चींटी

चींटी है इस धरा की नन्हीं सी जीव।
संघर्षों से भरी हुई है इस की नींव।।
श्रम की साक्षात मूर्ति है कहलाती।
मुश्किलों से झूझनें में कमाल है दिखलाती।।
यह दिनों में मिलोंमिल है चलती।
मकड़ी की तरह यह कभी नहीं है थकती।।
कभी भी आराम नहीं है करती।
झून्डों में है वास करती,
तन्मयता से है संघर्ष करती।।
अपनें पथ से कभी भी विचलित नहीं है होती।
अपना लघू आकार उसे कभी नहीं है अखरता,
वह तो निरन्तर संघर्ष से दिनोंदिन और भी है निखरता।।

परिश्रम से अंधकार को चांदनी में है बदल सकती।
सफलता के अंतिम छोर तक पहुंच अदम्य साहस है दिखलाती।।
संघर्षों से खेलना उसका स्वभाव है बन जाता।
यह उसकी तरक्की का द्वार है कहलाता।।
कालचक्र की परवाह किए बिना वह तो अपने लक्ष्य को प्राप्त करनें के लिए प्राणों की बाजी है लगाती।
रुकावटों का पूरी जिंदादिली से सामना है करती।।
ऊपर नीचे से घुसकर ,कोनों से निकल कर ,जैसै जैसे वह अपना मार्ग खोज कर ही चैन की सांस ले पाती।
बुजदिलों की भांति पिछे मुडकर कभी नहीं भागती।।
चीटीं को भी है ज्ञात होता,
हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहनें से कुछ भी हासिल नहीं होता।।
मुश्किलें हमें कमजोर बनानें के लिए नहीं आती।
हमारी सोई प्रतिभाओं को जगानें के लिए है आती।।

Leave a Reply

Your email address will not be published.