एक छोटा सा गांव था। गांव के समीप ही झुग्गी झोपड़ी वाले लोग रहते थे। उनमें एक मजदूर भी रहता था। उसका नाम था शेर सिंह जैसा नाम था उसी के समान काम करनें वाला। शेर सिंह इतना ईमानदार था कि हर काम को सूझबूझ के साथ करता था। हर रोज सुबह मजदूरी करने निकल जाता। धूप में रात दिन मेहनत करता तब कहीं जाकर उसे ₹300 मिल जाते। इतने थोड़े रुपए में भी वह बहुत खुश था। उसके एक बेटा था वह आठ साल का था। कभी-कभी उसे वह स्कूल भेजता। कभी नहीं, क्योंकि वह कभी कहीं किसी जगह पर टिक कर नहीं रहता था। जहां कहीं भी काम मिलता था वहीं पर चले जाते थे इसीलिए वह बच्चा कभी कहीं कभी कहीं, उसकी पढ़ाई में विघ्न बाधा आ रही थी। उसका पिता पत्थर तोड़ने का काम करता था। एक जगह पर छः महीने से ज्यादा समय नहीं गुजरता था। उसकी पत्नी भी अपने पति के काम में उसकी सहायता करती थी।
उसकी पत्नी रूपा गांव के पास ही एक बैंक में कर्मचारी बच्चों के साथ रहते थे। रुपा उनके घर की देखभाल करती थी।। उनके यहां झाड़ू पोछा बर्तन सब काम किया करती थी। थोड़ा काम साथ वाले घर में भी किया करती थी। वह ₹700 कमा लेती थी। वह दोनों बड़ी ईमानदारी से काम करते थे।
शेर सिंह जो मजदूरी करके लाता वह ठीक वक्त पर अपने कार्यालय में पहुंचकर ठीक समय पर हाजिर होकर और फिर अपना पत्थर का तोड़ने का काम करता। गर्मी में काम करते करते उसके हाथ पांव दुःख जाते। उसके हाथ में छाले पड़ जाते फिर भी वह कभी हिम्मत नहीं हारता था। एक दिन जैसे ही शेर सिंह अपने मैनेजर के कार्यालय में पहुंचा वहां पर उसे पत्थरों को तोड़ने का काम सौंपा गया था। उसको देखकर आपस में मजदूर कहने लगे देखो शेरू बाबू वक्त के कितने पाबंद है? चाहे चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए। हम तो कभी-कभी अपने मालिक से झूठ भी बोल कर चला लेते हैं मगर यह जनाब ना जाने किस मिट्टी के बने हैं। इन्होंने तो सारे जीवन भर ईमानदारी से काम करने का ठेका लिया है। पता नहीं इस इंसान के दिमाग में क्या भूसाभरा भरा हुआ है जो अपने प्रण से कभी भी नहीं डिगा। इसे तो महाभारत का अर्जुन होना चाहिए था। एक मजदूर बोला हमारा मैनेजर इतना निष्ठुर है। वह तो पत्थर दिल है हम पर भी जरा भी दया नहीं करता। सुबह होते ही अपना लेक्चर झाड़ने लगता है। यह काम करो, वह काम करो, नहीं करते हैं तो दुनिया भर के ताने सुनाते हैं। क्या पता हमारी जिंदगी में पत्थर तोड़ने ही लिखे हैं। आज अगर कुछ पढ़े-लिखे होते तो कहीं चपरासी की नौकरी तो मिल जाती। दूसरा मजदूर बोला अपनी छोड़ जल्दी-जल्दी हाथ पांव चला हम लोगों को गप्पें मारता हुआ देख लिया तो काम से हमारा मैनेजर हमें निकाल देगा। तीसरा मजदूर बोला तो क्या हुआ? हम उससे डरने वालों में से नहीं है। वह क्या सारा दिन काम करा करके हमारी जान लेगा। हमें भी तो थोड़ा गप्पे लड़ाने के लिए समय मिलना चाहिए। इतने में फैक्ट्री का मालिक गोवर्धन उन्हें डांट देता है। एक झुंड में मिलकर काम मत किया करो। इस शेर सिंह को देखो बिल्कुल गाय है। वह अपना काम इमानदारी से करता है। मालिक मैनेजर वहां से चला गया था। चौथा मजदूर बोला और लगाओ मक्खन। किसी दिन इसने काम नहीं किया तो इसको भी वह नहीं छोड़ेगा। सब खिल खिलाकर हंसते हैं।
रूपा जैसे ही घर से काम पर निकली वह अपनी मालकिन के घर पहुंचने ही वाली थी। वहां पर औरतें खड़ी हो कर बातें कर रही थी। एक औरत कह रही थी मेरे घर पर आज सत्यनारायण की कथा है जरूर आना। दूसरी बोली आज मैं अपने मायके जा रही हूं। आज नहीं आ सकती। थोड़ा आगे बढ़ी तो कुछ उसी की तरह घरों में काम करने वाली औरतें इकट्ठी मिलकर आपस में बातें कर रही थी। वह कह रही थी इस रूपा को देखो अपने मालिक से ज्यादा रुपए कमाती है। इसका आदमी बेचारा सारे दिन मजदूरी करता है तो भी उसे अपनी पत्नी से कम ही रुपए मिलते हैं। मैं तो अपने पति को कभी मजदूरी नहीं करने देती। दूसरी बोली तुम ठीक कहती हो मेरा पति तो बहुत ही रुपया कमा कर लाता है। तीसरी बोली मेरा पति भी। वह रूपा के पति की तरह नहीं है। रुपा नें उन सब की बातों को सुना अनसुना कर दिया। उसने अपनी मालिकन के घर का दरवाजा खटखटाया। प्रभा ने दरवाजा खोला। आज तो तुम जल्दी ही आ गई। कोई बात नहीं जितनी जल्दी काम निबट जाए उतना ही अच्छा है।
प्रभा एक बैंक में काम करती थी। वह अपनी बेटी की कंघी कर रही थी। बेटा आयुष भी शोर कर रहा था। चिल्ला कर बोला मां मेरा लंच बॉक्स दो। उसकी बेटी अनू बोली पहले मेरी चोटी करो। आयुष और अनू दोनों हाथापाई करने लगते हैं। मेज पर से पानी का जग नीचे गिरा देते हैं। यह देखकर प्रभा रूपा से बोली। यह बच्चे हैं या आफत की पुड़िया। मुझे हरदम सताते रहते हैं।
प्रभा अपने पति पुनीत को जोर से आवाज देकर बुलाती है जल्दी आओ। खाना मेज पर लग गया है। मेज पर चारों खाना खाने बैठ जाते हैं। उन्हें रुपा गरम-गरम रोटियां पका कर देती है। प्रभा चेहरे पर मुस्कान लिए अपने पति का टिफिन पैक करती है। घर में गोल मेज पर भी सब खाना खा रहे हैं और सामने दीवार पर घड़ी की तरफ देखती हुई प्रभा बोली कि जल्दी करो जल्दी करो तभी अलार्म बज उठता है। प्रभा तीनों को कहती है अलार्म बज गया है। जल्दी जाओ वरना बस छूट जाएगी।
एक छोटा सा घर साथ में बालकनी और एक छोटा स्टोर रुम। प्रभा रुपा को बोली ऑफिस को देर हो रही है। अब तुम संभाल लेना। सब के सब घर से चले जाते हैं।प्रभा अपने घर की चाबी रूपा को दे कर बोली घर का ख्याल रखना। रूपा उनका काम इमानदारी से करती और काम करके सीधे घर आ जाती थी।
आज जैसे ही वह घर कि ओर आ ही रही थी उन औरतों के शब्द हथौड़े के समान उसके कानों में गूंज रहे थे। तुम्हारा पति तो मजदूरी करता है। घर आकर वह बहुत ही बेचैन थी। उसे नींद ही नहीं आ रही थी। वह सपनों की दुनिया में हिलोरे खान लगी। जब से शादी हुई थी उसके पति ने उसे इतना प्यार दिया था उसे वह सब कुछ दिया था जो कि एक पत्नी को मिलना चाहिए। उसका पति हरदम उसको खुश देखना चाहता था।
एक बार जब वह बीमार पड़ी तो सारी सारी रात बैठकर उसकी सेवा की। वह अपने पति को कुछ नहीं कहेगी वह इसी तरह काम करती रही।
रूपा का बेटा गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ता था क्योंकि वहां पर वर्दी खाना पीना सब कुछ मुफ्त में था। उसने अपने बेटे को वहां पढ़ने डाल दिया था। वह पांचवी कक्षा में पढ़ता था। जैसे मुन्ना आधी छुट्टी में खेलने जाने लगा तो उसके दोस्तों ने उसे चिढ़ाना शुरु कर दिया तुम्हारा बापू तो मजदूरी करता है। वह बोला तो क्या हुआ? मजदूरी करना क्या कोई बुरी बात होती है। इतने में उसके दोस्त बोले और तो क्या? पत्थर तोड़ना कितने शर्म की बात है। इसका बापू पत्थर तोड़ने का काम करता है। मुन्ना की आंखों में आंसू आ गए। वह कुछ नहीं बोला। उसकी मां ने उसे अपनी कसम नहीं दी होती तो उन सबको छठी का याद दिला दे देता। उसके कानों में अपनी मां के शब्द गूंजनें लगे बेटा स्कूल में अच्छी तरह मन लगाकर पढ़ना। दोस्तों के साथ लड़ाई झगड़ा करोगे तो तुम्हारी फरियाद कोई नहीं सुनेगा क्योंकि हम झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोग हैं। झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोगों को अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता। तुम दोस्तों के साथ लड़ाई करोगे तो तुम्हें स्कूल से निकाल देंगे तो तुम्हें कहीं भी पढ़ाई करने के लिए नहीं मिलेगी। इसलिए लड़ाई झगड़ा मत किया करो इसी वजह से वह चुप रहा।
शाम को मुन्ना घर वापस आया तो अपनी मां से बोला मां मुझे सब के सब बच्चे चिढ़ाते हैं। यह कह कर कि तुम्हारे पिता मजदूरी कर पत्थर तोड़ते हैं। उसकी मां बोली बेटा इसमें बुरा क्या है? कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता। मेहनत से कमाया एक-एक ₹1(एक रुपए) करोड़ों के बराबर होता है। रुपा नें यह बात अपनें बच्चे से कह तो तो दी मगर उसके दिमाग में वही औरतों के शब्द गूंज रहे थे।तुम्हारा पति तो पत्थर तोड़ने का काम करता है। आज उसका काम में भी मन नहीं लग रहा था। वह बहुत ही उदास थी। प्रभा ने उसे कहा कि आज तुम अपना काम भी ठीक ढंग से नहीं कर रही हो। क्या बात है? रूपा बोली बीवीजी क्या मेरे पति को भी काम मिल सकता है प्रभा बोली अभी तो नहीं। सोच कर किसी दिन बताऊंगी।
शाम को जब रूपा घर आई तो अपने पति की तरफ देख कर बोली आप तो मजदूरी करते करते थक ही जाते होंगे। सारा दिन कमाई करते हो। आप को कुल ₹300 मिलते हैं। मैं सारा दिन काम नहीं करती फिर भी मैं आपसे ज्यादा कमा लेती हूं। आप ये काम छोड़ दी। हम कोई और काम देख लेंगे। आज मुन्ना के स्कूल के बच्चे उसे चिढ़ा रहे थे। कि तुम्हारा बापू एक मजदूर है। पत्थर तोड़ता है। शेर सिंह बोला तो क्या हुआ? जो बात सच है उसे कैसे झूठलाया जा सकता है? वह ठीक ही तो कहते हैं। मुझे तो काम करने में कोई शर्म नहीं। हम चैन की सांस लेकर सोते हैं। मेहनत का काम करकें खाते हैं और अपने मुन्ना का पेट भरते हैं। इसमें गलत क्या है?
वह बोली आज एक झुग्गी झोपड़ी वाली औरतें भी आपके बारे में अनाप-शनाप बोल रही थी। मुझे अच्छा नहीं लगा। वह बोला तुम इन औरतों की बातों में मत आया करो। उनके पति काम धाम तो कुछ करते नहीं ना जाने क्या-क्या शौक रखे हैं। वह बोली मैं तो ऐसे ही कह रही थी। आप इस बात को ठंडे दिमाग से सोचना। आपको और जगह काम मिल जाएगा तो क्या बुराई है? शेरसिंह बोला भाग्यवान आज अगर मैं आठवीं तक भी पढ़ा लिखा होता तो कभी मजदूरी नहीं करता। मुझे अब कौन नौकरी पर रखेगा जब मेरे पास विद्या ही नहीं है तो नौकरी क्या खाक मिलेगी। इसलिए मैं चाहता हूं कि मेरा जरूर बेटा जरूर पढ़े लिखे।
आजकल के माहौल में जो इंसान पढ़ा लिखा नहीं होगा उसका कहीं गुजारा नहीं हो सकता रूपा ने जोर देकर अपने पति पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि तुम यह काम छोड़ दी। उसको अपनी पत्नी पर गुस्सा आ रहा था कि बेवकूफी कहीं की। वह भी दुनिया वालों की बातों में आ गई। दो दिन तक उसकी पत्नी ने कुछ खाया पिया नहीं।
ठीक है जैसा तुम कहोगी वैसा ही करूंगा उसने मजदूरी पर जाना छोड़ दिया घर बैठे बैठे कोई काम नहीं करता था एक दिन तंग आकर काम ढूंढने निकला तो सभी जगह उसे नौकरी नहीं मिली घर निराश होकर घर आया। जब वह फिर से अपने कार्यालय के मैनेजर के पास आया तो मैनेजर से कहा कि मुझे फिर से काम पर रख लो। तो मैनेजर ने कहा कि जाओ अब हमारे पास भी तुम्हारे लिए काम नहीं है। वह हार कर घर की ओर जा ही रहा था तो उसका दोस्त चंदू आकर बोला। हमारे साथ चलो। चंदू उसे अपने अड्डे पर ले गया। वहां पर लोग जुआ खेलते थे। शेर सिंह ने भी वहां जाना शुरू कर दिया। उसी धीरे-धीरे जूआ खेलनें की आदत पड़ गई।
एक दिन उसे ज्यादा रुपए मिले वह अपनी पत्नी के पास आ कर बोला₹4000 मिले हैं। उसकी पत्नी खुश हो गई। अब हुई ना बात। उन्ह नें पूछा कहां काम करते उसने झूठ में ही कह दिया कि एक दुकान में काम करता है उसका पति झूठ नहीं बोलता था इस तरह करते करते उसने पीना भी शुरू कर दिया एक दिन जब मै घर आया तो वह बोला मां मां मेरे दोस्त मुझे चढ़ाते हैं कहते हैं कि तुम्हारे पापा शराबी हैं। चोर हैं। रूपा ने आव देखा न ताव एक झापड़ अपने बेटे के जड़ दिया बोली ऐसी बात की तो तुम्हारी जबान काट डालो। कि वह बोला वह बोली तुम्हारे पिता चोरी नहीं कर सकते। आप से झूठ कहते हैं।। एक दिन मैंने भी उन्हें आपके संदूक से रुपए ले जाते देखा था।
रूपा सोचनें लगी एक दिन सौ रुपए का नोट नहीं मिल रहा था। वह सोचनें लगी कि वह नोट कहां गया होगा? सचमुच मेरे बेटे नें ही चोरी कर के अपनें पापा का नाम लगा दिया। उसे भी चोरी की आदत तो नहीं पड़ गई और अपने बापू का नाम लगा दिया। बोला ठीक है मां आपने नहीं समझना है तो मत समझो। वह दौड़कर खेलनें के लिए चला गया। जब वह काम से घर लौटी तो अपने संदूक पर नजर डाली आज भी सौ का नोट गायब था। वह सोचनें लगी कि कहीं सचमुच मेरे पति किसी गल्त धंधे में तो नहीं फंस गये। यह सोचकर उसने अपने पति पर निगाह रखनी शुरू कर दी।
एक दिन उसकी मालकिन अपने मायके गई थी वह चुपचाप अपने पति के पीछे पीछे गई। अपने पति को जुए के अड्डे पर जाते देखकर उसकी आंखों में आंसू आ गए। वहां पर उसका पति शराब पीकर जुआ खेलने लग गया था। वह बोली यह है आपकी नौकरी। उसका पति बोला कलमूही यहां क्या लेने आई हो? क्या तू ही ज्यादा रुपए कमा सकती है? देख मैं तुझसे ज्यादा रुपए कमाता हूं। यह देख यह सुनकर रुपा के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसने जैसे तैसे करके अपने आप को रोक लिया। उसका पति रुपा से बोला तूने ही मुझे इस दलदल में फंसाया। मैं तो ईमानदारी से अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। आज तुम्हारे लालच ने मुझे एक अयाशी इंसान बनने पर मजबूर कर दिया। जाओ अपनी मालकिन के पास जाओ। रूपा रोते रोते वहां से चली गई। घर आ कर रुपा नें ठन्डे दिमाग से काम लिया। उसनें अपनें देवतातुल्य पति को इतना घिनौना कार्य करनें के लिए मजबूर कर दिया। कंहा मैं और कहां वे। मुझे तो नर्क मे भी जगह नहीं मिलेगी। दूसरों की बातों में आ कर इन्सान अपना अच्छा बुरा नहीं सोच सकता। मैंनें भी वही किया। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है मैं और देर तक उन्हें इस नर्क भरी जिन्दगी से बाहर निकालकर उन्हें फिर से वैसा ही इन्सान देखना चाहती हूं जैसे वह पहले थे। रुपये तो इन्सान फिर भी कमा सकता है। जूए और शराब से कमाया धन हमें किसी भी किमत पर नहीं चाहिए।मैं ऐसा क्या करुं। रुपा नें अपनी मालकिन को सारी बात बताई कि कैसे उसनें अपनें पति को कहा कि मुझे तो आप से ज्यादा रुपये मिलते हैं आप भी ज्यादा रुपये कमाए कर लाओ। मोहल्ले वाली औरतों की बातों में आ कर और मुन्ना के कहनें पर। मुन्ना के दोस्त उसे हर रोज चिढ़ाते थे कि तुम्हारा पिता तो पत्थर तोड़ता है। मुझे भी जब मै आप के पास काम करने आती थी तो औरतें हर रोज आपस में कहती थीकि इसका पति बहुत ही कम रुपये कमाता है। अरी बहन हम तो अपने पति को ऐसा काम नहीं करनें देती। यह पता नहीं कैसे करती है। मैने अपने पति को हर रोज जैसे ही काम करके वापिस आते तो उन्हें कहती आप कोई दूसरी नौकरी क्यों नहीं करते। हर रोज किसी को यही बात कही जाए तो वह भड़क ही जाएगा। ऐसा मेरे पति नें भी किया जिसका परिणाम मेरे सामनें है। रुपा अपनी मालकिन से बोली एक दिन मेरे पति नें मुझे कहा था कि मैं आज पढा लिखा होता कोई भी नौकरी कर सकता था। मगर वह अपना काम ईमानदारी से करता है। मैं कमा कर लाता हूं और तुम्हारे साथ और मुन्नाके साथ दिन भर की सारी थकान मिटाता हूं। रात को इतनी गहरी नींद आती है समय का कुछ भी पता नहीं चलता। मेरे पति अब मुन्ना के पास बैठ कर कभी बात नहीं करते। उन्होंनें मुझे एक दिन कहा था हम अपनें मुन्ना को बहुत पढाएंगे। एक दिन मेरा मुन्ना भी अपनें पापा के नक्शेकदम पर चलेगा। कृपया कर के आप मेरे पति को भी काम पर लगा दें चाहे कम ही रुपये देना धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा। बोली ठीक है। मैं अपने पति से कह कर तुम्हें बताती हूं। रुपा घर वापिस आई तो देखा उसके पति घर आ कर नीचे ही लुढक कर सो गए थे। रुपा नें उन्हें कहा कि मैं तुम्हें काम पर नहीं जानें दूंगी। रुपए के पति नें उसे धक्का लगा कर नीचे गिरा दिया। वह हर रोज पिटती रही मगर वह पीछे नहीं हटी। उसनें अपनें पति को शराब के अड्डे पर जानें ही नहीं दिया। वह बोली चलो हम दोनों मिल कर एक जगह ही काम किया करेंगे। मैं आपके चरण पकड़ कर आप से क्षमा मांगती हूं। आप से बिछुड़कर मैं कंहा सुख पाऊंगी। आप तो महान हो। मैने आप को गल्त काम करनें के लिए मजबूर किया था। इसका दण्ड मुझे मिल चुका है। आप फिर से काम करेंगे वह भी मेरी मालकिन के बच्चों को स्कूल से बच्चों को लाना। हम रिक्शा किराए पर ले लेंगें। आप बच्चों को स्कूल से ले कर आया करेंगे। धीरे धीरे कर के शेर सिंह नें जूए और शराब से छुटकारा पा लिया। इस काम के लिए रुपा को पूरा एक साल लगा लेकिन अपने पति को सुधार करने ही दम लिया। उसका पति दिन को रिक्शा चलाकर बच्चों को स्कूल से लाता शाम को अपनी पत्नी के साथ चाय के ढाबे पर अपनी पत्नी के साथ मिलकर काम करता था। धीरे धीरे करके उनकी स्थिति में सुधार आ गया। औरतें फिर भी छींटाकशी करनें से नहीं थकी लेकिन वह उन सब की बातों की ओर ध्यान ही नहीं देती थी। अपना काम ठीक ढंग से करती थी। दोनों पति पत्नी एक दूसरे से मिलजुल कर साथ रहते हुए हर एक बात एक दूसरे से साझा करते थे। कुछ भी एक दूसरे से कुछ नहीं छिपाते थे। अपनी ईमानदारी से काम करते करते एक दिन मुन्ना भी कौलिज की पढाई करनें लगा गया था। अपनें माता पिता के साथ कभी कभी ढाबे पर काम करता था। वह भी अपनें पिता कुछ तरह ईमानदार बन चुका था। शेरसिंह खुशी खुशी अपनें बेटे के साथ अच्छी जिन्दगी बसर करनें लगा।