काशीनाथ आज बहुत खुश थे, इसलिए खुश नजर आ रहे थे क्योंकि आज उनका बेटा स्कूल में प्रथम आया था।कहीं ना कहीं उस की तरक्की में उनका भी बड़ा योगदान है था
काशीनाथ एक छोटे से फ्लैट में रहते थे। वह फ्लैट उन्होंने अपनी पाई-पाई जमा करके जोड़ा था। घर के बाहर छोटा सा लौन और फूलों की क्यारियां। लौन में गुलाब के पौधे उनकी खुशबू से उनका आंगन महका महका नजर आता था जहां पर बैठकर वह हर शाम अपनी पत्नी आभा के साथ चाय की चुस्कियों का आनंद लिया करते थे। काशीनाथ देखने में छोटे छरहरे बदन के, आंखों पर चश्मा, चप्पल पहनने वाले और उनकी पत्नी साड़ी में बहुत खूबसूरत नजर आती थी। सांवली सूरत, बॉर्डर वाली साड़ी पहनती थी। साड़ी इतने सलीके से पहनती थी कि उसकी खूबसूरती में चार चांद लग जाते थे। आभा अपनी सहेलियों के आने का इंतजार कर रही थी। आज उन्होंने घर में अपनें बेटे केतन के जन्म दिन पर एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया था। जिसमें उसने अपनी सहेलियों को आमंत्रित किया था। केतन की नजरें बार-बार लौन पर किसी का इंतजार कर रही थी। वह था उसका सबसे प्यारा दोस्त
कर्ण।
वह उसका गहरा दोस्त था। कर्ण एक अमीर घराने से ताल्लुक रखता था। उसकी दोस्ती कर्ण से घर के बाहर हुई जब वह एक दिन अपने पापा के साथ सैर करने के लिए सेंट्रल पार्क गया था। सेंट्रल पार्क उसके घर से 1/1-2 किलोमीटर की दूरी पर था। जहां पर वह रोज अपने पापा के साथ सैर करने जाता था। एक दिन उसकी मुलाकात कर्ण से हुई। कर्ण भी उसके नजदीक ही रहता था। उसने उसे दोस्त बना दिया ।कर्ण की गेंद लुडकते लुडकते न जाने कहां चले गई। सामने से केतन अपने पापा के साथ आ रहा था। गेंद लाकर उसने कर्ण को पकड़ा दी। गेंद पा कर कर्ण बहुत खुश हुआ। कर्ण ने गेंद ढूंढने की काफी कोशिश की थी मगर उसको गेंद नहीं मिली। केतन बोला झाड़ियों के पीछे गिर गई होगी। केतन ने अपने पापा को कहा कि आप घर जाओ, मैं इसकी गेंद ढूंढने में इसकी मदद करता हूं। यह थी उन दोनों की पहली मुलाकात। यह सिलसिला चलता रहा। कभी पार्क में मिलते, कभी बाजार।केतन और कर्ण एक दूसरे से हिलमिल गए। केतन नें एक दिन उसे बताया कि उसे पेन्टिंग का बहुत ही शौक है। कर्ण बोला मैं तो एक वैज्ञानिक बनना चाहता हूं। उन दोनों में गहरी दोस्ती है चुकी थी मगर उन दोनों ने अपनें घरों में अपनी दोस्ती के बारे में अपने माता पिता को नहीं बताया था। केतन नें अपनें दोस्त को कहा कि मेरा जन्म दिन आने वाला है। वह अपने घर में छोटी सी पार्टी का आयोजन करेगा अपनें ममी पापा को ले कर जरूर आना। वह अपने जन्म दिन पर घर में उनका इन्तजार करेगा।
उन दोनों में अंतर इतना था कि कर्ण एक अमीर घराने का बालक था। केतन एक मध्यमवर्गीय परिवार से था। केतन ने तो उसको अपना दोस्त बना लिया। घर में आकर उसने अपने माता पिता को कहा कि मेरा एक दोस्त बन गया है लेकिन वह अमीर घराने का है।
केतन के पापा बोले बेटा ठीक है लेकिन दोस्ती हमें अपने बराबर वाले इंसानों के साथ ही करनी चाहिए। घर के बाहर तो ठीक है। छोटा सा केतन कहां मानने वाला था। पापा मैं कुछ नहीं जानता। आप मेरे दोस्त कर्ण को भी हमारे घर बुलाएंगे। उसके मम्मी पापा नें अपने बेटे को बहुत समझाया लेकिन वह कुछ भी मानने को तैयार नहीं था।
अपने बेटे केतन की हठ के आगे उनकी एक भी ना चली। आखिरकार उन्होंने अपने बेटे के जन्मदिन पर उसको भी अपने घर पर आमंत्रित कर लिया। केतन बोला पापा मेरे जन्मदिन पर आप छोटी सी केक तो काट ही सकते हैं। अपने बेटे की फर्माइश पर उन्होंने केक मंगवा दी थी।
दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। आभा ने दरवाजा खुला केतन ने देखा सामने से उसका दोस्त हाथ में एक बड़ा सा डिब्बा लिए चला आ रहा था। उसके साथ उसके मम्मी पापा थे। कर्ण नटखट घुंगराले बालों वाला’ छोटू मोटू सा, दिखता था। उसके मम्मी जींस पहनकर, बाल कटे हुए और उसके पापा किसी फिल्मी हीरो की तरह दिख रहे थे। केतन उसके ममी पापा को देखकर बोला। अंकल – आंटी नमस्ते। केतन अपनी मम्मी से बोला मां यह मेरे दोस्त के मम्मी-पापा है। यह किसी फिल्मी हीरो की तरह दिखते हैं। लंबे कद वाले, आंखों पर चश्मा। कर्ण की ममी खुश नजर नहीं आ रही थी। वह कर्ण को चुपके से बोली। यह तुम हमें कहां ले कर आ गए? इतने छोटे लोग इतने छोटे से घर में तो हमारे नौकर-चाकर रहते हैं। यह सब आभा ने सुन लिया था। वह चुपचाप अंदर ही अंदर अपने आंसुओं को पी गई। वह चुपचाप अपने मेहमानों की खातिरदारी में व्यस्त हो गयी। वह अन्दर ही अन्दर शिखा के शब्दों से विचलित हो गई थी। वह जल्दी ही
पार्टी में व्यस्त हो गई । बुलाया है खातिरदारी तो करनी ही पड़ेगी। अपने बेटे को कुछ कह भी नहीं सकती थी। कर्ण के माता-पिता जाकर एक कोने में बैठ गए। केतन आकर बोला, अंकल नमस्ते। केतन यह कहकर अपने दोस्त को अपने खिलौने दिखाने चला गया। आभा की नजरें उन दोनों के ऊपर ही टिकी थी। उसने 20-25 लोगों को बुलाया था। उसके पिता ने सोचा बेटे को मायूस नहीं करते।आभा चुपचाप उन दोनों को एक मेज के पास बिठा कर एक जगह पर बैठ गई। उनके लिए चाय बगैरा का इंतजाम करने चले गई। उसने छोटी सी मेज पर सबको इकट्ठा कर दिया।
कर्ण के मम्मी पापा ने केक का एक टुकड़ा तक नहीं खाया। यह सब देखकर आभा को ग्लानि हो रही थी। केतन को कर्ण ने एक बड़ी सी ड्राइंग पेंटिंग बुक दी तो खुशी के मारे केतन के मुंह से निकल गया वाह! इतना बढिया तोहफा। तुमने तो मुझे इतना बड़ा उपहार दिया है। धन्यवाद। पार्टी खत्म हो गई थी।
एक एक करके सभी लोग अपने-अपने घरों को चले गए थे। केतन अभी भी खुश नजर आ रहा था। आज उसको इतने सारे उपहार जो मिले थे। खुश नहीं थे तो केवल उसके मम्मी पापा। उसकी मम्मी ने सारी बात अपने पति काशीनाथ को बता दी थी। केतन को जल्दी ही हमें समझाना होगा बड़े लोगों के साथ दोस्ती करना अच्छा नहीं होता। काशीनाथ अपनी पत्नी से बोले भाग्यवान बच्चा है। अपने आप समझ जाएगा। हम तो अपने बच्चों को वही संस्कार देंगे जो हमें ठीक लगे। वह अपने आप अपना अच्छा बुरा समझ जाएगा। हमें उसके के दिल को ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए। एक दिन केतन अपनी मां से बोला मां कर्ण का जन्मदिन आज है। हम सब को जन्म दिन पर उसने अपने घर बुलाया है। उसकी मम्मी बोली बेटा ठीक है चले जाना। केतन बोला मम्मी पापा आप दोनों भी चलेंगे। वह बोली बेटा। हमें तो उसके घर जाना शोभा नहीं देता। केतन बोला क्यों मां? वह दोनों भी तो मेरे जन्मदिन पर आए थे। वह बोली बेटा उस दिन मैंने तुम्हें नहीं बताया था जब मैंने उन्हें केक खाने को दी तो उन्होंने केक नहीं खाई। उन्होंने वह केक पास में खड़े अपने नौकर को खिला दी। मैंनें उस दिन कर्ण के माता पिता को बातें करते सुन लिया था कि इतने छोटे से घर में तो हमारे नौकर-चाकर रहते हैं। तुमने किस बच्चे को अपना दोस्त बनाया? अपनी हैसियत का तो ख्याल किया होता। मुझे उस दिन बड़ा बुरा लगा। वह बोली बेटा तू उसे उसके जन्मदिन पर क्या उपहार देगा? वह बोला यह तो मैंने अभी तक तय नहीं किया। मैंनें एक सुन्दर सी पेन्टिंग बनाई है। आज ही पूरी हुई है। दोनों बातें ही कर रहे थे कि काशीनाथ बीच में आकर बोले। तुम दोनों मां बेटे क्या खिचड़ी पका रहे हो? हमें तो बड़े जोरों की भूख लगी है। केतन बोला पापा खाना बनाने की क्या जरूरत है? मेरे दोस्त नें हम सब को अपने घर पर जन्मदिन पर बुलाया है। उसके पापा बोले मेरे तो पेट में चूहे कूद रहे हैं। जल्दी से खाना दे दो रही सही कसर इसके दोस्त की पार्टी में पुरी कर लेंगें। ।
आभा बोली मैं तो नहीं जाने वाली। तुम दोनों बाप बेटे जाओ। तुम्हें अपनी बेइज्जती करवाने का इतना ही शौक है तो खुशी-खुशी जा सकते हो। लेकिन जाने से पहले यह भी सोच लेना कि उसके जन्मदिन पर छोटा उपहार नहीं चलेगा। वह बोला हम तो वही चीज ले जाएंगे जितनी हम दे सकते हैं। अपनी हैसियत के अनुसार। हम दिखावा करना नहीं जानते। हम तो साधारण से लोग हैं। पसंद आए तो ठीक है ना आए तो ना सही। काशीनाथ मुस्कुराते हुए वहां से चले गए। काशीनाथ ने अपने बेटे केतन से कहा कि तुम्हें कर्ण ने पेंटिंग स्कैच बुक दी थी तुम उसके जन्मदिन पर एक सुन्दर सी पेंटिंग बनाकर उसे दे देना। तुम्हारे पास कलर वगैरा सब कुछ है। केतन बोला पापा आप तो बहुत ही समझदार है। इससे बढ़िया तोहफा तो और कुछ हो ही नहीं सकता। उसनें एक बड़ी सी पेंटिंग बनाई है। उसने 2 दिन तक सारी रात बैठकर यह पेन्टिंग बनाई। आज कहीं जा कर पूरी हुई है। मैं अभी आप को वह पेंटिंग्स दिखाता हूं। जब उसने अपने मम्मी पापा को दिखाई तो वह बोले यह तो बहुत ही बढ़िया है। उस दिन शाम को केतन और उसके पापा कर्ण के बर्थडे पार्टी पर पहुंच गए। उसके घर पर चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश था। चारों ओर मधुर संगीत की आवाज गूंज रही थी। लोगों की इतनी भीड़ थी कि उनका आलीशान भवन देखकर केतन बहुत ही आश्चर्य चकित हुआ। वह तो आज तक कभी भी किसी के घर नहीं गया था। एक बार वह अपनी मम्मी के साथ एक बड़ी से होटल में गया था। कर्ण का घर एक बड़े होटल से भी सुंदर नजर आ रहा था। लोग खुशी से इधर उधर घूम रहे थे। अंदर जाने ही वाले थे तभी हॉल से उसके पापा ने अंदर की ओर झांका। कर्ण की मम्मी आने वाले अतिथि गणों का स्वागत कर रही थी। केतन ने देखा इतने सारे उपहार। वह इतने मंहगे मंहगे उपहार देख कर स्तब्ध रह गया। वह तो एक छोटा सा उपहार लेकर आया था। अमीर लोग बड़े बड़े उपहार देकर उसका जन्मदिन मना रहे थे। वह अपने मन में सोचने लगा मैं तो एक मामूली सी पेन्टिंग लाया हूं।
काशीनाथ ने अपने बेटे से कहा कि बेटा अंदर जाने की जरूरत नहीं। तुमने सब अपनी आंखों से देख लिया है। मुझे तो अच्छा नहीं लगता। तुम जल्दी से घर वापस लौट चलो। हमने अपनी बेइज्जती नहीं करवानी है। केतन बोला, नहीं पापा अब कुछ भी हो जाए, मैं यह उपहार चुपके से छोड़कर वापस आ जाता हूं।
केतन अंदर चला गया। कर्ण की मम्मी को केतन ने नमस्ते की। कर्ण की मम्मी ने उसको नजरअंदाज कर दिया। केतन ने अपने गिफ्ट का बैग चुपचाप एक किनारे पर रख दिया। कर्ण की मम्मी ने सब लोगों के गिफ्ट के पैक्ट रख लिए थे। उसने उसके गिफ्ट के पैक्ट को सबसे अलग रख दिया। अचानक उसे सामने से आता कर्ण दिखा दिया। उसने आते ही केतन को गले से लगा लिया बोला, तुम कहां रह गए थे यार? तुम्हारा मैं न जाने कब से इंतजार कर रहा था। उसने उसे बिठाया। कर्ण नें कहा कि तुम्हारे मम्मी पापा कहां है? वह बोला मेरे पापा बाहर हैं। कर्ण उसके पापा को अंदर ले आया। केतन और उसके पापा एक कोने में बैठ गए। केतन चुपके से आंटी की ओर देख रहा था। उसने एक जगह उसका गिफ्ट छुपा दिया। केतन सोचने लगा लगा मेरी मां सच ही कहती थी। उसके पापा बोले, यह बातें छोड़ो। यह बातें तो फिर कभी होती रहेंगी। पार्टी का आनंद लो।
केतन और उसके पापा एक छोटे से कोने में अकेले बैठे थे। उनको इस प्रकार बैठा देखकर कर्ण की मम्मी आई बोली बेटा तुम कुछ खा क्यों नहीं रहे हो? इतनी बढ़िया बढ़िया स्वादिष्ट चीजें बनाई है। तुम बच्चों की पसंद कि। तुम सब बच्चों की पसंद की चीजें है। तुमने तो ऐसी स्वादिष्ट मिठाइयां अपने जीवन में कभी खाई ही नहीं होगी। खूब डट कर खाओ।
काशीनाथ को वहां बैठना बड़ा ही दुष्कर लग रहा था। वह अपने बच्चे की खातिर मुस्कुराने की कोशिश कर रहे थे। इतने में दौड़ता हुआ कर्ण आया बोला, बताओ मेरे लिए क्या लाए हो? केतन ने चुपके से उस पेन्टिंग को मेज पर से उठाकर किनारे छुपा लिया था। उसको छुपाता देखकर कर्ण बोला तो क्या हुआ? तुम तो मेरे बहुत ही पक्के दोस्त हो जो भी लाए होंगे अच्छा ही होगा। कर्ण की मम्मी बोली बेटा तुम्हें इसके उपहार का क्या करोगे? मैंने इसके बस्ते को देखा है। इसमें कोई छोटी सी वस्तु होगी। तुमने तो इस के जन्मदिन पर कितना बड़ा उपहार दिया था।?छोटे से परिवार के लोग तुम्हें क्या उपहार दे सकते हैं? कर्ण को यह बात बहुत ही बुरी लगी। वह बोला मां आप क्यों ऐसा कहती हो।? मेरा दोस्त जो कुछ भी लाया होगा वह मेरे लिए अनमोल होगी। कर्ण की मम्मी अपने बेटे को डांटती हुई बोली छोटे लोगों को कभी मुंह नहीं लगाते। तुम छोटे लोगों को मुंह लगा लेते हो। इतना सब सुनने पर केतन से रहा नहीं गया। उसने इतने अपशब्द अपनी जिन्दगी में कभी भी नहीं सुने थे। वह अपने पापा के गले लगकर फूट-फूट कर रो पड़ा। उसको रोता देखकर कर्ण अपनी मम्मी से बोला। आपने मेरा जन्मदिन क्यों मनाया? मुझे किसी का उपहार नहीं चाहिए आप सबके उपहार वापिस कर दो। । मैं केवल अपने दोस्त का ही उपहार लूंगा। कर्ण की ममी बोली इस मनहुस नें मेरे बेटे पर न जाने क्या जादू कर दिया है जो वह मेरे बेटे का पीछा ही नहीं छोड़ता। कर्ण ने दौड़कर केतन के हाथ से गिफ्ट पैकट ले लिया।
उसमें से जब उपहार बाहर निकाला सब की नजर उस पेंटिंग पर पड़ी। सब उस पेन्टिंग को ही देख रहे थे। पास में खड़े लोग आपस में एक दूसरे से कह रहे थे कि इतनी सुंदर पेंटिंग। यह बच्चा वास्तव में बहुत ही होनहार है। इतनी काबिलियत तो इस बच्चे में दिखाई नहीं देती। अगर यह पेंटिंग इस नें ही बनाई है तो वह बड़ा हो कर एक दिन बहुत ही बड़ा पेंटर बनेगा।
कर्ण की मम्मी ने बड़े-बड़े अमीर घराने वाले लोगों को बुलाया था। सब के सब केतन, पर कटाक्ष कर रहे थे।
कर्ण नें देखा कि वह बहुत ही सुंदर पेंटिंग थी भीड़ में से एक सज्जन आगे आए हुए बोले यह पेंटिंग इसने नहीं बनाई होगी। उसके पिता काशीनाथ बोले यह पेंटिंग मेरे बेटे ने रात दिन मेहनत करके बनाई है। कर्ण की मम्मी बोली हमने इसकी पेंटिंग का क्या करना है? इसे यहां से ले जाओ। यह झूठ बोल रहा है। कर्ण की मम्मी बोली मैंने इसे बैग में छुपाते हुए देख लिया था। पार्टी में आए हुए उच्च घराने के लोग कहने लगे यह ठीक ही तो कहती है। क्या यह वही पेंटिंग है जो वह लाया है? उसनें किसी की पेंटिंग चुरा कर अपने बैग में डाल दी होगी। यह दिखाने के लिए वह पेंटिंग लाया है। बड़ी पार्टी में सब लोग तरह तरह की बातें कर रहे थे। मध्यमवर्गीय परिवार के लोग आपस में कह रहे थे कि शिखा है तो हमारी सहेली मगर, हमें भी इसकी सोच पर आज बहुत ही गुस्सा आ रहा है। इतने छोटे से बच्चे की दिल पर ना जाने क्या गुजरी होगी। अगर आज वह अमीर नहीं होतीऔर केतन की जगह इसका बच्चा होता तो क्या तब भी यह यह वही कहती। इसे जरा भी लज्जा नहीं आई। सब लोगों के सामने उस छोटे से बच्चों को चोर साबित कर दिया। एक छोटे से बच्चे का इतना घोर अपमान हो रहा है। हमें अगर पता होता तो हम कभी भी यहां नहीं आते। जितनें मुंह उतनी बाते।
यह सब बातें सुनकर केतन की आंखों से आंसू आ गए थे। वह अपने आंसुओं को रोक नहीं पाया। उसके पापा काशीनाथ आकर बोले चलो यहां से। काशीनाथ बोले बेटा हमने तो तुम्हें पहले ही समझाया था दोस्ती अपने बराबर वालों में ही करनी चाहिए। तुम्ह अब सब कुछें समझ में आ गया होगा कि हम तुम्हें यहां पर आने से क्यों रोक रहे थे। कर्ण की मम्मी बोली कि यह झूठ बोल रहा है।यह पेन्टिंग उसनें चोरी की है।
एक आदमी आगे आ कर बोला मैं भी पेंटर हूं। मैं इस पेंटिंग को खरीदना चाहता हूं। तुमने बनाई है तो तुम्हें इनके सामने अपनी सफाई देने की जरूरत नहीं। बच्चे तुम में छुपी प्रतिभा किसी को दिखाई नहीं दी। तुम पर अमीर घराने के लोग ना जाने क्या-क्या लांछन लगा रहे हैं।? तुम छोटे नहीं हो। मैं पीछे से सारी बातें बैठकर सुन रहा था। छोटे तो वह लोग हैं जिनकी सोच नकारात्मक है। दिखावा कर पार्टी का आयोजन कर रहे हैं। बड़ा होने का ढोंग कर रहे हैं। बड़ा तो यह बच्चा है और उसके पापा जो इतना सुनने के बाद भी चुप है। मुंह से कुछ नहीं कह रहे हैं। सब्र की भी कुछ हद होती है। कमजोर लोगों को दुर्बल नहीं समझना चाहिए।
बेटा तुमसे यह पेंटिंग मैं खरीदना चाहता हूं। केतन रोते-रोते बोला कि इस पेंटिंग पर मैंने अपने हस्ताक्षर किए हैं। सब लोग इस पेंटिंग को देखने लगे। उसने उस पेंटिंग में अपना नाम लिखा था। सब लोगों को पता चल चुका था कि यह पेंटिंग उस बच्चे ने ही बनाई है। यह देख कर सब लोंगो के चेहरे झुक गए।
पेंटर बोले कि तुमसे यह पेंटिंग मैं खरीदना चाहता हूं। केतन बोला यह पेंटिंग मैंने अपने दोस्त को उपहार में दी है। ।पेंटर ने कहा मैं इस पेंटिंग के तुम्हें ₹300, 000 दे दूंगा। मैने यह पेन्टिंग अपने दोस्त कर्ण को उपहार में दे दी है पेन्टिंग का क्या करना है इसका फैसला तो अब मेरा दोस्त ही कर सकता है। यह उसके जन्मदिन का उपहार है । पेंटर ने केतन को कहा कि अपनी काबिलियत के दम पर तुम एक दिन बहुत ही बड़े पेंटर बनोगे। तुम अपनी काबिलियत के दम पर जिंदगी में और भी ऊंचाइयों के शिखर तक पहुंचोगे। कर्णने कहा कि यह रुपए तुम मेरे दोस्त को दे दीजिए। मेरे प्यारे दोस्त मैं अपनी मां की तरफ से आप दोनों से क्षमा मांगता हूं। मेरी मां की सोच नकारात्मक है। मुझे ऐसा पता होता तो मैं कभी भी आप दोनों को पार्टी में नहीं बुलाता। आप ये रुपये मेरे दोस्त को ही दे दीजिए। यह रुपये इस की पढाई में काम आएंगे जिससे वह अपनी पढ़ाई जारी रखेगा। पेंटर ने उसे कहा कि मैं तुम्हें अपने साथ ले चलता हूं। सारी पढ़ाई का खर्चा मैं उठाऊंगा।
कर्ण की मम्मी ने जब ₹3, 00, 000 सुने तो वह चुप हो गई वह देखती ही रह गयी। वह पेन्टिंगका से बोला अंकल मैं चोर नहीं हूं। यह पेंटिंग मैंने रात दिन मेहनत करके बनाई है। पेंटर बोले हीरा कोयले की खान में रहकर भी हीरा ही रहता है। तुम में छिपी प्रतिभा को किसी नें नहीं देखा। जब तुम एक बहुत बड़े पेंटर बनोगे तब सब लोगों को महसूस हो जाएगा। एक दिन सचमुच ही केतन एक बहुत ही बड़ा पेंटर बना। और उसकी पेंटिंग दूर-दूर देशों में करोड़ों रुपयों में बिकी।