बहुत समय पहले की बात है कि किसी नगरी में एक राजा राज करता था। राजा अपनी प्रजा के सामने अच्छा बनने की कोशिश करता था परंतु वह दिखावे के लिए ही प्रजा के सामने अच्छा बनने की कोशिश करता था। उस राजा जैसा निर्दयी कोई भी उसके राज्य में नहीं था । राजा के सामने फरियाद लेकर जब भी कोई आता तो सबके सामने तो राजा उस व्यक्ति से बहुत ही प्यार से पेश आता था परंतु जब दूसरे व्यक्ति चले जाते तो वह अकेले में उस व्यक्ति को बुलाकर उससे बहुत ही बुरा बर्ताव करता था ।उसके इस बर्ताव से सारी प्रजा के लोग बहुत ही दुखी थे ,परंतु राजा का ऐसा बर्ताव देख कर लोग उससे कहना तो चाहते थे परंतु सब लोग इतने लाचार थे कि वह राजा के सामने कुछ नहीं कह सकते थे। हर व्यक्ति को मजबूर होकर राजा के पास आना ही पड़ता था अगर प्रजा के लोग उसकी बात नहीं मानते थे तो किसी ना किसी बहाने वह,अपनी प्रजा को सताने में कोई कसर नहीं छोड़ता था
राजा की पत्नी हमेशा अस्वस्थ रहती थी ।राजा अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता था उसने अपनी पत्नी की देखभाल के लिए एक दासी नियुक्त की हुई थी ।वह रोज उसकी पत्नी की देखभाल करती थी। किसी दिन अगर वह छुट्टी पर होती तो राजा उसकी पगार में कटोती कर देता था।
था। राजा की एक बेटी थी सुप्रिया राजा अपनी बेटी से बहुत प्यार करता था ।राजा के कोई बेटा नहीं था वह हरदम यही सोचा करता था कि मेरे बाद मेरे राज्य की बागडोर कौन संभालेगा? इसलिए वह हमेशा चिंतित रहता था। वह सोचता था कि मुझे ऐसा कोई इंसान मिले जो मेरे राज्य को अच्छे ढंग से संभाले। उसके लिए हर तरह की कोशिश किया करता था। एक बार दासी का बेटा बहुत ही बीमार हुआ। दासी ने राजा को कहा कि मेरा बेटा बहुत बीमार है परंतु राजा ने कहा कि जब तक तुम अपना काम नहीं करोगी तब तक तुम्हें पगार नहीं मिलेगी। बेचारी दो दिन तक काम पर नहीं आ स्की। राजा ने उसकी पगार में से रूपये भी काट लिए जब वह काम पर आती उसका बेटा भी साथ आता। इस तरह उसके दिन गुजर रहे थे। राजा की बेटी दासी के बेटे के साथ हिल मिल गई थी। वह भी उसके साथ काफी देर तक खेला करती थी
राजा धनुर्विद्या में बहुत ही पारंगत था। राजा की एक बेटी थी सुप्रिया। राजाअपनी बेटी से बहुत प्यार करता था ।राजा के कोई बेटा नहीं था वह हरदम यही सोचा करता था कि मेरे बाद मेरे राज्य की बागडोर कौन संभालेगा इसलिए वह हमेशा चिंतित रहता था ।वह सोचता था कि मुझे ऐसा कोई इंसान मिले जो मेरे राज्य को अच्छे ढंग से संभाल ले
उसके लिए हर कदम कोशिश किया करता था ।एक बार दासी का बेटा बहुत ही बीमार हुआ दासी नेे राजा को कहा कि मेरा बेटा बहुत बिमार है।दासी काम पर नहीं जा सकी राजा ने उसकी पगार में से रुपए भी काट लिए। जब भी काम पर आती उसका बेटा भी साथ जाता। राजा की बेटी दासी की बेटी के साथ हिल मिल गई थी। वह भी उसके साथ काफी देर तक खेला करती थी । बच्चे भी बड़े हो चुके थे दासी का लड़का भी बड़ा हो चुका था। वह धनुर् विद्या का अभ्यास कर रहा था
एक बार राजानेअपने महल में दूर-दूर से धनुर् धारियों को महल में बुलाया और कहा जो मुझेधनुर्र विद्या में हरा देगा उसे मैं काफी ईनाम दूंगा। सभी राज्यों से राजकुमार आए मगर कोई भी उसे हरा नही ंसका।दासी का लड़का आकर राजा से बोला मैं आपको धनुर् विद्या में हरा सकता हूं। राजा के कौशल को
देखने के लिए लोग राजा के प्रांगण में पहुंचे । दासी केलड़के ने राजा को एक ही झटके में हरा दिया। राजा ने सोचा इस लड़के ने मुझे हरा दिया है । मुझे अपना राज काज ऐसे आदमी को सौंप देना चाहिए जो मेरा राज्य संभालने के काबिल हो ।उसने अपने भाई के बेटे को गोद ले लिया वह बहुत ही अत्याचारी था ।वह उसका बेटा तो बन गया परंतु किसी ना किसी तरह राजा को नीचा दिखाने की कोशिश करता था ।वह राजा को फूटी आंख नहीं सुहाता था। जब तक राजा ने उसे राज्य की बागडोर नहीं संभाली थी तब तक तो वह राजा के साथ बड़े अच्छे ढंग से पेश आता था परंतु जैसे ही राजा ने सारा राज पाट सौंप दिया तो वह राजा के साथ बुरा बर्ताव करने लगा ।दासी के बेटे को राजा पहचानता नहीं था क्योंकि उसने कभी भी राजा को नहीं बताया जिसने आपको धनुर्विद्या में हराया वह कोई और नंही घर पर काम करने वाली दासी का बेटा है । राजा पछताने लगा था कि मैंने गलत आदमी को अपना राजपाट सौंप दिया है। मेरे राज्य का अब क्या होगा ।
दासी का लड़का राजकुमारी से मिलता था वह दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे थे दासी का लड़का कहता था कि तुम मेरे साथ मेलजोल मत बढ़ाओ क्योंकि कहां तुम और कहां मैं ,। मैं तो एक गरीब घर का बेटा हूं। तुम गरीब के घर नहीं रह सकती परंतु राजा की बेटी ने उससे कहा कि अगर शादी करूंगी तो तुम से वरना मैं कुंवारी रह जाऊंगी । एक दिन राजा की बेटी ने दासी के बेटे को बताया कि मेरे पिता जी ने जिस व्यक्ति के हाथ राज्य की बागडोर सौंपी है वह बहुत ही बेईमान है। वह कहता है कि अपनी बेटी की शादी मुझसे कर दें जब मेरे पिता ने इन्कार कर दिया तो उसने मेरे पिता जी को बहुत जोर से ठोकर मारी और उन्हें जेल में बंद कर दिया। मैं अपने पिता को कैद में नहीं देख सकती। तुम कोई योजना बनाओ जिससे वह मेरे पिता के हथियाए हुए राज्य को वापस कर दें और मेरे पिता की सत्ता को लौटा दे ।दासी का बेटा बोला मैं कोई रास्ता खोजता हूं।
धनुर्विद्या में दासी का बेटा जीत गया तब राजा ने जिस नवयुवक को गोद लिया था वह आकर दासी के बेटे से बोला वाह, तुम तो बहुत ही बड़े धनुर्विद्या में माहिर हो आज मैं तुम्हें अपने महल में मंत्री पद पर नियुक्त करता हूं ।वह दासी के बेटे को महल में नियुक्त कर देता है ताकि कोई भी बाहर वाला आकर उस पर हमला करे तो वह उसकी सहायता करे।ं दासी का बेटा सारी गांव की प्रजा के पास आ कर बोला। पहले राजा ने हमारी नाक में दम कर रखा था अब इस राजा का गोद लिया बेटा यह तो इससे एक कदम आगे ही है ।हम सबको मिलकर कोई ऐसी योजना बनानी होगी जिससे वह नकली राजा हार जाए । राजा के भाई का बेटा जिसको मंत्री के पद पर नियुक्त किया जाना था वह राजा के पास गया और बोला सारे गांव वाले लोग कहते हैं कि अगर कोई गांव वालों में से कोई धनुर्विद्या में हार जाए तो हम उसको हंसी-खुशी अपना राजा स्वीकार कर लेंगे । नव निर्वाचित राजा के पास प्रजा के लोग आए और बोले ।राजा ने ही आपको प्रजा की बागडोर संभाली है परंतु हमारी प्रजा ने अभी तक आपको अपना राजा नियुक्त नहीं किया है ।ठीक है ,अगर आप राज्य के 20 आदमियों को धनुर्विद्या में हरा देंगे तो हम हंसी खुशी आपको अपना राजा स्वीकार कर लेंगे । राजा ने जिस नवयुवक को गोद लिया था वह बोला ठीक है हमें तुम्हारी सारी शर्तें मंजूर है मैं तुम सबको धनुर्विद्या में हरा दूंगा ।
मेरे दरबार में मेरे पास एक ऐसा मंत्री है वह तुम सबको एक ही झटके में हरा सकता है । तुम भगवान के मंदिर में चलकर यह बात कहो तभी हम तुम्हारी बात पर यकीन करेंगे। राजा ने जिसे अपना दत्तक पुत्र नियुक्त किया था वह उनके साथ मंदिर चलने के लिए तैयार हो गया और वहां पर चलकर बोला अगर यह सब लोग इस मंत्री को धनुर्विद्या में हरा देंगे तो मैं राजा की बागडोर पद से त्याग दे दूंगा और राजा को राजपाट वापस कर दूंगा ।प्रजा के लोंगों ने कहा कि तुमने राजा से जो महल की जमीन के कागजों पर हस्ताक्षर करवाएं हैं वह भी सब राजा को लौटाने होंगे तब नकली बना राजा बोला मंजूर है मुझे तुम्हारी सारी बातें मंजूर है ।उसे अपने मंत्री पर बहुत विश्वास था कि वह प्रजा को एक ही झटके में हरा देगा । प्रजा ने नकली राजा से कहा कि जब तक धनुर्विद्या का आयोजन नहीं होता तब तक तुम्हें असली राजा को भी कैद से बाहर निकालना होगा। नकली दत्तक पुत्र ने राजा को जेल से बाहर निकाल दिया । धनुर्विद्या का आयोजन किया गया दूर-दूर से लोग धनुर्विद्या देखने के लिए आए पहले राउंड में तो मंत्री ने प्रजा को हरा दिया। नकली राजा बहुत ही खुश हुआ परंतु दूसरे और तीसरे राउंड में मंत्री प्रजा के लोगों से हार गया ।नकली बना राजा आग बबूला हो उठा परंतु उसने सभी प्रजा के सामने कसम खाई थी कि अगर मंत्री हार गया तो वह राजा को सब कुछ वापिस कर
देगा। नकली बना राजा कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि सारी प्रजा के लोग एक साथ थे। दासी के बेटे ने अपनी होशियारी से प्रजा और अपने राजा का सम्मान पा लिया था राजा ने उसे उठकर गले से लगा लिया और बोला तुम ही असली राजा की बागडोर संभालने के लायक हो। मैं यह सारा राज पाट तुम्हेंं संभालता हूं। मैं तुम्हारे साथ अपनी बेटी की शादी करना चाहता हूं। दासी का बेटा बोला कि फिर भी सोच लो आपने सभी प्रजाजनों के सामने मुझे राजा बनाना मंजूर किया है क्या तुम अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथ में दे दोगे बिना जाने की मैं कौन हूं ?तब राजा बोला हां बेटा ,मैं भी बिना जाने पूछे पूरे होशो हवास में यह बात कह रहा हूं तुम चाहे जो भी हो तुम्हें मैं अपनी बेटी का हाथ सौंपना चाहता हूं । तुम्हें इस देश का राज्य संभालना चाहता हूं सभी प्रजा के लोगों ने उठकर जोर-जोर से तालियां बजाई ।राजा ने उठकर उसे राजा का ताज पहनाया ।नकली बना राजा अपना सा मुंह लेकर वहां से चला गया ।बाद में दासी के बेटे ने बताया कि वह दासी का बेटा है जो कि आपके महल में ही काम करती थी ।राजा यह जानकर हैरान रह गया परंतु उसने उसे अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर लिया ।उसने अपने किए किए के लिए अपने दामाद से क्षमा मांगी और खुशी-खुशी अपने महल में लौट आया।