एक छोटी सी नन्ही गुड़िया प्यारी प्यारी।
सपनों का स्कूल बनाने में जुटी रहती वह बेचारी।।
स्कूल में अध्यापकों से प्रश्न पूछ पूछ कर उन्हें सदा सताती रहती।
घर में दादा-दादी नाना-नानी चाचा- चाची सभी से प्रश्न पूछ पूछ कर उन्हें डराती रहती।।
बस की सीटों में पढ़ा पढ़ा कर अपना मन बहलाती।
कभी अध्यापिका बनकर बच्चों को खूब मन लगा कर पढ़ाती।
बस के सीटों पर कक्षाएं लगाकर उन्हें तरह-तरह के सवाल पूछा करती।
बच्चों के उत्तर ना देने पर स्वयं ही उन्हें उतर समझाती।।
वह बच्चों की कक्षा ध्यापिका बन जाती।
कभी बच्चों की उपस्थिति लगाकर उन्हें बुलाती।।
कभी वह आईएएस अफसर बनने का सपना देखती।
एक औफिसर की तरह अकड़ अकड़ कर उन पर रौब जमाती।
कभी मिठाई वाली बनकर बच्चों को मिठाई बेचा करती।
रुपया अदा न करनें पर उन्हें ठैंगा दिखाती।
कभी पुलिस ऑफिसर बनने का स्वपन देखा करती।
पुलिस औफिसर की तरह बन उन्हें डन्डा दिखाती।
कभी राजनैतिक नेता बनकर अधिकारियों पर रौब झाड़ती रहती।
कभी नेता जैसा भाषण दे कर सब को चौंकाती।।
एक छोटी सी नन्ही गुड़िया प्यारी प्यारी।
सपनों का स्कूल बनाने में जुटी रहती वह बेचारी।।
कभी छोटे छोटे पेड़ों पर बच्चों को बिठा कर मस्ती से उनकी परीक्षा लेती।
कभी शिक्षा निदेशक बन कर बच्चों का हौसला बढाती।।
बच्चों को खेल खेल के माध्यम से पढाई करना सिखाती।
उन्हे पढाई से सम्बन्धित प्रश्न पूछती।
बच्चों के उतर न देनें पर प्यार से उन्हें समझाती।।