मां की सीख

मां बेटे से बोली।

तेरे संग है बच्चों की टोली।।

तुम हरदम उपद्रव क्यों मचाते हो?

अपनी चीजें हर जगह क्यों फैलाते हो।।

रिंकू बोला मैं तो हूं आपका राज दुलारा।

आपका सदा ही रहूंगा आंख का तारा।।

मां बोली  तू अगर मगर क्यों करता है?

मुझे परेशान कर  अपना राग अलापता है।।

चुन्नू बोला मां  बात बात पर मुझे क्यों चिढाती हो।

हरदम काम काम कह कर  अपनी बात मनवाती  हो।।

मां बोली बेटा अपनी चीजों को ठीक स्थान पर रखने की आदत डालो।

सभ्य बच्चे की तरह अच्छे गुणों को अपना डालो।।

यह बात तुम अपने दोस्तों को भी समझाओ।

समझ कर अपनी  अक्ल में बिठाओ।।

मां बोली जल्दी से  संस्कारी बच्चे बनकर अपने कमरे में जाओ ना।

अपने दोस्तों के संग सारी चीजें सुव्यवस्थित ढंग से सजाओ ना।

मां बोली आज तुम्हारा मनभाता हलवा खिलाती हूं।

स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर कर तुम्हें रिझाती हूं।।

मां बोली सभी बच्चों संग रसोई में आओ न।।

जल्दी आ कर मेरे बनाए खाने  का  लुत्फ उठाओ ना।।

रिन्कू बेटा रसोई में आने से पहले अपनें जूते बाहर खोल कर आओ।

आ कर मां के साथ रसोई में  हाथ  बंटाओ।।

पानी पीने के पश्चात बर्तन को ढक कर रखा करो।

हाथ धोकर साफ तौलिए से हाथों को पौंछा करो।।

बेटा जल्दी जल्दी खाना मत खाओ।

चबा चबा कर खाने की आदत बनाओ।

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