दावानल

शेखर और उसकी पत्नी एक छोटे से गांव में रहते थे। शेखरको शराब पीने की आदत थी वह शराब को छोड़ता नहीं था। उसकी पत्नी अपने पति की इस आदत से बहुत परेशान रहती थी। वह सोचती काश मेरा पति शराब पीना छोड़ देता तो वह भी अच्छा इंसान बन सकता है। दिल का अच्छा है। एक ही कमी है जो वह शराब पीता है।

शेखर की पत्नी ने अपने पति से कहा शराब छोड़ दो। आपने शराब नहीं छोड़ी तो मैं अपने मायके में चली जाऊंगी। मैं तुम्हारी जिंदगी में फिर कभी वापस नहीं आऊंगी। आज फैसला हो ही जाए। आप आज मुझे रखना चाहते हैं या फिर शराब को। मुझे तो ऐसा लगता है कि शराब मेरी सौतन है। शेखर बोला मुझे थोड़ा वक्त दो। वह बोली ठीक है मैं तुम्हें छः महीने का समय देती हूं।  शेखर गांव के पास ही एक जंगलात विभाग में काम करता था। शेखर की पत्नी का एक  एक दूर  का भाई था। वह भी उसके पति के साथ ही दसरे जंगलात विभाग में काम करता था। उसका ऑफिस शेखर के औफिस से दो किलोमीटर दूरी पर था। दोनों  साथ ही ऑफिस जाते। शालू का मुंह बोला भाई कभी-कभी उनके घर पर आ जाया करता था। उसके भाई को भी पीने की आदत थी।  दोनों साथ मिलकर पीते थे

एक बार दोनों जंगल से जा रहे थे काफी देर तक घर नहीं लौटे तो शेखर की पत्नी को चिंता चलो देखती हूं। मेरे पति अभी तक घर नहीं आए हैं। वह उन्हें देखने काफी दूर तक निकल आई। उसने अपने  मवेशी एक ओर खड़े कर दिए और  देखनें लगी। उसे दो पुरुष आते दिखाई दिए। एक उसके पति और दूसरा उसका मुंह बोला भाई। उसने सामने से जाते हुए एक ट्रक देखा। ट्रक में चोरी की हुई लकड़ियां थी। उसके पति ने उसे बताया था कि तुम्हारा भाई लकड़ियां  चोरी करके घर ले जाता है। उसके मुंहबोले भाई ने   ट्रक  रुकवाया बोला ठहरिए तुम लकड़ियों को चोरी कर कंहा ले जा रहे हो? ट्रक में से एक आदमी उतरा बोला भाई साहब हर बार तो तुम्हें हम लकड़ियां दे देते हैं। थोड़ी सी आप भी घर ले जाओ। लेकिन मुंह बंद रखना। उसका मुंह बोला भाई बोला मैं तो मुंह बंद रखूंगा। मेरे साथ मेरा दोस्त है। इसे तो शराब पीकर कुछ भी याद नहीं रहता है। ठीक है ले जाओ। वह लकड़ी को अपने घर लेकर चले गया।

शालू ने यह सब देख लिया था एक दिन उसके पति को एक बहुत बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है। वह अपने पति पर नजर रखने लगी। शाम को जैसे ही उसका पति घर आने वाला होता तो वह भी पास ही पशु चराने ले जाती ताकि अपने पति पर नजर रख सके। शालू ने देख लिया था उसका मुंह बोला भाई जंगलात विभाग में हो कर भी लकडियों को काटने वालों का साथ दिया करता था और खुद भी घूस खा रहा था। उसने अपने मायके में जाकर अपने भाई की पत्नी रुपाली को कहा भाई तेरे पति ठीक नहीं कर रहे हैं।  भाभी जी भाई लकड़ियों को घर  चोरी कर ले जाते हैं।  तुम उन्हें मना क्यों नहीं करती। रुपाली बोली चली जाओ यहां से बड़ी आई मुझे सिखाने वाली।

एक दिन की बात है कि शेखर और उसका दोस्त वे दोनों अपने ऑफिस से आ रहे थे। उन्हें वेतन मिला था। उसके दोस्त ने कहा चलो थोड़ी देर एक एक पैग लगा लेते हैं। जंगल के रास्ते से आते उन्होंने थोड़ी थोड़ी पी ली थी। सौरभ ने उसे कहा मुझे माचिस दे दो। शेखर नें उसे माचिस दे दी। उन्होंने जला कर तीली वंहा फैंक दी। चारों ओर आग फैल गई थी। वह तो चले गए। शेखर की  चप्पल वही पर गिर गई थी।

दोनों घर की ओर भागे भागते-भागते रास्ते में पहुंचे,। उसकी पत्नी ने आग लगते देख लिया था। उसने अपने पति से पूछा जंगल में आग किसने लगाई।? वे दोनों बोले जंगलात विभाग के लोगों ने जंगल को साफ करने के लिए आग लगाई है। घर तो आ गई लेकिन उसे नींद नहीं आई। पुलिस वालों ने अगले दिन जब जंगल में आग लगी देखी तो उन्होंने सारे गांव में सूचना दे दी जिस किसी ने भी जंगल में आग लगाई होगी उस पर जुर्माना किया जाएगा। उसे सजा मिलेगी। लोगों ने शेखर का नाम लिया कहा कि इस गांव में से वही एक ऐसा इंसान है जिसको शराब पीने की लत है। उसमें शराब पीकर माचिस की तीली फेंक दी होगी। जब कार्यवाही की गई तो सचमुच शेखर की  चप्पल वंहा मिली। शेखर पर ₹10000 का जुर्माना किया गया। उसकी पत्नी को बड़ा ही गुस्सा आया। वह कुछ नहीं बोली। किसी ना किसी तरह ₹10000 जमा करवाएं और अपने पति को जेल खाने से बाहर निकाला।

सौरभ  का तो नाम भी नहीं आया। शेखर की पत्नी पुलिस के पास  गई बोली तुम नें मेरे पति पर  तो 10000 का जुर्माना कर दिया।असली गुनहगार को तो आप नें  पकड़ा ही नहीं। पुलिस वाले  बोले  जब तक आप कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं करते तब तक हम कुछ नहीं कर सकते। शालु ने कुछ नहीं कहा। पहले की तरह उसका पति ऑफिस जाने लगा।

एक दिन फिर वही ट्रक वाले उस रास्ते से गुजर रहे थे। शालु नें उन्हें आते देखकर उनकी फोटो ले ली। कैसे उस ट्रक के  मालिक नें ट्रक से लकड़ियां सौरभ के घर भिजवाई।  शालू  नें फोन कर के पुलिस को कह दिया कि आप सौरभ के  घर के बाहर छिपकर देखना एक लकड़ी से भरा ट्रक  उन के घर  आएगा।  पुलिस वालों ने मौके पर पहुंचकर उसे हवालात में बंद कर दिया। उसने कबूल कर लिया कि जंगल में आग भी  उन दोनों की गल्ती से लगी थी। पुलिस वालों ने लकड़ियों को जप्त कर लिया।

पुलिसवालों ने कहा कि तुम्हें रु5000  शेखर को वापिस करनें  होगें। आगे से कसम खाओ कि जंगल की लकड़ियों को और पेड़ों को नहीं काटोगे। सौरभ को छःमहीने की सजा दी गई। बाद में जमानत पर उसे छोड़ दिया गया। उस ने संकल्प लिया कि मैं कभी भी शराब को हाथ नहीं लगाऊंगा।

दोनों दोस्तों ने प्रण लिया कि अगर किसी को जंगल में आग लगाते हुए देखेंगे तो उसकी सूचना तुरंत पुलिस वालों तक पहुंचाएंगे। यही हम दोनों का सच्चा प्रायश्चित होगा।

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