सीख

किसी गांव में एक व्यापारी अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह छोटा मोटा काम धंधा कर अपना तथा अपनी पत्नी का भरण पोषण करता था। उसकी पत्नी बेहद ही चालाक  स्त्री थी। अपने पति का कहना कभी नहीं मानती थी वह जो कुछ भी कमा कर लाता वह अपने पति से छुप छुप कर रुपए इकट्ठा करती रहती थी। वह इन रुपयों को चुपचाप एक अलमारी में रख देती थी।। वह बाजार से  जो भी सामान लाती वह अपने पति को उस  वस्तु के ज्यादा ही दाम बताती। उसकी बहुत सारी सहेलियाँ थी। उसमें से  उसकी एक अच्छी दोस्त थी रूपाली।

 

रूपाली  तो उसकी बहुत ही पक्की  सहेली थी।वह  उसके साथ बाजार जाती और उसके साथ  ही सारे रुपए खर्च  कर के  सामान घर लाती थी।  रूपाली कहती कि अगली बार मैं खर्च करूंगी। परंतु हर बार वह उसके रुपए ही खर्चवा कर ही दम लेती। उसके घर जाकर कभी किसी वस्तु की फर्माईश करती कभी किसी वस्तु की वह कहती कि तुम ही तो मेरी एक अच्छी दोस्त हो। जिससे मैं यह सब कह पाती हूं। कभी-कभी  सोचती  इस बार वह अपनी सहेली की मदद नहीं करेगी। मगर फिर वह अपनी दोस्ती की खातिर चुप रह जाती। यह सिल सिला काफी दिनों तक चलता रहा।  उसकी सहेली ने उसे उससे मांग कर ₹20,000  इकट्ठे करले लिए थे।

 

व्यापारी की पत्नी अपनी सहेली को बोली बहन मेरे पति का भी इतना बड़ा कारोबार नहीं है। बड़ी मुश्किल से छोटा व्यापार कर कमा कर लाते हैं। यह तो मैंने उनसे छुपा कर कुछ रूपए ईकटठे किए थे जो मैंने तुम्हे दे दिए। अब तुम जल्दी से मेरे रुपए लौटा देना। उसकी सहेली बोली तुम मेरा विश्वास करो मैं तुम्हारा रुपया  लौटा दूंगी।

एक दिन जब व्यापारी घर लौटा तो उस को उदास देखकर उसकी पत्नी मनोरमा ने पूछा कि क्या बात है? आज बड़े उदास लग रहे हो। वह बोला नहीं ऐसा कोई बात नहीं। आज इतनी मेहनत करने के उपरांत भी ज्यादा बिक्री नहीं हुई। दूसरे दिन जब वह काम पर जाने लगा तो वह बोला बेगम जरा इस महीने खर्चा कम करना। खर्चा कम करने की बात सुनकर वह आग बबूला हो गई। तुम क्या समझते हो  जो कुछ आप कमा कर लाते हो उसको मैं यूं ही फिजूल खर्चे में उड़ा देती हूं।  तुम मुझ पर यूं ही शक करती रहते हो। वह शांत होकर बोला तुम तो नाराज हो गई। मेरा यह मतलब नहीं था। यह कहकर वह घर से चला गया

उस दिन सारा दिन मेहनत करने के बाद भी उसका कपड़ा नहीं बिका। वह मायूस होकर दुकान पर बैठ गया। सामने से उसका दोस्त अविनाश आकर बोला अरे भाई कितने दिनों बाद दिखाई दिए।?कहां रहते हो? भाभी जी तो हमेशा ही बाजार में दिखाई देती है। आजकल क्या कोई मुर्गी फंसा ली है? जो  बहुत ज्यादा कमा रहे हो। वह बोला नहीं भाई साहब तुमसे किसने कह दिया? मेरी पत्नी रुपाली तुम्हारी पत्नी की सहेली है। वह हरदम  तुम्हारी पत्नी की तारीफ  किया क्या करती है? कहती है कि एक भाई साहब है जो इतना कमा कर लाते हैं। तुम तो कुछ भी कमा कर नहीं लाते। एक दिन मुझे रुपयों की आवश्यकता पड़ी तो मैंने अपनी पत्नी से उधार लिए। वह बोली जल्दी लौटा देना मैंने यह रुपए मनोरमा बहन से लिए हैं। कुछ तो मैंने उस से उधार लिए कुछ मैंने उससे ऐसे ही ऐंठ लिए। वह बहुत ही भोली है। जल्दी ही दूसरों की बातों में आ जाती है।

 

अविनाश बोला मेरे दोस्त अपनी पत्नी को समझाओ फिजूल खर्च करना अच्छी  नंही होती। मेरी पत्नी को भी  फिजूलखर्ची  करने की बड़ी आदत है। हर महीने एक नई साड़ी जब तक ना मिले उस को चैन नहीं आता।  मुझसे यह सहन नहीं हुआ क्योंकि तुम मेरे सच्चे दोस्त हो? इसलिए मैं तुम्हें सब बता रहा हूं। वह बोला भाई तुम अपनी पत्नी को फिजूल खर्चा करने से रोक लो।

 

व्यापारी जब घर आया तो अपनी पत्नी से बोला मुझे लगता है कि तुम मुझसे कुछ बातें छुपाने लगी है। वह बोली यह बात तुमसे किसने कही? उसका पति बोला मुझसे किसी ने नहीं कहा? ज्यादा खर्चा होने पर ही मैंने तुमसे यह बात कही है। मनोरमा गुस्से से पैर पटकते हुए बाहर आ गई बोली। ठीक है तुम ही घर का खर्चा चला लिया करो।

 

रुपेश ने अपने बेटे को अपने पास बुलाया और कहा बेटा तुम अपनी मां पर नजर रखना।  वह दिन भर क्या करती है? कहां जाती है? क्या करती है।? इसके बदले में मैं तुम्हें चॉकलेट लाकर दूंगा। चुन्नू चॉकलेट का नाम सुनकर खुश हो गया बोला पापा मैं अपनी मां पर नजर रखूंगा।

 

रुपाली उस दिन भी उसके घर आई बोली बहन चलो आज बाजार चलते हैं। आज सारा खर्चा मैं करूंगी। रुपाली खुश होकर बोली चलो चलते हैं। चुन्नू  भी जल्द कर अपनी मां के साथ बाजार गया। बाजार में रूपाली ने साड़ी खरीदी। जब रुपए देने की बारी आई तो रूपाली ने मनोरमा को कहा कि बहन मेरे पास छुट्टे नहीं है ₹500 दे दो। मेरे पास ₹1000 का नोट है । मनोरमा नें उसे ₹500 का नोट दे दिया। यह सब चून्नू देख रहा था। बाजार में उन्होंने एक रेस्टोरेंट में जाकर खाना खाया। उसके और बहुत सारे रुपए भी खर्च करवा दिए। शाम को चुन्नू नें आकर अपने पिता को सारी बातें कही। रुपेश ने अपनी पत्नी को सबक सिखाने की योजना बना डाली।

 

एक दिन चुन्नू नें अपने पिता को फोन करके कहा कि पापा आज फिर  आंटी हमारे घर आ रही है। रुपए नें एक भिखारी का वेश बनाकर घर का दरवाजा खटखटाया। भगवान के नाम पर बाबा को कुछ दे दो। मनोरमा नें जोर से धक्का मारकर भिखारी को नीचे गिरा दिया। उसके घुटने से खून निकलने लगा फिर भी मनोरमा का को जरा भी दया नहीं आई। बहुत ही सुन्दर साड़ी देखकर ललचा गई थी। उसकी सहेली नई साड़ी बेचने आई थी। उस ने भिखारी को उठाने की कोशिश की। उसके पति को एहसास हो गया था कि मेरी पत्नी अपनी सहेली के जाल में बुरी तरह फंस चुकी है।

 

रुपाली चली गली  तो उसका पति लंगडाता हुआ घर पहुंचा। उसने अपने पति को पूछा तुम लंगड़ा कर क्यों चल रहे हो? वह बोला आज मैं भिखारी का  रूप धर कर तुम्हारे पास आया था। तुमने मुझे धक्का देकर बाहर का रास्ता दिखा दिया। रुपाली को अपने किए पर पछतावा हुआ बोली तुम भिखारी बनकर मेरे सामने क्यों आए? वह बोला मैं तुम्हें समझाना चाहता था कि तुम्हारी सहेली तुम्हें धोखा दे रही है वह बोली तुम कैसे जानते हो।?  वह बोला तुम्हारी सहेली रुपाली मेरे दोस्त रुपेश की पत्नी है। मुझे  वह सारु बातें बता देता है। वह मेरा इतना पक्का दोस्त है परंतु वह तुम्हारी सहेली जैसा नहीं।

 

वह तुम्हें बेवकूफ बनाकर तुमसे सारे ऐंठ कर ले जाएगी। तुम्हें तो पता ही नहीं चलेगा। एक दिन जब मेरे दोस्त ने मुझसे यह सब कहा तो मैंने उस पर विश्वास नहीं किया।।  मैं तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए तुम्हारे सामने भिखारी बनकर आया। तुम्हारा सारा सच मेरे सामने आ चुका था। मैंने अपने बेटे को अपनी इस योजना में शामिल कर लिया। उसने मुझे सब कुछ बता दिया कि कैसे तुम्हारी सहेली नें तुम से ₹500 बहाना करके ले लिए कि मेरे पास छुट्टे नहीं है। इस तरह उसने ना जाने तुमसे कितने रुपए ठग लिए हैं।

 

एक दिन इसी बात की पुष्टि के लिए मैं अपने दोस्त के घर उससे मिलने गया। मैंने उसका दरवाजा खटखटाया। मैंने भाभी को पहले नहीं देखा था। मैं उसे पहचानता नहीं था। बाहर से दरवाजा  खटखटाया। उनकी बाई नें दरवाजा खोला।उसने कहा बैठो अभी मालकिन जी आ रही है। मैं बाहर वाले कमरे में बैठ गया। काफी देर तक  मालकिन बाहर नहीं आई। बाई बोली मैं बुला कर लाती हूं बाबू जी बैठो। मैं जैसे ही जाने को हुआ तो अंदर से आवाज आई। रुपेश की पत्नी अपनी नौकरानी से कह रही थी ना जाने कहां से चले आते हैं आराम भी नहीं करने देते। सुन जरा आज मैंने ज्वेलरी खरीदने बाजार जाना है। मैं ना जाने कितने दिन से रुपए इकट्ठे किए है। मेरी सहेली आज रुपए मांगने आती ही होगी। तुम उसे कहना कि मैं घर पर नहीं हूं। तुम  सारी बात निपटा लेना।

 

मनोरमा  अपने पति की बात सुनकर हैरान रह गई। वह अब पछताने लगी। हाय मैंने यह क्या कर डाला। मैंने अपने गांव पर मैंने अपने पांव पर स्वयं ही कुल्हाड़ी मारी है। अपने पति की मेहनत की कमाई को यूं ही बर्बाद कर दिया। मेरे पति सच ही कह रहे हैं जब भी वह अपनी सहेली से मिलने गई तभी उसकी सहेली ने कोई ना कोई बहाना बनाकर उसे टाल दिया।

 

मनोरमा ने दिमाग से काम लिया उसने अपने बेटे को कहा कि हम दोनों आंटी के घर चलेंगे मैं  वहां एक नौकरानी बनकर उसके घर पर जाऊंगी। उसकी सहेली नौकरानी की तलाश कर रही थी। बेटा तुम्हें भी बिल्कुल अपना रुप बदलना होगा। मनोरमा ने अपने चेहरे को पूरी तरह से काला बना दिया और घूंघट ओढ़ कर उसके पास चली आई। उसने रुपाली के घर का दरवाजा खटखटाया और कहा बीबी जी मुझे नौकरी दे दो। मेरा मर्द मुझे छोड़कर चला गया है। मेरा मेरे बेटे की इलावाऔरर कोई नहीं है। मैं तुम्हारे सारे घर का काम कर दिया करूंगी। रुपाली तो नौकरानी की तलाश में थी।

 

मनोरमा  जब नौकरानी बनकर उसके घर पहुंची  मनोरमा डायरी पर कुछ लिख रही थी।  नौकरानी को अचानक आया देख कर चुपचाप बैठ गई। उसनें अपनी डायरी तकिए के नीचे रख दी। वह बोली ठीक है कल से काम पर आ जाना। वह उसके घर में काम करने के लिए नहीं  वह तो अपने रुपए उससे वसूल करने के लिए आई थी कि किस प्रकार अपने रुपए उससे हासिल कर लिए जाएं। जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।

 

उसने अपने बेटे को भी रूपाली पर रख नजर रखने के लिए कह दिया था कि बेटा तू देखना कि रूपाली अपने घर की अलमारी की चाबी को कहां पर  रखती है।? चुन्नू ने देखा आंटी ने अपने अलमारी की चाबी अपने बिस्तर के पास एक पुराना फूलदान पड़ा था उसने उस फूलदान में वह चाभियां रख दी और फूलदान को ढक दिया। उस पर किसी की नजर ना पड़े चुन्नू नें यह सब देख लिया। रुपाली की बेटी आई बोली चलो मम्मी बाजार आज आपने मुझे बालियां दिलवाने के लिए कहा था। वह बोली ठहर बेटा इस नौकरानी को काम समझा दूं। कमरे में ताला लगा जाती हूं। वह स्टोर रूम को बंद करके चली जाएगी। उसने अपनी बेटी को कहा कि तुम चुन्नू के साथ खेलो। मैं तुम्हें बालियां स्वंय ही ले आऊंगी। उसकी बेटी बोली ठीक है। उसने चाबियां अपनी बेटी को देते हुए कहा कि इन को संभाल कर रखना। वह बाहर चली गई।  वह  जैसे ही बाहर गई चुन्नू नें दीक्षा को कहा चलो खेलते हैं। वह चाभियों को मेज पर छोड़कर खेलने चली गई। चुन्नू ने अपनी मां को कहा कि मां आप जल्दी-जल्दी अपना काम करो। आंटी ने अलमारी की चाबीयां अंदर एक फूलदान के अंदर रखी है। मनोरमा जल्दी से अंदर गई। उसने चाभियां मेज पर से उठाई और दरवाजा खोला। उसने फूलदान के अंदर से चाबी  निकाली। उसकी नजर बिस्तर के ऊपर तकिए के नीचे डायरी पर पड़ी। उसने डायरी को खोला सबसे आखिरी पन्ने पर रूपाली ने लिखा था ₹10000 मनोरमा को देनें हैं। और ₹10000 तो उससे ऐसे ही ठग लिए हैं।  मनोरमा यह देखकर वह हैरान हो गई। उसने चुपचाप डायरी सिरहाने के नीचे रख दी। उसने अलमारी खोली  उसमें से ₹20000 निकाले और चुपचाप अलमारी बंद कर दी ।चाभियों फूलदान के अंदर रख दी और चुपचाप आकर चाभियां मेज पर रख दी। आज वह खुशी से फूले नहीं समा रही थी। उसने अपने कमाए हुए रुपए वापस कर हासिल कर लिए थे ।उसने कसम खाई कि वह कभी भी अपने पति को निराश नहीं करेगी ।वह कभी भी किसी के झांसे में नहीं आएगी। अच्छा हुआ उसे सही वक्त पर समझ आ गई वर्ना वह तो अपने घर को नीलाम करते ही छोड़ती। मनोरमा अपने बेटे को लेकर घर आ गई। उसने अपने बेटे को गले लगाते हुए का बेटा तुमने भी मेरे पर वापस लौट आने में मेरी मदद की है। इसके लिए तुम्हें मैं  दिल से आशीर्वाद देना चाहती हूं और कभी भी तुम सब को कभी भी परेशान नहीं करूंगी। रुपाली घर आकर अपनी बेटी को बोली बेटा आज मैं तुम्हें ₹20000 की ज्वेलरी लाई हूं। मैंने ₹10000 दे दिए हैं ₹10000 यहां से ले जाती हूं मैं यहां से रुपए ले जाना भूल गई। उसने फूलदान से चाबी निकाली और अलमारी में रुपए ना देखकर चौकी। रूपये तो यहीं थे। यहां से कौन लेकर जा सकता है? मैंने रुपए तो यंही रखे थे।  चाबीयां तो फूलदान में ही थी। चाभियों का तो किसी को भी पता नहीं था। हाय अब मैं कहां से रुपए दूंगी?  वह दौड़कर सुनार की दुकान पर जाकर बोली भाई साहब आप अपनी बालियों  को वापस ले लो। मेरे पास सारे रुपए चोरी हो गए हैं।  मैं  अब यह बालिया नहीं ले सकती। वह रुपए गंवा कर पछता रही थी।

 

मनोरमा ने अपने पति को कहा कि मैंने अपने गंवाए हुए ₹20000 अपनी सहेली के घर से वापस ले लिए हैं ।उसने सारी घटना अपने पति को सुना दी उसके पति बोले अब कसम खा लो आगे से कभी भी बेवकूफ नहीं बनोगी ।वह बोली अब मैं बेवकूफ नहीं बनूंगी ।उसे मैं बेवकूफ बनाऊंगी ।

 

अगले सप्ताह रुपाली  मनोरमा के घर आई बोली बहन मैं बीमार थी। तुमसे मिलने नहीं आ स्की। रुपाली  जैसे ही रसोई में पानी पीने गई  मनोरमा नें उसका बैग चेक कर लिया। उसके पर्स में,  500 ₹500 के दो नोट थे

वह जब किचन से पानी पीकर आई तभी मनोरमा ने उससे कहा चलो बहन आज बाजार चलते हैं। आज बाजार में  तुम्हें मैं चाय पिलाऊंगी। मिठाई भी खिलाऊंगी क्योंकि आज मेरी लॉटरी निकली है। रुपाली भी खुशी खुशी उसके साथ बाजार चल पड़ी। रास्ते में मनोरमा नें अपनी सहेली रुपाली को कहा बहन तुम्हारे पास दो थैले हैं। तुम अपना पर्स मेरे पास दे दो। मनोरमा ने अपना पर्स चुन्नू को पकड़ा दिया जो आगे चल रहा था। एक रेस्टोरेंट में जाकर  मनोरमा ने कहा आज तो हम यहां भोजन करेंगे। उन्होंने जल्दी-जल्दी खाना खाया और आइसक्रीम भी खाई। जैसे ही रुपए देने की बारी आई मनोरमा बोली बहन ओह मेरा पर्स तो मेरा बेटा लेकर आगे निकल गया। तुम्हारे पर्स के रुपयों से ही काम चलाया जाए। उसने अपनी सहेली के पर्स से ₹500 का नोट निकाला और दुकानदार को दे दिया। रुपाली मन मसोसकर रह गई। आज तो मनोरमा ने उसे ही चूना लगा दिया था। आज मनोरमा बहुत खुश थी क्योंकि आज उसने अपने सभी गंवाए  हुए रुपए हासिल कर लिए थे।  अपनी सहेली की भाषा में ही उसने अपनी सहेली को सबक सिखा दिया था। उसने कसम खा ली थी कि वह कभी भी अपने पति से कोई बात नहीं   छिपाएगी।

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