स्वच्छंदता से मुस्कुरानें दो।

स्वच्छंदता से मुस्कुरानें दो।

बचपन के अद्भुत क्षणों का आनन्द उठानें दो।

मां मुझे खेल खेलनें जानें दो।

खेल खेलनें जानें दो।।

रोक टोक छोड़ छाड़ कर ,

सपनों के हिंडोलों  में खो जानें दो।

मन्द मन्द मुस्कान होंठों पर आने दो।।

मुझे पर काम का बोझ मत बढ़ाओ।

पढाई में अभी से मत उलझाओ।।

 नन्हे कोमल,भावुक,सुकुमार को यूं और न सताओ।

मुझ पर शब्द भेदी बाण मत चलाओ।

अपनें तीक्ष्ण प्रहारों से मुझे मत कुम्हलाओ।

मुझे खेल खेलनें जानें दो।।

धूल मिट्टी में खेलनें से मत रोको।

मेरे मन में उठते आवेगों को मत टोको।

मुझे निर्भय हो कर स्वच्छंद वातावरण  का लुत्फ उठानें दो।।

खेल खेलनें जानें दो

बसंत के  बाद ग्रीष्म तो आएगा   ही।

नासमझी के बाद समझ तो आएगा ही।।

बचपन के बाद योवन तो बहार लाएगा ही।

हर क्षण हर पल को मस्ती से जीनें दो।

खेल खेलनें जानें दो।

मुझ पर अपने स्नेह वात्सल्य का भरपूर प्रेम  बरसने दो।

प्यार भरे हाथ के स्पर्श को हृदय के  हर कोनें में बिखरनें दो।।

प्रकृति की मधुर छटा का आनन्द उठाने दो।

गिर कर सम्भलनें का मौका दो।।

 हर रात के बाद प्रातः को खिलनें का मौका दो।

नदी तट  पर बालू की रेत पर घर बनानें दो।

कल्पनाओं में मधुर स्मृति चिन्हों को उपजानें दो।

बचपन के मासूमियत का आनन्द उठाने दो।।

खेल खेलनें जानें से मत रोको।

पाबंदी भरा अंकूश मत थोपो।।

नन्हे नन्हे हाथों से चित्र कारी का भरपूर उत्सव मनानें दो।

दोस्तों संग शरारत का मजा उठाने दो।

खुले वातावरण में खिलखिलानें दो।

वृक्षों पर बेरी के पेड़ों को चखनें का स्वाद लेनें दो।।

मुक्त कंठ से खेलकूद का जश्न  मनानें दो।

मां बस  अब खेल खेलनें जानें भी दो ।।

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