आपसी मेलजोल कविता

रानी और रज्जु गुड़िया के पीछे थे झगड़ रहे।
वे एक दूसरे को गुस्से से थे अकड़ रहे।।
रानी बोली तुम अपने खिलौनों से खेलो खेल।
मुझ से झगड़ कर न रखो कोई मेल।।

मां ने आ कर रानी और रज्जु को धमकाया।
एक दुसरे को प्यार से खेलनें के लिए मनवाया।।
रानी बोली वह हर वक्त मुझे से है झगड़ता।
हर वक्त नाक में दम है करता रहता।।

रज्जु मां की तरफ देख कर मुस्कुराया।
उसे अपनी बहन पर प्यार आया।।
रज्जु बोला मेरी गुड़िया सी बहना।
तू तो है मेरी चहेती बहना।।

तुझे से झगड़ा कर के मैं कहां खुश रह पाऊंगा?
थोड़ी देर बाद तुझे मनाने दौड़ लगा कर आ ही जाऊंगा।।
तू है चुलबुली और नटखट।
हमारी तो इसी तरह होती रहेगी खटपट।।
प्यार प्यार में छोटी मोटी नोंक-झोंक तो जीवन कि सच्चाई है।
इसी में तो प्यार कि गहराई है।।
हमारा लड़ाई झगड़ा तो पल भर का है।।
हमारा साथ तो जन्म जन्म का है।।

मां बोली मिल जुलकर रहनें में ही भलाई।
यह बात क्या तुम दोनों कि समझ में आई?।।
रज्जु बोला मैं तुम से अब कभी न करुंगा लड़ाई।
रानी बोली यह बात मेरी समझ में भी आई।।

रानी बोली आओ अपनें दोस्तों को भी बुलाओ।
मिल जुल खेल कर खुशियां मनाओ।।
लड़ाई झगड़े को छोड़ खुशी से मुस्कुराओ।।

फ्रिज से निकाल कर मां के हाथ कि बनीं मिठाई लायेंगें।
अपनें दोस्तों के साथ मिल बांट कर खाएंगे।
एक दूसरे के टिफिन से भी मिल बांट कर खानें का मजा तो कुछ और ही है होता।
कृष्ण के मित्र सुदामा कि झलक को स्मरण है करवा देता।।
मां बोली मिल बांट कर खानें से प्यार बढ़ता है।
प्यार का रंग और विश्वास गहरा होता है।ः

गुल्लक के रुपयों से कुछ सामान खरीद कर लाएंगे।
झुग्गी-झोपड़ी में रहनें वाले बच्चों को दे कर आएंगे।।
अपनें पुरानी चीजों को मिल जुल इकट्ठा कर ,
जरुरत मंद को दे कर आएंगे।
उनके चेहरों पर भी हंसी कि मुस्कान खिलाएंगे।
होली के दिन उनकी झोंपड़ी में जा कर सूखा रंग लगाएंगे।
उन के साथ मिल जुल खेल खेल कर होली के उत्सव में चार चांद लगाएंगे।।

मां बोली मेरे बच्चो तुम्हें मित्रता कि भावना समझ आई।
एकता कि गहराई तुम पर असर दिखा ही पाई।।

तारो संग बच्चो का खेल

चमचम चमचम चमके तारे।
चन्दा से भी प्यारे।।
चमचम चमचम चमके तारे।
आओ बच्चों पास हमारे।।

चन्दा मामा कि तरह आओ सब पर रोब जमाएं।
थोडा अकडू बन कर, थोडा झगडू बन कर सब पर हुक्म चलाएं।
चन्दा मामा कि तरह चमक चमक कर ,सब के चेहरों पे खुशी कि रौनक लाएं।

छुपन छिपाई का खेल खेल कर सब का दिल बहलाओ।
हमारे साथ खेल खेल कर, हमारे संग धमाल मचाओ।।
आओ बच्चो पास हमारे, हमारे संग खेल खेल कर ढेर सारी मस्ती लुटाओ।
हमारे संग खेल खेल कर, सब का दिल बहलाओ।।
पापा की तरह रोब जमा कर , आओ सब को हंसाओ।
चांदनी कि तरह शीतल बन कर, अपनीं वाणी में मधुरता लाओ।

चमचम चमके तारे ,
चन्दा से भी प्यारे।
चमचम चमचम चमके तारे।
आओ बच्चों पास हमारे।

हमारे पास आनें से न कतराओ प्यारों।
पेडों के झूरमूट में छिप कर आओ सब को डराओ यारों।

थोडा इन्तजार करवा कर, थोडा उन्हे रुला कर खुद उन्हें मनाओ
आओ बच्चो जल्दी आओ।।
हमारे संग खेल खेल कर लुकन छिपाई का आन्नद उठाओ।
चोर सिपाही का खेल खेल कर , सिपाही बन कर चोरों को पकड़वाओ।
आओ चोर को पुलिस वाला बन कर चोर को जेल पहुंचाओ।
आगे से चोरी न करनें का मन्त्र सिखाओ।
चमचम चमके तारे, चन्दा से भी प्यारे।
आओ बच्चों पास हमारे,चन्दा से प्यारे।।

खेल खेल में अपने चारो ओर का वातावरण स्वच्छ बनाएं।
ममी पापा की तरह झाडू लगा कर, सफाई अभियान के मन्त्र को गुनगुनाएं।

स्वच्छता अभियान को कामयाब कर सफाई का महत्व सब को समझाएं।

आओ बच्चो जल्दी आओ, हमारे साथ खेल खेल कर
लुकन छिपाई का मजा उठाओः
फौजी बन कर अकड कर चल के, देश भक्ति का गीत गुनगुनाओ।
शहीदो को नमन कर के आओ उन के गुण गाओ।
उन कि राह पर चल कर कामयाब हो कर दिखाओ।

इस कविता के माध्यम से डाक्टर,अध्यापक सभी का जिक्र कर इस कविता को और भी खुखसुरत बना सकतें है।

कछुआ,खरगोश और बन्दरों का झूंड

एक कछुआ घने जंगल में था आया ।
शीतल छांव देख कर मन ही मन मुस्कुराया।।
कुछ खरगोशों ने भी वहां सुस्तानें के लिए लगा रखा था डेरा।
उन्होंने सामने आ कर उसे था घेरा।।


खरगोश अपनें साथियों को बोले
भागों रे भागो ,यहां से भागो।
जागो रे जागो,जागो रे जागो।।


मोटी और भददी खाल वाला आया है यहां एक साथी।
इसकी बदसुरत और मोटी त्वचा हमें जरा भी नहीं है भाती।।
हमें नहीं है इसे साथी बनाना,
इसके साथ सख्ती से है पेश आना।।
आओ मिल कर इसे डराएं,
जल्दी से इसे यहां से दूर भगाएं।।


हमारे विश्राम स्थल को इसनें है घेरा ।
आओ इसके मार्ग को अवरूद्ध कर लगाएं डेरा।।
कछुए कि ओर देख कर खरगोश बोले
हम तो हैं सुन्दर मुलायम खाल वाले।
तुम तो हो बदसूरत सी खाल वाले।।
तुम्हारा रुप तो लगता है मोटी चट्टान वाला।
दिल भी होगा तुम्हारा काला काला
हम हैं कितने सुन्दर, कितने प्यारे।
तुम तो हो कुरुप ,कुरुप और काले।
हमारे बाल भी चमकीले और न्यारे।।


कछुआ उन कि बातों को सुन हैरान हुआ।।
उन कि मुर्खतापूर्ण व्यवहार से जरा भी परेशान नहीं हुआ।।
अचानक कुछ बन्दरों का झुंड भी था वहां आया।
मीठे मीठे फलों का ख्याल मन को भाया।।
मोटी शाखा पर बैठ उन्होंने उधम मचाया।
टहनीयों को हिला हिला कर था जोर लगाया।।
फलों को खा खा कर था नीचे गिराया।
उन सब को फल खाता देख कर खरगोशों के मुंह में पानी भर आया।
उन सब का जी भी फल खानें के लिए ललचाया।।
बन्दर तो पेड़ों को हिला हिला कर मस्ती से थे झूम रहे।
नीचे हाय,उफ्फ, कर कर खरगोश थे धूम धड़ाम से गिर रहे।।
पेड़ों से फल गिर कर खरगोशों पर थे पड़े।
हाय! तौबा कर खरगोश थे चीख पुकार कर रहे।।

कछुआ उनकी तरफ देख मुस्कुराया।
वह तो फलों का प्रहार भी खुशी खुशी सहन कर पाया।।
कछुआ खरगोशों कि तरफ देख बोला ।
हाय !हाय!,उफ्फ! ये कौन बोला।
बेचैन और बौखलाहट भरे स्वर से ये कौन डोला?
कछुआ बोला अब बताओ किस कि खाल है प्यारी?
मेरी या तुम्हारी।।
तुम सब नें तो डाक्टर के पास जानें कि कर ली है तैयारी।
जल्दी से नौ दो ग्यारह हो जाओ नहीं तो मौत कि कर लो तैयारी।।

खरगोश बोले हमें तो भाई अपनी जान है प्यारी।
तुम्हारी खाल तो है सबसे सुन्दर , अद्भुतऔर न्यारी।।
अपनी अपनी जगह सभी है खुबसुरत।
न कोई छोटा बड़ा और बदसुरत।।
आओ हमें तुम्हारी दोस्ती है स्वीकार।
हम तुम से आज के बाद कभी नहीं करेंगें तकरार।।

मुन्नी का मधुर सपना

जब सब बच्चे स्कूल में आए तब मैडम ने बच्चों को कहा कि तुम्हें कल “मेरा स्कूल,” पर निबंध लिखने को दिया जाएगा। जो बच्चा सबसे अच्छा निबंध लिखेगा उसे इनाम दिया जाएगा ।निबंध ऐसा होना चाहिए जैसा आज तक किसी ने भी ना लिखा हो। जिसका सबसे अलग निबंध होगा उसे ₹100 ईनाम में दिए जाएंगे।


भोली भाली मुन्नी सोचने लगी कि मैं सबसे अच्छा निबंध लिखकर दूंगी। इस बार निबंध का पुरस्कार तो मुझे ही मिलना चाहिए। आज वह घर में आकर चुपचाप अपनी पढ़ाई करने बैठ गई। मां उसकी आदत से बहुत ही खुश हुई आज अचानक ऐसा क्या हो गया जिससे इसका रवैया ही बदल गया। थोड़ी देर पढ़ाई करने के बाद उसने अपनी मां को कहा कि मां मेरा खाना यहीं पर दे जाना। रात को भी जब मुन्नी खाना खाने नहीं आई तो उसकी मां ने उसकी प्लेट उसकी बिस्तर के पास ही रख दी ।उसने वहीं पर खाना खाया और पढ़ाई करने के पश्चात उसे नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला कि सपने में ही वह स्कूल में पहुंच गई थी। कक्षा में जल्दी-जल्दी जा रही थी। मैडम ने सब बच्चों को मिठाई बांटी और कहा कि सब के सब बच्चे मेरे स्कूल पर निबंध लिखो। मिनी बड़ी खुश हो रही थी वह सोच रही थी कि मैं सबसे अच्छा लिखूंगी ।उसने लिखा मेरा स्कूल मेरे मुताबिक हो। हम बच्चों के मन मुताबिक हो। हम बच्चे ही क्रमानुसार बच्चों को पढ़ाएं । जो बच्चे काम करके नहीं लाए तो उसे सजा नहीं मिले। उसे प्यार प्यार से समझाएं। हम में से हर रोज एक बच्चा अध्यापक या अध्यापिका बनें। कक्षा में शोर होने पर उन्हें सब बच्चों से सलाह मशवरा करके उनकी सजा तय करें। सुबह-सुबह स्कूल आने का मन नहीं करता। 10:00 बजे जब सुबह पापा ऑफिस चले जाएं और बसों का का शोर शराबा कम हो जाए तब हम स्कूल लगवाएंगे। यानी 10:00 बजे तो यह सम्भव नहीं हो सकता। स्कूल में सुबह जल्दी उठ कर स्कूल दौड़ना पड़ता है। न जल्दी उठा जाता है ,ना ढंग से खाया जाता है ,बिना नहाए ही स्कूल जाना पड़ता है ।स्कूल में भी नींद ही लग रही होती है मां भी जोर जोर से हिला कर उठाती है। बिस्तर पर सोए सोए ही खाना खाना पड़ता है ।डांट पड़ने का ख्याल आते ही स्कूल को जैसे तैसे उबासियां लेकर ही भागना पड़ता है।
मेरे स्कूल में मैडम का कोई काम नहीं होना चाहिए। हम बच्चे ही आपस में मैडम बने और बच्चों को पढ़ाएं। हम 12वीं कक्षा की होशियार सी छात्रा को पढ़वाई करवानें के लिए चुन देंगें। मैडम तो सारे दिन स्कूल में सारे दिन लिखवाती रहती हैं ।हमारा मन भी नहीं करता तो भी मजबुरी से लिखना पड़ता है।कई बच्चे जिन को समझ नहीं आता है वह एक ही लाइन को बार बार लिखते रहें हैं ताकि मैडम समझे कि हम काम कर रहें हैं। हम तो एक दिन पढाई किया करेंगे और एक दिन लिखनें का काम किया करेंगे। एक दिन खेल खेल के माध्यम से एकटिवीटी करके काम करेंगें।
हम सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किया करेंगे। हमें सकूल का बहुत ही भारी बैग उठाना पड़ता है।की बार कौपियां भी भूल जातें हैं हमें स्कूल में अपमान सहना पड़ता है।हम बस्ते का बोझ भी कम करेंगे।हम अपनी पुरानी किताबों का एक एक सैट स्कूल में रख देंगे। नया सैट घर पर ही रखेंगे। स्कूल में केवल कौपियां ही ले कर जायेंगें।और काश ऐसा हो जाता कि हफ्ते में एक दिन ही अध्यापिकाओं या अध्यापक जी को कक्षा में बुलवाएं ।मैडम को छूट दे देंगे और कहेंगे कि अपना अधूरा कार्य पूरा कर लो। काश ऐसा हो जाए तो हम सभी बच्चे खुश हो जाएंगे। पढ़ाई भी अपने मन मुताबिक होगी।
होमवर्क तो अपने मन मुताबिक ही करेंगे और वह भी स्कूल में ही किया करेंगे। घर में तो मम्मीयां काम खुद कर देती हैं या कान पकड़ कर या खुद कर देती हैं। ऐसा काम करने का क्या फायदा? स्कूल में हम सब से चाहे एक ही पैराग्राफ लिखें लेकिन अपने आप। स्कूल में हर रोज छुट्टी के बाद एक घंटा खेल खेलेंगे। बच्चे अपने मनपसंद खेल खेलेंगे। ग्रुप में बच्चे जो खेल जिसको पसंद है उसमें हिस्सा लेंगे ।श्रुतलेख कंपटीशन में भी जिन बच्चों को सिलेक्ट किया जाएगा उन्हीं को हम ईनाम बाटेंगे अगली बार जो बच्चे प्रथम आएंगे उनका अलग-अलग सा ग्रुप बनाएंगे। सेकंड आनें वालों का अलग ग्रुप। और थर्ड आनें वालों का ग्रुप बनाएंगे फिर पांच ग्रुप में से कंपटीशन करवाएंगे। हर एक बच्चे को इनाम जीतने का मौका मिलेगा। हर बार एक ही बच्चा इनाम ले जाता है।इससे वे बच्चे मायूस हो जातें हैं जिन बच्चों नें थोड़ी बहुत मेहनत की होती है। इसमें हर एक बच्चे को ईनाम लेने का मौका मिलेगा। जिन बच्चों को इनाम नहीं मिलता है वह बच्चे बहुत ही मायूस हो जाते हैं ।हम सभी को इईनाम दिलवानें का यत्न करेंगे जो बच्चा अपने ग्रुप में सबसे अच्छा होगा वह अपनें ग्रुप को पढ़ाई में आगे लानें में मदद करेगा। जो बच्चा अपने सबसे कमजोर बच्चे को पढ़ाने में सक्षम होगा सबसे बढ़िया उसे इनाम दिया जाएगा। हम बच्चे 3 महीने में एक बार पिकनिक का भी आयोजन किया करेंगे। स्कूल में सफाई कूड़ा कर्कट फैलानें वालों के प्रति सख्ती से पेश आएंगें। जो बाहर थूकेगा उसे जुर्माना भी देना पड़ेगा। कड़े निर्देशों का पालन करना होगा। कितना मजा आएगा? जब हम सारे कार्य अपने मनपसंद योजना के अनुसार करेंगे।
मैडम चुपके से कक्षा में आ गई थी। उसने मुन्नी की सब बातें सुन ली थी।वह अपनें निबंध में से बच्चों को पढ़ कर सुना रही थी। जो बच्चा सभी ग्रुप में से सबसे ज्यादा अंक लाएगा हम उसे अपना मुख्याध्यापक या मुखिया चुन लेंगे ।उसकी आज्ञा मानना हमारा अधिकार हो जाएगा ।

हम अपने स्कूल में चुनाव भी करवाएंगे मिड डे मिल्स हमारे मुताबिक ना बना और जरा सी भी भूल चूक हुई तो हम खाना बनानें वाले अंकल या आंटी को बताएंगे चावल कि मात्रा,पानी की मात्रा, पैमानें से तोल कर और साफ सफाई का ध्यान रखते हुए ,कितना खान बनेगा? उसकी मात्रा के लिए हम एक लड़की को चयनित कर के खाना बनाने वालों की मदद करेंगे। हमें हमारे मन मुताबिक खाने को मिलेगा अगर कोई बच्चा बहुत गरीब है या बीमार है तो हम सब यह बच्चे मिलकर उसकी सहायता करेंगे ।हम स्कूल में एक गुल्लक भी बनाएंगे। हर महीने उसमें 10- 10रुपये डालेंगे और अपने अध्यापक वर्ग और अध्यापकों से भी 100रुपये ले कर गुल्क में डालेंगे। किसी बच्चे के बीमार होने पर उन से उसकी मदद करेंगे। हम सभी बच्चे घर में जो कोई भी फल या और कोई खानें की वस्तु हमें घर से खानें को मिलेगा खाने के लिए लाएंगे। वह 15 मिनट के ब्रेक के बाद ही बच्चों में आपस में मिल बैठकर खाएंगे। जब किसी बच्चे का जन्मदिन आएगा तो हम उस से कहेंगे कि टॉफी चॉकलेट के स्थान पर स्कूल में ही खीर बनवा लिया करेंगें।


हम अपने स्कूल में शांति का माहौल बनाएंगे। प्रार्थना में भी हर एक बच्चे को प्रतिज्ञा और प्रार्थना बोलने के लिए हर ग्रुप की बारी लगवाएंगे। जो बच्चा राष्ट्रगान गलत गाता है उसे हर रोज अभ्यास करना कर याद करवाना हर ग्रुप की बारी होगी। जो बच्चा याद नहीं करेगा उस ग्रुप के 5 अंक काट लिया करेंगे ।

मैडम उन बच्चों की बातें सुनकर मुस्कुरा रही थी ।वह चुपचाप वहां से ऑफिस में चली आई ।उसने बच्चों से कुछ नहीं कहा क्योंकि बच्चे सब अपने ही धुन में मग्न थे। मैडम के आने का उन्हें जरा भी आभास नहीं था ।मैडम ने सभी अध्यापकों से मिलकर योजना बनाई और बच्चों को कहा कि बेटा आज से एक महीने के लिए हम सब तुम्हारे मन मुताबिक काम तुम्हें सौंपेंगे न।
एक महीने के लिए तुम स्कूल का कार्य भार अपने ऊपर ले लो। हमें स्कूल के रजिस्टर पूरे करने हैं, देखते हैं तुम स्कूल में पढ़ाई का कैसा माहौल बनाते हो? बच्चों का एक महीना पूरा हो जाने पर निरीक्षण किया तो पाया कि बच्चों ने तो बेहतर परिणाम दिया था। जिन बच्चों को मैडम पढ़ाते पढ़ाते थक जाती थी वह बच्चे बड़े आनंद से अपने कार्य में दिलचस्पी दिखा रहे थे। अध्यापकों ने जब महीने के आखिरी दिन में टैस्ट लिया तो वह देख करदंग रह गए कि सभी बच्चों ने पहले से ज्यादा अंक लिए थे। उन्होंने तालियां बजाकर बच्चों का उत्साह बढ़ाया और कहा कि बच्चों हमें पता ही नहीं था कि तुम स्कूल का उत्तरदायित्व भी बखूबी निभा सकते हो। हमें अपने काम करने का तुम को मौका दिया हम सब अध्यापक वर्ग तुमसे खुश हैं ।


मुन्नी तुम्हें इनाम के तौर पर ₹100 दिए जाते हैं। तुमने सबसे अच्छा निबंध लिखकर सभी बच्चों को सुनाया, लेकिन पीछे खड़े होकर मैं भी सुन रही थी। हम सभी अध्यापक वर्ग तुम्हें भोज देकर खुशियां बाटेंगे। बच्चों को भोज देकर उनकी खुशी अध्यापिका ने और भी बढ़ा दी। अचानक मैडम ने ₹100 का नोट मुन्नी को थमाया और कहा कि बेटा यह लो तुम्हारा ईनाम तुम नें सब से अच्छा निबंध लिखा है।तुम ने लिखनें के बावजुद उसे बच्चों को पढ़ कर ही सुना दिया। अचानक उसे जोर का झटका लगा वह तो सपना देख रही थी। उसकी मां मुन्नी को हिलाकर जोर से बोली क्या तुम्हें आज स्कूल नहीं जाना? देर हो जाएगी। आंखें मलते चलते हाय!यह तो सपना था।इतना अच्छा सपना , काश यह सपना सच हो जाता।

होली का त्योहार

होली का त्योहार है रूठों को मनाने का,
बिछड़े दिलों को फिर से मिलानेका।।
अपनें ही परिवेश में अनजान न बन,
एक साथ मिल कर खुशियां मनाने का।।
प्रेम के रंग में रंग जानें का
होली के रंग में धमाल मचाने का।।
ऊंच नीच,जात पात के बंधन को छोड़ कर,
हर एक पल को भूल कर बस जम कर रंग बरसानें का।।
हो हुल्लड़ मचानें का। मस्ती से ठूमका लगानें का,
एक दूसरे पर अपनत्व का गुलाल लगा , खुशियां लुटानें का।।

बच्चों के संग बच्चा बन कर मौज मस्ती मनानें का।
उन को ममतामयी आंचल में, सजाने संवारनें का।।

प्रेम भाव को भूल गए।
नफ़रत के बीजों से झूल गए।
रिश्तों के एहसास को खो चुके।
कटुता के अंकुर बो बैठै।।

हर समय तकरार करके,अपने ही अहमं भाव में तन बैठे।
होली की जगह गोली की चिंगारी बन हर एक से शत्रुता कर बैठे।
कैमिकल वाले रंगों कि पिचकारी चलाना सीख गए हम।।
प्रकृति से जुड़ी हर वस्तु को नष्ट करना सीख गए हम।।

एक दूसरे को नीचा दिखा कर ,हराने के लिए डोल गए।
एक दूसरे पर भरोसा करने के बजाए,एक दूसरे से घृणा के बीज बोते गए।।

कृष्ण कन्हैया की होली का खेल भूल चुके।
अपनें ही रंगों में रंगना भूल चुके।।
तू तू मैं मैं के तानें देना सीख गए।
व्रज कि होली कि झंकार भूल गए।।

आज हमारी होली हम से छीन चुकी ।
मैत्री भावना की चाह हम से खो चुकी।
आपस में वार्तालाप से कतराते हैं।
एक दूसरे से ईर्ष्या छल कपट के नए नए धन्धे जुटातें हैं।
होली के बजाए गोली की राह अपनाते हैं।।

हमारे बच्चे राख धूल मिट्टी अबीर और गुलाल लगाना भूल गए।
पानी के गुब्बारे और कैमिकल ,तेजाब मिले रंग में झूल गए।।
वटहहैप पर और ट्विटर के द्वारा होली खेलने का फैशन आया।
औन लाईन के जरिए होली खेलनें का चित्र भिजवाया।।

आज हैपी होली का संदेश भेज कर खुशियां मनातें हैं।
एक दूसरे से मिलने के बजाए वटसहैप पर ही खुशियां जुटातें हैं।

हर कोई किसी के घर जानें से कतराया।
हर एक के मन में स्वार्थ का बीज लहराया।।
आज गले मिलने से कतराते हैं।
अपनें पर गर्व कर अपनी करनी पर इतरातें हैं।
धूल भरी होली को तुच्छ बताते हैं।।
कैमिकल वाले रंग सब पर छिडकातें हैं।।

उपलों को जला कर उसकी सुलगती आंच का जिक्र हम भूल गए।
गेहूं की बालियों और कच्चे चनों का स्वाद भूल गए।
रूठों को मनाने का अदांज भूल गए।
मन की गांठे भी न खोल सके।
रंगों से भिड़ना भूल चुके।
पानी में पिचकारी छोड़ना भूल गए।
अपनें अहंकार में इतना आगे आ बैठे।
अपनें अस्तित्व कि पहचान ही को खो बैठै।

घर में मीठी मीठी तरकारीयों कि खुशबु भूल गए।
नानी दादी के हाथों से बने पकवानों कि महक भूल गए।
आनलाईन मिठाइयों का आर्डर देनें का तरीका सीख गए।।

गुलाब

मैं फूलों का राजा गुलाब कहलाता हूं।
मैं रंग और रूप से अपनी पहचान बनाता हूं।
बसंत ऋतु में खिल कर उपवन की शोभा बढ़ाता हूं।

मेरी सुगन्ध से मधुमक्खियां और तितलियां मेरे चारों ओर इठलाती हैं।
चक्कर काट काट कर मुझे रिझाती हैं।
झरनों कि मधुरता मुझे लुभाती है।
वर्षा के बूंदों कि झंकार मुझे सुहाती है।।
ओस की बूंदें मुझे नहलाती हैं।
तेज हवाएं पौंछ कर मुझे सुखाती हैं।
सूर्य की रौशनी से खिलना सीखा।
तितलियों से रिझाना सीखा।
अपनी खुशबू सब पर लुटाना सीखा।

प्रदूषित पर्यावरण को स्वच्छ बनाता हूं।
अपनी सुगंध से वाटिका में चार चांद लगाता हूं ।
मुसाफिरों की थकावट को दूर भगा उन्हें विस्तार से जीना सिखाता हूं।
बागों में चम्पा,गेंदा, सूरजमुखी ,रात की रानी, सभी के मन को भाता हूं।
बच्चे,बूढ़े, सभी के चेहरों पर खुशी की मुस्कान खिलाता हूं।
अपनें साथी फूलों को खुश देख देख कर मुस्कुराता हूं।
उन्हेंं खुश देख कर स्वयं भी उल्लास से भर जाता हूं।।
ईश्वर की भेंट स्वरुप मन्दिर में चढ़ाया जाता।
नई नवेली दुल्हनों के श्रंगार की शोभा बनाया जाता।
शहीद भक्तों और मृतकों के शीश पर सजाया जाता।
खिलनें पर इन्सानों के चेहरे पर खुशी कि किरण झलकाता हूं।।
सौन्दर्य प्रसाधनों कि शोभा बढ़ा कर असंख्य नर और नारियों के मुखड़े पे सजाया जाता हूं।
मुर्झानें पर दूर कूड़े कचरे के ढेर पर फैंक खून के घूंट पी जाता हूं।
कांटों में रह कर भी मुस्कुराता हूं।
परिवर्तन शील जीवन को पहचान कर गले लगाता हूं।
चुपचाप शहनशीलता दर्शाता हूं।

वन के प्राणीयों की गुफ़तगू

वन के पक्षियों नें जंगल में सभी जीवों को आपातकालीन न्योता दे कर बुलवाया।
जंगल में एक बड़ी बैठक का आयोजन करवाया।।
वन के पक्षी आपस में वार्तालाप कर बोले।
आजकल हमारा भी धीरज है डोले।।

शहरों व कस्बों में मधुर कलरव कर इन्सानों को हैं जगाते।
वे हम पर ज़ुल्म करनें से जरा भी नहीं हिचकिचाते।
इन्सान हम से बेरुखी भरा व्यवहार है अपनाता।
हम पर तीर और पाषाण है बरसाता।।

कूड़ा कचरा स्वयं जगह जगह मानव ही है फैलाते।
बसों, सार्वजनिक स्थलों पर जगह जगह कूड़े कचरे का ढेर हैं लगाते।।

घरों में पानी की नालियों में भी दुर्गन्ध है फैलाते।
स्वच्छता के नाम पर मच्छर मक्खिय़ों का ढेर है लगवाते।।

हम पर ही आग बबूला हो कर हम पर पत्थर है बरसाते।
हमें बेच हमारा मांस खा कर हम पर ही जुल्म है ढाते।।

अपनें द्वारा फैलाई गंदगी से ही इंसान अस्वस्थ हैं हो रहे।
वे हमें ही कोरोना को फैलानें का कारण हैं समझ रहें।।

स्वार्थ के कारण इन्सान नें ही जंगलों का विनाश किया।
धरती के आंचल को क्षत-विक्षत कर उसे विध्वंस किया।
सागर में बहनें वाली जलधारा को अपनें कुकृत्यों से सुखा दिया।
वायु को जहरीले उत्पाद मिला कर प्रदूषित किया।।
पक्षियों की मधुर ध्वनि का कलरव जहां जहां सुनाई देता है

आज गाड़ियों,कारखानों के भीष्ण शोर की कलकलाहट का नाद दिखाई देता है।
बाढ़ और सुखे की चपेट से जगह जगह मानव है बौखलाया हुआ।
प्रकृति में संगीत की जगह शोरगुल है छाया हुआ।
प्रकृति के जीव-जंतुओं के विलोपन से असुंतलन का कोहराम सर्वत्र है छाया हुआ।।
जल,जमीन,वायु,आकाश प्रकृति, पर खतरे का बादल है मंडराया हुआ।

मानव कूड़ा कचरा नदी में फैंक कर
प्रदूषण है फैला रहे।
जलधारा में मल-मूत्र विसर्जित कर उसे प्रदूषण युक्त बना रहे।।

शेर बोला इन्सान हमें तो पकड़ कर चिड़िया घर में डालने का षड्यंत्र है रचाते।।
हमें बन्द पिंजरे में डालकर हमारा चैन-सुकून सब छीन लेंते।
उनके द्वारा जगह जगह फैलाई गन्दगी को साफ ही हैं करते।
मानव प्राणी पर उपकार ही है किया करते।।
हाथी, हिरण बोले हम तो मर कर भी मानव के काम ही हैं आते।।
हमें बेच कर फिर भी वे हमारा मांस खा कर अपनी तृषा है बुझाते।।
कौवा बोला हम इन्सानों द्वारा फैलाई गई गन्दगी को साफ ही हैं करते।
उन्हेंं ही खा कर अपना निर्वाह है करते।

इंसान कूड़े कचरे को प्लास्टिक के बंद डिब्बों और थैलियों में है डाल देते।
कौकरोच और चूहे, वन्य जीवों को मारनें
के लिए जहरीली दवाईयों का छिड़काव हैं करते।।
पक्षी जीवों को मार कर अपना ही नुकसान है किया करते।।
आलसपन और लापरवाही के कारण इन्सान ने अपना सर्वनाश किया।
स्वार्थ के कारण अपना धन्धा चौपट किया।।

वन्य जीवों नें ही तो अपने जीवन को मनुष्यों के साथ है जोड़ा।
इन्सानों ने न जानें क्यों हम पर प्रहार कर बेरुखी का आवरण है ओढ़ा।।

इन्सान हमें डरानें के लिए तरह तरह के मुखौटे अपनें खेतों में है लगाता।
हमारी जाति भाई बन्धुओं को मार कर अपनी खुशी है झलकाता।।

हम उन के खेतों को उपजाऊ हैं बनाते।
इनके खेतों को कुरेद कुरेद कर नमी वाला हैं बनाते।।

कठोर धरती को फसल योग्य हरा भरा हैं बनाते।
वे फिर भी हमारे भोजन का निवाला छिनने से जरा भी नहीं हिचकिचाते।।

वृक्षों को काटनें और जहरीली दवाईयों के छिड़काव से हम बेमौत मारे जाएंगें।
मुर्गीयों की तरह हम भी यूं ही मकान की छतों पर मृत पाए जाएंगें।।
पेड़ों को काटने और पौधों के नष्ट होने से
हम वन के जीव तो लुप्त हो जायेंगें।
मर कर भी मानव जाति के ही काम आएंगे।।

अपनें स्वार्थ के कारण इन्सान इंसानियत को भूल गया।
लालच में अन्धा हो कर वह हैवानियत से जूझ गया।

हमें मार कर तुम भी अच्छी फसल उत्पन्न नहीं कर पाओगे।
हमारी श्रंखला को तोड़ कर बहुत पछताओगे।

वनों के काटनें से प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा।
धरती पर मनुष्य का रहा सहा अस्तित्व भी डगमगा जाएगा।।

हे मानव प्राणी अपनी करनी से तुम भी कब तक जी पाओगे
बिना हवा के,बिना भोजन तुम भी बे मौत मारे जाओगे।।
ऐ मानव अभी भी संभल जा।
आलस्य को त्याग कर कुछ नेकी का काम कर के दिखा।।

राजा और रंक

एक भिखारी को अपनें घर की दहलीज पर खड़े देख कर रानी बोली क्या सुबह-सुबह तुम्हें कोई काम नहीं है? जो तुम दरवाजा खटखटाने लगते हो ।भिखारी बोला माई दो दिन से खाना नहीं मिला खाना दे दो।खाना खा कर यहां से चला जाऊंगा। वह बोली नहीं तुम किसी और घर जाओ ।इतने में रानी का पति भिखारी को सामनें खड़ा देख कर बोला जल्दी निकलो यहां से तुम्हें कुछ भी भीख नहीं मिलेगी।दूसरा घर ढूंढो।सुबह सुबह मांगनें चले आते हैं।कोई काम धाम नहीं है क्या?। तुम्हारे कपड़ों से बड़ी ही दुर्गन्ध आ रही है।गन्दे गन्दें पैरों कि रगड़ से छू कर हमारा सारा कालीन खराब कर दिया।कालीन पर सारे दाग पड़ चुके हैं।तुम्हें साफ करनें पड़ जाएं तो ? निकल यहां से। भिखारी मायुस हो कर धीरे धीरे कदम बढ़ाता वहां से चला जाने ही वाला था तभी रुपेश का छोटा सा बेटा वहां आ गया।वह भिखारी को खाली कदम जाता देख अपनें नन्हे नन्हे हाथों से भिखारी को अपनें कटोरे से खाना देने लगा। उसके पिता नें डांट फटकार कर उसे वहां से हटा दिया। वह भिखारी सचमुच में ही भूखा था। भिखारी उस बच्चे को निहारता हुआ वहां से चला गया।

रुपेश को अपनी दौलत का बहुत ही घमन्ड था।वह दोस्ती भी अपनी हैसियत वालों के साथ करता था।छोटे मोटे लोगों को तो वह भाव ही नहीं डालता था।वह तो अपनी हैसियत से छोटे लोगों का साथ पसन्द नहीं करता था।इस बात को काफी दिन व्यतीत हो गए।
रानी का पति एक बहुत ही बड़ी कम्पनी का मालिक था।उस का बहुत बड़ा बंगला,गाड़ी,ऐश्वर्य की सभी सामग्री थी उस के पास लेकिन उस का घमंड सातवें आसमान तक था।औफिस में भी कोई छोटे वर्ग का कोई भी कर्मचारी आता तो उस को अपनें पैरों की जूती समझ कर उसे बाहर का रास्ता दिखा देता था। सम्पन्न वर्ग के लोगों को ही काम पे रखता था।
एक बार रुपेश को अपनी कम्पनी कि तरफ से बाहर दूसरे कस्बे में जानें का मौका मिला।वह गाड़ी से अपना काम निपटा कर घर कि तरफ ही आ रहा था कि जोर जोर से वर्षा होनें लगी।उस रास्ते से वह कभी नहीं गया था।उसके साथी लोगों ने उसे सुझाया कि वर्षा आनें वाली हैं।आप छोटे वाले रास्ते से जाएं।यह रास्ता है तो जंगल का मगर आप जल्दी ही घर पहूंच जाएंगे। अपनें साथियों के कहनें से रुपेश नें विपरीत दिशा में गाड़ी घुमा दी।काफी दूर निकल आया।उसके साथी सब उतर चुके थे।वह अकेला ही गाड़ी चला रहा था। अचानक वर्षा इतने तेजी से आई कि उसे आगे का रास्ता उसे दिखाई ही नहीं दिया।वह गलत रास्ते से निकल पड़ा था। गाड़ी को एक जगह खड़ी कर के वह आगे जानें का रास्ता खोज रहा था।आंधी,तूफान इतना तेज था कि वृक्षों की शाखाएं भी टूट टूट कर गिरनें लगी। आते जाते लोगों को इधर उधर शरण लेनी पड़ी।वह जैसे ही गाड़ी से बाहर निकला गाड़ी में बैठे लोग उसकी आंखों से ओझल हो गए थे।उसकी गाड़ी का शीशा भी टूट टूट कर चकनाचूर हो कर उस की ही सीट पर बिखर गया था।वह नीचे उतर गया था इस कारण बच गया था।वह उस दिन अपनी जान से हाथ धो बैठता।
वह हताश हो कर ठंड के मारे कंपकंपाता हुआ चला जा रहा था।वह अपनें मन में सोचनें लगा इस जंगल के रास्ते से उसे नहीं आना चाहिए था। थोड़ी देर ठंड में चलता रहा तो वह ठंड से अकड़ कर मर जाएगा।जान बचानें के लिए कहा जाया जाएं।रास्ते के दुर्गम जंगलों से बच कर वह कहीं जा भी तो नहीं सकता।उसे अपनें साथियों की बातों में नहीं आना चाहिए था।वह कुछ दूरी पर शेर को देख कर डर के मारे कांपनें लगा।उसके हाथ से एक छोटा सा तौलिया भी जमीन पर नीचे छूट गया।
वह तेज वर्षा मैं भागने लगा।उसने फिर से अपना रास्ता बदल दिया।शेर से तो वह बच गया।कुछ दूरी पर चला था वह सहायता के लिए चिल्लाने लगा।क्या यहां कोई है ?जो मेरी सहायता करेगा।भागते भागते जब उसे काफी देर हो चुकी तो उसे जंगल के एक ओर झोंपड़ी दिखाई दी।उसने राहत कि सांस ली?उसने देखा झूग्गी झोंपड़ी में एक फटे हाल चिथड़ों
वाला भिखारी एक छोटी सी खोली में आग ताप रहा था।रुपेश बोला क्या मैं अन्दर आ जाऊं?वह भिखारी बोला क्यों नहीं? आप खुशी से अन्दर आइए। आप इसे अपना ही घर समझो।बाबू जीआप ठन्ड से कांप रहें हैं।आप को कहा बिठाऊं?आप को सोफे पर बैठानें कि मेरी औकात ही कहां है?मेरे पास तो बैठानें के लिए छोटी सी चटाई है।जो भी किसी नें मुझे दान में दी है।यह भी बिल्कुल तार तार हो चुकी थी।
पैबंद लगा कर ठीक की है।बाबू साहब क्या चाय पियोगे? मेरे पास दूध तो नहीं है काली चाय पिला सकता हूं। बिना शक्कर कि।आप तो बड़े लोग ठहरे आप चाय तो क्या ही पियोगे?कौफी तो मेरी पूर्वजों नें भी नहीं पी होगी।रुपेश नें चश्मा पहना हुआ था।बैठ जाईए खड़े खड़े ही चाय पिएंगे क्या? आगे आ कर अपनी कमीज़ सुखा लिजीए।भिखारी नें उसे चटाई पर बिठा दिया।चटाई पर बैठ कर उस कि जान में जान आई।
भिखारी कहनें लगा आप को मैं अपनी कमीज़ भी नहीं दे सकता।मेरे पास एक ही फटी हुई कमीज़ है।मेरे पास एक मोटी सी बनियान है आप अगर पहनना चाहतें हैं तो मैं आप को दे सकता हूं।वह तकिए के नीचे से बनियान निकाल कर बोला।

एक बार मैं एक सेठ जी के घर भीख मांगनें गया।तीन दिन से मुझे खाना भी नसीब नहीं हुआ था।उस सेठ जी कि पत्नी नें ओर सेठ जी नें मुझे बुरा भला कह कर मुझे बिना कुछ दिए भगा दिया। फटकारते हुए कहा कि किसी दूसरे का दरवाजा खटखटाओ।यहां कोई लंगर नहीं लगा है?मुझे कहा चल हट छि छि तुम्हारे कपड़ों से दुर्गन्ध आ रही है।बाबू साहब कहीं आप को भी मेरी चटाई काट से बदबू तो नहीं आ रही। रुपेश बोला नहीं इस वक्त तो जान पे बन आई है।जल्दी से चाय पिला दो
सेठ के हाथ में से चाय का प्याला नीचे गिरते गिरते बचा।थोड़ा संभल गया और जल्दी ही चाय को गटक गया।
आज उस कि चटाई पर बैठ कर आग सेंकनें का मजा आ रहा था।उसे आज जरा भी नहीं लग रहा था कि उस चटाई में न जानें कितने दिनों कि गन्दगी जमा हुई थी।चाय पी कर उस कि जान में जान आई।
रात के अंधेरे में भिखारी नें उसे नहीं पहचाना।उसे आंखों से कम दिखाई देता था।रुपेश ने उसे पहचान लिया था। रात रुपेश को वहीं गुजारनी पड़ी।उस कि फटी बनियान पहन कर काम चलाना पड़ा।आज उस कि अकड़ ठिकानें लग चुकी थी।इस बियाबान जंगल में किस के पास जा कर अपने को बचाता।वह भिखारी उसे आज एक मसीहा नजर आ रहा था।सुबह होनें पर वह जल्दी जग गया।तुफान थम चुका था।वह पैदल ही घर कि ओर रवाना हो रहा था कि सामने से आती एक गाड़ी दिखाई दी।उस ने लिफ्ट मांगी।

एक छोटी सी गाड़ी एक लड़का चला रहा था।
वह बोला साहब आइए।मैनें आप को पहचान लिया।आप तो एक बहुत ही बड़ी कम्पनी के मालिक एक भिखारी कि झोंपड़ी में रात गुजार रहे थे।आप के पास मैं नौकरी मांगनें आया था आप नें मुझ से बात न कर के किसी और व्यक्ति को नौकरी दे दी थी क्यों कि वह आप कि बराबरी का था।आज तो आप को समझ में आ ही गया होगा कि चाहे इन्सान कितना भी बड़ा हो जाए उसे हर स्थिति में एक जैसा रहना चाहिए।अपनें को बड़ा समझ कर घमन्ड नहीं करना चाहिए। भगवान कि तलवार जब चलती है तो वह छोटा बड़ा कुछ नहीं देखती। आप बैठ जाइए।सौ रुपया बनता है वह तो मैं ले कर ही रहूंगा।
रुपेश ने आज महसूस किया कि गरीबी क्या चीज़ होती है?आज उस के मन से अहंकार कि भावना चूर चूर हो गई थी।उस के सामने न भिखारी का चेहरा आ गया यही भिखारी उस के दरवाजे पर भीख मांगनें आया था।उसने उसे यह कह कर उसे निकाल दिया था कि भीख नहीं दे सकते क्यों कि उस के फटे कपड़े उस भिखारी कि व्यथा कह रहे थे।उस के कपड़ों से दुर्गन्ध आ रही थी।आज उस भिखारी नें उसे एहसास दिला दिया था कि उस भिखारी के सामने वह कितना छोटा था और भिखारी कितना महान ।उसका दिल कितना बड़ा था जिस के मन में कितनी दया करुणा भरी थी।उस दिन सचमुच वह भूखा था।उसे खाना न दे कर उस का तिरस्कार किया था।मुझ से अच्छा तो मेरा बेटा था जो अपनें कटोरे से उसे रोटी खिलाना चाहता था।आज भिखारी का सच्चा रुप उसकी आंखों में घूमनें लगा।

हम बड़े हो कर अपने ही घमंड में चूर हो कर किसी गरीब को अपनें हाथ से एक रुपया देनें में कतराते हैं।अतिथि तो भगवान का रुप होता है।रुपेश को आज अपनें आप से नफ़रत हो रही थी।वह भिखारी आज उसकी सहायता नहीं करता तो वह ठंड में यूं ही जगंल में मर जाता।आज उसे चिथड़े वाली टाट भी किसी नर्म गदे से कम नहीं लग रही थी।कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता।छोटी तो हमारी सोच होती है।
इन्सान को न जानें कब किस स्थिति से गुजरना पड़े।चाय पीते वक्त भी उसे दुर्गन्ध का जरा भी एहसास नहीं हो रहा था।उस के कहे शब्द उसे कचोट रहे थे।

सुबह मैकेनिक को ले कर अपनी गाड़ी ठीक करवानें उस स्थान पर ले गया।भिखारी से मिल कर उसे 100रुपये देने चाहे तो रुपये देख कर भिखारी बोला बाबू जी मैं भीख मांगता जरुर हूं लेकिन मैं यह नहीं ले सकता।आप यहां ठहरे रुका सूखा का कर आप नें अपना पेट भरा मेरे लिए यही बहुत है।आज मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि आज। मैनें भी किसी को अपनें घर का खाना खिलाया, नहीं तो आज से पहले तो मांग कर ही गुजारा करता था। रुपेश जब काम पर जा रहा था तो रास्ते में एक मुसाफ़िर उस कि गाड़ी के सामने हाथ दे कर बोला साहब गाड़ी में बिठा दो आज मैं इन्टरवियू के लिए जा रहा हूं।अगर मुझे नौकरी नहीं मिली तो मैं और मेरी बूढ़ी मां मर जाएंगे।रुपेश नें गाड़ी रोक दी और उसे गाड़ी में बिठा दिया और उसे कहा बेटा चिन्ता मत कर समय से पहले तुम्हें पहुंचा कर ही काम पर जाऊंगा।वह व्यक्ति उतर कर बोला बाबू साहब भगवान आप का भला करे।आज उस के मन से अहंकार कि भावना समाप्त हो गई थी।औफिस चल कर वह अपनें से छोटे कर्मचारियों के साथ बैठ कर चाय पी रहा था।उस में आए परिवर्तन को देख कर उस कि कम्पनी के लोग खुश थे।

एक डाल पर बैठी चिड़िया।

एक डाल पर बैठी चिड़िया।
पंखों को हिलाती चिड़िया।।
पेड़ों पर टक टक करती चिड़िया।
मधुर स्वर में गाती चिड़िया।
चीं चीं का राग सुनाती चिड़िया।
टूकर टूकर कर सब का ध्यान लुभाती चिड़िया।
एक डाल से दूजे डाल तक फुदक फुदक कर जाती चिड़िया।
एक डाल पर बैठी चिड़िया।
प्यारी और मनमोहक चिड़िया।।
भीगे पंखों से पानी को छिटकाती चिड़िया।
वर्षा का भरपूर आनन्द उठाती चिड़िया।।
अपनी ही धुन में गाती चिड़िया।
सब का दिल बहलाती चिड़िया।।
सामने दाना देख दानें पर ललचाती चिड़िया।
मुंह में पानी भर लाती चिड़िया।
अपनी जिह्वा पर काबू न कर पाती चिड़िया।।

दाने को पानें की खातिर फुर्र से उड़ जाती चिड़िया।
सामने देख शिकारी को भय से अकुलाती चिड़िया।।
नन्हे बच्चों को अपनें पंखों के बीच छिपाती चिड़िया।
डर से थर्रथर्राती चिड़िया।
दाना छोड़ कर ,डर के मारे अपनें बच्चों को प्यार से सहलाती चिड़िया।
एक डाल पर बैठी चिड़िया।
अपनी धुन में मग्न हो कर गाती चिड़िया।।

कंपकंपाती ठंड से बचने कि खातिर, पेड़ की शाखा पर बैठ जाती चिड़िया।
चूं-चूं चीं चीं कर के अपनें बच्चों को बुलाती चिड़िया।।
मधुर स्वर में चहचहाती चिड़िया।
सामने देख बच्चों को खुशी से आनन्द मनाती चिड़िया।।

व्यायाम करना सीखें

सारे बच्चों मिल कर बजाओ ताली।
हमेशा तुम्हारे जीवन में आएगी खुशहाली।।

खेल खेल में व्यायाम को अपनें जीवन का हिस्सा बनाओ
अपनें शरीर को सुडौल और सुन्दर बना के दिखाओ ।
पढ़ाई में रहो सब से आगे आओ
हर काम समय पर कर के दिखाओ ।
कुद कुद कर हाथों को जोर से हिलाओ।
ऊपर, नीचे,नीचे ऊपर,दाएं बाए,
बांएं दाएं, आगे पीछे।।
कभी न देखो मुड़ के पिछे ।।

मस्ती भरे मन से मौज मनाओ ।
अपनें चेहरे पे हंसी भरा नूर लाओ।।

चश्में को जरा आंखों से हटा के,
बाजु को दाएं बाएं घुमा के,आगे पिछे घुमा के।
गोल गोल शून्य की आकृति बना के ।
हर ताल और लय के साथ ठुमका लगाओ ।
अपनें हाथों कि उंगलियों को एक साथ फंसा कर,
अभिवादन की मुद्रा बनाओ बच्चों।
उंगलियों को थोड़ा नीचे झूका के, फिर धिरे से ऊपर ला कर,
अपनें हाथ की मुठी को खुला और बन्द कर के, शक्ति के साथ दबाओ बच्चों।
इस प्रक्रिया को बार बार दोहराओ,
अपनें स्वास्थ्य में सुधार पाओ बच्चों।

एक से दस तक की गिनती एक साथ मिल कर दोहराओ।
अपनी गर्दन को गोल गोल घुमाओ।।
आंखों की पुतलियों की आकृति शुन्य की तरह बनाओ।
दस से एक तक की गिनती तक यह प्रक्रिया दोहराओ।।
दाएं बाएं,बाएं दाएं गर्दन को हिलाओ।
गर्दन के लिए भी यह शून्य बनाओ।
अपनी ठोड़ी को भी सुन्दर बनाओ।
मुंह बन्द कर के जिव्हा से शुन्य बनाओ।
अपनें गालों को थोड़ा फुलाओ बच्चों
अपनें दांतों को जीवा से सटा के,
दांतों को दाएं बाएं लाओ बच्चों।
विपरीत दिशा में भी शुन्य बना कर गोल गोल घुमाओ।

नीचे झुक कर घुटनों को थपथपाओ।
अपनें गर्दन को ऊपर लाओ बच्चों।
अपनी कोहनियों को गोल गोल घुमाओ,
जरा मुस्कूरा के,जरा ठूमका लगा के,
कमर को थोड़ा हिलाओ बच्चों।
ठूमका लगा के,जरा थोड़ा शर्मा के,
हंसी के ठहाकों में खो जाओ बच्चों।।
जोर जोर से गुनगुनाओ।
एक,दो,तीन,चार,,पांच,तो,बात आठ नौ,दस,
दस,नौ,आठ,सात‌,
छ,पांच,चार,
तीन दो,एक।।
यह प्रक्रिया बार बार दोहराएं बच्चों।
एक से दस तक और दस से एक तक यह प्रक्रिया एक साथ दोहराओ।

ताली बजा कर ,सभी बच्चों को यह व्यायाम सिखाओ।
ऊपर आसमान को देखो बच्चों।
आईस्ता आईस्ता झुक कर धरती को स्पर्श कर के,
धरती मां का आशीर्वाद पाओ बच्चों।
पैरों को जमीन से सटा के,
धरती के गोल गोल चक्कर लगा के।
मस्ती भरे मन से झूम झूम के गाओ, और व्यायाम में रम जाओ बच्चों।
कूद कूद कर जोर जोर से ठहाके लगाओ बच्चों।
अपनें साथ अपनें गुरुजनों को भी हंसाओ बच्चों।

अध्यापिका के संग खुब मौज मनाओ बच्चों।
A से z तक के सारे अलफाबैट एक साथ दोहराओ बच्चों।