किसी गांव में एक ठग और एक चोर रहता था। चोर का नाम था रूपदास और ठग का नाम था धर्मदास। एक बार उस ठग नें चोर को देख लिया। ठग सोचने लगा कि क्या ही अच्छा होता वह चोरी कर के लाए और मैं इससे सब कुछ ठग लिया करूं? उसको हर रोज चोरी करते ठग देखा करता था। उसे पता लग गया था कि वह चोरी करके रुपए कमाता था। वह सोचने लगा यह अच्छा है इसके साथ दोस्ती कर लेता हूं।
एक दिन जब रूपदास एक बड़े से बंगले के पास चोरी करने घुसा तभी उसके सामने एक महात्मा आकर खड़ा हो गया। रुपदास उसको देखकर हैरान होकर बोला। क्या बात है मुझे अंदर क्यों नहीं जाने दे रहे हो? महात्मा रूपी ठग बोला देखो जो मैं कह रहा हूं उसेध्यान से सुनो। तुम एक चोर हो। तुम चोरी करने के लिए अंदर जा रहे हो। मुझे पता है। रूपदास बोला तुम्हें कैसे पता कि मैं एक चोर हूं। वह बोला मुझसे मत छुपाओ। छोटी मोटी चोरी तो तुम कर लेते हो। पर आज तो तुम एक बड़े से बंगले के पास चोरी करनें जा रहे हो अगर तुम्हें इन्होंने पकड़ लिया तो तुम जेल जाओगे। मैं तुम्हें महात्मा नजर आ रहा हूं लेकिन मैं महात्मा नहीं हूं। मैं एक ठग हूं। और तुम चोर तुम्हारा काम है चोरी करना। और मेरा काम है लोगों को ठगना। हुए ना हम चोर ठग मौसेरे भाई। अब मतलब की बात पर आते हैं।
तुम्हें अगर किसी ने देख लिया तो तुम कहना कि मैं चोरी करने नहीं आया था। मुझं मेंऔर मेरे दोस्त में शर्त लगी थी मैं कह रहा था कि मैं अंदर चोरी करने जाता हूं। महात्मा ने कहा कि तुम मत जाओ। अगर विश्वास ना हो तो आप बाहर जाकर उस महात्मा को देख सकते हैं। उसने मुझे अंदर आने से रोका था। जैसे ही वह चोर चोरी करने के लिए घुसा मालिक ने उसे पकड़ लिया और बोला चोरी करनें आए हो। वह बोला मैं चोर नहीं हूं। बाहर एक महात्मा जी हैं उन्होंने मुझे कहा था कि अंदर मत जाओ मगर मैं नहीं माना शर्त जो जीतनी थी हम दोनों में शर्त लगी थी कि कौन अंदर जा सकता है? बंगले का मालिक बोला देखूं कहां है तुम्हारा महात्मा। तुम झूठ बोल रहे हो। चोरी करने आए हो। बंगले का मालिक जैसे ही बाहर आया। साधु के वेश में एक महात्मा को देख कर हैरान हो गया।वह रुपदास के पास आकर बोला तुम ठीक कह रहे थे। रुपदास बोला मैं सचमुच ही चोर हूं। वह एक महात्मा है। वह एक अंतर्यामी बाबा है उसने मुझे कहा कि तुम एक चोर हो। तुम पकड़े जाओगे। मैंने उसकी बात नहीं मानी। बंगले का मालिक बाहर आ गया। उसने देखा बाहर एक महात्मा बैठकर तपस्या कर रहेथे। बंगले का मालिक बाबा जी को देखकर बोला बाबा जी आप यहां क्यों बैठे हो? मैं थोड़ी देर यहां पर आराम करने के लिए बैठ गया। यहां पर थोड़ी ठंड है। बाहर तो ज्यादा गर्मी है। थोड़ी देर विश्राम करने के लिए यहां पर बैठ गया था। बंगले का मालिक बोला आप अंदर चलकर बैठकर विश्राम कीजिए। बंगले के मालिक के साथ साधु महात्मा अंदर चले गए। मालिक ने उसका आदर सत्कार किया उसे खाना खिलाया। रुपदास की ओर देख कर कहा इन साधू बाबा नें मुझे कहा इस को छोड़ दो उनके कहने से मै तुम्हें छोड़ रहा हूं। नहीं तो तुम्हें आज पकड़कर पुलिस थानें ले चलता। बंगले के मालिक ने चोर को छोड़ दिया। साधू महात्मा जब वापस जाने लगा तो रास्ते में उसे वही ठग मिला। वह रुपदास से बोला भाई कैसी रही? मानते हो न मुझ को आज। अगर मैंने तुम्हें बचाया नहीं होता तो तुम पकड़ लिए जाते। रुपदास बोला भाई मेरे तुम ठीक ही कहते हो। धर्मदास बोला आज से हम दोनों मित्र बन गए हैं। वह बोला भाई मेरे मुझे रुपयों से क्या काम। थोड़ा बहुत तो कमाना ही पड़ता है जिंदा रहने के लिए। रूपदास उसको एक होटल पर ले गया उसने उसे खाना खिलाया। चोर चोरी करके लाता। हुआ ठग को कभी कभी कभार कुछ दे दिया करता था। इस तरह चोर चोरी करके लाता।। ठगको पता चल जाता। उसने सब कुछ पता कर लिया। उस के घर में कौन-कौन है। घर कहां है? सारी जानकारी हासिल करने लगा। वह भाभी की अनुपस्थिति में उसके घर जाता था।
रुपदास की पत्नी एक सिलाई सेंटर में काम करती थी। एक दिन जब रुपदास बाहर गया हुआ था तो सन्यासी बन कर धर्मदास उसकी पत्नी के पास आया और बोला। बेटी जरा अपना हाथ दिखाओ। वहधार्मिक विचारों कीथी। घोर अनर्थ कर दिया। वह बोली बाबा जी आप ये क्या बोल रहे हो? तुम्हारे पति गलत धंधे में शामिल हैं। वह चोरी तो नहीं करते। वह बोली महात्मा जी यह क्या अनाप-शनाप बोल रहे हो? मेरे पति कभी बुरा काम नहीं करते। मेरी शादी को 15 साल हो गए उन्होंने तो मुझे कभी नहीं बताया कि मैं चोरी में संलिप्त हूं। तुम तो गुस्सा हो गई बीवी जी। आप शांत हो जाइए। आप चुपचाप मेरी बात सुनिए। आप यह बात अपने पति को कहेंगी तो वह आपसे नाराज हो जाएंगे। ज्यादा गुस्सा मत हो। आप उन्हें सुधार सकते हैं। इंसान तो गलतियों का पुतला होता है। जरा सी कहीं चमक दमक देखी वही उस ओर आकर्षित हो जाता है। आपके पति सुधर जाएंगे। वह बोली मैं तुम्हारी बातों में आने वाली नहीं हूं। पहले मैं खुद परख कर बताऊंगी कि तुम ठीक कह रहे हो या गलत। वह बोला यह बात मेरे और तुम्हारे हम दोनों के बीच में रहनी चाहिए। अंदर जाकर साधू महात्मा को दक्षिणा देने लगी। वह बोला अभी मुझे दक्षिणा नहीं चाहिए। उस दिन मुझे दक्षिणा देनाजब तुम गलत साबित होगी। मेरी बात याद रखना।
रुपाली उदास रहने लगी। वह सोचने लगी मेरे पति ने तो मुझे कभी नहीं बताया कि मैं चोरी करता हूं। उस साधु महात्मा की बात अगर सच हो गई मैंने तो अपने पति पर आंख मूंदकर विश्वास किया। परखनें में भी कोई बुराई नहीं है। अगर जांच नहीं करूंगी तो मुझे सकुन नहीं मिलेगा। मुझे कभी चैन नहीं मिलेगा और ना ही रात को अच्छे ढंग से नींद आएगी
उस दिन के बाद वह अपने पति पर नजर रखने लगी। उसका पति कहां जाता है? क्या करता है? एक दिन वह 4:00 बजे उठकर बोला भाग्यवान आज मैं व्यापार के सिलसिले में बाहर जाना चाहता हूं। वह बोली आज मुझे भी ले चलो। उसका पति बोला नहीं फिर कभी चलेंगे। जैसे ही रूपदास गया उसने अपने पति का पीछा किया। उसे सब कुछ पता चल गया कि वह कोई व्यापार नहीं करता। वह तो चोरी का धंधा करके अपनी आजीविका चला रहा था। उसके मन को बहुत ही ठेस लगी परंतु रोने से समस्या का हल तो नहीं निकल सकता था। वह सोचनें लगी वह भी तो पढ़ी-लिखी है। सिलाई करके कमा लेती है। कुछ ट्यूशन वगैरा पढा के गुजारा कर लेगी।
शाम को जब रुप दास घर आया तो उसकी पत्नी बोली। आप मुझे बताओ आप कहां व्यापार करते हो? वह बोली मुझे भी तो पता होना चाहिए कि आपका मालिक कौन है? आपका किस चीज का व्यापार है। पहले तो आप एक व्यापारी के पास काम करते थे। आप ने इतना बड़ा बंगला गाड़ी सब कुछ कहां से खरीदा इतनें रुपये कंहा से कमाए? वह बोला बेगम आज तुम्हें क्या हो गया? मैं कहीं भी काम करूं? तुम्हें इससे क्या मतलब। वह बोली क्यों मतलब क्यों नहीं। मैं तुम्हारी बीवी हूंव बीवी को हक होता है पूछने का। आज आपको बताना ही पड़ेगा वह बोला मेरा एक जगह का व्यापार थोड़ी है मैं तो जगह-जगह पर व्यापार करने के लिए इधर उधर जाता रहता हूं।
रुपाली उदास हो गई। दूसरे दिन वह ठग महात्मा बनकर आया। वह साधू महात्मा के पैरों पर गिर बोली बाबा जी आप ठीक कहते थे। मेरा पति चोरी का धंधा करता है। मैं ईमानदारी से काम करती रही। मेरे पति ने तो मेरी छवि को धूमिल कर दिया। वह अब भी सुधर सकते हैं। इसके लिए तुम्हें कुछ उपाय करने होंगे। तुम्हारे ऊपर शनि का प्रभाव है।तुम्हेंं 6 महीने तक पाठ करवाना होगा। रूपाली नें भी 6 महीने तक उस साधू की बातों में आकर 6 महीने तक उसने अपने घर का सारा रुपया उस महात्मा पर लुटा दिया।
एक दिन वह बैठी बैठी सोचनें लगी। आज 6 महीने हो गए मगर मेरे पति में मुझे कोई सुधार नजर नहीं आया। कहीं यह बाबा भी तो मुझे धोखा देकर ठगी करके अपनी तिजोरी को तो नहीं भर रहा है। उसने मन में दृढ़ निश्चय किया कि वह जिस तरह अपने पति की जांच कर रही है वह साधु बाबा पर भी नजर रखेगी। वह सचमुच में उसे ठग कर उसका उल्लू सीधा तो नहीं कर रहा है। एक चोर और दूसरा ठग।
उसने उस साधू पर कड़ी नजर रखनी शुरू कर दी। एक दिन जब रुपाली बैंक से रुपये निकलवा कर आई तो थोड़ी देर बाद ही वह साधू महात्मा आए वह आकर बोले। बेटी क्या तुम मुझे बैठनें के लिए नहीं कहोगी? मैं यहां से गुजर रहा था सोचा मिलता चलूं। वह बोली इस वक्त तो मैं बाहर जा रही हूं। उसने जल्दी से रुपयों की पोटली अलमारी में रख दी। धर्मदास बोला घर में आई लक्ष्मी का अपमान नहीं करते। वह बोली मैं कुछ समझी नहीं। साधु महात्मा बोले बेटी मैं तुम्हें समझा रहा था कि घर में हर रोज इतनी धन-दौलत तुम कमाते हो। आप पर तो प्रभु की इतनी कृपा है। कभी साधु महात्माओं को भी दान पुण्य करा देना चाहिए। वह जल्दी में अंदर गई और ₹60 का नोट बाबाजी के हाथ में थमा कर बोली यह लो बाबा जी। बाबा जी ने मुस्कुराते हुए वह नोट पकड़ लिया। वह बोला कि मैं इस वक्त इसलिए आया था कि मैं तुम्हें बताया दूं कि इस गुरुवार को पूजा पाठ का बड़ा ही शुभ दिन है। उस दिन तुम पूजा-पाठ करवा सकती हो।
शाम को रूपाली जब घर आई तो वह सोचने लगी कि मुझे अब इस साधु महात्मा पर कुछ कुछ शक होने लगा है। जिस दिन वह दोबारा एटीएम से रुपए लेकर लौटी शाम को फिर साधू महात्मा आ कर बोला परसों वीरवार को पूजा का शुभ मुहूर्त है। थोड़ी देर के लिए पूजा में गहनों भी रख देना। एक गहने का ही दान करना। ज्यादा नहीं। थोड़ी देर तक गहनों पूजा में रखने हीं पड़ते हैं। उसने कहा ठीक है बाबा जी।
जो कुछ उसका पति कमा कर लाता वह बाबा जी को दे देती। वह सोचती चोरी का पैसा है। वह साधू बाबा भी फ्रॉड होगा चलो आज उसकी परीक्षा ले ही लेती हूं। शाम को जब बाबा आए वह बोली बाबाजी बाबाजी। मैंने पूजा की सामग्री रख दी है। मैंने अपनें गहनों भी थाली में रख दिए हैं। इनमें से केवल एक गहना ही आप को दान करेंगी। आपतो जानते ही हैं। मंहगाई का जमाना है। साधू महात्मा बोले कि तुम घबराओ मत।
रूपाली बोली मैं आपको चाय बना कर लाती हूं। वह चाय बनाने के लिए अंन्दर चली गई। बाबा ने देखा कोई उसे देख तो नहीं रहा है? उसने जल्दी से उन गहनों की मोबाइल से फोटो ले ली। और गिन गिन कर देखनें लगा। वह सब रुपाली देख रही थी। जब बाबा जी चले गए तो उसने सोचा मैं तो उस बाबा परयूं ही शक कर रही थी। यह तो सचमुच में ही देवता है सारे के सारे गहने तो यहीं पर है।
उसे याद आया कि बाबाजी तो उस दिन ही रुपए लेने आते हैं जिस दिन मैं एटीएम से रुपए निकालती हूं। उसने कैलेंडर में देखा। जिस दिन बैंक ग्ई उस दिन ही बाबाजी मांगने आए। उसके दिमाग में आ गया इस बाबा जी ने मोबाइल से इन गहनों की फोटो क्यों ली? बाबा जी नकली गहने यहां रख जाएंगे। उसे समझ में आ गया। और असली गहनें ले जाएंगे।
वह जल्दी ही तैयार होकर एक ज्वेलरी की दुकान पर गई। उसने ठीक वैसे ही नकली गहने ला कर पूजा के स्थान पर रख दिए। दूसरे दिन जब साधु महात्मा आए वह बोली बाबा जी आप इतने बड़े बाबा। आप से तो मैंने पूछा ही नहीं कि आप कहां रहते हो? कभी आपके घर आना हो। उस महात्मा जी नें बताया कि वह गांव से 4 किलोमीटर की दूरी पर एक नदी के पास एक छोटी सी कुटिया में रहता हूं। मेरा इस दुनिया में और कोई नहीं है। रुपाली बोली बोली बाबा जी कल तो आप पूजा करना रहने ही दो। मैं अगले वीरवार को आपको पूजा के लिए कहूंगी। तब तक मैं अपना जरूरी काम निपटा लेती हूं। आजकल सिलाई सेंटर में भी बहुत काम है। वह बोला कोई बात नहीं बीवी जी। जितनी जल्दी आप पूजा करवाएंगे उतनी जल्दी आपके पति पर से शनि की दशा समाप्त होगी।
दो-तीन दिन बाद वह चुपके से उस साधू महात्मा का पीछा करती गई। वह महात्मा के भेष में एक होटल में घुस गया। रूपाली ने साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढक लिया। वहां जाकर वह एक कोनें में बैठ गई। यह देख कर हैरान हो गई कि चाय की टेबल पर उस महात्मा के साथ उसका पति बैठा था। उस साधू महात्मा से बहुत ही हंस हंस कर बातें कर रहा था। वह उन दोनों की बातें सुनने लगी।
रूपदास बोला तुम तो मुझसे कभी रुपया नहीं लेते। वह बोला बाबूजी आपको क्या ठगना। मैं तो उधर का माल इधर करता ही रहता हूं। आप चिंता ना करें। आप जैसा नेक इंसान मैंने कभी नहीं देखा। मैं भला आप को क्यों ठगनें लगा? धर्मदास बोला मेरा काम है लोगों से ठगी करना। और तुम्हारा काम है चोरी करना। तुम अपना काम करते जाओ और मैं अपना काम। मैं ठग विद्या में कुशल हूं। चाय पीकर दोनों ने एक-दूसरे से हाथ मिलाया। रूपाली को अब सारी बात समझ में आ गई थी रुपाली के सामने उस ठग बनें साधू की सारी सच्चाई सामनें आ गई। शाम को जब उसका पति घर आया तो रुपाली अपने पति से बोली कि आप भी एक चोर हो। इस बात का पता मुझे आज लगा। जब मैंने आप दोनों को रंगे हाथ पकड़ा। एक चोर और दूसरा ठग। ठग आप को चूना लगाता रहा। आप को चोरी के लिए उकसाता रहा। वह सारे घर का भेद मालूम करके एक महात्मा का वेश धारण करके चोरी करने की नियत से यहां घुसा था। उसने मुझे बताया कि आपके पति चोर हैं। आपके पति पर शनि ग्रह है। उसको उतारने के लिए दान पुण्य करना पड़ेगा। मैं 6 महीने तक पूजा पाठ करवाती रही। एक दिन मैंने सोचा कि आज इस महात्मा साधू को चलकर देखती हूं कि वह कहां जाता है? कहीं वह मुझे धोखा तो नहीं दे रहा। वह इस होटल में आया और साथ में आप भी थे। तो मैंने आप दोनों को रंगे हाथों पकड़ लिया। आप दोनों की असलियत मुझे मालूम हो गई। आप अपने आपको जब तक पुलिस के हवाले नहीं करोगे तो मैं चल कर आप को जेल में डलवा दूंगी। रुपदास बोला मुझे माफ कर दो। मुझसे गलती हो गई। उसकी पत्नी बोली चोरी तो चोरी होती है। साथ में उस बहुरुपिए को भी मैं सबक सिखाऊंगी। वह घर के सारे गहने लूटने आया था। रुपाली को ठग की सारी असलियत साफ नजर आ गई थी।रुपदास पुलिस थाने में जा कर बोला। इन्सपैक्टर साहब आप मुझे गिरफ्तार कर लो। मैं चोरी कर के रुपया कमाता रहा। मैं अपनी देवी तुल्य पत्नी को धोखा देता रहा। मैं आप को सारा चोरी किया रुपया लौटा दूंगा।कृपया मुझे माफ कर दो। मै अपना गुनाह कबूल करता हूं।
रुपाली साधु की कुटिया के पास जाकर बोली बाबा जी आप तो ठहरे अकेले। आज देखो मैं किन्हें लाई हूं। अंदर आ जाओ बेटी। रुपाली बोली आप जैसे साधु महात्मा लोग तो दयालु होते हैं। मैं एक समाज सेविका भी हूं। यह मेरे साथ गरीब बच्चे हैं। इनके पास फीस देने के लिए रुपए नहीं है। उनकी मैडम ने कहा है कि जब तक यह ₹10000 नहीं लाते तब तक वह उन्हें स्कूल में प्रवेश नहीं देगी। मेरा दिल पिघल गया मैं तो इनकी सहायता करना ही चाहती थी। मैंने आप जैसा दयालु इंसान भी कभी नहीं देता देखा। मैंनें सोचा आप इन बच्चों को ₹10000 दे ही देंगे। साधू बोला मेरे पास ₹10000 कहां से आएंगे? रुपाली बोली पहले आप हमें कुछ खाना खिला दो। बड़े जोरों की भूख लग रही है। महात्मा बोला मैं तो मांग मांग कर गुजारा करता हूं। खाना कहां से लाऊं?
रुपाली बोली आपके घर में कुछ तो होगा ही। आप आदमी लोग किसी काम के नहीं होते। आओ बच्चों अंदर चले आओ। उसने सब बच्चों को सिखाया हुआ था कि उस बाबा के घर के अंदर सारी चीजों को उलट पलट कर देखना और खूब धमाचौकड़ी मचाना।
रूपाली बोली बाबा जी कोई बात नहीं मैं ढूंढ लेती हूं। अंदर गई तो हैरान हुई कि इतनी बड़ी पेटी में अनाज भरा हुआ था। बाबा जी आप लाते हो आपको पता ही नहीं होता। उसने खाना बनाया और बच्चों को भी भरपेट खाना खिलाया। बच्चों ने उसका संदूक खोला उसमें इतने सारे रुपये देखकर हैरान हो गए । साधु महात्मा ने एकदम ट्रंक को बंद कर दिया। उसकी तरफ देख कर बोला याद आ गया मैं तुम्हें ₹10000 देता हूं। रूपाली ने सब कुछ देख लिया।
वह बोली ठीक है बाबा जी उसने बाबा जी से ₹10000 ले लिए और बोली इधर का माल उधर तो करना ही पड़ेगा। वह उसकी तरफ देख कर बोले बेटी तुम क्या बोली? वह बोली मेरा मतलब है कि आपके पास भगवान का दिया सब कुछ है। अगर आप थोड़ा सा बच्चों को दे देंगे इसमें आपका क्या जाएगा? वह चुप हो गया। बच्चों को लेकर वह चली गई। वह हाथ मलता रह गया। सोचने लगा कोई बात नहीं कल उससे उसके सारे गहने लेकर आऊंगी।
दूसरे दिन रुपाली के घर पहुंचा। बीवी जी क्या आप पूजा के लिए तैयार हैं? रुपाली बोली क्यों नहीं मैं तैयार हूं। आप पूजा शुरू करो। वह उसकी तरफ देख रहा था कि कहीं उसे कल सब कुछ मालूम तो नहीं पड़ गया। नहीं उसने मेरे रुपये नहीं देखे। बच्चों ने ही देखे थे। रूपाली ने ऐसा महसूस करवाया जैसे कुछ हुआ ही ना हो। वह पूजा करने लगा। रूपाली ने असली गहनों की जगह सब नकली गहनें रख दिए थे। उसने वह सब नकली जेवरात अपने बैग में डालें और उसकी जगह उस साधु महात्मा ने भी नकली गहने वहां रख दिए। पूजा समाप्त करने के पश्चात वह साधू बोला आपके पति पर से सदा के लिए शनि ग्रह खत्म हो गया है। वह भी व्यंग्य कस कर बोली यह ग्रह महात्मा जी अब आपके ऊपर चढ़ गया। वह बोला यह क्या बोल रही हो? वह बोली सच महात्मा जी मैंने सुना है जिस पर से यह ग्रह उतरता है दूसरे व्यक्ति पर चढ़ जाता है। मैं भी एक पंडित की बेटी हूं। मेरा भी कथन असत्य नहीं होगा। वह चौक और उसकी तरफ देखने लगा।
वह बोली साधू महात्मा जी आप तो ऐसे डर गए जैसे मैंने सच ही कहा हो। मैं तो झूठ बोल रही थी। वह हंस कर बात टाल गई। बाबा जी आप का भगवान भला करे आज तो मैं आपको दक्षिणा भी जरूर दूंगी उसने ₹2000 का नकली नोट उस ठग महात्मा को पकडा कर बोली धन्यवाद। आप जैसा परोपकारी महात्मा मैंने कभी नहीं देखा। जो आप ने मुझ गरीब पर इतनी दया की।
आप थोड़ी देर बैठ कर टीवी देखो। मैं चाय बना कर लाती हूं। उसने फोन करके पुलिस इंस्पेक्टर को घर पर ही बुला लिया था। उसने पुलिस इंस्पेक्टर को कहा था कि आप साधारण वेशभूषा में हमारे यहां पर आइए। वह पुलिस इंस्पेक्टर जब रूपाली के घर पहुंचे तो वह बोली साहब धन्यवाद। चाय पीने के पश्चात साधु महात्मा बोले बेटी अब मैं अब चलता हूं। जो साहब आए थे वह बोले बाबा जी आपको मेरे घर पर भी पूजा करने चलना ही पड़ेगा। मेरा घर यहां से 3 किलोमीटर की दूरी पर है। मैं तो आपको अपने घर में ही एक छोटा सा कमरा दे दूंगा। आप वहां पर आराम से इधर का माल उधर करना। ठग महात्मा फिर भी नहीं समझा। महात्मा को लेकर जब पुलिस थाने पहुंचा तो उसे अंदर हवालात में बंद कर दिया और बोला इंस्पेक्टर बोला कहो कैसी रही। ठगी करनें वालों को हमेशा दन्ड मिलता है। रुपाली के पति को 1 साल की कैद हुई उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया था। इसलिए पुलिस ने उसे 1 साल की सजा दे कर छोड़ दिया। उसके बाद उसने कभी चोरी नहीं की।