एक घड़ा पानी से भरा भरा रहता था।।
साफ स्वच्छ और लबालब धरा रहता था ।
उसके ऊपर एक कटोरी सदा ही शोभायमान रहती थी।
शोभायमान होकर अपनी अकड़ दिखाती रहती थी ।
पात्र घडे के पास पानी पीने जाते ।
जल पीने के लिए उनके सामने अपना मुख नवातें।
घड़ा प्रसन्नता पूर्वक उनको जल पिलाता था।
शीतल जल पिलाकर उनको देखकर मुस्कुराता था।
कटोरी यह सब देखा करती थी।
हरदम वेदना और कड़वाहट उसके मन में भरी होती थी।
एक दिन कटोरी घड़े से बोली,
मैं हूं तुम्हारी हमजोली।
मैं अपने मन की बात तुम से कहती हूं।
अपना हम-दर्द समझ कर तुम्हें अपनी व्यथा सुनाती हूं।
जो भी बर्तन तुम्हारे पास है आता,
खाली लौट कर नहीं जाता।
ये कैसी है आनाकानी
तुम मुझ से क्यों करते हो मनमानी,
सब को संतुष्ट करते रहते हो।
मुझ से तुम छल क्यों करते रहते हो।
मैं सदा तुम्हारे साथ रहती हूं।
तुम्हारे द्वारा भरे जानें को आतुर रहती हूं।
घड़ा कटोरी से बोला मैं किसी से पक्षपात नहीं करता,
मैं तुम्हें सच्ची सीख ही दिया करता।
पात्र जल पानें के लिए विनित भाव से हैं झूकते।
तुम्हारी तरह अकड़ नहीं दिखाते।
तुम तो गर्व से चूर हमेशा रहती हो।
अपना अहंकार सदा दिखाती हो।
नम्रता से जब झुकना सीखोगी,
तुम्हारी झोली कभी खाली नहीं होगी,
तुम हमेशा प्रशंसा की पात्र बनी रहोगी।।