गुलाब

मैं फूलों का राजा गुलाब कहलाता हूं।
मैं रंग और रूप से अपनी पहचान बनाता हूं।
बसंत ऋतु में खिल कर उपवन की शोभा बढ़ाता हूं।

मेरी सुगन्ध से मधुमक्खियां और तितलियां मेरे चारों ओर इठलाती हैं।
चक्कर काट काट कर मुझे रिझाती हैं।
झरनों कि मधुरता मुझे लुभाती है।
वर्षा के बूंदों कि झंकार मुझे सुहाती है।।
ओस की बूंदें मुझे नहलाती हैं।
तेज हवाएं पौंछ कर मुझे सुखाती हैं।
सूर्य की रौशनी से खिलना सीखा।
तितलियों से रिझाना सीखा।
अपनी खुशबू सब पर लुटाना सीखा।

प्रदूषित पर्यावरण को स्वच्छ बनाता हूं।
अपनी सुगंध से वाटिका में चार चांद लगाता हूं ।
मुसाफिरों की थकावट को दूर भगा उन्हें विस्तार से जीना सिखाता हूं।
बागों में चम्पा,गेंदा, सूरजमुखी ,रात की रानी, सभी के मन को भाता हूं।
बच्चे,बूढ़े, सभी के चेहरों पर खुशी की मुस्कान खिलाता हूं।
अपनें साथी फूलों को खुश देख देख कर मुस्कुराता हूं।
उन्हेंं खुश देख कर स्वयं भी उल्लास से भर जाता हूं।।
ईश्वर की भेंट स्वरुप मन्दिर में चढ़ाया जाता।
नई नवेली दुल्हनों के श्रंगार की शोभा बनाया जाता।
शहीद भक्तों और मृतकों के शीश पर सजाया जाता।
खिलनें पर इन्सानों के चेहरे पर खुशी कि किरण झलकाता हूं।।
सौन्दर्य प्रसाधनों कि शोभा बढ़ा कर असंख्य नर और नारियों के मुखड़े पे सजाया जाता हूं।
मुर्झानें पर दूर कूड़े कचरे के ढेर पर फैंक खून के घूंट पी जाता हूं।
कांटों में रह कर भी मुस्कुराता हूं।
परिवर्तन शील जीवन को पहचान कर गले लगाता हूं।
चुपचाप शहनशीलता दर्शाता हूं।

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