धरती की मूल्यवान धरोहर भाग 2

नंदलाल अपना परीक्षा परिणाम जानने के लिए स्कूल गया था। उसका बारहवीं कक्षा का परिणाम आने वाला था। वह मन ही मन सोच रहा था कि हे भगवान! इस बार तो मुझे पास कर ही दो। यह पढ़ाई वढ़ाई मे

रे बस की बात नहीं। बस इंटरव्यू देकर कहीं नौकरी कर लूंगा। उसको पढ़ने का शौक नहीं था वह अपना परिणाम जानने के लिए बड़ा  आतुर था।  इंटरनेट पर सूचना आ चुकी  थी। उसके अध्यापकों ने कहा हमें अपना रोल नंबर दे दीजिए। हम तुम सब बच्चों का परिणाम बता देंगे।

थोड़ी देर बाद अध्यापक बच्चों के पास आए और सभी को उनके अंक बताएं। नंदलाल पास हो गया था। वह खुशी के मारे उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। शाम को उसके पिता ने कहा बेटा पढ़ाई वढाई तुम्हारे बस की बात नहीं यह तो शुक्र करो पास हो गए।  फॉरेस्ट ऑफिसर का पद  रिक्त है तुम्हें इंटरव्यू के लिए बुलाएंगे। अगर तुम जब इंटरव्यू में चुन कर निकल जाओगे

हो जाओगे तो ठीक है नंदलाल सोचनेंलगा मुझसे क्या क्या पूछेंगे?

इंटरव्यू के लिए नंदलाल को बुलाया गया वह जरा भी नहीं डरा। उसने सभी प्रश्नों के उतर बिना सोचे समझे थे डाले।

लिखित परीक्षा में उसने अपने दोस्त श्याम की नकल कर दी। और फॉरेस्ट गार्ड के लिए उसको चुन लिया गया। नौ महीने के प्रशिक्षण के बाद उसको चुन लिया गया। अब उसे फारेस्ट के तौर पर पहले जंगलात विभाग में गार्ड के पद पर तैनात किया गया। उसने अपने पद को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया। जंगल में कई बार लोग पेड़ों को काटने आते तो वह उनको कभी सजा नहीं देता था। लोग पेड़ों को बड़ी बेरहमी से काट काट देते थे। उन्हें बाहर  बेच देते थे। उस काम में उसने भी उन सभी लोगों को काटने से मना नहीं किया। तुम पेड़ों को काट सकते हो जब तक मेरी ड्यूटी  इस क्षेत्र में है, तब तक तुम मेरे यहां होनें का भरपूर आनंद उठाओ। तुम इन को बाजार में बेचोगे तो उसका आधा हिस्सा मुझे भी मिलना चाहिए। लोग उसकी बात मान जाते। इतना घटिया काम करते उसे जरा  सी भी लाज नहीं आती। बस सारा दिन जंगल में इधर उधर मटरगस्ती करता रहता! ड्यूटी तो नाम मात्र को करता। वहां पर पेड़ के नीचे काफी काफी देर तक सोता रहता। उनके बॉस ने उसे क्यारियों पौधों की देखभाल का दायित्व भी सौंपा था।  लोग चुपचाप फूल तोड़ कर ले जाते बागों में फल फूल सब चुरा कर ले जाते। वह चुपचाप सोया  रहता। उसकी पत्नी उतनी ही  नेक दिल इन्सान. थी। उसका स्वभाव अपने पति के बिल्कुल विपरीत था। उसने अपने घर में इतना बड़ा बगीचा लगा रखा था। वह हर रोज उसकी देखभाल करती थी।उसने अपनें घर के बगीचे में तरह तरह की सब्जियां लगाई थी। उसके लिए उसनें इतने बड़े बड़े दो खेत  लिए हुए थे। जिसमें दिन रात मेहनत करके वह सब्जियों को उगाती थी। वह उन सब्जियों को ले जा कर बाजार में बेचती। उसे सब्जियों को बेच कर काफी रुपए मिलते।

एक दिन की बात है कि नंदलाल जंगल में एक वृक्ष के नीचे सोया हुआ था। उसको सपना दिखाई दिया। उस सपने में  एक औरत दिखाई दी। वह बोली तुम एक बहुत ही बेईमान इंसान  हो। रुपयों के लालच में इतना गिर जाओगे यह तो मैंने सोचा ही नहीं था।तुम्हारे पास नौकरी नहीं थी जब  तुम भगवान के मंदिर में माथा टेकने जाते थे और हर रोज प्रार्थना करते थे कि हे भगवान!  जब नौकरी मिल जाएगी तब मैं कभी भी लालच नहीं करूंगा। ईमानदारी का जीवन जीऊंगा।  तुमने तो धरती मां का अपमान किया है। तुम कभी खुश नहीं रहोगे। जिन पेड़ों से हमें जीवन दान मिलता है तुम उन्हें हर रोज ना जाने कितना नुक़सान पंहूंचाते हो और उन्हें हर रोज काटनें पर अपनें दोस्तों को मना भी नहीं करते हो। तुम्हें अत्याधिक पेड़ लगाने चाहिए।तुम   अंधाधुंध  पेड़ो को कटवाकर और जीव जन्तु ओन को मार कर इनका गोश्त खाते हो। तुम्हें तो इन सभी चोरी करने वालों को सलाखों के पीछे भेजना चाहिए था। कहां तुम भी इस काम में संलिप्त हो गए?तुम देखने में भोले लगते हो और अंदर से शातिर हो।तुम शेन धरती की पवित्र धरोहर का अपमान किया है, इसके लिए तुम्हें सजा तो अवश्य ही मिलनी चाहिए ।अचानक ही उसकी नींद टूट  गई। वह आंखें मलता उठ बैठा। यह मैंने  सपने में क्या देखा? धरती मां ने मुझे सचमुच में ही मेरी सच्चाई मुझे दिखा दी। मैं भोला-भाला दिखाई देता हूं परंतु भोला नहीं हूं।

हे भगवान! आज से मैं कान पकड़ता हूं।मैं अब अपने आप को सुधार कर ही दम लूंगा। मैं राह से भटक गया था। मेरी मां ने मुझे रास्ता दिखाया है। वहजब घर पहुंचा तो उसकी पत्नी रो रही थी वह बोला भाग्यवान तुम्हें क्या हुआ है?वह बोली मेरी खेती को कोई उजाड़ गया है। मैंने न रात-दिन मेहनत करके सारी सब्जियां लगाई थी। वे सारी की सारी नष्ट हो चुकी हैं। न जानें किसके पशु आकर हमारे खेत को तहस-नहस कर गए। अब की बार हमारे खेत में कुछ भी फसल नहीं होगी। यह कहकर वह जोर जोर से रोने लगी। अचानक नंदलाल को भी अंदर से दर्द महसूस हुआ। नंदलाल को महसूस हो गया जब मेरे जंगल में कोई पेड़ काटने आता था तब मैं सब को कहता था हां भाई काट लो। मुझे अंदर से दर्द महसूस नहीं होता था। जब मेरे घर की हरी-भरी खेती नष्ट हुई तब कहीं जा कर मुझे यह बात समझ में आई।

उसकी पत्नी ने 2 दिन तक खाना नहीं खाया। वह भी बहुत उदास हो गया था। दूसरे दिन सुबह सुबह ही उठ कर जंगल चला गया। अचानक बीच-बीच में उसे जंगल में नींद आ जाती थी। उसे फिर से वही सपना दिखाई दिया। धरती मां ने उसे कहा बेटा अब तो तुम्हें समझ आ ही गया होगा। जब चोट अपने ऊपर   लगती है तभी इन्सान समझता है। तुम्हें राह दिखाना मेरा फ़र्ज़ था।

अच्छा,सुनों इस जंगल के दूसरे छोर में कुछ लोगों ने जंगल में आग लगाई है। तुम्हें उन लोगों को सलाखों के पीछे पहुंचाना है। तुम समझ गए होंगे ।अभी भी समय है। सुधर जाओ उसनें धरती मां के पैर पकड़ लिए। उसे चेतना आ गई थी। उसने सच में धरती मां के पैर छुए और कसम खाई कि मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आज मैं नेक काम करने जा रहा हूं। मुझे आशीर्वाद दो। वह नीचे जमीन पर लेट गया। उसने देखा कि उस वाटिका में लगा हुआ फूल उसके पांव के पास गिरा। उसने उस फूल को उठाया और अपनी जेब में भर लिया।

उसनें जंगल के दूसरे छोर में जाकर उन आग लगाने वाले लोगों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। उसने सभी अपराधियों को सजा दिलाई जो पेड़ों को काटते थे। वह समझ गया था कि धरती मां की इस मूल्यवान धरोहर को हमें बचाना होगा। हम इस धरती की मूल्यवान धरोहर को बचा नहीं पाए तब तक हम सभी मायनों में भारत मां के सच्चे सपूत नहीं कहला सकते। धन्यवाद!

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