नशे की प्रवृत्ति है घातक

मिल कर कदम बढाना होगा।
नशे की प्रवृति से अपनें बच्चों को छुटकारा दिलवाना होगा।।
नशे की प्रवृति है घातक।
यह घर घर कि बर्बादी का है द्योतक।।
मादक पदार्थों से मूल्यवान है हमारी युवा पीढ़ी ।
बच्चों में दृढ़ निश्चय और विवेक से अच्छे संस्कार जगा कर सुधारना कामयाबी की है सीढ़ी।।

बीड़ी सिगरेट में यह है सबसे बड़ी खराबी ।
इसे चौबीसों घंटे पीने से होती है सेहत और घर घर की बर्बादी।।
धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के पास वातावरण में निकोटीन मिला हुआ धुआं प्रदूषण है फैलाता।
यह व्यक्ति के सद्गुण को लुप्त कर बुद्धि का नाश है करवाता।।
सेहतमंद रहने के लिए धूम्रपान छुड़वाना होगा।
दुर्व्यसनों को त्याग कर बच्चों में ज्ञान का प्रकाश जगाना होगा।।
समय से पहले बच्चों को संभालना है जरूरी।
उनकी गतिविधियों पर ध्यान देकर उन्हें बदलना है जरूरी।।
धूम्रपान पान गुटखा खाने से अपने बच्चों को बचाना होगा।
अपने बच्चों को सुधारने का हर संभव प्रयत्न करना होगा।।
गुटका खैनी इन्हीं चौबीसों घंटे खाने से होती है घर की बर्बादी।
यह घर के सर्वनाश का द्वार है खटखटाती।।
धूम्रपान करना वाला व्यक्ति एक नहीं अनेक बीमारियों को बढ़ावा है देता।
धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर,गले का कैसर,खून का कैंसर,आंखों की रोशनी में कमी,और मल्टीपल स्कैलरोसिस को न्योता है देता ।।
जिस प्रकार सूर्योदय से पहले उठना है जरूरी।
उसी तरह समय से पहले बच्चों की गतिविधियों को बदलना है जरूरी।।

प्रथम पाठशाला परिवार

सबसे बड़ा विद्यालय है परिवार हमारा ।
परिवार के सदस्य शिक्षक बनकर संवारतें हैं भविष्य हमारा
जिंदगी की पाठशाला में माता शिक्षक है बन जाती ।
प्यार दुलार व डांट फटकार लगाकर हर बात है समझाती ।।
जिम्मेदारी का अहसास ,अनुशासन का पाठ, सम्मान का पाठ भी है सिखलाती।
गुरु व माता बनकर अच्छे संस्कारों को रोपित कर सभ्य इंसान है बनाती ।।

स्नेह मयी वात्सल्य की छत्र छाया में बच्चे नैतिकता के गुणों का विकास हैं कर पातें ।
मान-मर्यादा और आदर का भाव विकसित कर ,दूसरों को सही दिशा हैं दिखाते ।।
मां बच्चों को अच्छी आदतों का अनुसरण करना है सिखाती,
उनके चरित्र का विकास कर उनका भविष्य उज्जवल है बनाती ।।
स्वयं काम करने की आदत है डलवाती ।।
ईमानदारी से काम करना और संघर्षमय जीवन जीना भी है सिखाती।
कर्तव्य पालन बोध का ज्ञान भी उन्हें हैं करवाती ।।

उनके गुणों-अवगुणों को अपना कर बच्चे जीवन में उनकी खुशियों को हैं महकातें ।
परमार्थ और स्वाबलंबी नागरिक बनना भी माता-पिता हैं सिखातें ।।
मुसीबत के समय एक दूसरे का साथ निभाना भी वह सिखाते।
बच्चों को क्या झूठ क्या सच क्या है उसका अन्तर भी वह हैं बतलाते।।

सुसंस्कार वाले बच्चे सभ्य नागरिक बन हैं बन जाते।
कुसंस्कारी जीवन की दौड़ में कभी आगे नहीं बढ़ पातें ।।
जीवन पथ में हताश हो कर सारी उम्र पछताते ही रह जातें।।

बुजुर्ग बच्चों को धार्मिक ग्रन्थों की जानकारियां उन्हें हैं सुनातें।
बड़े-बड़े महान पुरुषों के पदचिन्हों पर चलना उन्हें हैं सिखाते।
उन ही के जैसा महान कार्य करनें की उमंग उन में हैं जगातें ।
बच्चों में स्पर्धा की भावना को भी हैं जगाते ।।

आपस में मिल जुल कर रहना और मिल बांट कर खाना उन्हें हैं सिखाते
विपरीत परिस्थितियों में अपने बचाव और मदद हासिल करनें की सीख हैं सिखातें।।

लक्ष्य के प्रति समर्पण का भाव जागृत हैं करवातें।
अच्छाई और आत्मविश्वास के साथ काम करनें का हौंसला उन्हें हैं दिलवातें ।

माता पिता की सीख बच्चे की दुनिया है बदल देती ।
कठिन संघर्षों पर चल कर उन्हें शानदार जीत है दिलवाती ।
माता पिता के आदर्शों का पालन करना उन्हें हैं सिखाती
उनके व्यक्तित्व को निखार कर उनका सुनहरा भविष्य है बनाती।।

अध्यापिका के प्रश्न

रज्जू हमेशा की तरह स्कूल जाने की तैयारी कर रहा था तभी उसकी मां नें रज्जू को आवाज लगाई बेटा जल्दी नाश्ता कर लो ।स्कूल के लिए देरी हो जाएगी ।वह बोला मां मुझे स्कूल नहीं जाना है ।मुझे वहां बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता।पारो बोली, बेटा तू पढ़ाई के बिना कुछ भी हासिल नहीं कर सकता। पढ़ाई किए बिना कोई गुजारा नहीं ।मनुष्य को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए और बड़ा बनने के लिए पढ़ाई अवश्य करनी पड़ती है। तुम और तुम्हारे दोस्त चौबीस घंटे टीवी के सामने बैठे रहते हो। तुम ना हमसे बातें करते हो और ना ही वक्त पर खाना खाते हो ।मैंने तुम्हें कभी भी पढ़ते हुए नहीं देखा। तुम्हारे एक दो दोस्त हैं तुम उनके साथ स्कूल से आनें के बाद बस बैठ कर टीवी ही देखा करते हो। क्या तुम्हें पढ़ना अच्छा नहीं लगता? मैं तुम्हारी स्कूल आकर तुम्हारी मैडम से शिकायत करूंगी। रज्जू दौड़ा दौड़ा मां के पास आया बोला मां तुझे मेरी सौगंध, मैं पढ़ाई अवश्य किया करूंगा ।तू मेरी स्कूल में शिकायत मत करना। उसकी मां नें उस की बात मान तो ली पर वह रसोईघर में जाते जाते सोचनें लगी।
उस के मानस पटल पर धुंधली तस्वीरे छानें लगी। मुझे आज भी याद है जब रज्जू पैदा हुआ तो तो घर के हालात ठीक नहीं थे ।बड़ी मुश्किल से घर का गुजारा होता था। किसी ना किसी तरह उसकी दो बहनों का तो विवाह कर दिया ,लेकिन रज्जू ही एक घर में ऐसा था जिसको उसके माता-पिता कुछ कहते तो वह उनकी बात पर कभी ध्यान नहीं देता था वह उनकी बात को कभी भी ध्यान से नहीं सुनता था । लाड़ प्यार का परिणाम था।उसकी मां उसे बोल बोल कर थक जाती थी कि बेटा कि मेरी बात तो सुनो लेकिन वह तो किसी और ही धुन में मग्न होता था। काम करना भी उसे अच्छा नहीं लगता था । बहुत देर बाद अपनी मां से कहता था कि मां क्या आपने मुझे कुछ कहा? उसकी इन हरकतों से उसकी मां परेशान हो जाया करती थी। उसके कक्षा के अध्यापक भी उस की इस हरकत से परेशान हो जाता करते थे।

इस साल तो घर में ही मैडम पहुंच गई । वह बोली कि आपका बेटा पढ़ाई नहीं करता है। अगली बार यह पढ़ाई नहीं करेगा तो इसको फेल करना पड़ेगा।
जल्दी जल्दी नाश्ता करके रज्जु स्कूल गया।कक्षा मैं आते ही उसने देखा मैडम तो पहले ही कक्षा में पहूंच चुकी थी।वह मन ही मन घबरानें लगा आज भी मैडम बैन्च पर खड़ा होने के लिए कहेंगी।चुपचाप जा कर पहले ही जा कर बैन्च पर खड़ा हो जाता हूं।मैडम के बोलनें का इंतजार क्यों करूं?। उसने देखा अध्यापिका बच्चों से सवाल पूछ रही थी।वह तो खड़ा हो कर भी ड्राइंग बनानें में मस्त था।वह मैडम की तस्वीर बना रहा था ।मैडम ने दो तीन बार उसका नाम लेकर पुकारा परंतु उसने कोई भी उत्तर नहीं दिया। मैडम निराश होकर उसकी सीट के पास आ गई और कहने लगी कि जब भी मैं तुमसे कोई भी प्रश्न पूछती हूं तो तुम कोरे कागज की तरह एक जगह खड़े रहते हो?शायद तुम्हारे हाथ में विद्या की रेखा नहीं है।तुम्हें डरा कर ,धमका कर सब कुछ कर के देख लिया मगर तुम पर मेरी बातों का कोई भी असर नहीं होता।तुम ढीठ की तरह अपनी जगह बुत बन कर खड़े हो। क्या तुम्हारी समझ में सचमुच ही कुछ नहीं आता है?आज भी देर से आ कर कक्षा में चुपचाप घुस गए।
मैडम उस की सीट के पास आ कर खड़ी हो गई।उस के हाथ में ड्राईगं की कौपी थी जिस पर वह चित्र बना रहा था।मैडम नें उस से कौपी छीन ली।वह कौपी ले कर अपनी सीट पर आ गई।सब बच्चे उस की तरफ देख कर हंसने लगे।वह रज्जू की तरफ देख कर हंसने लगे।बच्चे कहने लगे कि मैडम यह कभी भी पढ़ाई नहीं करता है। यह तो घर में भी सारा दिन टीवी देखा करता है और ड्राइंग बनाया करता है ।सचमुच में ही इसके भाग्य में विद्या की रेखा नहीं है,और आज भी यह देर से स्कूल आया है।
उन सब को इस तरह की बातें कहते सुनकर रज्जू की आंखों में आंसू आ गए लेकिन वह फिर भी कुछ नहीं बोला।
वह चुपचाप अपनी सीट पर खड़ा रहा मैडम उसकी कॉपी को उल्ट पल्ट कर देख रही थी। उसकी कॉपी में मैडम की सुंदर तस्वीर बनी हुई थी। साथ में जानवरों की और फूलों की तस्वीरें बनी हुई थी। मैडम उसकी ड्राइंग देखकर बहुत ही खुश हुई। मैडम नें रज्जु को अपने पास बुलाया और कहा बेटा तुम्हारे हाथ में विद्या की रेखा है लेकिन वह धुंधली है। सुबह उठकर तुम अपने हाथों को जरूर देखा करो। सब बच्चे रज्जू पर जोर जोर से हंसने लगे थे ।अचानक मैडम को गुस्सा आ गया अपने मन में सोचने लगी उस ने यह क्या कर डाला? इस छोटे से बच्चे से कह दिया कि तुम्हारे हाथ में विद्या कि रेखा नहीं है। मैं इस बच्चे को सुधार कर ही रहूंगी।शायद इस बच्चे को परखनें में मैनें कोई गलती तो नहीं कर दी।
रज्जू एकाएक खड़ा होकर बोला मेरे हाथ में विद्या की रेखा है। कौन कहता है मेरे हाथ में विद्या की रेखा नहीं है? मैडम ने उसकी ड्राइंग की कॉपी को खोलकर देखा उसमें बहुत ही सुंदर सुंदर फूल और जानवरों की तस्वीरें बनी हुई थी। मैडम उसकी तरफ देख कर बोली कि तू ने क्या कमाल की ड्राइंग बनाई है ।क्या रंगों का चुनाव भी तुमने खुद ही किया है? रज्जू मैडम की और आश्चर्य भरी नजरों से देखने लगा। वह मुस्कुरा कर बोला हां मैडम जी यह सभी मैंनें ही बनाए हैं ।मुझे टीवी में प्रोग्राम देखना बहुत ही अच्छा लगता है। मैं फूलों से संबंधित और रंगों से संबंधित प्रोग्राम टीवी में देखा करता हूं।
राजू जब घर आया तो वह मन ही मन बहुत ही उदास था क्योंकि आज स्कूल में मैडम ने कहा था कि तुम्हारे हाथ में विद्या की रेखा नहीं है। वह अपने मन में सोच रहा था कि कल से मैं स्कूल नहीं जाऊंगा। वह स्कूल जाने से डरने लगा।उसकी मां उसे उदास देख कर बोली बेटा क्या हुआ है? तुम आज स्कूल जाने से मना क्यों कर रहे हो। वह बोला मां मुझे स्कूल नहीं जाना है ।मेरा स्कूल में पढ़ाई को मन नहीं करता है। उसकी मां ने उसे जोर जबरदस्ती करके स्कूल भेजा। स्कूल में भी उसका मन नहीं लग रहा था।
अचानक मैडम कक्षा में आई। सब बच्चों ने खड़े होकर मैडम को गुड मॉर्निंग कहा। मैडम ने रज्जू को उदास देखा। रज्जू को बोली बेटा मैं अध्यापिका होकर तुम्हारे मन के भावों को समझ नहीं सकी। तुम्हें भी तो बुरा लग सकता है। तुम्हारे हाथ में विद्या की रेखा है मगर वह छोटी है तुम उसे अपनी मेहनत से अच्छा बना सकते हो। मैडम ने प्यार से रज्जू को अपने पास बुलाया और कहा कि तुम टीवी में क्या क्या देखते हो ?वह बोला की मैडम मैं टीवी में फूलों से संबंधित और जानवरो से संबंधित प्रोग्राम देखता हूं।मुझे बाग में सैर करना अच्छा लगता है। चिड़ियाघर देखना भी लगता है।मैं टीवी पर चुपके चुपके देखा करता हूं।मां जब डांट लगाती
है तब मुझे टीवी बन्द करना पड़ता है।मुझे कहानियां अच्छी लगती है।मैडम अपने मन में सोचने लगी क्यों ना इस बच्चे से इनके बारे में ही प्रश्न पूछा जाए? ।मैडम सब बच्चों को इशारा करते हुए बोली कि आज मैं सचमुच ही जानना चाहती हूं कि इस के हाथ में विद्या की रेखा है या नहीं।वह बोला कौन कहता है मेरे हाथ में पढ़ाई कि रेखा नहीं, इन बच्चों का दिमाग तो अवश्य ही खराब हो गया है।
टीवी में मैं यदि प्रोग्राम नहीं देखता तो मुझे भी कुछ भी समझ में नहीं आता। मैडम ने कहा कि बच्चे सुनने और चित्रों द्वारा, और टीवी के माध्यम से सीखते हैं। ।तुम जब कुछ भी टीवी पर देखते हो तो तुम पूरे ध्यान से उसे देखते हो तो वह तुम्हारी समझ में आ जाता है। मैं जब तुम्हें पढाती हूं तब तुम मन लगा कर नहीं सुनते हो। रज्जू बोला की मैडम आप भी पढ़ाते समय उसमें कहानियां बना कर डाला करो ।हमें कहानियों के माध्यम से याद करवाया करो। रज्जू के शब्द मैडम के कानों में गूंज रहे थे। बच्चे ने अनजाने में ही सही आज उसे बहुत बड़ी शिक्षा दे डाली थी। आज से वह भी बच्चों को खेल खेल के माध्यम से जानकारी दिया करेगी। मैडम बोली मैं तुमसे प्रश्न पूछना चाहती हूं तुम नें टीवी से क्या क्या सीखा? क्या हम से बांटना नहीं चाहोगे? मैं तुमसे टीवी में देखी हुई चीजों के बारे में ही प्रश्न करूंगी।
रज्जु खुश होकर मैडम की तरफ देखने लगा वह बोला हां मैडम प्रश्न करिए।रज्जु बोला विद्या का अर्थ है ज्ञान। विद्या तो बांटनें से बढ़ती है।आज मैं टीवी में जो कुछ सीखा है सभी में बांटना चाहता हूं।आप प्रश्न पुछिए।
मैडम ने उस से प्रश्न किया कि अच्छा बताओ बेटा किन रंगों को मिलाने सारे रंग बनतें हैं।? रज्जू बोला मैडम लाल नीले और पीले के संयोजन से ही जितने रंग है वह बनतें हैं। इन तीनों रंगों को प्राथमिक रंग कहा जाता है ।बाकी जो भी रंग हैं वह सब द्वितीय श्रेणी के हैं। जैसे पीले और नीले रंग को मिलाने पर हरा ,और पीले को लाल के साथ मिलाने पर संतरी रंग बनता है। ऐसे ही कई और भी रंग हैं जो अलग-अलग रंगों के संयोजन से बनते हैं ,जैसे संतरी और हरे को मिलाने से भूरा ।लाल और जामुनी को मिलाने से मैजेंटा ।। मैडम हैरान हो कर रज्जु को देख रही थी।
मैडम नें रज्जु से कहा अच्छा बेटा बताओ तुम बताओ पक्षियों के पंख क्यों होतें हैं?वह बोला मैनें टीवी में देखा था। करोड़ों साल पहले पक्षी उड़ते नहीं थे। यह भी उसी तरह रैंग कर चलते थे जैसे कि सांप चलता है। इन सरीसृप जीवों का रक्त ठंडा होता था ।यह सूर्य की रोशनी सी ऊर्जा प्राप्त करते थे।धीरे-धीरे धरती की परिस्थितियां उनके रहने के प्रतिकूल होने लगी। पर्वतों की बर्फ पिघलने से समुद्र का विस्तार होने लगा तो जगह की कमी हो गई तब इन्होंने धरती के बजाय पेड़ों पर रहना शुरू कर दिया ।इसी दौरान उन के पंख भी निकल आए और यह उड़ने लगी ।आज के पक्षियों का रूप ले पाए।
मैडम ने उसकी कॉपी पर सांप की तस्वीर देख कर कहा बेटा क्या तुम्हें सांप के बारे में भी कुछ पता है? मैं तुमसे इस के बारे में कुछ प्रश्न पूछ सकती हूं तो वह बोला हां मैडम में डिस्कवरी चैनल देख कर बहुत कुछ सीख गया हूं। मुझे वह चैनल देखना बहुत ही अच्छा लगता है।
मैडम ने उससे प्रश्न किया अच्छा बेटा बताओ कि सांप वास्तव में दूध पीता है या नहीं। वह बोला कि मैडम जी वह कभी भी दूध नहीं पीता यह प्रकृति से मांसाहारी होता है और मेंढक और चूहे जैसे छोटे-छोटे जीवो को खाकर अपना पेट भरता है। वैसे भी इसकी जीभ बीच में से कटी होती है जिससे वह दूध नहीं पी सकता ।इसका इस्तेमाल यह केवल सुंघनें के लिए करता है। सांप की नाक भी होती है लेकिन ठीक से सूंघनें का काम भी करती है। उसे सुनाई नहीं देता लेकिन आहट से उसे सब मालुम हो जाता है।

मैडम उसके उत्तर को सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुई। वह सब बच्चों कि तरफ देखकर बोली कि बेटा कौन कहता है तुम्हें कुछ नहीं आता है?तुम नें मुझे गल्त साबित कर दिया है।तुम तो बहुत ही होशियार हो।आज वह बहुत ही खुश था उसनें अपनी मेहनत से अपनी विद्या की रेखा बना ली थी।मैडम नें भी अपनें पढानें के तरीके में सुधार कर दिया था।वह बच्चों को खेल खेल के माध्यम से पढ़ाई करवानें लगी।
धीरे-धीरे रज्जू कहानी को शौक से सुनता। मैडम नें गणित के प्रश्नों को भी खेल खेल के माध्यम से पढ़ाना शुरू किया। रज्जू सचमुच में होशियार बच्चा बन गया था ।वह पढ़ाई में रुची लेने लग गया था। मैडम ने उसे अपनी क्लास का मॉनिटर बना दिया ।मैडम को समझ आ गया था कि कोई भी बच्चा वास्तव में कमजोर नहीं होता परंतु हम उसकी क्षमता को आंक नहीं सकते आज मैनें जान लिया है।
आगे चलकर वह बच्चा बहुत ही बड़ा चित्र कार बना।

नेकी का रास्ता

तरुण आठवीं कक्षा का छात्र था। घर में सबका लाड़ला था इसलिए वह बिगड़ गया था। सुबह उठते हुए जब उसकी मां उसे कहती बेटा नाश्ता कर लो तो वह नाक भौं सिकोड़ कर कहता की क्या बना है ?उसे खाने में कुछ भी अच्छा नहीं लगता था।उसे बाजार की वस्तुएं खाने की आदत पड़ चुकी थी। उसकी थाली में हमेशा झूठा भोजन बचता था। उसे झूठा छोड़ने की आदत थी ।उसकी मां उसे समझाती बेटे हमें उतना ही भोजन लेना चाहिए जितना हम खा सकते हैं ।पहले कम भोजन लेना चाहिए ।बाद में थोड़ा-थोड़ा करके और खा सकते हैं ।आज भी उसने थाली में खाना झूठा छोड़ दिया था ।वही इस बात का गम्भीरता से पालन नहीं करता था।उसकी दादी उसे समझा कर कहती थी कि अभी तुम बच्चे हो। आधा खाना प्लेट में छोड़ देते हो। अन्नपूर्णा मां का हमें निरादर नहीं करना चाहिए। जिस प्रकार मैं तुम्हारी मां हूं वह भी अनाज की देवी अन्नपूर्णा मां होती है। उसे सारे भोजन की रक्षा करना पड़ती है जो थाली में भोजन जूठा छोड़ते हैं उन से मां अन्नपूर्णा नाराज हो जाती है।उस घर में तो कभी भी खुशहाली नहीं आती। तुम तो थाली से नीचे भी गिरा देते हो। वह बोला मां करता सचमुच में ही अन्नपुर्णा मां होती हैं? मां बोली बेटा ,बचा हुआ या नीचे गिरा हुआ भोजन उठा कर हमें पक्षी को खिला देना चाहिए।
हमें ऐसे इंसान को भोजन नहीं देना चाहिए जो घर से तृप्त हो कर आया हुआ होता है। ऐसे व्यक्ति को भोजन कराना चाहिए जो सचमुच में ही भूखा हो। कभी-कभी तो तरुण अपनी दादी की बातों को गौर से सुनता कभी एक कान से सुनता कभी दूसरे से निकाल देता।
एक दिन वह अपनी दादी,चाची और छुटकी के साथ परिवार के किसी शादी की समारोह में भाग लेने के लिए जा रहा था। वहां पर पहुंचने पर उसे वहां पर अपनें बहुत सारे पुरानें दोस्त मिले । उन के साथ मिल कर वह खुशी अनुभव कर रहा था। भांति भांति के तरह-तरह के व्यजंनों को देख कर उसके मुंह में पानी आ गया। और बहुत सारे मिष्ठान। वह उन व्यंजनों को देखकर सोचने लगा कि आज तो मै भरपेट कर खाना खाऊंगा। कुछ लोग खाना खा रहे थे।कुछ लोग खाना खानें के बाद ढेर सारी मिठाईयां खानें में जुटे थे।वह सोचनें लगा सब लोग तो शादी के समारोह में उपस्थित हो कर आनन्द ले रहें हैं।। तरुण भी शादी में उपस्थित अपने सभी दोस्तों से मिल रहा था ।।वहअपनें दोस्तों के साथ डांस कर खुश हो रहा था।मैं थोड़ी देर बाद जब नाच गान करके थक जाऊंगा तब इन सभी व्यंजनों को खा कर भरपूर मजा लूंगा। उसे अचानक तभी बाहर कुछ शोर सुनाई दिया। उसकी चाची ने उसके पास आ कर कहा बेटा नाच बाद में कर लेना पहले छुटकी को बाहर थोड़ा घुमा कर ले आ।यह मुझे तंग कर रही है।
वह छुटकी को लेकर बाहर आ गया तो पांडाल के बाहर उसे एक भिखारी खड़ा दिखाई दिया। वह भी अंदर आने की कोशिश कर रहा था लोगों ने उसे अंदर नहीं आने दिया वे उससे कह रहे थे कि तुम्हारा शादी के समारोह में क्या काम? तुम क्या इनके रिश्तेदार लगते हो? वह बोला बाबू साहब 2 दिन से भूखा हूं। मैंने सोचा शादी ब्याह वाला घर है यहां से कुछ खाने को तो मिल ही सकता है ।घर में उपस्थित लोगों ने उसे अंदर आने नहीं दिया।
भिखारी की दयनीय दशा देखकर उसे बहुत ही बुरा लगा।वह मन ही मन सोचनें लगा मैं भी तो घर में हर रोज इतना भोजन व्यर्थ फेंकता हूं इससे अन्नपूर्णा मां का अपमान होता है।आज कहीं उसे अपनी दादी मां की बातों में सच्चाई नजर आई। शादी में उपस्थित लोग उस भिखारी को बाहर ही थोड़ा सा खाना दे देते तो क्या हो जाता? चलो मैं अंदर जा कर चुपके से छिपकर के खाना लाकर इस भिखारी को दे दूंगा। उसको भिखारी पर बहुत ही दया आ रही थी। आज से पहले उसने कभी भी यह महसूस नहीं किया था ।वह तो हर रोज न जानें कितना झूठा खाना थाली में यूं ही व्यर्थ ही फेंक देता था।वह दौड़ कर छुटकी को लेकर अंदर आ गया।
भोजन का समय हो चुका था। लोग खाना खा रहे थे नाना प्रकार के व्यंजनों को देखकर पहले तो उसके भी मुंह में पानी आ गया था। लेकिन उस भिखारी का चेहरा उसकी आंखों के सामने आ जाता था। आज उसने सोचा यहां पर तो भांति भांति , तरह-तरह के व्यंजन लगें है। उसने गिन कर देखा वह इतनें अधिक पकवान थे कि जिनको गिनना मुश्किल था। वह अपने मन में सोच रहा था कि इतने तरह-तरह के पकवानों को लगाने की क्या जरूरत थी? और ना जाने कितनी प्लेटों में झूठा खाना पड़ा था।लोग तो लालच के चक्कर में सारे व्यंजन डलवा देतें हैं।एक भी मनपसंद वस्तु का आनन्द नहीं ले सकते।मैं भी तो ऐसे ही करता हूं।आवश्यकता से अधिक वस्तु लेना हमारे लिए नुकसानदायक साबित होता है।यह बात हम में से कोई नहीं समझता।जब बिमारी घेर लेती है तब कहीं जा कर समझ आता है। थोड़े दिन तो याद रहता है बाद में हम सब उसी प्रक्रिया को दोहरातें है।जिसका इतना भयंकर परिणाम यह होता है कि हमें अपनी सेहत भी गंवानी पड़ती है।
उसने चुपचाप देखाआ बहुत सारे लोग भोजन की प्लेट पर बुरी तरह टूट रहे थे जैसे कि उन्होंने आज से पहले इतना स्वादिष्ट भोजन कभी खाया नहीं हो। आज उसे अपनी दादी के शब्द याद आ गए थे ।दादी ठीक ही कहती है शादी में इतना खर्चा करना किस लिए ? लोगों को तो दिखावा करना होता है अगर यह दो-तीन तरह के व्यंजन ही बनाते तो सब लोग खाना भी अच्छे ढंग से खाते और इतना खाना व्यर्थ में भी नहीं जाता ।ना जाने कितनी प्लेटो में झूठा खाना व्यर्थ पड़ा है ?आज तो मैं उस भिखारी को खाना देखकर ही आऊंगा। मैं अपने हिस्से का खाना उस भिखारी को दे कर आऊंगा ।उसने अपनी मां को कहा कि मां मैं बाहर घूम कर आता हूं। वह कुछ खाना छुपा कर उस भिखारी को देनें के लिए ले आया। बाहर का दृश्य देखकर तरुण की आंखों में आंसू छलक आए ।वह भिखारी झूठी पतलों में से खाना खा रहा था और अपने बच्चों को भी खिला रहा था। यह मंजर तरुण से देखा नहीं गया और भिखारी को देख कर उसे महसूस हुआ कि भिखारी की तरह कितने ऐसे लोग होंगे जिन को भरपेट खाना नहीं मिलता होगा। पानी पीकर ही अपना गुजारा कर लेते होंगे ।आज से मैं प्रण करता हूं कि मैं कभी भी प्लेट में झूठा खाना नहीं छोडूंगा और जब भी मुझे कोई ऐसा भूखा इंसान मिलेगा जिसने खाना नहीं खाया हो उसे सबसे पहले मैं घर से ले जा कर खाना दिया करूंगा। वापस आकर उसकी मां ने उसे खाना खाने बुलाया तो वह बोला मां मुझे भूख नहीं है ।उस की दादी उसे पर व्यंग्य कहते हुए बोली बेटा यहां पर मैं तुम्हें लम्बा चौड़ा भाषण नहीं दूंगी बेटा ,थोड़ा सा खाना खा ले।दादी नें खिंच कर उसे अपने पास बिठाकर कहा तुम खाना नहीं खाओगे तो बेटा भला मैं कैसे खा सकती हूं?उन के इस प्रकार अनुरोध करनें पर वह खाना खानें बैठ तो गया लेकिन थोड़ा सा खाना खा कर उठ गया।उस की दादी नें देखा कि वह भोजन को बड़े ही अच्छे ढंग से खा रहा था।उसने एक भी अन्न का दाना निचे नहीं गिराया था। उसकी दादी बोली बेटा तुम तो बहुत समझदार हो गए हो उसको यूं मायूस देख कर उसकी दादी बोली बेटा,आज तुम्हें क्या हुआ है? तुमने ठीक ढंग से खाना भी नहीं खाया।
वह कुछ भी न बोला।घर आ कर उसने सारी बात अपनी दादी को बताई।
उस दिन के बाद तरुण ने कभी भी थाली में झूठा नहीं छोड़ा ।उसने प्रण किया कि वह इस बात को अपने दोस्तों को भी समझाएगा।शादी विवाह विवाह में, या जन्म उत्सव में,या किसी पर्व पर इतना खर्चा किया जाता है ?अगर सभी माता-पिता या बड़े सभी लोग इस बात को समझें तो किसी भूखे को भोजन खिलाने में हम घबराएंगे नहीं बल्कि हम हर एक भूखे को खाना खिला कर अपने ऊपर गर्व महसूस करेंगे।स्कूल में उसनें अपनें सभी साथियों को यह कहानी सुनाई।
उसके बहुत सारे दोस्त बन गए थे।उन सब नें प्रण किया कि वह अपनें आसपास किसी भी भूखे को खाना खिलानें से पीछे नहीं हटेंगें।
हम जब बडे़ हो जाएंगे तो हम शादी आदि समारोह में ज्यादा मात्रा में भोजन नहीं बनवाएंगे।जितना आवश्यकता से ज्यादा खर्चा हम करना चाहतें हैं उस के मुताबिक वह फालतू का रुपया किसी अनाथालय या जरुरत मंद संस्था में दान कर दिया करेंगे।हमारे रुपयों का सदुपयोग भी हो जाएगा और परिवार में खुशहाली भी आएगी।गरीबों की दुआएं फलीभूत हो कर अपना चमत्कार दिखाएगी।

आशियाना

एक वन में विशाल और ऊंचा बरगद का पेड़ था।
कितने सालों से वह पेड़ था यूं ही था वहां खड़ा ।
पेड़ ने एक दिन यूं आने जाने वालों से पूछा
मैं यहां क्यों हूं रहता।
मैं यहां क्यों हूं रहता।
पेड़ हर रोज यही प्रश्न पूछा करता था।
हर रोज चिंता में घुटता रहता था ।
उसकी पतियां थी बहुत ही हरी हरी और प्यारी।
उसकी खुशबू से महकती थी की जंगल की धरती सारी।।
अनेकों चिड़िया उस पर आ कर चहचहाती थी ।
अपनी मधुर गुंजन से उस उपवन को महकाती थी।
बहुत सारे पक्षी उस पर घोंसला बनाकर रहते थे।
वे सभी एक साथ मिलजुल कर खुशी खुशी रहते थे।
चिड़ियों के शोर से वन का कोना कोना गूंज उठता था।
प्रकृति की छटा का अद्भूत नजारा वहां दिखता था।
एक दिन पेड़ ने उधर आने जाने वालों से पूछा
मैं यहां क्यों हूं रहता?।
मैं यहां क्यों हूं रहता?।
हर रोज मायूस हो जाया करता।
मायूस होकर एक दिन वह बोला मेरी इच्छा है कि कोई मुझे काट डाले। मेरी लकड़ी से अपना घर बना डाले।
बाजार में जाकर ढेर सारी कमाई कर डाले।
पेड़ बोला मैं कभी किसी के काम नहीं आया?।
मैंने अपना सारा जीवन यूं ही व्यर्थ गंवाया ।
उस की करुण पुकार एक चिड़िया को थी दी सुनाई।
उसकी पुकार सुनकर चिड़िया की आंख भर आई।।
काली चिड़िया उड़ती उड़ती आई ।
उसने यह बात अपने सभी साथी चिडियों को बताई।।
पेड़ सोच रहा है कि मैं किसी के काम नहीं आया।
यूं ही जी कर अपना सारा जीवन व्यर्थ गंवाया।।
सारे पक्षी बोले आओ मिलकर उस पेड़ को मनाएं।
उसकी दर्द भरी पुकार सभी साथियों को सुनाएं।
पक्षी उस पेड़ के पास जाकर बोले आज तुम तो सौ घर वाले हो।
दस घर नहीं बल्कि दस से भी सौ गुना अधिक घर वाले हो।।
तुम्हारी कृपा से ही तो हम सभी यहां परिवार सहित रह पाए हैं।
यहां पर यह कर हमारे नन्हें नन्हे बच्चे मुस्कूराएं हैं।

इस जंगल को छोड़कर कभी मत जाना।
तुम से ही तो है हमारा आशियाना।
पेड़ मुस्कुराते हुए बोला मैं किसी के काम तो आया ।
मैंने अपना जीवन यूं व्यर्थ नहीं गंवाया।
आज मुझे मालूम हो गया कि मैं यहां क्यों हूं रहता?
अपनें जीवन को यूं ही न्योछावर करता हूं रहता।

शिक्षा और अक्षर ज्ञान

एक दिन मिन्नी मां से बोली मैं भी स्कूल पढ़ने जाऊंगी।
नई नई किताबे पढनें का अवसर पाऊंगी।।
मां बोली बेटा तू तो है अभी बहुत ही छोटी ।
खा पीकर पहले हो जा मोटी ।।
तू तब स्कूल पढ़ने जाना ।
पढ़कर बड़ा बन कर दिखलाना।।
मिन्नी बोली मां देख ,मैं कितनी बड़ी दिखती हूं।
भैया से भी ज्यादा सुंदर लेख लिखती हूं ।।
तू अब मुझे स्कूल भेज ही डाल।
मेरे दिमाग में भी कुछ तो डाल।।
कुछ अक्षर ज्ञान स्कूल में सीख पाऊंगी।
घर आकर पहले तुझे ही पढ़ना सिखलाऊंगी।।
जल्दी से कॉपी भी दे दे ।
साथ में दो चार टॉफी भी देदे।।
बच्चों को कॉपी दिखलाऊंगी।
अपनी नन्हें नन्हें हाथों से कलाकारी दिखा कर सभी को हंसाऊंगी।।

मिनी बोली मां तू अगर पढी होती तो मैं भी कुछ सीख पाती।
नहीं तो तेरे जैसी बन कर निरक्षर ही कहलाती।
मां बोली बेटा तुझे आज ही स्कूल ले कर जाऊंगी ।
तेरी प्यारी प्यारी बातों से मैं ना जीत पाऊंगी ।।
तूने तो मेरे मन से अज्ञान का अंधकार मिटा डाला।
मेरी आंखों से नकाब को हटा डाला ।।
मां तू अब नहीं रहेगी निरक्षर।
तुझे भी पढ़ा कर कर दूंगी साक्षर।।

बच्चोंआओ, बच्चोंआओ मेरे साथ मिलकर गाओ

बच्चों आओ बच्चों आओ, मेरे साथ मिलकर गाओ।
समय का सदुपयोग कर सफलता की सीढ़ी चढ़ते जाओ।
हृदय में उत्साह धारण करके,अपनें कार्य में मन लगाओ।
बच्चों आओ बच्चों आओ मेरे साथ मिलकर गाओ।।
जो समय का सम्मान है करते ।
समय पर ही सभी काम है करते।
वह अपना जीवन खुशी से है जीया करते।।
बच्चों आओ बच्चों आओ, मेरे साथ मिलकर गाओ।
यदि समय व्यर्थ गंवाओगे तो, जीवन भर पछताओगे ।
मान यश धन और कीर्ती सभी कुछ भी न पाओगे।

लड़ाई-झगड़े शरारत में यदि तुम समय गंवाओगे ,
तो तुम विजय श्री कैसे हासिल कर पाओगे?।
साथियों को आगे बढ़ता देख कर तुम जीवन भर पछताओगे,
ज्ञानार्जन कर ही सच्ची खुशी हासिल कर पाओगे।
अपनें माता पिता का दुलार और शिक्षकों का प्यार तभी तुम हासिल कर पाओगे।।
आओ बच्चों आओ बच्चों एक लय में मेरे साथ मिल कर दोहराओ।
समय का सदुपयोग करके ही जीवन को खुशमयी बनाओ।।
आओ बच्चों आओ बच्चों मेरे साथ मिलकर एक लय में गाओ बच्चों
समय पर जागो समय पर सोओ ।
समय पर खाओ,समय पर खेलों।।
समय-सारिणी के अनुसार पढ़ाई कर के ही तो कक्षा में अच्छे अंक अर्जित कर पाओगे।
समय को वरदान भी तुम तभी बना पाओगे।।

आओ बच्चों आओ बच्चो मेरे साथ तुम मिल कर गाओ।
समय का सदुपयोग करके सफलता की सीढ़ी चढ़ते जाओ।
आओ बच्चों आओ बच्चों मेरे साथ मिलकर गाओ,
जीवन के एक-एक पल के महत्व को जान जाओगे।
यथा समय काम करके ही तो जीवन में खुशियां लाओगे।।
बच्चों आओ बच्चों आओ मेरे साथ मिलकर गाओ।।

नन्हा मुन्ना बच्चा हूं

नन्ना मुन्ना बच्चा हूं।
लेकिन कान का कच्चा हूं।।
सीधा साधा भोला भाला , लेकिन
किसी की बातों में ना आने वाला ।।
बड़ों का सम्मान करता हूं।

उनका अपमान कभी नहीं करता हूं।।
समय का पालन करता हूं।
संयम से ही सारे काम करता जाता हूं।।
नहीं करता हूं कक्षा में किसी से शत्रुता।
प्यार से सुलह करके उन से हो जाती है मित्रता।।
मां के साथ रसोई घर में उनका हाथ बंटाता हूं ।
पापा के साथ दुकान जा कर जरुरत का सामान भी लाता हूं ।।
अपनी बहन से करता हूं प्यार।
उस को किसी भी चीज दिलवानें के लिए नहीं करता हूं इंकार।।
क्रोध कभी नहीं करता।
बहन को चिढ़ाने से भी जी नहीं भरता।।

मम्मी को मक्खन खुब लगाता हूं।
अपनी बात मनवा कर नाच उन्हें नचाता हूं।।

चुटकुले सुनाकर सभी का दिल बहलाता हूं ।
नाक भौं सिकोड़ चेहरा खूब बनाता हूं।।

सभी बच्चों को इकट्ठा करके उन्हें खेल खिलाता हूं ।
खेल में धमाल मचा कर मस्ती खूब जमाता हूं।।

भोला भाला मुंह बनाकर सभी को चिढ़ाता हूं ।
पापा के आगे हथियार डाल, मगरमच्छ के आंसू बहा कर उनका प्यार भी पाता हूं ।।

दादू दादी का हूं मैं दुलारा ।
उन दोनों का हूं मैं आंख का तारा।।
कहानियां सुना कर उनका दिल बहलाता हूं।
उनका प्यार पा कर स्नेह मग्न हो जाता हूं।।

पेड़ कटने से नहीं रहेगी खुशहाली

पेड़ कटने से नहीं रहेगी हरियाली।
इनको काटने से कैसे आएगी खुशहाली?
वक्त से पहले ही जिंदगी थम जाएगी।
खिलने से पहले ही प्रकृति उजड़ जाएगी।।

पेड़ों की काट छांट करता रहा तो इन्सान वहशी बन जायेगा।
इंसान नहीं वह तो दरिंदा कहलाएगा।।
पेड़ कट जाएंगे तो जीव जंतु भी हाहाकार मचाएंगे ।
कम हवा से वे भी जीते जी मर जाएंगे।।
इन्सानों की उम्र घटती जाएगी।
चराचर जीवों की संख्या भी लुप्त हो जाएगी।।
जिंदा रहने के लिए सभी को चाहिए शुद्ध हवा, शुद्ध वातावरण।
प्रदूषित वातावरण में मनुष्य का हो जायेगा मरण।।

चारा और शुद्ध हवा न मिलने से जीव जंतु भी बेमौत मर जाएंगे ।
इंसानों के भी नामो-निशान मिट कर खाक में मिल जाएंगे।।
प्रदूषित वातावरण में इन्सान भी सांस नहीं ले पाएगा।
भयंकर बीमारियों से ग्रसित होकर रह जाएगा।।
जल सरोवर भी सूख जाएंगे,
इंसान और जीव-जंतु पानी के अभाव में मर जाएंगे।।
पृथ्वी भी व्याकुल हो कर रह जाएगी।
जल निमग्न हो कर शून्य में डूब जाएगी।।‌

‌प्रकृति के अनमोल रत्न हैं, जीव जंतु सारे।
इन्हें संतुलित रखनें पर ही,होगें सुरक्षित मानव सारे।।।
एक नहीं दस दस पेड़ लगानें से मानव का होता है उद्धार।
जीवन में परोपकार कर ही तरक्की का खुलता है द्वार।।

कोरोना

विधाता ने कैसा खेल रचाया?
चीन से निकले इस वायरस नें चारों तरफ गज़ब ढाया।

दफ्तर जानें वालों पर भी गजब का कहर ढाया।।
छोटा बच्चा, बड़ा, बूढ़ा, सभी घरों में ही व्याकुल होकर रह गए।

घर कि चार दिवारी में बन्द हो कर सिमट गए।।

कोरोना महामारी ने अपना कैसा तांडव रचाया?
सभी मानव मन में उथल-पुथल मचाया ।
बच्चे जो स्कूल में जाने से करते थे मनाही ।
वे स्कूल खुलनें की मांगे दुहाई।

माता-पिता बच्चे सब सह परिवार इकट्ठे नज़र आए ।
बच्चों के साथ काम कर खुशी से मुस्कुराए ।
लौक डाउन के बाद माता-पिता और बड़ों को यह बात समझ में आई।
करोना से निजात पाने के लिए घर में सुरक्षित रहनें में ही है सब की भलाई।

आज अपनी मां को काम पर न जाता देख मन ही मन बच्चे मुस्कुराए।
अपनें पापा को भी मां का हाथ बंटाता देख वे भी आगे आए।।
जीवन के सुनहरे पलों को बच्चों के साथ बिता कर और भी मधुर बनाइए।
चेहरे पर खुशी झलका कर उन का भी साहस बढ़ाइए।।

संकट की इस घड़ी में जो फरिशता बन कर आए,
देश के प्रति अपना फर्ज़ निभा कर परिवार को पीछे छोड़
सहायता के लिए आगे आए।।
उन कार्य कर्ताओं का हम सभी हार्दिक अभिनन्दन करते हैं।
उन को सैंकड़ों दुआएं दे कर उनके प्रति आभार व्यक्त करतें हैं।।

अपनें जीवन को यूं दांव पर न लगाइए।
घर पर ही सुरक्षित रह कर अपनें काम में मन लगाइए।
रिश्तों की गहराइयों को सूझबूझ से निभाइए।
अपनें बच्चों के साथ किसी न किसी क्रियाकलाप में जुड़ जाइए।।

कोरोना को हरानें के लिए घर पर ही रहना जरुरी है।
मास्क लगा कर और तीन गज दूरी को अपना कर,
इस संदेश को अमल में लाना जरुरी है।।
जीत जाएंगें हम,कोरोना को हराएंगे हम।
सारा देश अगर संग है।

एक दिन जीत का जशन मनाएंगे हम।