकार करते हुए बाजार में बेच कर जो भी रुपया मिलता वह भी आधा आधा बांट लिया करते थे।

 

एक दिन की बात है कि वह शिकार करने के पश्चात जंगल में बहुत ही दूर निकल आए। उन्होंने अपने थैले को एक जगह सुरक्षित रख दिया।  वे दोनों सुस्ता रहे थे अचानक झाड़ियों में उन्हें आहट सुनाई दी।

राम ने देखा एक शेर उनके पास ही पहुंचने वाला था। राम को पेड़ पर चढ़ना आता था।। लेकिन उसके दोस्त शाम को पेड़ पर चढ़ना नहीं आता था।  राम तो जल्दी से पेड़ पर चढ़ गया उसने अपने दोस्त की तरफ तनिक भी ध्यान नहीं दिया । वह तो केवल अपनी जान बचाना चाहता था। उसका दोस्त श्याम वह तो नीचे ही रह गया था श्याम ने सोचा आज तो मैं बच नहीं सकता।  उसने होशियारी से काम लिया। उसके पिता ने बताया था कि चाहे इंसान के ऊपर कितनी भी बड़ी मुसीबत आ जाए अगर इंसान हिम्मत ना हारे तो उस मुसीबत से छुटकारा पा सकता है।

एक बार  श्याम के पैर के पास से बचपन में एक सांप लिपट गया था।  उसके पापा ने उसे बताया कि बेटा जरा भी हिलना नहीं बिल्कुल चुपचाप निश्चल होकर पड़े रहो। अगर तुम सांप से डर गए तो  या तुमने अपने पांव को जरा भी झटकाया  या हिलाया तो सांप तुम्हें नुकसान भी पहुंचा सकता है। उसने पैर को जरा भी नहीं  हिलाया बुलाया नंही निश्चल होकर पड़ा रहा जैसे पैर में जान ही ना हो। सांप उसके ऊपर से निकल गया सांप ने उसको कुछ भी नुकसान नहीं पहुंचाया। उसे बचपन की वह बात याद थी  उसके पापा ने उसे समझाया था इंसान का सबसे बड़ा शत्रु उसका डर होता है। जिसने डर पर काबू पा लिया वह किसी भी  चीज से  डरता नहीं है । उस मनुष्य की सदा जीत होती है। उसे अपने पापा की बचपन की सीख याद आ गई। उस समय तो वह बच्चा था जब वह घटना घटित हुई थी। आज तो वह एक 15 वर्ष का नवयुक था ।

 

उसने जैसे ही शेर को सामने आते देखा वह चुपचाप सांस रोक कर लेटा रहा शेर ने उसे सुंधा शेर ने उसे मृत जानकर उसे छोड़ दिया । थोड़ी देर बाद शेर जा चुका था । उसका मित्र राम पेड़ से नीचे उतरा उसने देखा उसका दोस्त जिंदा था। राम बोला यार मुझे माफ कर दे। मुझे उस समय कुछ भी नहीं सूझा।  राम ने उससे पूछा दोस्त यह बताओ शेर ने  तुम्हारे सामने आने पर भी तुम्हें छोड़ दिया।  उसका दोस्त बोला मैं तुम्हारी तरह डरपोक नहीं हूं। तुम तो अपनी जान बचाने के लिए जल्दी से पेड़ पर चढ़ गये अगर मैं पेड़ पर चढ़ना जानता होता तब भी मैं तुम्हें अवश्य बचाता। परंतु तुमने मुझे नहीं बचााया। मैंने तो तुमसे सच्ची मित्रता की है। लेकिन तुमने आज अपनी मित्रता को कायम नहीं रखा।

 

राम बोला ऐसी बात नहीं है जब शेर सामने आता तो अगर तुम पेड़ पर चढ़ना जानते और मैं पेड़ पर चढ़ना नहीं जानता होता तुम भी जल्दी से पेड़ पर चढ़ जाते मुझे नहीं बचाते। यह दोस्ती दोस्ती तो बोलने की बातें हैं। इंसान तो अपना ही बचाव पहले करता है। इस तरह कुछ दिन व्यतीत हो गए। वे दोनों दोस्त पहले की तरह ही जहां जाते इकट्ठा ही जाते।

 

एक दिन वह एक नदी के पास से गुजर रहे थे दोनों को प्यास लगी हुई थी।  वहां नदी के तट पर दोनों नहाने लगे।  अचानक  राम का पैर फिसला वह नदी में गिर गया। पानी का बहाव तेज था  राम को जरा भी  तैरना नहीं आता था। श्याम ने  देखा उसका दोस्त पानी में डूबा जा रहा था। श्याम को तैरना आता था।  राम ने अपने दोस्त को बचाने के लिए  पुकारा।  उसने अपने हाथ ऊपर उठाए। उसके मन में ख्याल आया कि आप आज तो मेरा दोस्त मुझे नहीं बचाएगा।   उसे उस दिन की घटना याद आई उसने कैसे अपने दोस्त की जान नहीं  बचाई थी।    अपनी जान बचानें के लिए पेड़ पर   जल्दी से चढ़ गया था। वह सोचनें लगा  आज तो कोई भी मेरी जान नहीं बचा सकता। मुझे अपने किए की सजा अवश्य मिलेगी।

 

श्याम नें देखा  उसका दोस्त  तैरना ना नहीं जानता है। उसने जल्दी से बाहर आकर बांस के डंडे लिए और पानी में छलांग लगा दी। उसने अपने दोस्त को बचाने के लिए पानी में बहुत देर तक अन्दर  जाकर उसे ढूंढ निकाला  तभी उसे सामने से आता हुआ मगरमच्छ दिखाई दिया। मगरमच्छ तो आज उन्हें खा  ही जाएगा। उसने अपने दोस्त कोनें के एक   छोर तक पहुंचा ही दिया  था। उसने अपने दोस्त को इशारा किया। जल्दी से उस बांस के डंडे को पकड़कर ऊपर  आ जाओ।

 

उसका दोस्त जल्दी से ऊपर आ गया। वह थोड़ा बेहोश हो चुका था। वह ऊपर आ कर अपने दोस्त को देख रहा था। यह क्या उसका दोस्तों पूरी तरह मगरमच्छ की चपेट में आ गया था । आज फिर श्याम नें उसकी जान बचा कर अपनी  सच्ची दोस्ती की मिसाल कायम रखी थी।   श्याम काफी देर तक मगरमच्छ से लड़ता रहा। उसकी टांग लहूलुहान हो चुकी थी

 

तब तक बहुत सारे लोग इकट्ठा हो चुके थे। मछुआरे ने एक चाकू  श्याम की ओर फैंका।  चाकू का प्रहार श्याम नें मगरमच्छ  पर किया। मगरमच्छ मर चुका था  उसके दोस्त राम  नें अपने दोस्त से क्षमा मांगी। मैंने तुम्हारी दोस्ती पर शक किया था।  तुम  मेरी तरह स्वार्थी नहीं हो। आज तुमने मेरी जान बचा कर मुझे एहसास दिला दिया  है कि मुसीबत के समय जो साथ दे वही सच्चा दोस्त होता है। मुझे तुम्हारी दोस्ती पर गर्व है। ऐसा मित्र सबको दे।

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