आओ पर्यावरण दिवस पर करें हम परोपकार

आओ पर्यावरण दिवस पर करें हम परोपकार।

एक नहीं दस दस वृक्ष लगा कर देश का करे उद्धार।

वृक्ष है जन जन की  मूल्यवान संपत्ति।

यह  व्यक्ति  में खुशहाली और समृद्धि   को  है दर्शाती।

पर्यावरण संतुलन  पर संकल्प ले कर हर बच्चा इस पर  करो  विचार।।

पर्यावरण से पैदा होने वाली विभीषिका  के मूल पर करो सुविचार।।

पेयजल की कमी  से उभरने के  निरन्तर प्रयास करने होगे।।

नलकूप बावड़ी को साफ करनें  के संस्कार हर व्यक्ति में जगानें होगें।।

मिट्टी की उत्पादकता को बढानें के लिए उपयुक्त साधन जुटाने होगें।

रसायन और विषैली  दवाईयों के छिडकाव पर प्रतिबंध लगानें होंगे।

 जंगलों को काटनें से बचाना होगा।

जल प्रदूषण, वायुप्रदूषण, और ध्वनि प्रदूषण  से फैलनें वाली बिमारियों को दूर भगाना होगा।

आबादी को बढनें से बचाना होगा।

जंगलों को काटने से बचाना होगा।

वनस्पति और सभी  जीवों की प्रजातियों को  लुप्त होनें से बचाना होगा।

भू रक्षण रोकनें के लिए आक्सीजन तत्वों को बढाना होगा।

वातावरण को साफ और स्वच्छ बनाना होगा।

कार्बनडाईक्साईड की मात्रा  को कम करना होगा।

कार मोटरों से छुटकारा पा कर साईकल से काम चलाना होगा।

अपनें घर के एक एक सदस्य को आगे ला कर पर्यावरण की स्वच्छता पर  जोर देना होगा।

धरती की मूल्यवान धरोहर भाग 2

नंदलाल अपना परीक्षा परिणाम जानने के लिए स्कूल गया था। उसका बारहवीं कक्षा का परिणाम आने वाला था। वह मन ही मन सोच रहा था कि हे भगवान! इस बार तो मुझे पास कर ही दो। यह पढ़ाई वढ़ाई मे

रे बस की बात नहीं। बस इंटरव्यू देकर कहीं नौकरी कर लूंगा। उसको पढ़ने का शौक नहीं था वह अपना परिणाम जानने के लिए बड़ा  आतुर था।  इंटरनेट पर सूचना आ चुकी  थी। उसके अध्यापकों ने कहा हमें अपना रोल नंबर दे दीजिए। हम तुम सब बच्चों का परिणाम बता देंगे।

थोड़ी देर बाद अध्यापक बच्चों के पास आए और सभी को उनके अंक बताएं। नंदलाल पास हो गया था। वह खुशी के मारे उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। शाम को उसके पिता ने कहा बेटा पढ़ाई वढाई तुम्हारे बस की बात नहीं यह तो शुक्र करो पास हो गए।  फॉरेस्ट ऑफिसर का पद  रिक्त है तुम्हें इंटरव्यू के लिए बुलाएंगे। अगर तुम जब इंटरव्यू में चुन कर निकल जाओगे

हो जाओगे तो ठीक है नंदलाल सोचनेंलगा मुझसे क्या क्या पूछेंगे?

इंटरव्यू के लिए नंदलाल को बुलाया गया वह जरा भी नहीं डरा। उसने सभी प्रश्नों के उतर बिना सोचे समझे थे डाले।

लिखित परीक्षा में उसने अपने दोस्त श्याम की नकल कर दी। और फॉरेस्ट गार्ड के लिए उसको चुन लिया गया। नौ महीने के प्रशिक्षण के बाद उसको चुन लिया गया। अब उसे फारेस्ट के तौर पर पहले जंगलात विभाग में गार्ड के पद पर तैनात किया गया। उसने अपने पद को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया। जंगल में कई बार लोग पेड़ों को काटने आते तो वह उनको कभी सजा नहीं देता था। लोग पेड़ों को बड़ी बेरहमी से काट काट देते थे। उन्हें बाहर  बेच देते थे। उस काम में उसने भी उन सभी लोगों को काटने से मना नहीं किया। तुम पेड़ों को काट सकते हो जब तक मेरी ड्यूटी  इस क्षेत्र में है, तब तक तुम मेरे यहां होनें का भरपूर आनंद उठाओ। तुम इन को बाजार में बेचोगे तो उसका आधा हिस्सा मुझे भी मिलना चाहिए। लोग उसकी बात मान जाते। इतना घटिया काम करते उसे जरा  सी भी लाज नहीं आती। बस सारा दिन जंगल में इधर उधर मटरगस्ती करता रहता! ड्यूटी तो नाम मात्र को करता। वहां पर पेड़ के नीचे काफी काफी देर तक सोता रहता। उनके बॉस ने उसे क्यारियों पौधों की देखभाल का दायित्व भी सौंपा था।  लोग चुपचाप फूल तोड़ कर ले जाते बागों में फल फूल सब चुरा कर ले जाते। वह चुपचाप सोया  रहता। उसकी पत्नी उतनी ही  नेक दिल इन्सान. थी। उसका स्वभाव अपने पति के बिल्कुल विपरीत था। उसने अपने घर में इतना बड़ा बगीचा लगा रखा था। वह हर रोज उसकी देखभाल करती थी।उसने अपनें घर के बगीचे में तरह तरह की सब्जियां लगाई थी। उसके लिए उसनें इतने बड़े बड़े दो खेत  लिए हुए थे। जिसमें दिन रात मेहनत करके वह सब्जियों को उगाती थी। वह उन सब्जियों को ले जा कर बाजार में बेचती। उसे सब्जियों को बेच कर काफी रुपए मिलते।

एक दिन की बात है कि नंदलाल जंगल में एक वृक्ष के नीचे सोया हुआ था। उसको सपना दिखाई दिया। उस सपने में  एक औरत दिखाई दी। वह बोली तुम एक बहुत ही बेईमान इंसान  हो। रुपयों के लालच में इतना गिर जाओगे यह तो मैंने सोचा ही नहीं था।तुम्हारे पास नौकरी नहीं थी जब  तुम भगवान के मंदिर में माथा टेकने जाते थे और हर रोज प्रार्थना करते थे कि हे भगवान!  जब नौकरी मिल जाएगी तब मैं कभी भी लालच नहीं करूंगा। ईमानदारी का जीवन जीऊंगा।  तुमने तो धरती मां का अपमान किया है। तुम कभी खुश नहीं रहोगे। जिन पेड़ों से हमें जीवन दान मिलता है तुम उन्हें हर रोज ना जाने कितना नुक़सान पंहूंचाते हो और उन्हें हर रोज काटनें पर अपनें दोस्तों को मना भी नहीं करते हो। तुम्हें अत्याधिक पेड़ लगाने चाहिए।तुम   अंधाधुंध  पेड़ो को कटवाकर और जीव जन्तु ओन को मार कर इनका गोश्त खाते हो। तुम्हें तो इन सभी चोरी करने वालों को सलाखों के पीछे भेजना चाहिए था। कहां तुम भी इस काम में संलिप्त हो गए?तुम देखने में भोले लगते हो और अंदर से शातिर हो।तुम शेन धरती की पवित्र धरोहर का अपमान किया है, इसके लिए तुम्हें सजा तो अवश्य ही मिलनी चाहिए ।अचानक ही उसकी नींद टूट  गई। वह आंखें मलता उठ बैठा। यह मैंने  सपने में क्या देखा? धरती मां ने मुझे सचमुच में ही मेरी सच्चाई मुझे दिखा दी। मैं भोला-भाला दिखाई देता हूं परंतु भोला नहीं हूं।

हे भगवान! आज से मैं कान पकड़ता हूं।मैं अब अपने आप को सुधार कर ही दम लूंगा। मैं राह से भटक गया था। मेरी मां ने मुझे रास्ता दिखाया है। वहजब घर पहुंचा तो उसकी पत्नी रो रही थी वह बोला भाग्यवान तुम्हें क्या हुआ है?वह बोली मेरी खेती को कोई उजाड़ गया है। मैंने न रात-दिन मेहनत करके सारी सब्जियां लगाई थी। वे सारी की सारी नष्ट हो चुकी हैं। न जानें किसके पशु आकर हमारे खेत को तहस-नहस कर गए। अब की बार हमारे खेत में कुछ भी फसल नहीं होगी। यह कहकर वह जोर जोर से रोने लगी। अचानक नंदलाल को भी अंदर से दर्द महसूस हुआ। नंदलाल को महसूस हो गया जब मेरे जंगल में कोई पेड़ काटने आता था तब मैं सब को कहता था हां भाई काट लो। मुझे अंदर से दर्द महसूस नहीं होता था। जब मेरे घर की हरी-भरी खेती नष्ट हुई तब कहीं जा कर मुझे यह बात समझ में आई।

उसकी पत्नी ने 2 दिन तक खाना नहीं खाया। वह भी बहुत उदास हो गया था। दूसरे दिन सुबह सुबह ही उठ कर जंगल चला गया। अचानक बीच-बीच में उसे जंगल में नींद आ जाती थी। उसे फिर से वही सपना दिखाई दिया। धरती मां ने उसे कहा बेटा अब तो तुम्हें समझ आ ही गया होगा। जब चोट अपने ऊपर   लगती है तभी इन्सान समझता है। तुम्हें राह दिखाना मेरा फ़र्ज़ था।

अच्छा,सुनों इस जंगल के दूसरे छोर में कुछ लोगों ने जंगल में आग लगाई है। तुम्हें उन लोगों को सलाखों के पीछे पहुंचाना है। तुम समझ गए होंगे ।अभी भी समय है। सुधर जाओ उसनें धरती मां के पैर पकड़ लिए। उसे चेतना आ गई थी। उसने सच में धरती मां के पैर छुए और कसम खाई कि मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आज मैं नेक काम करने जा रहा हूं। मुझे आशीर्वाद दो। वह नीचे जमीन पर लेट गया। उसने देखा कि उस वाटिका में लगा हुआ फूल उसके पांव के पास गिरा। उसने उस फूल को उठाया और अपनी जेब में भर लिया।

उसनें जंगल के दूसरे छोर में जाकर उन आग लगाने वाले लोगों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। उसने सभी अपराधियों को सजा दिलाई जो पेड़ों को काटते थे। वह समझ गया था कि धरती मां की इस मूल्यवान धरोहर को हमें बचाना होगा। हम इस धरती की मूल्यवान धरोहर को बचा नहीं पाए तब तक हम सभी मायनों में भारत मां के सच्चे सपूत नहीं कहला सकते। धन्यवाद!

दावानल

शेखर और उसकी पत्नी एक छोटे से गांव में रहते थे। शेखरको शराब पीने की आदत थी वह शराब को छोड़ता नहीं था। उसकी पत्नी अपने पति की इस आदत से बहुत परेशान रहती थी। वह सोचती काश मेरा पति शराब पीना छोड़ देता तो वह भी अच्छा इंसान बन सकता है। दिल का अच्छा है। एक ही कमी है जो वह शराब पीता है।

शेखर की पत्नी ने अपने पति से कहा शराब छोड़ दो। आपने शराब नहीं छोड़ी तो मैं अपने मायके में चली जाऊंगी। मैं तुम्हारी जिंदगी में फिर कभी वापस नहीं आऊंगी। आज फैसला हो ही जाए। आप आज मुझे रखना चाहते हैं या फिर शराब को। मुझे तो ऐसा लगता है कि शराब मेरी सौतन है। शेखर बोला मुझे थोड़ा वक्त दो। वह बोली ठीक है मैं तुम्हें छः महीने का समय देती हूं।  शेखर गांव के पास ही एक जंगलात विभाग में काम करता था। शेखर की पत्नी का एक  एक दूर  का भाई था। वह भी उसके पति के साथ ही दसरे जंगलात विभाग में काम करता था। उसका ऑफिस शेखर के औफिस से दो किलोमीटर दूरी पर था। दोनों  साथ ही ऑफिस जाते। शालू का मुंह बोला भाई कभी-कभी उनके घर पर आ जाया करता था। उसके भाई को भी पीने की आदत थी।  दोनों साथ मिलकर पीते थे

एक बार दोनों जंगल से जा रहे थे काफी देर तक घर नहीं लौटे तो शेखर की पत्नी को चिंता चलो देखती हूं। मेरे पति अभी तक घर नहीं आए हैं। वह उन्हें देखने काफी दूर तक निकल आई। उसने अपने  मवेशी एक ओर खड़े कर दिए और  देखनें लगी। उसे दो पुरुष आते दिखाई दिए। एक उसके पति और दूसरा उसका मुंह बोला भाई। उसने सामने से जाते हुए एक ट्रक देखा। ट्रक में चोरी की हुई लकड़ियां थी। उसके पति ने उसे बताया था कि तुम्हारा भाई लकड़ियां  चोरी करके घर ले जाता है। उसके मुंहबोले भाई ने   ट्रक  रुकवाया बोला ठहरिए तुम लकड़ियों को चोरी कर कंहा ले जा रहे हो? ट्रक में से एक आदमी उतरा बोला भाई साहब हर बार तो तुम्हें हम लकड़ियां दे देते हैं। थोड़ी सी आप भी घर ले जाओ। लेकिन मुंह बंद रखना। उसका मुंह बोला भाई बोला मैं तो मुंह बंद रखूंगा। मेरे साथ मेरा दोस्त है। इसे तो शराब पीकर कुछ भी याद नहीं रहता है। ठीक है ले जाओ। वह लकड़ी को अपने घर लेकर चले गया।

शालू ने यह सब देख लिया था एक दिन उसके पति को एक बहुत बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है। वह अपने पति पर नजर रखने लगी। शाम को जैसे ही उसका पति घर आने वाला होता तो वह भी पास ही पशु चराने ले जाती ताकि अपने पति पर नजर रख सके। शालू ने देख लिया था उसका मुंह बोला भाई जंगलात विभाग में हो कर भी लकडियों को काटने वालों का साथ दिया करता था और खुद भी घूस खा रहा था। उसने अपने मायके में जाकर अपने भाई की पत्नी रुपाली को कहा भाई तेरे पति ठीक नहीं कर रहे हैं।  भाभी जी भाई लकड़ियों को घर  चोरी कर ले जाते हैं।  तुम उन्हें मना क्यों नहीं करती। रुपाली बोली चली जाओ यहां से बड़ी आई मुझे सिखाने वाली।

एक दिन की बात है कि शेखर और उसका दोस्त वे दोनों अपने ऑफिस से आ रहे थे। उन्हें वेतन मिला था। उसके दोस्त ने कहा चलो थोड़ी देर एक एक पैग लगा लेते हैं। जंगल के रास्ते से आते उन्होंने थोड़ी थोड़ी पी ली थी। सौरभ ने उसे कहा मुझे माचिस दे दो। शेखर नें उसे माचिस दे दी। उन्होंने जला कर तीली वंहा फैंक दी। चारों ओर आग फैल गई थी। वह तो चले गए। शेखर की  चप्पल वही पर गिर गई थी।

दोनों घर की ओर भागे भागते-भागते रास्ते में पहुंचे,। उसकी पत्नी ने आग लगते देख लिया था। उसने अपने पति से पूछा जंगल में आग किसने लगाई।? वे दोनों बोले जंगलात विभाग के लोगों ने जंगल को साफ करने के लिए आग लगाई है। घर तो आ गई लेकिन उसे नींद नहीं आई। पुलिस वालों ने अगले दिन जब जंगल में आग लगी देखी तो उन्होंने सारे गांव में सूचना दे दी जिस किसी ने भी जंगल में आग लगाई होगी उस पर जुर्माना किया जाएगा। उसे सजा मिलेगी। लोगों ने शेखर का नाम लिया कहा कि इस गांव में से वही एक ऐसा इंसान है जिसको शराब पीने की लत है। उसमें शराब पीकर माचिस की तीली फेंक दी होगी। जब कार्यवाही की गई तो सचमुच शेखर की  चप्पल वंहा मिली। शेखर पर ₹10000 का जुर्माना किया गया। उसकी पत्नी को बड़ा ही गुस्सा आया। वह कुछ नहीं बोली। किसी ना किसी तरह ₹10000 जमा करवाएं और अपने पति को जेल खाने से बाहर निकाला।

सौरभ  का तो नाम भी नहीं आया। शेखर की पत्नी पुलिस के पास  गई बोली तुम नें मेरे पति पर  तो 10000 का जुर्माना कर दिया।असली गुनहगार को तो आप नें  पकड़ा ही नहीं। पुलिस वाले  बोले  जब तक आप कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं करते तब तक हम कुछ नहीं कर सकते। शालु ने कुछ नहीं कहा। पहले की तरह उसका पति ऑफिस जाने लगा।

एक दिन फिर वही ट्रक वाले उस रास्ते से गुजर रहे थे। शालु नें उन्हें आते देखकर उनकी फोटो ले ली। कैसे उस ट्रक के  मालिक नें ट्रक से लकड़ियां सौरभ के घर भिजवाई।  शालू  नें फोन कर के पुलिस को कह दिया कि आप सौरभ के  घर के बाहर छिपकर देखना एक लकड़ी से भरा ट्रक  उन के घर  आएगा।  पुलिस वालों ने मौके पर पहुंचकर उसे हवालात में बंद कर दिया। उसने कबूल कर लिया कि जंगल में आग भी  उन दोनों की गल्ती से लगी थी। पुलिस वालों ने लकड़ियों को जप्त कर लिया।

पुलिसवालों ने कहा कि तुम्हें रु5000  शेखर को वापिस करनें  होगें। आगे से कसम खाओ कि जंगल की लकड़ियों को और पेड़ों को नहीं काटोगे। सौरभ को छःमहीने की सजा दी गई। बाद में जमानत पर उसे छोड़ दिया गया। उस ने संकल्प लिया कि मैं कभी भी शराब को हाथ नहीं लगाऊंगा।

दोनों दोस्तों ने प्रण लिया कि अगर किसी को जंगल में आग लगाते हुए देखेंगे तो उसकी सूचना तुरंत पुलिस वालों तक पहुंचाएंगे। यही हम दोनों का सच्चा प्रायश्चित होगा।

आत्मविश्वास

सीता और गीता स्कूल में इकट्ठे शिक्षा ग्रहण कर रही थी। सीता के माता पिता  ऑफिस में काम करते थे। सीता एक मेहनती लड़की थी। एक दिन उसके माता-पिता ने उसे अपने पास बुलाया और कहा बेटा हम चाहते हैं कि तुम हमें बताओ कि तुम आगे चलकर क्या बनना चाहती हो? वह बोली मां पापा यह मैंने निश्चित नहीं किया है। उसके मम्मी पापा बोले हमें जिंदगी में कुछ ना कुछ बनने के लिए एक  मकसद भी कायम करना पड़ता है इसलिए तुम्हें  हम एक महीने का वक्त हम देते हैं। इसलिए तुम्हें यह निश्चित करना होगा कि तुम किस विषय में  आगे जाना चाहती हो। तुम  अगर ध्येय कायम नहीं करोगी  तब तुम जिंदगी में कुछ भी हासिल नहीं कर पाओगी। वह बोली मम्मी पापा मैं सोच कर बताऊंगी। उसके मम्मी पापा बोले तुम अगर हमें नहीं बता पाई तो जो हम तय करेंगे उसी विषय  में तुम्हें अपना लक्ष्य निर्धारित करना पड़ेगा। सीता बहुत ही चिंता में पड़ गयी।

उसने अभी तक कोई भी लक्ष्य निर्धारित नहीं किया हुआ था। उसकी सहेली गीता वह भी उसके  साथ दसवीं कक्षा में पढ़ती थी। वह बहुत  ही होशियार बालिका थी। सीता अपनें मन की बात अपनी सहेली गीता से कर दिया करती थी। सीता को उदास देखकर गीता बोली तुम उदास क्यों हो।? वह बोली मेरे माता-पिता ने आज  मेरे सामने एक प्रश्न रखा उस प्रश्न का हल मैं नहीं दे सकी क्योंकि मैंने उस विषय में आज से पहले कभी सोचा नहीं उसकी सहेली मजाक करते हुए बोली क्या तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हारे लिए कोई लड़का देखा है? वह बोली नहीं अभी शादी के बारे में मेरा कोई विचार नहीं है। उसकी सहेली गीता बोली ऐसी कौन सी बात है जो इस प्रश्न का उत्तर क्यों नहीं दे पाई।? सीता बोली मेरे माता-पिता ने मुझसे पूछा। तू क्या बनना चाहती है? मैं बोली यह तो मुझे भी पता नहीं है कि मैं क्या बनना चाहती हूं? वह बोली उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हारी परीक्षा भी आने वाली है तुम अब दसवीं कर लोगी आगे जिस क्षेत्र में जाना चाहती हो वह तुम्हें ही तय करना पड़ेगा मुझे तो पता ही नहीं है मुझे तो सभी विषय में रुचि है। गीता बोली नहीं’ तुम्हारे माता-पिता एकदम सही कहते हैं तुम किस विषय में आगे जाना चाहती हो?।

यह तो तुम्हें ही तय करना पड़ेगा। सीता बोली मुझे नहीं पता। इस विषय में तुम ही मेरी मदद करोगी। गीता बोली देख मैंने संगीत को अपना  लक्ष्य  चुना है। मैं बड़े होकर एक बहुत बड़ी संगीतकार बनना चाहती हूं। अच्छा मैं तुम्हें बताऊं तुम अपने सारे परीक्षा के प्रश्नपत्र इकट्ठे करके लाओ और पूरे साल की उत्तरपुस्तिका यहां पर ले आओ। पिछली बार जब स्कूल में मैडम ने कहा कि जिन विषयों में तुम सब   से   आगे  हो उन्हीं विषयों का हम तुम्हारा  मूल्यांकन  करेंगें। तुमने सारे विषयों का  चुन  डाला और किसी भी विषय में तुम्हें इनाम नहीं मिला। तुम सारे साल के टैस्ट की उत्तर पुस्तिका यहां इकट्ठा करके लाओ। हम देखेंगे कि किस विषय में तुम्हारे सबसे अच्छे अंक है? जिस विषय में तुम्हारी अंकतालिका में सबसे अच्छे अंक आए हैं  तुम इस विषय को ही अपना  लक्ष्य चुनना।   हमें इस के लिए तीन लोगों की राय लेनी पड़ेगी। एक तुम्हारे माता पिता, तुम अपने माता पिता के पास जांच पत्रिका ले जाकर पूछना कि सभी विषयों को देख कर बताओ मुझे क्या विषय चुनना चाहिए।? उसने अपने माता-पिता के पास ले जाकर सारी साल भर की जांच पत्रिकाएं दिखाकर पूछा आपको क्या लगता है मुझे कौन सा विषय चुनना चाहिए? उसके पिता ने कहा बेटा अंग्रेजी विषय इसमें तुम्हारे सभी सेमेस्टर में सबसे अच्छे अंक है। दूसरे दिन सीता अपनी सहेली गीता के पास जाकर बोली धन्यवाद गीता। गीता बोली मेरी मम्मी लेक्चरर के पद पर कार्यरत हैं उनसे भी राय ले लेते हैं। उन्होंने भी उसे अंग्रेजी विषय चुनने के लिए कहा। इस के पश्चात वह अपने स्कूल के प्रधानाचार्य जी के पास जा कर बोली। मुझे  जांच पत्रिका को देखने के बाद  बताओ मैंकौन सा विषय चुनुं।  बेटा मुझे जांच पुस्तिकाओं को देखने के बाद महसूस होता है कि तुम अंग्रेजी को ही अपना विषय चुनना। अगले महीने  स्कूल द्वारा निर्धारित एक टैस्ट है। हम तुम सब बच्चों का यह टैस्ट  लेने जा रहे हैं। उस टैस्ट  में जो बच्चा जिस विषय में ज्यादा अंक लेकर आएगा उसे इनाम मिलेगा। और एक शील्ड भी।

सीता के मन से बोझ  हट चुका था। वह पिछली बार कभी संगीत में अपना नाम लिखवाती कभी गायन में कभी वाद-विवाद प्रतियोगिता में उसे समझ में नहीं आता था कि वह किस विषय में भाग ले। आज उसने चुपचाप अपना अंग्रेजी का भाषण लिखित रूप में देने के लिए अंग्रेजी विषय को चुना था।

उसने सिर्फ एक ही विषय चुना था। वह अब की बार अंग्रेजी में सबसे अच्छे अंक लेकर सारे स्कूल में दूसरे स्थान पर रही थी। वह आज बहुत ही खुश नजर आ रही थी। उसे आज अपना ध्येय मिल चुका था। सबसे पहले वह अपनी सहेली गीता के पास गई और बोली मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा कैसे करूं?। गीता बोली  आज रात तू  मुझे रात के खाने पर आमंत्रित कर रही है। घर आकर सीता ने अपने मम्मी पापा को कहा मां पापा अब मैंने निश्चय कर लिया है कि मैं अंग्रेजी विषय में ही अपना कैरियर बनाऊंगी। उसके माता-पिता खुश होकर बोले बेटा तुम अपने मकसद में कामयाब हो। हम तो यही चाहते थे।

तुम हर विषय के पीछे भागती थी अब हम समझ चुके हैं कि तुम्हें अकल आ गई है। हम तुम्हारे ऊपर किसी और विषय को चुनने के लिए तुम्हें बाध्य नहीं करेंगे। सीता बोली पापा आज स्कूल में में मैंनें अंग्रेजी निबंध प्रतियोगिता में दूसरा स्थान प्राप्त किया है। यह सब  चुनने में मुझे मेरी सहेली गीता ने मेरी मदद की। मैं तभी  ठीक ढंग से निर्णय ले पाई। इसके लिए मैंने ठंडे दिमाग से सोचा। तीन विशेषज्ञों की राय के आधार पर  मैनें अपनें लक्ष्य को चुना है आपकी राय भी यही थी।   मम्मी से भी पूछा। तीसरे प्रधानाचार्य महोदय के पास जांच पुस्तिकाओं के आधार पर  मैंने यह विषय चुना। और स्कूल में पार्टिसिपेट किए गए कार्य के आधार पर सभी ने मुझे मेरा कैरियर चुनने में मेरी मदद की। आप सभी को मेरा बहुत-बहुत धन्यवाद। नहीं तो मै हर क्षेत्र की तरफ भाग रही थी। मैं किसी भी क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पा रही थी हमें अपने बच्चों के लिए भी इसी तरह उन्हें अपने मकसद में सफलता हासिल करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। भविष्य को निर्धारित करने में कोई भूल चूक ना करें। नहीं तो मां बाप अपने बच्चों पर उसी विषय को करने के लिए तत्पर हो जाते हैं जो वही चाहते हैं। उन्हें अपने बच्चों की चाहत के बारे में कुछ लेना देना नहीं होता। वह क्या करना चाहता है? हमें  अपने बच्चों पर उस विषय को करने के लिए अग्रसर नहीं करना चाहिए जिस क्षेत्र में उसकी इच्छा नहीं होती। इसलिए वह बच्चा किसी भी क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ सकता। आगे चलकर सीता अंग्रेजी विषय में पीएचडी करके एक प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हो गयी।

उसकी  दोस्त एक बड़ी संगीतकार बन चुकी थी दोनों सहेलियां खुशी खुशी अपनें मकसद में सफल हुई।