दिव्यांशु और दीप्ति दोनों घनिष्ट सहेलियाँ थी। दोनों ही पढ़ने में बहुत ही तेज थी। दीप्ति जो कुछ भी स्कूल में मैडम पढ़ाती उसको बहुत ही ध्यान से सुनती थी। हर पाठ को हर मुश्किल प्रश्नों को अपने समझ और सूझबूझ से याद कर लेती थी। दिव्यांशु भी पढ़ने में तेज थी मगर वह पढ़ाई को कभी भी गंभीरता से नहीं लेती थी। जो कुछ भी मैडम पढ़ाती विद्यालय में कभी ध्यान से नहीं सुनती। घर आकर कुंजी में से सब कुछ याद कर लेती थी। वह भी रटा लगाकर। स्कूल में तो मैडम की प्रशंसा की पात्र थी। वह हर प्रश्न को कुंजी में से याद करके चली जाती। गणित के सवालों को समझकर नहीं रट्टा मार मार कर हल करती थी। वह गणित के सवालों को भी तरीके से हल नहीं करती थी। स्कूल में उसके बहुत ही अच्छे अंक आते थे। वह अपनी कक्षा में हर बार प्रथम आती सभी अध्यापिकाएं दिव्यांशु को बहुत ही प्यार करती। जब भी किसी को कोई प्रश्न नहीं आता तो अध्यापिकाएं कहती कि दिव्यांशु से पूछ लो। दिव्यांशु बच्चों के आगे अपनी कॉपी आगे कर देती परंतु वह बच्चों को क्या समझाती जब वह हर एक प्रश्न को रट्टा मार कर याद करती थी। हर बार की तरह इस बार भी दिव्यांशु अपनी कक्षा में प्रथम स्थान पर आई थी। दीप्ति बहुत ही उदास हो गई। क्योंकि इस बार तो उसने अपनी पढ़ाई के लिए दिन रात एक कर दिया था। इस बार भी वह अपनी कक्षा में प्रथम स्थान हासिल नहीं कर सकी। वह घर में रोती रोती अपनी मम्मी के पास जा कर बोली मां मैं हर बात इतनी मेहनत करती हूं मगर हर बार मेरी अध्यापिका दिवांशु को ही अच्छे अंक देती है ऐसा क्यों? मुझे कई बार लगता है कि चाहे कितनी भी पढ़ लूं मैं कभी भी अच्छे अंक प्राप्त नहीं कर सकती। मां मुझे बताओ मैं क्या करूं? मां ने अपनी बेटी को इतना उदास कभी नहीं देखा था। वह अपनी बेटी के आंसू पोंछ कर बोली बेटी कभी जिंदगी में निराश नहीं होते। बेटा इतना ही तुम्हारे लिए काफी है। तुम हर पाठ को हर प्रश्न को अपने दिमाग में अपनी सूझबूझ से याद करती हो। लेकिन मैंने तुम्हारी सहेली को भी देखा है। जिस दिन मैं तुम्हारे स्कूल में तुम्हारा भाषण सुनने गई थी मैंने उसे याद करते देख लिया था। वह कर याद कर रही थी वह हर एक प्रश्न को रटा मारकर याद करती है। बेटा उदास ना हो। रटा मारने वाले कभी भी सफल नहीं होते हैं। याद करने के लिए तो दिमाग प्रयोग में लाना ही पड़ता है। रटा उसका हर वक्त उसकी मदद नहीं करेगा। इसलिए बेटा निराश ना हो तुम अपनी कक्षा में प्रथम नहीं आई तो क्या बेटा।,? अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है अभी तो तुम्हारी स्कूल की पढ़ाई है। जब वार्षिक परीक्षा होगी और बोर्ड की परीक्षा होगी और प्रश्न पत्र बाहर से छपने कर आएंगे और बाहर ही चेक करेंगे तब तुम्हारी काबिलियत की पहचान होगी। उसकी अर्धवार्षिक परीक्षा हो चुकी थी। दिव्यांशु के ही अच्छे अंक आये।
जब उसने अपना गणित की हल किया हुआ उत्तर पुस्तिका देखी तो उसने मैडम को कहा मैडम आपने मेरा यह सवाल क्यों गलत किया।? मैडम ने कहा मैंने तुम्हारी उत्तर पुस्तिका ठीक ढंग से जांची है। मैंने ठीक अंक दिए हैं। मैडम ने उसकी ठीक प्रश्नों को काटा लगा दिया था। क्योंकि उसने उस प्रश्न को दूसरे तरीके से हल किया था। वह सवाल तो ठीक था। वह अपने विज्ञान के अध्यापक के पास गई और बोली सर क्या आप मेरा यह सवाल देखेंगे? मैडम नें इस सवाल पर काटा लगा दिया है। विज्ञान के अध्यापक ने कहा बेटा तुम्हारा यह प्रश्न तो बिल्कुल ठीक है। उसने अपने विज्ञान के अध्यापक को कहा श्रीमान जी मैडम ने मेरे इस सवाल को गलत कर दिया है। उसके दस अंक काट लिए हैं।
दिव्यांशु को बुलाया गया अध्यापक ने दिवांशु को कहा कि तुमने यह सवाल किस तरह हल किया? दिव्यांशु ने तो उस सवाल को हल रटा लगाकर किया था। परंतु सवाल को हल करने का सही ढंग मालूम नहीं था। क्योंकि उसने उस प्रश्न को कूंजी से रटालगाकर किया था। विज्ञान के अध्यापक मैडम के पास आकर बोले मैडम जी आपने दीप्ति के दसअंक क्यों काटे। उसका सवाल तो बिल्कुल ठीक था मैडम ने उसका सवाल देखा परंतु फिर बात बदल कर बोली शायद मैंने अच्छे ढंग से चेक नहीं किया होगा। सर ने कहा आपको इस सवाल के कम से कम आठ अंक तो देनें ही थे। उसका उत्तर ही गलत था। बाकी उसका सारा तरीका तो ठीक था।
उसकी मैडम को गुस्सा आ गया वह हर एक बात पर दिप्ती से खफा रहने लगी। दीप्ति समझ चुकी थी कोई बात नहीं बोर्ड की परीक्षा में ही देखा जाएगा। मुझे प्रथम स्थान से कुछ लेना-देना नहीं है। वह पहले की तरह दिन रात मेहनत कर रही थी उसकी अर्द्धवार्षिक परीक्षाएं आने वाली थी। प्रश्नपत्र बाहर से आए थे और प्रश्न पत्र इस तरह से आए थे कि जिन्होंने रटा लगाकर याद किया था वह तो कुछ भी प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकता था। दिव्यांशु बहुत ही घबरा गई थी क्योंकि उसके रट्टा की हुए कोई भी प्रश्न नहीं आए थे। उसने देखा दीप्ति बहुत ही खुशी खुशी प्रश्नों के उत्तर लिखने में व्यस्त थी। दिव्यांशु का पेपर अच्छा नहीं हुआ। वार्षिक परीक्षा का परिणाम भी आने वाला था।
सुबह से ही बाजार में काफी रौनकथी। उसका परीक्षा परिणाम निकले ही वाला था। दिप्ती को उसकी मम्मी ने आकर आश्चर्यचकित कर दिया बेटा तुम बोर्ड की परीक्षा में तुम्हारा प्रथम स्थान आया है। अचानक दीप्ति बोली मम्मी दिव्यांशु के कितने अंक आए हैं। उसकी मम्मी बोली बेटा वह पास तो हो ग्ई परंतु उसके तो सबसे कम अंक आए हैं। उसकी मम्मी ने उसे गले लगाते हुए कहा चलो बेटा आज मैं तुम्हें बाहर खाना खिलाने ले चलती हूं।
स्कूल में सारे के सारे अध्यापक हैरान हो गए दीप्ति कक्षा में सबसे अच्छे अंक लेकर आई थी दिव्यांशु की मम्मी स्कूल आकर बोली मेरी बेटी परीक्षा में बीमार हो गई थी। इसलिए उसके अच्छे अंक नहीं आए हैं जब वह पीएमटी की परीक्षा देगी तब देखना। उसकी मां ऐसा बोल कर चली गई। दोनों सहेलियां पीएमटी की परीक्षा में बैठी। इस बार भी दिप्ती डॉक्टर बनने के लिए सिलेक्ट हो गई थी। दिव्यांशु को भी समझ में आ चुका था कि रटालगाने से कुछ भी हासिल नहीं होता। रटा कुछ एक समय तक तो ठीक होता है। हमें हर प्रश्नों को समझ और बुद्धि से हल करना चाहिए। उसने दीप्ति को अपनी सहेली बना लिया और दीप्ति से प्रश्न को किस प्रकार हल करना है उसे सही तरीके से हल करने का तरीका भी सीख लिया। वह सोच समझकर याद करती थी। वह प्रथम पहली बार तो पी एम टी टेस्ट में नहीं निकली दूसरे प्रयास की परीक्षा में सफल हो गई।
स्कूल से विदा होते हुए उसने सभी अध्यापिकाओं को कहा मैडम मेरी सहेली ने आज मुझे हौसला ही नहीं दिया होता तो मैं कभी भी पी एमटी टेस्ट में नहीं निकल सकती थी। स्कूल में तो मैं हर प्रश्न को रट्टा मार कर याद कर लेती थी। परंतु मेरी सहेली ठीक ही कहती है हमें हर प्रश्न के उत्तर को सही तरीके से हल करने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए मैं अपनी सहेली को सारा श्रेय देती हूं। उसने मुझे हर प्रश्न का उत्तर किस तरह हल करना है मुझे गाइड किया। अगर मेरी सहेली नहीं होती आज मैं डॉक्टर की परीक्षा में कभी नहीं निकल सकती थी। दिव्यांशु की मम्मी ने भी दीप्ति को धन्यवाद कहा और बोली ऐसी होनहार बेटी सबको दे। सभी अध्यापिकाओं ने दीप्ति को गले से लगाया और उसे प्रथम आने पर ईनाम दिया। ईनाम पाकर दीप्ति गर्व महसूस कर रही थी। क्योंकि उसे अपने माता-पिता का नाम ही रोशन नहीं किया था मगर उसने अपनी सखी को भी ज्ञान देखकर उसके भविष्य को उज्जवल किया था।