बहुत समय पहले की बात है बेलापुर गांव में एक बहुत ही मेहनती और ईमानदार महिला रहती थी ।वह इतनी मेहनत करती कि उसकी गांव गांव में दूर-दूर तक चर्चा की जाती थी वह सुबह जल्दी उठती सुबह के कामों से निवृत होकर सुबह-सुबह ही अपने खेतों में पानी देती। उसने अपने घर के पास ही एक बड़े से खेत में सब्जियां लगाई हुई थी ।वह रोज अपने खेतों की देखभाल करती उन्हें खाद देती और हर रोज छ:घंटे अपने बगीचे में लगाती यही उसका हर रोज का काम था ।वह अपने खेत में कभी भी रसायनिक खाद का प्रयोग नहीं करती थी बल्कि अपने घर में गाय के गोबर से और जो सब्जियां वगैरह के छिलके बचते थे, उनसे स्वयं खाद तैयार करती और वही खाद अपने बगीचे में डालती थी ।उसके बगीचे में हरी भरी सब्जियां तैयार हो जाती थी। जब वह इन सब्जियों को बाजार में बेचती तो उसको अच्छे दाम मिलते और घर में भी अपने हाथ की उगी हुई सब्जियां खाती ।उसके पिता ने उसे बहुत जोर लगाया था कि बेटा नौकरी कर ले तू तो पढ़ी लिखी है मगर उसने खेती को ही अपना लक्ष्य चुना। उसने अपने पिता को कहा कि मैं स्वयं का अपना कोई कार्य करूंगी। सरकारी नौकरी मुझे नहीं करनी है ।आपने मुझे अच्छी तालीम दी है जिससे मैं हर कभी कोई भी क्षेत्र चुन सकती हूं। मैंने खेती को ही अपना व्यवसाय निर्धारित किया है। मुझे इसमें सफलता हासिल करनी है। मैं पहले तो छोटे तौर पर ही खेती कर देखना चाहती हूं कि मैं इस मकसद में कामयाब होती हूं या नहीं ।शोभना जब अपने खेतों को देखती हरी-भरी महकती खुशबू से उसका मन सराबोर हो जाता वह आनंदित हो जाती ।वह बहुत ही व्यस्त रहने लगी थी। गांव में उसकी बहुत ही पक्की सहेलीं बन गई थी ।वह अपना दूध बेचने का कार्य कर आनंदित हो जाती ।वह बहुत ही व्यस्त रहने लगी थी। गांव में उसकी एक बहुत ही पक्की पहेली बन गई थी वह तो आधा दूध और आधा पानी बेचती थी। वह भी दूध बेचने का काम करती थी। वह ग्राहकों को चूना लगा देती थी ।दोनों इस प्रकार अपने काम से निवृत होकर अपना समान बेचने जाती।
शोभना सब्जियों को बेचती और श्रुति दूध बेचती। दोनों सहेलियां अपने अपने काम से प्रसन्न थी। श्रुति को दूध बेचने में कुछ फायदा नहीं हो रहा था ।उसके ग्राहक कम होते जा रहे थे परंतु उसकी सहेली के तो हर रोज बिक्री हो रही थी। अपने सहेली की कामयाबी उस सेे देखी नहीं जा रही थी। उसके दिमाग में एक विचार आया उसने मन-ही-मन योजना बना डाली कि इसकी खेत में लगाई गई सब्जियों को तहस-नहस करना होगा। दूसरे दिन उसने शोभना के पास पहुंचकर कहा कि दोनो अपनें अपनें काम पर चलते हैं ।उसने देखा कि उसके खेतों की कांटेदार तार कोई ले जा चुका था शोभना ने देखा जब उसकी सहेली श्रुति वापसी में अपने घर के पास रुकी तो शोभना ने देखा उसके खलिहान मे भी ठीक वैसी ही कांटेदार बाढ़ पड़ी थी ।उसके खलियान में कांटेदार बाढ़ देख कर शोभना सोचने लगी की मेरे खेत में तार देखने के बाद में मेरी सहेली के मन में ं यह ख्याल आया होगा कि मैं भी कांटेदार तार लगवा दूं। उस तार में उसने एक लाल रंग का निशान लगा दिया था । वह सोचने लगी यह सब काम उसकी प्यारी सहेली का ही हो एसा हो सकता है ।उस की सहेली कुछ दिनों से उससे खफा सी रहनें लगी।उसने अपनी सहेली को कुछ नहीं कहा। उसने अपने घर में एक माली रखा हुआ था उसने उसे कहा कि तुम जाकर मेरी सहेली के घर के पास जो उद्यान है वंहा जा कर यह देखना उस कांटेदार तार पर लाल रंग का निशान है उस नाम को पढ कर मुझे फोन करके बताना कि क्या नाम लिखा है?माली ने कहा उस पर तो आप का नाम लिखा है। वहां से हमारी खेत की कांटेदार तार ले आना शोभना ने कहा कि श्रूति को इसका पता नहीं चलना चाहिए। शोभना अपने घर वापिस आ चुकी थी ।पांच-छह दिन के बाद श्रुति ने आकर देखा तो शोभना नेे सारी की सारी तार वैसे ही लगा दी थी श्रुति बोली तुम्हें यह तार कहां से मिली? शोभना बोली शायद कोई जंगली जानवर ले गया था परंतु वह जल्दी में वह इसे वही भूल गया। शोभना ने अपनी सहेली को ऐसे जताया जैसे कि उसे तार के बारे में कुछ भी मालूम नही।ं शोभना अब तो सर्तक हो गई थी जब दूसरे हफ्ते वह सब्जी बेचने अपनी सहेली के साथ जा रही थी। उस दिन तो उसकी सहेली ने हद ही कर दी उसने खेत में डालने के लिए जहरीली खाद मंगा ली थी। वह जब घर में खाद लेकर आई तो उसने वह खाद छुपा दी थी । श्रूति घर में आटे और गुड़ से बनाकर प्रसाद बना रही थी। तभी उसका बेटा आया और बोला मां तुम क्या कर रही हो ?उसकी मां बोली मैं प्रसाद बना रही थी ।मंदिर में जा कर इस प्रसाद को चढ़ाएंगे ।श्रुति ने वह प्रसाद एक थाली में डाल दिया था उसने उस प्रसाद में जहरीली खाद मिला दी थी किसी को भी तनिक भी यह एहसास ना हो कि इसमें जहरीली खाद है। उसने यह प्रसाद अपने थैले में डाला और जल्दी-जल्दी अपनी सहेली के घर चलने लगी। उसने अपने बेटे रोमी को भी साथ लिया और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाने लगी। उसने थोड़ी ही दूर कदम बढ़ाए थे कि उसने अपना थैला अपने बेटे के पास पकड़ा दिया और कहा कि बेटा आज मैं अपना पर्स घर पर ही भूल आई हूं । तू थोड़ा आगे आगे चल ,मैं तुझे पकड़ ही लूंगी ।तू धीरे धीरे चल, वह जल्दी जल्दी जाकर पर्स लेकर वापस आ चुकी थी ।वह अपनी सहेली के घर पहुंच गई थी तभी उसका बच्चा चक्कर खाकर नीचे गिर गया ।वह बोली मेरे बच्चे को चक्कर कैसे आ गया ?उसने जैसे ही अपने बेटे के मुंह को खोला तो उसके मुंह से झाग निकल रहा था ।उसने सोचा कि मेरे बेटे को किसी जहरीले कीड़े ने तो नहीं काट डाला । उसकी सहेली शोभना बोली तुमने कोई जहरीली दवाई इसके पास तो नहीं दी थी ।
श्रुति को तभी ख्याल आया कि वह तो शोभना के खेत में डालने के लिए जहरीली दवाई लाई थी ।उसने तो वह प्रसाद में मिला दी थी ।मेरे बेटे ने सोचा होगा कि थोड़ा सा प्रसाद खा लेता हूं मुझे क्या पता था कि दूसरों का नुकसान करने के ख्याल से अपना नुकसान भी हो जाता है ।श्रुति चीखने लगी थी बहन मुझे क्षमा कर दे ।तुम्हारी खेतों में उगी फसल को देखकर मुझे तुमसे ईर्ष्या होने लगी थी ।मैं तुम्हारा नुकसान करने की कोशिश कर रही थी ।मैंने पहले भी तुम्हारी कांटे वाली तार चुरा ली थी और आज यह अनर्थ करने जा रही थी कृपया मुझे माफ कर दे। जल्दी से हम दोनों इसेअस्पताल ले कर चलतें हैं ,वर्ना मेरा बेटा मर जाएगा। शोभना ने रोमी को जल्दी से स्कूटर पर बिठाया और उसे पास ही के अस्पताल ले गए जरा सी भी देर हो जाती तो उसका बेटा मर चुका होता। किसी ना किसी तरह उसको बचा लिया गया । उन पर पुलिस केस बन गया होता,
शोभना के अंकल उस अस्पताल में काम करते थे। उन्होंने पुलिस केस नहीं होने दिया ।रोमी अब ठीक हो चुका था। श्रुति की आंखों से आंसू झर झर बह रहे थे ।वह शोभना को गले से लगा कर बोली बहन तुमने आज मेरी सहायता ही नहीं की बल्कि मुझे सबक भी सिखाया है ।हमें किसी से भी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए और हमें खेतों में कभी भी जहरीली खाद नहीं डालनी चाहिए। जहरीली खाद से हमें ही नहीं बल्कि सभी जीव जंतु और सभी प्राणियों को नुकसान पहुंच सकता है ।मैं तो कभी भी बाहर से रसायनिक खाद नहीं डालती। मैं तो गोबर को इकट्ठा करके और कूड़े कचरे को इकट्ठा करके खाद बनाती हूं। वह खाद ही खेतों में डालती हूं इससे किसी को भी नुकसान नहीं पहुंच सकता ।मैं तुम से प्रार्थना करती हूं कि तुम अब यह कसम खाओ कि आज के बाद तुम कभी भी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाओगी।
।श्रुति बोली कि मुझे माफ कर दे मेरी बहन मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। श्रुति बोली दीदी सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते ।श्रुति में बहुत ही अंतर आ गया था वह रोज़ खेतों में आकर अपनी सहेली का हाथ बंटाने लगी। वह बिल्कुल ही बदल चुकी थी उसने ग्राहकों को दूध में पानी मिलाना छोड़ दिया था ।वह थोड़ा ही दूध बेचती थी वह अब किसी को भी धोखा नहीं देती थी ।उसके दूध के ग्राहकों में भी काफी बढ़ोतरी हो रही थी ।यह देखकर वह फूलीनहीं समाती थी उसकी मेहनत से कमाई गई रकम में भी बढ़ोतरी हो रही थी। थोड़े से रुपए के लालच में उसने अपने अंदर की श्रुति को कहीं खो दिया था परंतु अब वह पहले वाली श्रुति बन चुकी थी जो अपनी मेहनत से कमाए गए रुपयों से ही खुश थी ।और अपनी सहेली शोभना की सच्ची सहेली बन चुकी थी।