राजा और रंक

एक भिखारी को अपनें घर की दहलीज पर खड़े देख कर रानी बोली क्या सुबह-सुबह तुम्हें कोई काम नहीं है? जो तुम दरवाजा खटखटाने लगते हो ।भिखारी बोला माई दो दिन से खाना नहीं मिला खाना दे दो।खाना खा कर यहां से चला जाऊंगा। वह बोली नहीं तुम किसी और घर जाओ ।इतने में रानी का पति भिखारी को सामनें खड़ा देख कर बोला जल्दी निकलो यहां से तुम्हें कुछ भी भीख नहीं मिलेगी।दूसरा घर ढूंढो।सुबह सुबह मांगनें चले आते हैं।कोई काम धाम नहीं है क्या?। तुम्हारे कपड़ों से बड़ी ही दुर्गन्ध आ रही है।गन्दे गन्दें पैरों कि रगड़ से छू कर हमारा सारा कालीन खराब कर दिया।कालीन पर सारे दाग पड़ चुके हैं।तुम्हें साफ करनें पड़ जाएं तो ? निकल यहां से। भिखारी मायुस हो कर धीरे धीरे कदम बढ़ाता वहां से चला जाने ही वाला था तभी रुपेश का छोटा सा बेटा वहां आ गया।वह भिखारी को खाली कदम जाता देख अपनें नन्हे नन्हे हाथों से भिखारी को अपनें कटोरे से खाना देने लगा। उसके पिता नें डांट फटकार कर उसे वहां से हटा दिया। वह भिखारी सचमुच में ही भूखा था। भिखारी उस बच्चे को निहारता हुआ वहां से चला गया।

रुपेश को अपनी दौलत का बहुत ही घमन्ड था।वह दोस्ती भी अपनी हैसियत वालों के साथ करता था।छोटे मोटे लोगों को तो वह भाव ही नहीं डालता था।वह तो अपनी हैसियत से छोटे लोगों का साथ पसन्द नहीं करता था।इस बात को काफी दिन व्यतीत हो गए।
रानी का पति एक बहुत ही बड़ी कम्पनी का मालिक था।उस का बहुत बड़ा बंगला,गाड़ी,ऐश्वर्य की सभी सामग्री थी उस के पास लेकिन उस का घमंड सातवें आसमान तक था।औफिस में भी कोई छोटे वर्ग का कोई भी कर्मचारी आता तो उस को अपनें पैरों की जूती समझ कर उसे बाहर का रास्ता दिखा देता था। सम्पन्न वर्ग के लोगों को ही काम पे रखता था।
एक बार रुपेश को अपनी कम्पनी कि तरफ से बाहर दूसरे कस्बे में जानें का मौका मिला।वह गाड़ी से अपना काम निपटा कर घर कि तरफ ही आ रहा था कि जोर जोर से वर्षा होनें लगी।उस रास्ते से वह कभी नहीं गया था।उसके साथी लोगों ने उसे सुझाया कि वर्षा आनें वाली हैं।आप छोटे वाले रास्ते से जाएं।यह रास्ता है तो जंगल का मगर आप जल्दी ही घर पहूंच जाएंगे। अपनें साथियों के कहनें से रुपेश नें विपरीत दिशा में गाड़ी घुमा दी।काफी दूर निकल आया।उसके साथी सब उतर चुके थे।वह अकेला ही गाड़ी चला रहा था। अचानक वर्षा इतने तेजी से आई कि उसे आगे का रास्ता उसे दिखाई ही नहीं दिया।वह गलत रास्ते से निकल पड़ा था। गाड़ी को एक जगह खड़ी कर के वह आगे जानें का रास्ता खोज रहा था।आंधी,तूफान इतना तेज था कि वृक्षों की शाखाएं भी टूट टूट कर गिरनें लगी। आते जाते लोगों को इधर उधर शरण लेनी पड़ी।वह जैसे ही गाड़ी से बाहर निकला गाड़ी में बैठे लोग उसकी आंखों से ओझल हो गए थे।उसकी गाड़ी का शीशा भी टूट टूट कर चकनाचूर हो कर उस की ही सीट पर बिखर गया था।वह नीचे उतर गया था इस कारण बच गया था।वह उस दिन अपनी जान से हाथ धो बैठता।
वह हताश हो कर ठंड के मारे कंपकंपाता हुआ चला जा रहा था।वह अपनें मन में सोचनें लगा इस जंगल के रास्ते से उसे नहीं आना चाहिए था। थोड़ी देर ठंड में चलता रहा तो वह ठंड से अकड़ कर मर जाएगा।जान बचानें के लिए कहा जाया जाएं।रास्ते के दुर्गम जंगलों से बच कर वह कहीं जा भी तो नहीं सकता।उसे अपनें साथियों की बातों में नहीं आना चाहिए था।वह कुछ दूरी पर शेर को देख कर डर के मारे कांपनें लगा।उसके हाथ से एक छोटा सा तौलिया भी जमीन पर नीचे छूट गया।
वह तेज वर्षा मैं भागने लगा।उसने फिर से अपना रास्ता बदल दिया।शेर से तो वह बच गया।कुछ दूरी पर चला था वह सहायता के लिए चिल्लाने लगा।क्या यहां कोई है ?जो मेरी सहायता करेगा।भागते भागते जब उसे काफी देर हो चुकी तो उसे जंगल के एक ओर झोंपड़ी दिखाई दी।उसने राहत कि सांस ली?उसने देखा झूग्गी झोंपड़ी में एक फटे हाल चिथड़ों
वाला भिखारी एक छोटी सी खोली में आग ताप रहा था।रुपेश बोला क्या मैं अन्दर आ जाऊं?वह भिखारी बोला क्यों नहीं? आप खुशी से अन्दर आइए। आप इसे अपना ही घर समझो।बाबू जीआप ठन्ड से कांप रहें हैं।आप को कहा बिठाऊं?आप को सोफे पर बैठानें कि मेरी औकात ही कहां है?मेरे पास तो बैठानें के लिए छोटी सी चटाई है।जो भी किसी नें मुझे दान में दी है।यह भी बिल्कुल तार तार हो चुकी थी।
पैबंद लगा कर ठीक की है।बाबू साहब क्या चाय पियोगे? मेरे पास दूध तो नहीं है काली चाय पिला सकता हूं। बिना शक्कर कि।आप तो बड़े लोग ठहरे आप चाय तो क्या ही पियोगे?कौफी तो मेरी पूर्वजों नें भी नहीं पी होगी।रुपेश नें चश्मा पहना हुआ था।बैठ जाईए खड़े खड़े ही चाय पिएंगे क्या? आगे आ कर अपनी कमीज़ सुखा लिजीए।भिखारी नें उसे चटाई पर बिठा दिया।चटाई पर बैठ कर उस कि जान में जान आई।
भिखारी कहनें लगा आप को मैं अपनी कमीज़ भी नहीं दे सकता।मेरे पास एक ही फटी हुई कमीज़ है।मेरे पास एक मोटी सी बनियान है आप अगर पहनना चाहतें हैं तो मैं आप को दे सकता हूं।वह तकिए के नीचे से बनियान निकाल कर बोला।

एक बार मैं एक सेठ जी के घर भीख मांगनें गया।तीन दिन से मुझे खाना भी नसीब नहीं हुआ था।उस सेठ जी कि पत्नी नें ओर सेठ जी नें मुझे बुरा भला कह कर मुझे बिना कुछ दिए भगा दिया। फटकारते हुए कहा कि किसी दूसरे का दरवाजा खटखटाओ।यहां कोई लंगर नहीं लगा है?मुझे कहा चल हट छि छि तुम्हारे कपड़ों से दुर्गन्ध आ रही है।बाबू साहब कहीं आप को भी मेरी चटाई काट से बदबू तो नहीं आ रही। रुपेश बोला नहीं इस वक्त तो जान पे बन आई है।जल्दी से चाय पिला दो
सेठ के हाथ में से चाय का प्याला नीचे गिरते गिरते बचा।थोड़ा संभल गया और जल्दी ही चाय को गटक गया।
आज उस कि चटाई पर बैठ कर आग सेंकनें का मजा आ रहा था।उसे आज जरा भी नहीं लग रहा था कि उस चटाई में न जानें कितने दिनों कि गन्दगी जमा हुई थी।चाय पी कर उस कि जान में जान आई।
रात के अंधेरे में भिखारी नें उसे नहीं पहचाना।उसे आंखों से कम दिखाई देता था।रुपेश ने उसे पहचान लिया था। रात रुपेश को वहीं गुजारनी पड़ी।उस कि फटी बनियान पहन कर काम चलाना पड़ा।आज उस कि अकड़ ठिकानें लग चुकी थी।इस बियाबान जंगल में किस के पास जा कर अपने को बचाता।वह भिखारी उसे आज एक मसीहा नजर आ रहा था।सुबह होनें पर वह जल्दी जग गया।तुफान थम चुका था।वह पैदल ही घर कि ओर रवाना हो रहा था कि सामने से आती एक गाड़ी दिखाई दी।उस ने लिफ्ट मांगी।

एक छोटी सी गाड़ी एक लड़का चला रहा था।
वह बोला साहब आइए।मैनें आप को पहचान लिया।आप तो एक बहुत ही बड़ी कम्पनी के मालिक एक भिखारी कि झोंपड़ी में रात गुजार रहे थे।आप के पास मैं नौकरी मांगनें आया था आप नें मुझ से बात न कर के किसी और व्यक्ति को नौकरी दे दी थी क्यों कि वह आप कि बराबरी का था।आज तो आप को समझ में आ ही गया होगा कि चाहे इन्सान कितना भी बड़ा हो जाए उसे हर स्थिति में एक जैसा रहना चाहिए।अपनें को बड़ा समझ कर घमन्ड नहीं करना चाहिए। भगवान कि तलवार जब चलती है तो वह छोटा बड़ा कुछ नहीं देखती। आप बैठ जाइए।सौ रुपया बनता है वह तो मैं ले कर ही रहूंगा।
रुपेश ने आज महसूस किया कि गरीबी क्या चीज़ होती है?आज उस के मन से अहंकार कि भावना चूर चूर हो गई थी।उस के सामने न भिखारी का चेहरा आ गया यही भिखारी उस के दरवाजे पर भीख मांगनें आया था।उसने उसे यह कह कर उसे निकाल दिया था कि भीख नहीं दे सकते क्यों कि उस के फटे कपड़े उस भिखारी कि व्यथा कह रहे थे।उस के कपड़ों से दुर्गन्ध आ रही थी।आज उस भिखारी नें उसे एहसास दिला दिया था कि उस भिखारी के सामने वह कितना छोटा था और भिखारी कितना महान ।उसका दिल कितना बड़ा था जिस के मन में कितनी दया करुणा भरी थी।उस दिन सचमुच वह भूखा था।उसे खाना न दे कर उस का तिरस्कार किया था।मुझ से अच्छा तो मेरा बेटा था जो अपनें कटोरे से उसे रोटी खिलाना चाहता था।आज भिखारी का सच्चा रुप उसकी आंखों में घूमनें लगा।

हम बड़े हो कर अपने ही घमंड में चूर हो कर किसी गरीब को अपनें हाथ से एक रुपया देनें में कतराते हैं।अतिथि तो भगवान का रुप होता है।रुपेश को आज अपनें आप से नफ़रत हो रही थी।वह भिखारी आज उसकी सहायता नहीं करता तो वह ठंड में यूं ही जगंल में मर जाता।आज उसे चिथड़े वाली टाट भी किसी नर्म गदे से कम नहीं लग रही थी।कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता।छोटी तो हमारी सोच होती है।
इन्सान को न जानें कब किस स्थिति से गुजरना पड़े।चाय पीते वक्त भी उसे दुर्गन्ध का जरा भी एहसास नहीं हो रहा था।उस के कहे शब्द उसे कचोट रहे थे।

सुबह मैकेनिक को ले कर अपनी गाड़ी ठीक करवानें उस स्थान पर ले गया।भिखारी से मिल कर उसे 100रुपये देने चाहे तो रुपये देख कर भिखारी बोला बाबू जी मैं भीख मांगता जरुर हूं लेकिन मैं यह नहीं ले सकता।आप यहां ठहरे रुका सूखा का कर आप नें अपना पेट भरा मेरे लिए यही बहुत है।आज मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि आज। मैनें भी किसी को अपनें घर का खाना खिलाया, नहीं तो आज से पहले तो मांग कर ही गुजारा करता था। रुपेश जब काम पर जा रहा था तो रास्ते में एक मुसाफ़िर उस कि गाड़ी के सामने हाथ दे कर बोला साहब गाड़ी में बिठा दो आज मैं इन्टरवियू के लिए जा रहा हूं।अगर मुझे नौकरी नहीं मिली तो मैं और मेरी बूढ़ी मां मर जाएंगे।रुपेश नें गाड़ी रोक दी और उसे गाड़ी में बिठा दिया और उसे कहा बेटा चिन्ता मत कर समय से पहले तुम्हें पहुंचा कर ही काम पर जाऊंगा।वह व्यक्ति उतर कर बोला बाबू साहब भगवान आप का भला करे।आज उस के मन से अहंकार कि भावना समाप्त हो गई थी।औफिस चल कर वह अपनें से छोटे कर्मचारियों के साथ बैठ कर चाय पी रहा था।उस में आए परिवर्तन को देख कर उस कि कम्पनी के लोग खुश थे।

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