रानी और रज्जु गुड़िया के पीछे थे झगड़ रहे।
वे एक दूसरे को गुस्से से थे अकड़ रहे।।
रानी बोली तुम अपने खिलौनों से खेलो खेल।
मुझ से झगड़ कर न रखो कोई मेल।।
मां ने आ कर रानी और रज्जु को धमकाया।
एक दुसरे को प्यार से खेलनें के लिए मनवाया।।
रानी बोली वह हर वक्त मुझे से है झगड़ता।
हर वक्त नाक में दम है करता रहता।।
रज्जु मां की तरफ देख कर मुस्कुराया।
उसे अपनी बहन पर प्यार आया।।
रज्जु बोला मेरी गुड़िया सी बहना।
तू तो है मेरी चहेती बहना।।
तुझे से झगड़ा कर के मैं कहां खुश रह पाऊंगा?
थोड़ी देर बाद तुझे मनाने दौड़ लगा कर आ ही जाऊंगा।।
तू है चुलबुली और नटखट।
हमारी तो इसी तरह होती रहेगी खटपट।।
प्यार प्यार में छोटी मोटी नोंक-झोंक तो जीवन कि सच्चाई है।
इसी में तो प्यार कि गहराई है।।
हमारा लड़ाई झगड़ा तो पल भर का है।।
हमारा साथ तो जन्म जन्म का है।।
मां बोली मिल जुलकर रहनें में ही भलाई।
यह बात क्या तुम दोनों कि समझ में आई?।।
रज्जु बोला मैं तुम से अब कभी न करुंगा लड़ाई।
रानी बोली यह बात मेरी समझ में भी आई।।
रानी बोली आओ अपनें दोस्तों को भी बुलाओ।
मिल जुल खेल कर खुशियां मनाओ।।
लड़ाई झगड़े को छोड़ खुशी से मुस्कुराओ।।
फ्रिज से निकाल कर मां के हाथ कि बनीं मिठाई लायेंगें।
अपनें दोस्तों के साथ मिल बांट कर खाएंगे।
एक दूसरे के टिफिन से भी मिल बांट कर खानें का मजा तो कुछ और ही है होता।
कृष्ण के मित्र सुदामा कि झलक को स्मरण है करवा देता।।
मां बोली मिल बांट कर खानें से प्यार बढ़ता है।
प्यार का रंग और विश्वास गहरा होता है।ः
गुल्लक के रुपयों से कुछ सामान खरीद कर लाएंगे।
झुग्गी-झोपड़ी में रहनें वाले बच्चों को दे कर आएंगे।।
अपनें पुरानी चीजों को मिल जुल इकट्ठा कर ,
जरुरत मंद को दे कर आएंगे।
उनके चेहरों पर भी हंसी कि मुस्कान खिलाएंगे।
होली के दिन उनकी झोंपड़ी में जा कर सूखा रंग लगाएंगे।
उन के साथ मिल जुल खेल खेल कर होली के उत्सव में चार चांद लगाएंगे।।
मां बोली मेरे बच्चो तुम्हें मित्रता कि भावना समझ आई।
एकता कि गहराई तुम पर असर दिखा ही पाई।।