एक पेड़ की डाल पर पर बहुत से कौवे हुए रहते थे। उस पर पर उनके छोटे-छोटे बच्चे भी रहते थे। पास ही वृक्ष की खोल में बहुत सारे कबूतर भी रहते थे। कौवे हर रोज अपने बच्चों के लिए दाना रखकर जाते थे। उन को दाना रखते हुए एक लोमड़ी देखा करती थी। वह लोमड़ी खाने के लिए तरसती रहती थी। उसे खाने को कुछ भी नहीं मिलता था। वह जानवरों को मारकर खाती थी। वह बूढ़ी हो चुकी थी वह भाग नहीं सकती थी इसलिए वह इसी ताक में रहती थी कि कौवे कहां जैसे अपने बच्चों के लिए दाना रखते हैं। वह छुप छुप कर उन्हें देखा करती थी। हर रोज उस स्थान पर जाकर पहले ही खाना प्राप्त कर लेती थी। कुछ दिनों से लोमड़ी को खाने के लिए कुछ भी नहीं मिल रहा था। इसलिए वह रोज कौवों के घोंसलों से रोटी चुराकर खा जाती थी। जहां पर कौवे दाना छुपा कर रख देते थे। एक दिन जब वह वापस घौंसलें में आए उनके बच्चे भूख के कारण बिना रोटी खाए ही सो गए थे। क्योंकि उन्हें वहां पर उन्हें खाने को कुछ भी नहीं मिला था। जब वह वापस आए तो उन्होंने अपने बच्चों को जगाया तो बच्चों ने कहा कि हमें कुछ दिन से कुछ भी खाने को नहीं मिल रहा है। हमारा खाना ना जाने कौन खाजाता है? वह बोले कि हमें उस पर नजर रखनी पड़ेगी कौन हमारे बच्चों का खाना चुरा कर खा रहा है? लोमड़ी आकर बोली कौवे भाई कौवे भाई आजकल आपके बच्चों का खाना कबूतर खा जाते हैं। तुम्हें उन कबूतरों को सबक सिखाना ही पड़ेगा। यह तुम्हारे बच्चों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। वह बोल कर चुप हो गई।कौवे सोचने लगे यह लोमड़ी ठीक ही कहती है न जाने मारे हमारे बच्चों का खाना कौन खा जाता है। इस लोमड़ी नें जरुर देखा होगा इसलिए वह हमें बता रही है।
लोमड़ी बोली कौवे भाई अब तुम दूसरी जगह खाना रखा करो। कौवा बोला ठीक है। तभी कौवे का एक दूसरा दोस्त कौवा आकर बोला चलो भोजन की तलाश में चलते हैं। कौवा बोला हम ना जाने सुबह से शाम और एक स्थान से दूसरे स्थान तक उड करअपने बच्चों के लिए दाना पानी का प्रबंध करते हैं मगर यहां पर तो कबूतर हमारे बच्चों का खाना चुरा लेते हैं। ना जाने वह हमारे बच्चों का खाना क्यों चुराते हैं? हम तो कभी भी इनका दाना नहीं छीनते। लगता है इन्हें सबक सिखाना ही पड़ेगा।
दूसरा कौवा बोला तुम्हें किसने कहा? कबूतर खाना खा जाते हैं। वह बोला लोमड़ी नें मुझे बताया। दूसरा कौवा बोला तुम्हारे बच्चों का खाना कबूतर नहीं वह चालाक लोमड़ी खा रही है और इल्जाम कबूतरो पर लगा रही है। वह बोला तुम्हें कैसे पता है? वह खाना चुरा कर खा जाती है। वह तुम्हें धोखा दे रही है। पता लगाना कल जब वह तुमसे पूछेगी कि तुम खाना कहां रखते हो तो तुम मुझे बता देना कि मैं वृक्ष की शाखा के पास खाना रखता हूं।
दूसरे दिन जब लोमड़ी आई बोली कौवे भाई
कौवे भाई तुम बहुत ही भोले हो। मुझे बताओ कि तुमअपने बच्चों को खाना तुम कहां पर रहते हो?। मैं देखती रहूंगी तुम्हारे बच्चों का खाना कोई चुरा कर ना ले जाए। वह बोला ठीक है। कौवे नें उस पेड़ की शाखा के एक ओर इशारा किया मैं उस पेड़ की शाखा पर अपने बच्चों का खाना रखता हूं। यहां पर वह आसानी से खाना खा जाते हैं। क्योंकि यह स्थान ऊंचाई पर भी नहीं है। लोमड़ी नें उस स्थान को देख लिया। दूसरे दिन कौवा भोजन की तलाश में उड़ गया। कौवे ने चुपके से उड़ने का बहाना किया और खाने की तलाश में उड़ गया, लेकिन 2 मिनट बाद दूर से देखनें लगा। लोमड़ी आई उसने जल्दी से खाना खाया और लौटने ही लगी थी कौवे को पता चल गया कि यही हमारे बच्चों का खाना चुरा कर खाती है। कौवे ने उसे उस दिनकुछ नहीं कहा। वह इसी तलाश में हर रोज रहता था कि किस प्रकार लोमड़ी से इसका बदला लिया जाए।
एक दिन लोमड़ी मांस का एक टुकड़ा लाई। वह भी उसको खाना लाते देखा करता था। लोमड़ी जैसे ही मांस का टुकड़ा अपने मुंह में दबाकर लाई तो कौवा बोला बहन लोमड़ी बहन लोमड़ी। वह उससे कुछ भी नहीं बोली। क्योंकि उसके मुंह में मांस का टुकड़ा था? कौवां बोला बहन मुझे पता चल गया है कि मेरे बच्चों का खाना चुरा कर कौन खाता था?वह कबूतर नहीं थे। लोमड़ी सोचने लगी उसको पता चल गया है। मैं उसे ऐसा मजा चखाऊंगा कि वह भी याद करेगी। आज तो मुझे असली चोर का पता लग गया है। जैसे ही कौवे नें यह कहा लोमड़ी के मूंह से डर के मारे मांस का टुकड़ा नीचे गिर गया। कौवे नें वह मांस का टुकड़ा उठाया और बोला। मैंने उस से भोजन भी प्राप्त कर लिया। किसी पर भी चोरी का इल्जाम लगाने से पहले सौ बार सोच लेते हैं। तभी मुंह खोलते हैं।
कुआं मांस का टुकड़ा प्राप्त कर खुशी-खुशी उड़ गया। लोमड़ी हाथ मलती रह गई और वहां से मायूस हो कर चली गई।