मधुर बचपन के वे क्षण याद आते हैं।
धुंधली यादों के साए नजर आते हैं ।।
बचपन की अठखेलियां के वे चंचल लम्हे याद आते हैं।
दोस्तों संग मस्ती के वे क्षण याद आते हैं।। कैसे भुलें कैसे भुलें
मां पापा का प्यार।
नाना नानी का लाड दुलार।।
मधुर बचपन के वे स्मृति चिन्ह मानस पटल पर बार-बार अंकित हो जाते हैं।
बचपन के वे खुशी भरे लम्हे हर पल यादगार बन
कर मनमें घर कर जातें हैं।।
दोस्तों से बात बात पर बकबक।
बात-बात पर चक चक।
वह सुनहरे पल याद आतें हैं।
मधुर बचपन के वे क्षण याद आते हैं।।
जीवन के इस भाग दौड़ में खो गया कहां मेरा बचपन।
स्वच्छंद वातावरण का भोलापन।।
याद आती है बचपन की बहुत सारी बातें। अपनों के प्यार और उनकी स्नेह की बौछारें। चिंता रहित खेलना कूदना घूमना।
भाग भाग कर अपनी बात मनवाना।।
कैसे भुलाया जा सकता है वह स्वच्छंद अतुलित आनंद।
न ऊंच-नीच का भेदभाव। न किसी से मनमुटाव
मस्ती से जीना।
पल पल गाना पल पल हंसना।
वह शाही ठाठ-बाट
बादशाह सा मेरा बचपन।
होठों पर मधुर मुस्कान।
लुक्न छुपाई का खेल।
सहेलियों के संग गुड्डा गुड्डी का खेल।
छोटे भाई से लड़ना झगड़ा।
झूठमूठ को रुठ कर गुस्सा दिखाना।
बहन की चोटी खींच खींच कर चिढ़ाना। जाफरी में घुस कर नानी के घर से अचार को चटकारे ले कर खाना।।
कुल्फी वाले की आवाज सुन कर दौड़ सब काम छोड़ कर बाहर जाना।।
छोटे भाई को पहरेदार बना कर नानी मां के पीछे लगाना।।
आधी छुट्टी के समय दोस्तों संग हुडदंग मचाना।
खोमचे वाले से इमली ले जा कर क्लास में चटकारे ले ले कर इमली खाना।।
शास्त्रीगुरु जी के आते ही कक्षा में निस्तब्धता छा जाना।
चुपचाप किताब ले कर पढाई का नाटक करके दिखाना।
पीटीआई गुरु जी के डंडे की मार से कक्षा से भागने का बहाना करना।।
बचपन के
वे मधुर पल याद आतें हैं।
थोडी सी आहट पा कर पिता जी के डर से भीगी बिल्ली बन कर उल्टी किताब पकड़ कर पढाई करनें का स्वांग रचाना।
बचपन के वे सुनहले प्यार आतें हैं।
मां को इशारे से सब बात समझाना।
पापा के आते ही पढाई करनें बैठ जाना।।
मां के गले लग कर उन से सारी बात मनवाना।
बचपन के वे मस्ती भरे पल हरदम याद आतें हैं।
चलचित्र की भान्ति सजीव हो कर मन को मंत्र मुग्ध कर देतें हैं।।